21.6.10

प्रेम से तुमने देखा जो प्रिय !!!

प्रेम से तुमने देखा जो प्रिय,
मन मयूर उन्मत्त हो गया.

विदित हुआ मुझ में अनुपम सा,
सब कुछ प्रकृति प्रदत्त हो गया.

मन-चातक यूँ तृप्त हुआ ज्यों,
स्वाति का वह नीर पा गया.

जेठ की तपती दोपहरी में ,
वसुधा ने बरसात पा लिया...

रख लो हे प्रिय उर में भरकर,
घुल सांसों संग बहूँ निरंतर.

चाहूँ भी तो ढूंढ न पाऊं,
स्वयं को खो दूँ तुममे रमकर.

न ही चाहना धन वैभव की,
न ही कामना स्वर्ग मोक्ष की.

हृदय तेरे बस ठौर मिले औ,
मुखाग्नि पाऊं तेरे कर...


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48 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मन को छू गये भाव...
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इंसानों से बेहतर चिम्पांजी?
क्या आप इन्हें पहचानते हैं?

adwet said...

रख लो हे प्रिय उर में भरकर,
घुल सांसों संग बहूँ निरंतर.

sudnder prem geet.

निर्मला कपिला said...

न ही चाहना धन वैभव की,
न ही कामना स्वर्ग मोक्ष की.

हृदय तेरे बस ठौर मिले औ,
मुखाग्नि पाऊं तेरे कर...
ैस से अच्छी चाह और क्या हो सकती है। बहुत बडिया रचना बधाई

शिवम् मिश्रा said...

बेहद उम्दा | शुभकामनाएं !

सुशीला पुरी said...

bahut sundar likha hai aapne ....

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रचना

Udan Tashtari said...

चाहूँ भी तो ढूंढ न पाऊं,
स्वयं को खो दूँ तुममे रमकर.


-संपूर्ण एवं गहन समर्पण भाव से सारोबार बेहतरीन रचना. बहुत बधाई..

विवेक रस्तोगी said...

इस कविता में आपका समर्पण दिख रहा है, शब्दों से आपने सबकुछ कह दिया, हमारा भी प्रणाम ।

प्रवीण पाण्डेय said...

तेरी आँखों में अब अपने जग मुझको दिख जाते हैं,
तेरे बिन सारे आकर्षण निष्प्रभ समय बिताते हैं ।
तुम तब आयी, समझी जीवन और स्वयं को सिद्ध किया,
विस्तृत नभ अब दीख रहा है, क्यों जीवन अवरुद्ध जिया ।
प्रेम हृदय का तृप्त हो गया, वचन कर्म से व्यक्त हो गया,
मन रखने को झूठ कहा था, किन्तु आज वह सत्य हो गया ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर भाव ..प्रेम की पराकाष्ठा ...

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर रचना!

P.N. Subramanian said...

ऐसे कोमल भावों को सुन्दर शब्दों में पेर कर वय जयंती माला बनायीं है. मन प्रसन्न हो गया. आभार.

वाणी गीत said...

न ही चाहना धन वैभव की,
न ही कामना स्वर्ग मोक्ष की...

प्रिय की प्रेम भरी नजर ...और क्या चाहिए ...
सुन्दर मधुर गीत ...!!

हमारीवाणी said...

आ गया है ब्लॉग संकलन का नया अवतार: हमारीवाणी.कॉम



हिंदी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों के लिए खुशखबरी!

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दिगम्बर नासवा said...

प्रेम की बहुत मधुर पावन कल्पना .. सुंदर रचना की उत्पत्ति है ...

شہروز said...

अब ऐसी रचनाएं दुर्लभ होती जा रही हैं जहां शास्त्रीय ढंग से भाव की अभिव्यक्ति की गयी हो.
अपने ब्लॉग हमज़बान में जाएँ ज़रूर यहाँ भी के तिहत रंजना दी की संवेदना नाम से आपके ब्लॉग का लिंक दिया है.अब आना-जाना बना रहेगा.

लेकिन यदि अन्यथा न लें तो कहूँ...आपके यहाँ एक घोर आपत्तिजनक ब्लॉग का लिंक देख कर चकित हुआ.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

sundar abhivyakti ranjna ji...bahut hee achha laga padh kar!

डॉ .अनुराग said...

अच्छा लगा ये मूड भी .....विशेष तौर पे ये पंक्तिया


हृदय तेरे बस ठौर मिले औ,
मुखाग्नि पाऊं तेरे कर...

पारुल "पुखराज" said...

सुन्दर भाव ..प्रेम di

Shiv said...

बहुत सुन्दर कविता.

स्वाति said...

न ही चाहना धन वैभव की,
न ही कामना स्वर्ग मोक्ष की.

हृदय तेरे बस ठौर मिले औ,
मुखाग्नि पाऊं तेरे कर...

बहुत सुन्दर भाव...

Apanatva said...

bahut madhur bhavliye pyaree rachana.

pran sharma said...

AAPKAA YAH NAYAA ROOP DEKH KAR
BADAA SUKHAD LAGAA HAI.SEEDHE-
SAADE SHABDON MEIN JO PYAARE-
PYAARE BHAAV AAPNE SANJOYE HAIN VE
MUN-MASTISHK MEIN SAMAA GAYE HAIN.
SUNDAR PHOOLON KEE MAALAA BANAA
DEE HAI AAPNE.

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

प्रेम से तुमने देखा जो प्रिय !!!
एक आदर्श भारतीय नारी की कविता है , जो एक बार अपने प्रिय को समर्पित हो'कर , संपूर्ण जीवन प्रिय के प्रति समर्पण और त्याग भाव के साथ बिता कर , अंततः इस संसार से सुहागिन के रूप में ही विदा होना चाहती है ।
बहुत सुंदर भाव , सुगठित शिल्प , मनभावन कथ्य !
… एक पूर्ण काव्य रचना के लिए बधाई !

आपके सुखद् सौभाग्यशाली दाम्पत्य जीवन के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं - शुभकामनाएं !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Hari Shanker Rarhi said...

bade hi saral shabdon mein likhi ye kavita shant ras kaachchha prabhav chodati hai.

Atmaram Sharma said...

मन-चातक यूँ तृप्त हुआ ज्यों,
स्वाति का वह नीर पा गया.

अच्छा लगा.

Dev said...

Prem se jo tumane dekha priya... Really gr8 poem and really very nice..Regards

The Lines Tells The Story of Life....Discover Yourself

hem pandey said...

हमारी तो परम्परा है सभी के कल्याण हेतु प्रार्थना करने की-
सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामया

- सम्पूर्ण समर्पण का भाव जो भारतीय नारी की विशेषता है.

Manish Kumar said...

achcha laga padhkar prem ki chashni mein doobi lagi poori kavita

अरुणेश मिश्र said...

गीत की भावनाएँ अत्यन्त प्रेमिल हैं । गीत कहीं कहीं प्रवाह माँगता है । अन्तिम पंक्तियों को बदलें ; प्रशंसनीय ।

अनामिका की सदायें ...... said...

insan k liye santushti paa jana sabse bada dhan mana jata he lekin ye aajkal kisi k paas nahi.aapki rachna me is dhan ki bahulyta dikhi jo acchhi lagi aur prem ki parakashtha to wah wah...kya kahne. bahut sunder shabdo se sajayi rachna.

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

भारतीय नारी की कोमल, स्वच्छ और समर्पण भावना लिए सुन्दर प्रस्तुति.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

ek sachchi aur nirmal rachna....:) dil ko chhuti hui.......:)

प्रज्ञा पांडेय said...

prem men pagii ek khoobsoorat rachana... badhayi..

Aruna Kapoor said...

प्रेमभाव की उत्तम अनुभूति!

मन-चातक यूँ तृप्त हुआ ज्यों,
स्वाति का वह नीर पा गया.

जेठ की तपती दोपहरी में ,
वसुधा ने बरसात पा लिया...

रंजू भाटिया said...

बहुत सुन्दर बेहद पसंद आई हर पंक्ति ....

girish pankaj said...

chhandon ke prati anurag ab kam hotaa ja rah hai. aap ne koshish kee hai. koshish nahi, sarthak lekhan kiyaa hai. sneh mey doobee har pankti...badhai.

जयंत - समर शेष said...

"मन-चातक यूँ तृप्त हुआ ज्यों,
स्वाति का वह नीर पा गया."

Waah waah waah..

RADHIKA said...

बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना दीदी

कुछ लम्हें जो दिल से...दिल तक said...

bahut sundar likha hai aapne

Alpana Verma said...

चाहूँ भी तो ढूंढ न पाऊं,
स्वयं को खो दूँ तुममे रमकर.
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.
प्रेम की अद्भुत अनुभूतियाँ लिए है यह भावपूर्ण कविता.
हृदय तेरे बस ठौर मिले औ,
मुखाग्नि पाऊं तेरे कर...
बहुत ही सुन्दर!!

vijay kumar sappatti said...

ranjana ji , kya kahu.. nishabd hoon ji ,, prem ki bhaavna ko jo shabd aapne diye hai , wo atulneey hai .

badhayi

Pushpendra Singh "Pushp" said...

वाह वाह भाई वाह कमाल कर दिया
बधाई स्वीकार करें

अनूप शुक्ल said...

सुंदर है। अंतिम पंक्ति सुधारने की मांग में शामिल एक पाठक। :)

Unknown said...

मुझे दुःख से लगाव सा है.हँसी क्या बिजली की चमक दो पल की बारिश मगर /हज़ार गम के समंदर सिमटते हैं तो बनते हैं आसू.
अचानक आपकी बहुत ही रोमांटिक और कुछ हद तक बहुत ही मर्यादित सेंसुअल या यूँ कहूँ एक लव्डवन द्वारा लवर के प्रति सच्ची समर्पित सुंदर कविता काफी वक्त बाद पड़ी तो फ़िराक साब का शेर याद आ गया है ना लिखूंगा तो नाइंसाफी होगी
आईना तो देख विसाल के बाद /तेरे शबाब की
रानाई संवर गयी
आपकी सारी नज़्म ही खूबसूरत है मगर यह शेर क्या खूब
चाहूँ भी तो ढूंढ न पाऊं,
स्वयं को खो दूँ तुममे रमकर.

डिम्पल मल्होत्रा said...

मन-चातक यूँ तृप्त हुआ ज्यों,
स्वाति का वह नीर पा गया.कविता के भाव ऐसी ही कुछ शीतल तृप्ति दे रहें है...

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

waaaah

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

waaaah