30.7.10

महाप्रलय...

युधिष्ठिर द्वारा यक्ष के प्रश्न - किमाश्चर्यम ?? का उत्तर " व्यक्ति प्रतिपल देखता है कि इस संसार में जन्मा व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो रहा है,फिर भी व्यक्ति स्वयं के मरण का स्मरण नहीं रख पाता,इससे बड़ा आश्चर्य क्या हो सकता है.." मेरे मस्तिष्क में गहरे उतर जम गया है..सचमुच कितना सटीक कहा था उन्होंने...अपने आस पास सबको मरते देखती हूँ,जानती हूँ कि एक न एक दिन मुझे भी मरना ही है,पर पूरे मन से विश्वास नहीं होता इसपर.सारी दुनिया का मरण कल्पित हो पाता है ,पर अपने अंत की कल्पना बस कल्पना ही लगती है..

ईमानदारी से कहूँ तो मरने से बहुतै डर लगता है भैया. इतना सब कुछ मर मर के जमा किया यहाँ.. और औचक एक दिन टन्न से टाँय बोल जायेंगे सब यहीं छोड़ छाड़ कर...कहाँ जायेंगे,क्या होगा उसके बाद, कुछ पाता नहीं. इसलिए बेहतर है कि इसे भुलाए ही रखा जाय... मुझे तो बड़ी कोफ़्त होती है, यदि कोई बार बार याद दिलाये मरने की बात...इसलिए आजतक किसी इंश्योरेंस वाले को फटकने नहीं दिया, गोया दस मिनट सामने बैठ जाएँ तो पक्का भरोसा दिला देते हैं कि बस अब अगले ही किसी दुर्घटना में मेरा मरना तय है.

वे बाबा लोग जो शरीर और जीवन को व्यर्थ नश्वर सिद्ध करते चलते हैं, इनके चक्कर से भी लम्बी दूरी रखना ही मुझे श्रेयकर लगता है..एक हमारे परिचित हैं,उनके पिताजी ऐसे ही बाबाओं के कुछ महीनों के संगत के बाद शरीर और दुनिया को नश्वर मान अपना सारा कमाया धन बाबाजी के ट्रस्ट के नाम कर, लोटा डोरी लेकर निकल पड़े धाम यात्रा को.फिर कहाँ गए,कोई खोज खबर न मिली उनकी..बेचारे बच्चे उनके संपत्ति के लिए ट्रस्ट के साथ केस में उलझे पड़े हैं कई वर्षों से..इसलिए बाबा...ना बाबा ना...

अब देखिये न , अतिवृष्टि अनावृष्टि ,पानी की कमी,अनाज की कमी, इसकी कमी, उसकी कमी आदि आदि देख देख कर ऐसे ही मन घबराया रहता है,ऊपर से ये पर्यावरण वाले , ग्लोबल वार्मिंग का रट्टा लगाकर दिमाग घुमाए दिए रहते हैं. खतरा तो ऐसे बताते हैं ,जैसे बस कुछ महीनो की ही बात हो..सारा ग्लेशियर पिघला और धरती डूबी..आये दिन डराने और मरण याद दिलाने वाले इन कमबख्तों ने चैन से जीना मुहाल कर दिया है..

अभी कुछ ही महीने पहले की बात है,पखवाड़े तक हमारे महान भारतीय समाचार चैनल चीख चीख कर रात दिन एक किये हुए थे कि बस अमुक तिथि को महाप्रलय आया ही आया..कोई माई का लाल टाल नहीं सकता इसे.संग साथ में ऐसे ऐसे दृश्य दिखा रहे थे, जैसे पिछले प्रलय में इन्होने उसकी रिकोर्डिंग कर रखी हो....हाय !!! जान मुंह को आ जा रहा था सब देख देख कर..वो तो भला हो कि भगवान् ने छंटाक भर दिमाग और तर्क शक्ति दे दी थी, जिसने कि डूबते जान को सहारा देते हुए डपटते हुए कहा...
"अरे बुरबक , ई चैनल वाला लोक का आफिस भी तो इसी धरती पर है न...महापरलय के समय ई सब क्या दूसरे ग्रह पर चले जायेंगे और वहां से सीधा प्रसारण दिखाएँगे ?? अरे ई सब जब इतना आश्वस्त होकर दर्शक से कह रहे हैं कि महापरलय का सीधा परसारण केवल इनके चैनल पर सबसे बढ़िया दिखाया जाएगा, इसलिए कोई और चैनल न देख इनका चैनल देखो ...तो निश्चित ही इनको विश्वास है कि इनको या इनके दर्शकों को कुछ नहीं होने वाला..इसलिए कुछ नहीं होगा ,निश्चिन्त रहो..." ओह !! जान बची..

सनसना सनसना के इतना डराते हैं ये मुए चैनल वाले कि हमने तो छोड़ ही दिया इन माध्यमों से समाचार देखना. अब देश विदेश का समाचार जानने को हम तीन रुपये का प्रादेशिक समाचार पत्र तीन मिनट में पढ़ लेते हैं.तीन मिनट इसलिए कि इससे ज्यादा समय में विस्तार में समाचार पढने से रक्त चाप पर बड़ा ही नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और हम नहीं चाहते कि हमारे अस्वस्थता या मरण का कारण ये फालतू के समाचार बने..लेकिन क्या करें ,इनको भी चैनल वाला बीमारी लग गया है... सफलता का फार्मूला इनको भी सनसनी ही लगता है.. आज सुबह समाचार पत्र पढ़ रहे थे कि एक जगह जाकर ध्यान टंग गया..कुछ पश्चिमी वैज्ञानिकों ने फिर से दावा ठोंका है कि , दो हजार बारह में महाप्रलय आएगा ही आएगा..उनका कहना है कि एक बड़ा भारी भरकम विशालकाय ग्रह तेजी से पृथ्वी की ओर दौड़ा भागा चला आ रहा है और जब यह पृथ्वी से टकराएगा तो पृथ्वी दीपावली में फोड़े जाने वाले साउंड बोम्ब की तरह भड़ाम करके फूट लेगी और उक्त ग्रह में समां जायेगी..

..उफ़.... फिर से महाप्रलय !!! ...

लेकिन भैया हम नहीं मानेंगे...बचपन से पूजा आयोजन के समय सुनते आये हैं - कलियुगे प्रथम चरणे, आर्यावर्ते, भरतखंडे, अमुक वासस्थाने, मासोत्तमे अमुक मासे......
मन धीर धरो...निश्चिन्त रहो....अभी कलियुग प्रथम चरण में ही हैं... और जब से हम जन्मे हैं,पहला चरण खिसका नहीं है तनिको..एक एक चरण इतना इतना बड़ा है इसका..ऐसा ऐसा तीन चरण बचा हुआ है अभी..एक एक चरण कई कई हजार साल का..अभी तुरंत फुरंत में कुछ नहीं होने वाला.. अभी तो कितना कुछ बचा हुआ है घटित होने को..जिस जिस बात पर मुंह पर हाथ रखकर लम्बी सांस खींचकर हम कहते हैं .." समय बदल गया भैया, घोर कलयुग आ गया.." , तो अभी तो यह सब कुछ ,सारा पाप बाल्यावस्था में ही है ..अभी तो आगे बढ़ यह किशोर वय, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था,वृद्धावस्था ...सब पार करेगा .. जब सचमुच ही सबकुछ नष्ट भ्रष्ट हो जाएगा..पाप पाप ही नहीं रहेगा,क्योंकि पुण्य नाम का कुछ बचबे नहीं करेगा जो आदमी फरक करे...तब आएगा परलय..

अपने ग्रंथों में वृहत्त व्याख्या है कलियुग के अगले चरणों की और समय के साथ सबका प्रमाण भी उपलब्ध होता जा रहा है...कहा गया, कलयुग के आरम्भ में ही सरस्वती नदी लुप्त हो जायेंगी....हो गया..यमुना जी के सूखने का जो काल बताया गया है,वह भी सत्य होता दीख रहा है और युग के मध्य तक गंगा जी के पृथ्वी छोड़ने की जो बात कही गयी है,देख लीजिये..अविश्वास करने लायक लगता है क्या...

धर्म, समाज,संस्कृति में अभी तो बहुत कुछ बदलना लिखा है..अभी बहुत टाइम है भाई प्रलय होने में..अभी तो इतने सारे जंगल पेड़ पहाड़ बचे हुए हैं.सब को आदमी दोनों हाथों से मन भर काटेगा, तो भी सब ख़तम होने में टाइम लगेगा. भगवान् की बनाई दुनिया का हुलिया जब पूरी तरह आदमी बदल देगा तब न आएगा प्रलय...और तब तक तो हम न जाने और कितना जनम ले लेंगे. लेकिन असली टेंशन तो इसी में है.अभिये दुनिया का हालत देख देख कर मन त्रस्त है, अगले जनम में इससे भी बुरा देखना पड़ा तो कितना कष्ट होगा..इससे तो अच्छा है कि अभिये ,इसी जिन्दगी में परलय आ जाये कि सब कहानी ख़तम हो जाए....और बुरा देखने लायक कुछ न बचे..और जो अगला जनम होवे तो सीधे सतयुग में होवे..

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