tag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post1624535233282207421..comments2024-01-31T15:59:22.446+05:30Comments on संवेदना संसार: समालोचना !!!रंजनाhttp://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comBlogger64125tag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-17719385815452109772009-09-23T20:52:25.094+05:302009-09-23T20:52:25.094+05:30जोधपुर की एक साहित्य गोष्टी में डा.रमाकान्त ने कहा...जोधपुर की एक साहित्य गोष्टी में डा.रमाकान्त ने कहा की किसी भी जीवित रचनाकार की आलोचना नहीं की जानी चाहिए.कई अच्छे साहित्यकार आलोचकों की वजह से असमय काल कलवित हो गए.Vipin Behari Goyalhttps://www.blogger.com/profile/08342317954084526608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-26651111674568272282009-09-22T10:31:53.599+05:302009-09-22T10:31:53.599+05:30आपके लेखन से प्रभावित हुआ।आपके लेखन से प्रभावित हुआ।Kamlesh Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12105690400205970635noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-46466907655099323852009-09-21T19:27:10.231+05:302009-09-21T19:27:10.231+05:30वाकई में भाव तो सकारात्मक होने भी चाहिए.....
लेकिन...वाकई में भाव तो सकारात्मक होने भी चाहिए.....<br />लेकिन गलत राह को पकड़ते समय....आलोचना उसे थामती भी है पर यहाँ भी अगले का पहलू सकारात्मक की होना चाहिए.....लोकेन्द्र विक्रम सिंहhttps://www.blogger.com/profile/08180984515356933377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-3237596767084651332009-09-19T00:53:11.345+05:302009-09-19T00:53:11.345+05:30satik mudda bahut hi gahera visay per aapne sahi m...satik mudda bahut hi gahera visay per aapne sahi muddda uthaya hai .aur aapki nnhasha per pakad acchi hai ye hi aapke lekhan ki kamyabi hai "<br /><br />----- eksacchai {AAWAZ }<br /><br /> http://eksacchai.blogspot.com<br /><br />http://hindimasti4u.blogspot.comTulsibhaihttps://www.blogger.com/profile/08821328992864186623noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-61478247096020839602009-09-18T16:01:23.698+05:302009-09-18T16:01:23.698+05:30"परन्तु अपने आत्मीय जनों या जिनपर हमें अपार आ..."परन्तु अपने आत्मीय जनों या जिनपर हमें अपार आस्था हो, अनपेक्षित रूप से यदि आलोचना मिले या प्रोत्साहन न मिले,तो हतोत्साहित हताश होना स्वाभाविक है."<br /><br />बात तो सही है, <br />पर अपने पास तो कथा के रूप में एकदम ठोस उदाहरण या कहें आदर्श है. मन से माने गुरु द्रोण से एकलब्य ने भी तो अपमान ही पाया था, पर वह हताश न हुआ, सिर्फ देख कर अनुभव कर अपने युद्ध कौशल में पूर्ण तन्मयता से ही तो विकास किया था ..................<br /><br />अपने परम मित्र को एकलव्य बनने की सलाह दें..............<br /><br />चन्द्र मोहन गुप्तMumukshh Ki Rachanainhttps://www.blogger.com/profile/11100744427595711291noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-58344522467709006012009-09-17T20:33:46.232+05:302009-09-17T20:33:46.232+05:30बिलकुल सही कहा आपने बात आलोचना समालोचना से ऊपर की ...बिलकुल सही कहा आपने बात आलोचना समालोचना से ऊपर की है......जिसके प्रति आस्थाएं हो और वही इसे खंडित कर दे तो बुरा लगेगा ही..दोस्त को समझाइये जीवन में हार नहीं माना करते रचनाधर्मिता में ये सब चलता रहता है.....Pawan Kumarhttps://www.blogger.com/profile/08513723264371221324noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-30043113012208969712009-09-16T16:53:06.824+05:302009-09-16T16:53:06.824+05:30aalochna kisi lekh , kavita ya kabhi kabhi vaykti ...aalochna kisi lekh , kavita ya kabhi kabhi vaykti ke aadarshon ki honi chahiye , bina kisi 'poorvagrah' ke...<br /><br />...tabhi wo alochna ke ek sidhi upar uth kar 'samalochna' ho jaati hai.<br /><br />Saargarbhit lekh.दर्पण साहhttps://www.blogger.com/profile/14814812908956777870noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-49017117467787621872009-09-15T22:00:35.454+05:302009-09-15T22:00:35.454+05:30बेहतरीन.... वाह..बेहतरीन.... वाह..योगेन्द्र मौदगिलhttps://www.blogger.com/profile/14778289379036332242noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-66481507396230441332009-09-15T19:17:34.409+05:302009-09-15T19:17:34.409+05:30bahut hi badhiya likhti hain aap..tareef ke liye s...bahut hi badhiya likhti hain aap..tareef ke liye shabd nahi hain..<br />likhti rahein aise hi..स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-33541359224587170202009-09-15T19:13:52.866+05:302009-09-15T19:13:52.866+05:30"यह सतत स्मरणीय है कि समालोचना क्रम में सदैव ..."यह सतत स्मरणीय है कि समालोचना क्रम में सदैव सकारात्मक रहें,नहीं तो आपकी नकारात्मक उक्ति किसी की रचनात्मक प्रतिभा को समूल नष्ट कर सकती है..."<br /><br />एकदम सही कहा आपने.. हैपी ब्लॉगिंगआशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal)https://www.blogger.com/profile/11809821246121726944noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-25558589113354261412009-09-15T19:13:51.340+05:302009-09-15T19:13:51.340+05:30"यह सतत स्मरणीय है कि समालोचना क्रम में सदैव ..."यह सतत स्मरणीय है कि समालोचना क्रम में सदैव सकारात्मक रहें,नहीं तो आपकी नकारात्मक उक्ति किसी की रचनात्मक प्रतिभा को समूल नष्ट कर सकती है..."<br /><br />एकदम सही कहा आपने.. हैपी ब्लॉगिंगआशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal)https://www.blogger.com/profile/11809821246121726944noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-56041225764271184242009-09-14T20:38:47.851+05:302009-09-14T20:38:47.851+05:30सही बात है कई बार दूसरों द्वारा कही गई साधारण से ब...सही बात है कई बार दूसरों द्वारा कही गई साधारण से बात भी हमें मर्मान्तक पीडा पहुंचा देती है ,बस्तुत: उस वक्त हमारा ही मस्तिष्क असंतुलित रहा होता है ,और कभी हम प्रमुदित अवस्था में होते हैं तो गंभीर बात भी सहज स्वीकार कर लेते हैंप्रिय सखी का डिप्रेशन में आजाना स्वभाबिक है ,लेकिन उस बरिष्ठ साहित्यकार की भर्त्सना को यदि सहन कर लिया जाता तो ? मैं एक बात कहूं साहित्यकार संजीव (राम सजीवन प्रसाद ) ने कहानी लिखी 'अपराध ' नरेंद्र नाथ ओझा जी को सुनाई ,सुनकर बोले " और कोई घास भूसा नहीं था जो उसमे भर देते " वह कहानी सारिका में सन ८० में पर्काशित हुई पुरस्कृत हुई ,देश के साहित्यकारों ने संजीव को जाना | आज सर्वाधिक १० प्रकाशित कहानी संग्रह और आठ प्रकाशित उपन्यास उनके खाते में हैं<br />यह बात कह कर मैं आपके लेख का विरोध जाताना ,या अपना पांडित्य प्रदर्शन करना जैसा कुछ नहीं है क्योंकि आप ने एक आम व्यक्ति की बात की है और मैंने अपवाद की क्योंकि अपवाद बिरले ही हुआ करते हैं<br />यह बिलकुल सत्य है की आत्मीय जनों की आलोचना ही अखरती है |लेकिन हिन्दी साहित्य का यह दुर्भाग्य ही है की उसके आलोचक नहीं हैं |अज्ञेय जी ने भी कहा था आलोचना है आलोचक है पर आलोक नहीं है | जहाँ तक आलोचक के बजन का प्रश्न है मैंने सुना है शायर की मौत दो तरह से होती है एक तब जब कोई जानकर उसका शेर सुन कर चुप रह जाये और दूसरी तब जब कोई नावाकिफ शेर सुन कर बिना समझे दाद दे दे<br />वैसे कुछ लोग जन्मजात आलोचक होते है ऐसे लोगों को भी गोस्वामी जी ने प्रणाम ही किया है क्योंकि 'जे बिन काज दाहिने वाये -विघ्न संतोषी -जब तक बिघ्न पैदा न करदें उन्हें संतोष ही नहीं मिलता है<br />आपका लेख उत्साह वर्धक हैBrijmohanShrivastavahttps://www.blogger.com/profile/04869873931974295648noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-52807642358679561622009-09-14T19:03:31.662+05:302009-09-14T19:03:31.662+05:30कितना गहरा सोचती है आप....ओर भाषा .......क्या कहूँ...कितना गहरा सोचती है आप....ओर भाषा .......क्या कहूँ....हिंदी भाषा पर आपकी पकड़ बेमिसाल है ..डॉ .अनुरागhttps://www.blogger.com/profile/02191025429540788272noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-39093339963324490552009-09-13T23:57:52.454+05:302009-09-13T23:57:52.454+05:30रंजना जी ! आपने एक बहुत ज्वलंत और लेखक बिरादरी से ...रंजना जी ! आपने एक बहुत ज्वलंत और लेखक बिरादरी से सीधे जुड़े मुद्दे को उठाया है और उसका सही समाधान भी प्रस्तुत किया है ! इस नकारात्मक आलोचना का दंश मैंने बहुत निकट से झेला है और वह भी उस उम्र में जब लेखन एक आकार ले रहा होता है ,उमंगों को पंख मिलते है ,परिणाम यह हुआ की २० वर्षों तक मेरा लेखन पूर्णतः बंद रहा और मैं अपने ही खोल में सिमटा रहा (आज भले ही इसे आप मेरा दोष कह सकते हैं ) ! आपका यह सार्थक लेख नए लेखकों को प्रेरणा और नकारात्मक सोच वाले तथाकथित आलोचकों को सद्बुद्धि प्रदान करे , यही कामना है !ललितमोहन त्रिवेदीhttps://www.blogger.com/profile/00016270901781656893noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-38839625533273539282009-09-12T11:47:42.625+05:302009-09-12T11:47:42.625+05:30आपकी बात अर्धसत्य है। समालोचना वह चक्षु है जो हमार...आपकी बात अर्धसत्य है। समालोचना वह चक्षु है जो हमारा मार्गदर्शन और दिग्दर्शन कराता है। अत: यह जरूरी नहीं कि रचना के पक्ष में सदैव कसीदे ही पढ़ें जायें। समालोचना हमेशा बेहतर कार्य करने के लिये हमें उत्प्रेरित करती है बशर्ते कि समालोचक पूर्वाग्रह से ग्रसित न हो।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-81727301856278098392009-09-12T11:18:10.388+05:302009-09-12T11:18:10.388+05:30भाषा-प्रवाह, शैली और इतनी सधी हिंदी....आह!
पोस्ट ...भाषा-प्रवाह, शैली और इतनी सधी हिंदी....आह!<br /><br />पोस्ट पे शिक कुमार मिश्र जी के अंदाज़े-बयां के बाद कह लेने को तो कुछ शेष रहता ही नहीं अब!<br /><br />"स्नेह-आधार" वाली तस्वीर बहुत भायी...गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-83737014998466115842009-09-12T10:19:32.469+05:302009-09-12T10:19:32.469+05:30रंजना जी आपकी कलम के बारे मै कुछ कहना शायद बस के ब...रंजना जी आपकी कलम के बारे मै कुछ कहना शायद बस के बात नहीं ..<br />या यूँ कहो की मुझमें काबलियत नहीं कुछ कहने की .<br />आपका लेखन इतना प्रभावशाली है की आपके व्यक्तित्व की छाप जेहन में अमिट है..निर्झर'नीरhttps://www.blogger.com/profile/16846440327325263080noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-44714988330506244832009-09-11T22:23:53.671+05:302009-09-11T22:23:53.671+05:30पूरी पोस्ट पढने से पहले ही अर्थात अधूरी पोस्ट पढने...पूरी पोस्ट पढने से पहले ही अर्थात अधूरी पोस्ट पढने पर ही टिप्पणि के लिए जो पन्क्तियाँ दिमाग में उपजीं वे आगे आपकी पोस्ट में भी मिलीं -<br /> " खुदी को कर बुलंद इतना,कि खुदा भी बन्दे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है..."hem pandeyhttps://www.blogger.com/profile/08880733877178535586noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-81016055895197755552009-09-11T19:34:10.187+05:302009-09-11T19:34:10.187+05:30पता नहीं इतना बदिया आलेख कैसे देखने से रह गया । सम...पता नहीं इतना बदिया आलेख कैसे देखने से रह गया । समालोचना सकारात्मक होनी चाहिये मगर कभी कभी आलोचना लेखक को सही राह भी दिखाती है आलोचना की भाशा पर निर्भर करता है बदिया विशय है आभार्निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-57163123697377876722009-09-11T19:21:59.626+05:302009-09-11T19:21:59.626+05:30समालोचना से बचा नहीं जा सकता। यह जीवन का अपरिहार्य...समालोचना से बचा नहीं जा सकता। यह जीवन का अपरिहार्य हिस्सा है।<br /><a href="http://za.samwaad.com/" rel="nofollow">-Zakir Ali ‘Rajnish’</a> <br /><a href="http://ts.samwaad.com/" rel="nofollow">{ Secretary-TSALIIM </a><a href="http://sb.samwaad.com/" rel="nofollow">& SBAI }</a>Dr. Zakir Ali Rajnishhttps://www.blogger.com/profile/03629318327237916782noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-22000910047335887682009-09-11T13:11:40.697+05:302009-09-11T13:11:40.697+05:30jee han, samalochna to isee ka naam hai. alochna b...jee han, samalochna to isee ka naam hai. alochna bhee to ek tarah kee rachna hee hai, jab log iska istmaal dusre ko kam karne ke liye karte hain to wah aalochna kahan rah jatee. wah to ninda hai.<br />aap hamesa +ve likhtee hain. badhaee.रंजीत/ Ranjithttps://www.blogger.com/profile/03530615413132609546noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-12319428174497046642009-09-11T01:10:33.822+05:302009-09-11T01:10:33.822+05:30बहुत काम की बातें बताई हैं आपने. इनके अलावा एक बात...बहुत काम की बातें बताई हैं आपने. इनके अलावा एक बात और भी हो सकती है. वह यह कि आलोचना चाहे सही हो या गलत, हम उससे हमेशा ही अपना सुधार कर सकते हैं. संत कबीर के शब्दों में, "निंदक नियरे राखिये..." मैं आपकी मित्र से सहानुभूति नहीं रख पा रहा हूँ क्योंकि हममें आलोचना सुनने और सहने की शक्ति होनी ही चाहिए. अगर आलोचना झूठी है तो वह हमारे कर्मों से स्वतः सिद्ध हो जाएगा.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-84086214795950911162009-09-11T00:35:56.164+05:302009-09-11T00:35:56.164+05:30aapke vichar padhe,unme upeksha ki pida hai ,akela...aapke vichar padhe,unme upeksha ki pida hai ,akela kar diye jane ki peeda bhi aur joojhne ki lalasa bhi,aap sada safal hongi yah vishvash hai hame.<br />shubhkamnayen aapko,<br />sadar.<br />dr.bhoopendraडॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंहhttps://www.blogger.com/profile/07345306084462566690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-5636287916234828222009-09-10T15:46:17.852+05:302009-09-10T15:46:17.852+05:30यह शिवकुमार मिश्र को क्या भवा? पीठ का दर्द बढ़ गया ...यह शिवकुमार मिश्र को क्या भवा? पीठ का दर्द बढ़ गया क्या? <br />हमें भी अनुभव है - जब स्पॉण्डिलाइटिस कष्ट देता है तो ज्यादा बुद्धिमानी (पढ़ें न समझ में आने वाली) निकलती है! :)Gyan Dutt Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/05293412290435900116noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3630123509017373846.post-87033033025726234162009-09-10T09:26:14.200+05:302009-09-10T09:26:14.200+05:30आप ने लिखा -
सामान्यतया यदि व्यक्ति सकारात्मकता से...आप ने लिखा -<br />सामान्यतया यदि व्यक्ति सकारात्मकता से गहरे जुड़ा होता है तो उसका विवेक भी उतना ही जागृत होता है ..]<br />जो भी कहना चाहिए बहुत सोच कर कहना चाहिये क्योन्कि कई बार लोग सोचते हैं कि वे जो कह रहे हैं बहुत समान्य सी बात है मगर सामने वाले के मन और दीमाग पर उसका कैसे असर पडेगा यह ना जानने की कोशिश करते हैं न समझने कि ही...<br />अच्छी लगीं आप की बातें.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.com