18.8.10

आखिरी ख्वाहिश ....

बरसों तक केवल चैनपुर ही नहीं, आस पास के कई गांवों के मामले भी बिना मियां हबीबुल्लाह अंसारी के सरपंची के निपटता न था. अपनी नेकदिली और शराफत के बदौलत सबके दिलों पर बादशाहत हासिल थी उन्हें.. मियां बीबे के झगडे से लेकर इलाके के बड़े बड़े मसले वे चुटकियों में ऐसे निपटा देते , कि उनकी अक्लमंदी देख लोग दंग रह जाते...लेकिन कहते हैं न पूर्व जन्म के कु और सु कर्म वर्तमान जन्म में इंसान को औलाद के रूप में मिलते हैं.तो शायद यही वजह रही होगी कि निहायत ही शरीफ मियां जी के पिछले सभी जन्मों का हिसाब बराबर करने को अल्लाह मियां ने तीन तीन नालायक औलाद से नवाज दिया...मियां की लाख कोशिशों के बाद भी न तो वे तालीम हासिल कर पाए ,न नेकदिल इंसान बन पाए . अव्वल बढ़ती उम्र के साथ दिन ब दिन लंठई और लुच्चई में खरे होते गए. आये दिन अपने कारनामो से ये बाप की जान छीलते रहते थे..

लोग शिकायत फ़रियाद लेकर आते,पंचयती बैठती,फैसला भी होता,पर उसे मानता कौन.. थक हार कर लोगों ने मियां जी से किनारा कर लिया..न कोई उन्हें अपने मामलों में बुलाता और न ही उनके बेटों की शिकायत लेकर उनके पास जाता.मियां जी के पास जाने से सीधे थाने जाना लोगों को अधिक जंचने लगा. लेकिन इन गुंडे मवालियों ने थानेदार से भी ऐसी सांठ गाँठ कर रखी थी कि वह इन लफंगों की नहीं थाने पहुंचे शिकायतकर्ता पर ही गाज गिराता था...

औलाद की करतूतों ने मियांजी को खुद से नजरें मिलाने लायक भी न छोड़ा था...एक तो अन्दर की टूटन ऊपर से बेवफा बुढ़ापा.आठों पहर दोजख की आग में जलते रहते वे..साठ की उमर पहुँचते पहुँचते जैसे ही रतौंधी ने ग्रसा, कि मौके का फायदा उठा उनकी औलादों ने धोखे से जायदाद के कागजातों पर उनसे दस्तखत करवा,उनका सबकुछ कब्जिया लिया..इसके बाद तो रोटी के दो कौर के लिए कुत्ते से भी बदतर उनकी जिदगी बना दी..

लम्बे समय तक खटियाग्रस्त रहने के बाद, अपना अंत नजदीक जान एक दिन हबीब मियां ने अपने सभी बेटे और बहुओं को ख़ास राज बताने के लिए बुलाया..बेटों को लगा अब्बा शायद किसी गड़े छिपे धन के बारे में बताएँगे...और सचमुच मियांजी ने उन्हें अपने वालिद की तस्वीर के पीछे छिपा कर रखी हुई सौ अशर्फियों का पता दे दिया, लेकिन इससे पहले उन्होंने उनसे करार करवा लिया कि वे उनकी आखिरी ख्वाहिश जरूर पूरी करेंगे..

उनकी यह ख्वाहिश कुछ यूँ थी -

" बचपन में जिस सरकारी स्कूल में उन्होंने अपनी पढ़ाई की थी,उसके आहते में एक आसमान छूता आम का पेड़ था..पेड़ों पर चढ़ने में वे इतने उस्ताद थे कि पेड़ की जिस शाख पर बन्दर भी चढ़ने से पहले तीन बार सोचते थे,पलक झपकते ही वे चढ़ जाते थे और फिर चाहे उसपर डोल पत्ता खेलने की बात हो, या कच्चे पक्के आम तोड़ने की बात, उनसा अव्वल पूरे गाँव में कोई न था..अपने इस उस्तादी के बल पर वे सब के लीडर बने थे और इसी दरख़्त ने उन्हें हरदिल अजीज बनाया था...

तो मियांजी की आखिरी ख्वाहिश यही थी कि जब भी उनका इंतकाल हो , बिना किसी को खबर लगे, रात के नीम अँधेरे में उन्हें उस दरख़्त की सबसे ऊंची शाख (जहाँ तक उनके बच्चे पहुँच सकते हों) पर उनके पैरों में रस्सी बाँध, उन्हें उल्टा लटका कर पूरे चौबीस घंटे के लिए छोड़ दिया जाय..इन दुनिया को छोड़ कर जाने से पहले वे अपने उस अजीज, महबूब, दरख़्त के आगोश से मन भर लिपट लेना चाहते थे.. अगरचे ऐसा न किया गया तो उनकी रूह कभी सुकून न पायेगी,यह दावा था उनका....

और जबतक वे पेड़ पर लटके हों , उनके बच्चे अपने तमाम यार दोस्तों और समधियाने वालों को इकट्ठी कर, उनके दिए इन अशर्फियाँ में से दो अशर्फियाँ खर्च कर,सबको खूब अच्छी सी दावत दें..लेकिन सनद रहे, कि दावत ख़त्म होने तक किसी को यह इल्म न हो कि उनका इंतकाल हो गया है..अपने बच्चों और अजीजों को खाते पीते जश्न मानते देख वे खुशी खुशी जन्नतनशीन हो जायेंगे..."

बड़ी अटपटी सी थी यह ख्वाहिश...पर बेटे बहुओं ने सोचा,चलो जिन्दगी भर तो बुड्ढे की एक बात न रखी..अब इस छोटी सी बात को रख लेने में कोई हर्ज नहीं है..वैसे भी इसकी ख्वाहिश न पूरी की, तो हो सकता है बुढऊ जिन्न बनकर जीना हराम कर दे..सो तय हुआ कि अब्बा हुजूर की यह ख्वाहिश जरूर पूरी की जायेगी...

संयोग से महीने भर के अन्दर हबीब मियां अल्लाह को प्यारे हो गए..ढलती शाम में उनका इंतकाल हुआ था..बेटों ने रात गहराने का इन्तजार किया और तबतक सभी यार दोस्तों को अगली दोपहर के दावत के लिए न्योत आये..और फिर जैसा मियां ने कहा था,वैसा ही कर दिया..अगले दिन दोपहर को उस शानदार दावत में थानेदार, आस पास के इलाके के सभी लफंगे और बहुओं के मायके वालों का जबरदस्त मजमा लगा..

इधर दावत शबाब पर थी और उधर शहर में एस पी के पास गाँव वालों का खाफिला इस शिकायत के साथ पहुंचा हुआ था कि हबीब मियां के तीनो मवाली बेटों ने अपने बाप का खून कर उसे स्कूल के आहते में पेड़ पर लटका दिया है,जिस दरिंदगी मे थानेदार की भी शह है और अब सारे मिल मजलूम बाप के मौत का जलसा मना रहे हैं.बदमाशों से निजात पाने को लालायित कई लोग खुद को इस वाकये के चश्मदीद गवाह भी ठहरा रहे थे..

एस पी को दल बल सहित पहुंचकर कार्यवाई करनी ही पडी..वहां पहुँच एस पी की भी लौटरी खुल गयी..क्योंकि एकसाथ इक्कट्ठे इतने अपराधियों को पकड़ना कोई हंसी थोड़े न था.. इलाके के लगभग सभी नामी गिरामी गुंडे और भ्रष्ट अफसर बैठे ठाले एस पी के हाथ लग गए.

और मियां हबीबुल्लाह अंसारी ... जीते जी जो न्याय नहीं कर पाए ,मरते मरते कर गए थे....

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6.8.10

धन का सदुपयोग ..

अस्त्र सश्त्रों के विषय में मेरी अल्पज्ञता ठीक वैसी ही है ,जैसी मंत्री पद पर आसीन किसी जनसेवक की अपने क्षेत्र की जनसमस्याओं के विषय में हुआ करती है..सो पूर्णतः अनभिज्ञ हूँ कि एक इंसास रायफल का क्रय या विक्रय (चोर बाजार में)मूल्य क्या होता है, परन्तु इतना मैं जानती हूँ कि यदि इंसास रायफल बेचकर साढ़े तीन लाख रुपये मिले और उस पैसे से एक आटा चक्की लगवाई जाय, एक स्कूटी,एक टी वी तथा कुछ अन्य घरेलू उपकरण खरीदने के उपरान्त भी इसमें से एक लाख रुपये बचाकर भविष्य कोष में संरक्षित रख लिया जाय, तो इससे अच्छा निवेश, इससे अच्छी दूरंदेसी तथा इससे अच्छा धन का सदुपयोग और कुछ नहीं हो सकता..

प्रसंग स्पष्ट न हुआ ?? अरे, स्पष्ट होगा भी कैसे ,राहुल डिम्पी में व्यस्त हमारे राष्ट्रीय चैनलों को यह अवकाश कहाँ कि अपना कैमरा इन उल्लेखनीय समाचारों पर भी घुमाएं. प्रकरण यह है कि, विगत कुछ दिनों से थानों से अस्त्र लुप्त होने की घटनाएं हमारे प्रादेशिक समाचार पत्र को शोभायमान कर रहे थे ,जिसमे कि इसके संरक्षकों (पुलिसकर्मियों) की ही संलिप्तता थी.कई दिनों तक अखबार के पांचवें छट्ठे पन्ने पर स्थान पाता हुआ यह समाचार अंततः मुख्यपृष्ठ को प्राप्त हुआ ,जिसमे प्रमाण सहित उधृत था कि अमुक पुलिसकर्मी के नाम आवंटित, अमुक इंसास को, अमुक व्यक्ति ने कोलकाता के, अमुक व्यक्ति को साढ़े तीन लाख में बेचा और प्राप्त उस धन को, अमुक अमुक मद में व्यय किया...

मेरी दृष्टि में महत्वपूर्ण व उल्लेखनीय यह चौरकर्म नहीं , अपितु वह निवेश है, जिसे इतनी दूरदर्शिता व कुशलता से निष्पादित दिया गया है..यह प्राणिमात्र के लिए प्रेरक और अनुकरणीय है...यह, यह भी सिखाता है कि अपने जीवन यापन हेतु केवल सरकार या किसी संस्था विशेष पर आश्रित न रहा जाय बल्कि व्यक्ति अपने पुरुषार्थ के बल पर अपने तथा अपने परिवार का भविष्य निर्मित करे ..और सबसे महवपूर्ण बात यह कि धन चाहे ईमानदारी से कमाया हुआ हो या चोरी चकारी घूसखोरी,बेईमानी से ,अर्जित धन को ऐश मौज ,हँड़िया - दारू में व्यर्थ न गंवाते हुए व्यक्ति भविष्य संवारने में लगाये ...

असाधारण यह प्रसंग यूँ ही ठठ्ठा में उड़ा दिया जाने योग्य नहीं, बहुआयामी चिंतन योग्य भी है...समाचार पत्र ने उक्त व्यक्ति द्वारा क्रयित उपकरणों की जो तालिका प्रस्तुत की है,यह चतुर्थ वर्ग के सरकारी कर्मचारी की करुण आर्थिक स्थिति की बेमिसाल झांकी है...अवकाश प्राप्ति के निकट पहुंचा एक पुलिसकर्मी , इतने वर्षों की चाकरी के उपरान्त भी अपने लिए एक नंबर के पैसे से स्कूटी, टी वी जैसे सामान्य उपकरण भी न खरीद पाए ,तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है...और ऐसे में इस नीरीह जीव से यदि हम अपेक्षा करें कि अपना सर्वस्व न्योछावर करने में तो वह एक पल न लगाये ,पर अपने और अपने संतान के भविष्य के लिए वह किंचित भी चिंतित न हो ,तो यह इनके प्रति अन्याय नहीं तो और क्या है ???

मुझे तो यह नहीं समझ आ रहा कि यह भलामानुष चोर या अपराधी कैसे हुआ..इतने वर्षों में जहाँ झारखण्ड के दिग्गज लालों ने कई कई हज़ार करोड़ की राशि यूँ ही डकार,पचा, अपने तथा अपने पीढ़ियों के लिए स्विस बैंक में संरक्षित रख रखा है, तो उसके सामने सागर जल में से एक बूँद यदि इस झारखंडी लाल ने अपने लिए निकाल लिया तो इसमें हाय तौबा लायक क्या है..इन दिग्गजों के सम्मुख इन निरीहों को चोर कहना इस शब्द तथा कृत्य की घोर अवमानना है . इस महान व्यक्ति को तो गद्दार नहीं ,देशभक्त कहना होगा, जिसने धन से किसी और का घर नहीं भरा बल्कि पूरा का पूरा धन यहीं अपने ही क्षेत्र में,घर के एकदम बगल में ऐसे स्थान में निवेश किया जहाँ आटा,मसाला आदि पिसवाने की भी सुविधा नहीं है..इस तरह एक साथ अपना और अपने आस पास का भला सोचने वाले आज कितने राजनेता हैं...

वैसे भी तो ये अस्त्र शस्त्र नक्सली लूट ही ले जाते और फिर इन्ही के अस्त्रों से इन्हें निपटा डालते...तो अच्छा ही हुआ न कि इन्होने अपने प्राण भी बचाए और इन अस्त्रों को सदगति भी दे दी..अब इन बेचारों को अपराधियों नक्सलियों से भिड़ने, उन्हें मारने की आज्ञा तो है नहीं, क्योंकि उनमे से अधिकाँश या तो सीधे स्वयं ही नेता हैं और बाकी बचे उन नेताओं के सगे संबंधी या लगुए भगुए , तो यूँ ही वर्षों से व्यर्थ पड़े जंग लग रहे अस्त्रों को उपयुक्त हाथों बेच इन्होने पुण्य का काम ही किया है...

रात दिन अपनी तथा इन अस्त्रों की रक्षा करते करते बेचारे पुलिसकर्मियों के प्राण यूँ ही सांसत में फंसे रहते हैं ,ऐसे में स्वयं को तनाव मुक्त रखने का इससे उपयुक्त उपाय और कुछ हो सकता है भला ?? मुझे तो लगता है इस अनुकरणीय कृत्य को प्रत्येक थाने में, प्रत्येक पुलिस कर्मी द्वारा अपनाना चाहिए...बल्कि यही क्यों, अपने पुलिस कर्मियों को समय पर वेतन भत्ते सुविधाएँ दे पाने में अक्षम झारखण्ड सरकार को चाहिए कि अस्त्र शस्त्र सहित पूरा पुलिस बल ही नक्सलियों को इस अनुबंध के साथ आउटसोर्स (हस्तांतरित) कर दे कि सुव्यवस्थित व सुसंगठित ढंग से व्यवस्था चलाने में सिद्धहस्त ये संगठन राज्य तथा पुलिस बल की सुरक्षा करें..अपरोक्ष रूप से नहीं, बल्कि सीधे सीधे प्रत्यक्षतः राज्य व्यवस्था का सञ्चालन करें..

कहने की आवश्यकता नहीं कि पिछले एक दशक से भी कम समय में, जिस प्रकार से इन संगठनों ने अपने आप को सुसंगठित ,सुदृढ़ तथा प्रभावशाली बनाया है,यह इनकी कुशल प्रबंधन क्षमता का प्रत्यक्ष प्रमाण है.इनके हाथों राज्य की बागडोर आते ही निश्चित ही राज्य का बहुमुखी विकाश होगा..राज्य व्यवस्था प्रत्यक्ष इनके हाथों होगी तो , न तो इनके द्वारा न आमजन द्वारा हड़ताल, बंदी या अन्य अव्यवस्था की स्थिति बनेगी. तो ऐसे में निश्चित है कि राज्य का आय बढेगा ही बढेगा.इसमें समग्र रूप से नेता ,जनता तथा संगठन सबका हित होगा...

देखिये कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि दस बीस दर्जन पुलिस कर्मी एक साथ मर जाएँ तो भी सरकार कहती है कि ,इन्हें तो रखा ही गया है भिड़ने मरने के लिए..लेकिन एक नक्सली मारा जाये तो पांच पांच राज्यों की सांस एक साथ इनके एक आवाज पर बंद हो जाती है..संगठन में भरती के लिए न शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता ,न जात पात या आरक्षण की किचकिच, बस दिल में जज्बा हो और हथियार चलाने का हुनर,फिर जीवन और भविष्य सुरक्षित..मरने पर परिवार वालों को कम्पंशेशन पाने का कोई चक्कर नहीं.ऐसे में बस एक इस पार से उसपार जाते ही पुलिसकर्मी कितने सुखी और सुरक्षित हो जायेंगे...

खैर, ये सब बड़ी बड़ी बाते हैं, झारखण्ड सरकार पूरे पुलिस तथा शासन तंत्र को नक्सलियों के हवाले करे न करे या जब करे तब करे, अभी मैं सरकार से निवेदन करना चाहती हूँ कि, इस महत घटना में लिप्त पुलिसकर्मियों को अवश्य ही पुरस्कृत करे दे.. क्योंकि यदि यह न किया गया तो जनमानस को कभी न समझाया जा सकेगा कि धन चाहे इमानदारी का हो या बेईमानी का सदा उसका सदुपयोग ही करना चाहिए...

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