अस्त्र सश्त्रों के विषय में मेरी अल्पज्ञता ठीक वैसी ही है ,जैसी मंत्री पद पर आसीन किसी जनसेवक की अपने क्षेत्र की जनसमस्याओं के विषय में हुआ करती है..सो पूर्णतः अनभिज्ञ हूँ कि एक इंसास रायफल का क्रय या विक्रय (चोर बाजार में)मूल्य क्या होता है, परन्तु इतना मैं जानती हूँ कि यदि इंसास रायफल बेचकर साढ़े तीन लाख रुपये मिले और उस पैसे से एक आटा चक्की लगवाई जाय, एक स्कूटी,एक टी वी तथा कुछ अन्य घरेलू उपकरण खरीदने के उपरान्त भी इसमें से एक लाख रुपये बचाकर भविष्य कोष में संरक्षित रख लिया जाय, तो इससे अच्छा निवेश, इससे अच्छी दूरंदेसी तथा इससे अच्छा धन का सदुपयोग और कुछ नहीं हो सकता..
प्रसंग स्पष्ट न हुआ ?? अरे, स्पष्ट होगा भी कैसे ,राहुल डिम्पी में व्यस्त हमारे राष्ट्रीय चैनलों को यह अवकाश कहाँ कि अपना कैमरा इन उल्लेखनीय समाचारों पर भी घुमाएं. प्रकरण यह है कि, विगत कुछ दिनों से थानों से अस्त्र लुप्त होने की घटनाएं हमारे प्रादेशिक समाचार पत्र को शोभायमान कर रहे थे ,जिसमे कि इसके संरक्षकों (पुलिसकर्मियों) की ही संलिप्तता थी.कई दिनों तक अखबार के पांचवें छट्ठे पन्ने पर स्थान पाता हुआ यह समाचार अंततः मुख्यपृष्ठ को प्राप्त हुआ ,जिसमे प्रमाण सहित उधृत था कि अमुक पुलिसकर्मी के नाम आवंटित, अमुक इंसास को, अमुक व्यक्ति ने कोलकाता के, अमुक व्यक्ति को साढ़े तीन लाख में बेचा और प्राप्त उस धन को, अमुक अमुक मद में व्यय किया...
मेरी दृष्टि में महत्वपूर्ण व उल्लेखनीय यह चौरकर्म नहीं , अपितु वह निवेश है, जिसे इतनी दूरदर्शिता व कुशलता से निष्पादित दिया गया है..यह प्राणिमात्र के लिए प्रेरक और अनुकरणीय है...यह, यह भी सिखाता है कि अपने जीवन यापन हेतु केवल सरकार या किसी संस्था विशेष पर आश्रित न रहा जाय बल्कि व्यक्ति अपने पुरुषार्थ के बल पर अपने तथा अपने परिवार का भविष्य निर्मित करे ..और सबसे महवपूर्ण बात यह कि धन चाहे ईमानदारी से कमाया हुआ हो या चोरी चकारी घूसखोरी,बेईमानी से ,अर्जित धन को ऐश मौज ,हँड़िया - दारू में व्यर्थ न गंवाते हुए व्यक्ति भविष्य संवारने में लगाये ...
असाधारण यह प्रसंग यूँ ही ठठ्ठा में उड़ा दिया जाने योग्य नहीं, बहुआयामी चिंतन योग्य भी है...समाचार पत्र ने उक्त व्यक्ति द्वारा क्रयित उपकरणों की जो तालिका प्रस्तुत की है,यह चतुर्थ वर्ग के सरकारी कर्मचारी की करुण आर्थिक स्थिति की बेमिसाल झांकी है...अवकाश प्राप्ति के निकट पहुंचा एक पुलिसकर्मी , इतने वर्षों की चाकरी के उपरान्त भी अपने लिए एक नंबर के पैसे से स्कूटी, टी वी जैसे सामान्य उपकरण भी न खरीद पाए ,तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है...और ऐसे में इस नीरीह जीव से यदि हम अपेक्षा करें कि अपना सर्वस्व न्योछावर करने में तो वह एक पल न लगाये ,पर अपने और अपने संतान के भविष्य के लिए वह किंचित भी चिंतित न हो ,तो यह इनके प्रति अन्याय नहीं तो और क्या है ???
मुझे तो यह नहीं समझ आ रहा कि यह भलामानुष चोर या अपराधी कैसे हुआ..इतने वर्षों में जहाँ झारखण्ड के दिग्गज लालों ने कई कई हज़ार करोड़ की राशि यूँ ही डकार,पचा, अपने तथा अपने पीढ़ियों के लिए स्विस बैंक में संरक्षित रख रखा है, तो उसके सामने सागर जल में से एक बूँद यदि इस झारखंडी लाल ने अपने लिए निकाल लिया तो इसमें हाय तौबा लायक क्या है..इन दिग्गजों के सम्मुख इन निरीहों को चोर कहना इस शब्द तथा कृत्य की घोर अवमानना है . इस महान व्यक्ति को तो गद्दार नहीं ,देशभक्त कहना होगा, जिसने धन से किसी और का घर नहीं भरा बल्कि पूरा का पूरा धन यहीं अपने ही क्षेत्र में,घर के एकदम बगल में ऐसे स्थान में निवेश किया जहाँ आटा,मसाला आदि पिसवाने की भी सुविधा नहीं है..इस तरह एक साथ अपना और अपने आस पास का भला सोचने वाले आज कितने राजनेता हैं...
वैसे भी तो ये अस्त्र शस्त्र नक्सली लूट ही ले जाते और फिर इन्ही के अस्त्रों से इन्हें निपटा डालते...तो अच्छा ही हुआ न कि इन्होने अपने प्राण भी बचाए और इन अस्त्रों को सदगति भी दे दी..अब इन बेचारों को अपराधियों नक्सलियों से भिड़ने, उन्हें मारने की आज्ञा तो है नहीं, क्योंकि उनमे से अधिकाँश या तो सीधे स्वयं ही नेता हैं और बाकी बचे उन नेताओं के सगे संबंधी या लगुए भगुए , तो यूँ ही वर्षों से व्यर्थ पड़े जंग लग रहे अस्त्रों को उपयुक्त हाथों बेच इन्होने पुण्य का काम ही किया है...
रात दिन अपनी तथा इन अस्त्रों की रक्षा करते करते बेचारे पुलिसकर्मियों के प्राण यूँ ही सांसत में फंसे रहते हैं ,ऐसे में स्वयं को तनाव मुक्त रखने का इससे उपयुक्त उपाय और कुछ हो सकता है भला ?? मुझे तो लगता है इस अनुकरणीय कृत्य को प्रत्येक थाने में, प्रत्येक पुलिस कर्मी द्वारा अपनाना चाहिए...बल्कि यही क्यों, अपने पुलिस कर्मियों को समय पर वेतन भत्ते सुविधाएँ दे पाने में अक्षम झारखण्ड सरकार को चाहिए कि अस्त्र शस्त्र सहित पूरा पुलिस बल ही नक्सलियों को इस अनुबंध के साथ आउटसोर्स (हस्तांतरित) कर दे कि सुव्यवस्थित व सुसंगठित ढंग से व्यवस्था चलाने में सिद्धहस्त ये संगठन राज्य तथा पुलिस बल की सुरक्षा करें..अपरोक्ष रूप से नहीं, बल्कि सीधे सीधे प्रत्यक्षतः राज्य व्यवस्था का सञ्चालन करें..
कहने की आवश्यकता नहीं कि पिछले एक दशक से भी कम समय में, जिस प्रकार से इन संगठनों ने अपने आप को सुसंगठित ,सुदृढ़ तथा प्रभावशाली बनाया है,यह इनकी कुशल प्रबंधन क्षमता का प्रत्यक्ष प्रमाण है.इनके हाथों राज्य की बागडोर आते ही निश्चित ही राज्य का बहुमुखी विकाश होगा..राज्य व्यवस्था प्रत्यक्ष इनके हाथों होगी तो , न तो इनके द्वारा न आमजन द्वारा हड़ताल, बंदी या अन्य अव्यवस्था की स्थिति बनेगी. तो ऐसे में निश्चित है कि राज्य का आय बढेगा ही बढेगा.इसमें समग्र रूप से नेता ,जनता तथा संगठन सबका हित होगा...
देखिये कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि दस बीस दर्जन पुलिस कर्मी एक साथ मर जाएँ तो भी सरकार कहती है कि ,इन्हें तो रखा ही गया है भिड़ने मरने के लिए..लेकिन एक नक्सली मारा जाये तो पांच पांच राज्यों की सांस एक साथ इनके एक आवाज पर बंद हो जाती है..संगठन में भरती के लिए न शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता ,न जात पात या आरक्षण की किचकिच, बस दिल में जज्बा हो और हथियार चलाने का हुनर,फिर जीवन और भविष्य सुरक्षित..मरने पर परिवार वालों को कम्पंशेशन पाने का कोई चक्कर नहीं.ऐसे में बस एक इस पार से उसपार जाते ही पुलिसकर्मी कितने सुखी और सुरक्षित हो जायेंगे...
खैर, ये सब बड़ी बड़ी बाते हैं, झारखण्ड सरकार पूरे पुलिस तथा शासन तंत्र को नक्सलियों के हवाले करे न करे या जब करे तब करे, अभी मैं सरकार से निवेदन करना चाहती हूँ कि, इस महत घटना में लिप्त पुलिसकर्मियों को अवश्य ही पुरस्कृत करे दे.. क्योंकि यदि यह न किया गया तो जनमानस को कभी न समझाया जा सकेगा कि धन चाहे इमानदारी का हो या बेईमानी का सदा उसका सदुपयोग ही करना चाहिए...
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यदि एक इंसास रायफल बेचकर साढ़े तीन लाख रुपये मिले और उस पैसे से यदि एक आटा चक्की लगवाई जाय, एक स्कूटी,एक टी वी तथा कुछ अन्य घरेलू उपकरण खरीदने के उपरान्त भी इसमें से एक लाख रुपये बचाकर भविष्य कोष में संरक्षित रख लिया जाय, तो इससे अच्छा निवेश, इससे अच्छी दूरंदेसी तथा इससे अच्छा धन का सदुपयोग और कुछ नहीं हो सकता..
आपने बहुत ही अच्छा लिखा.
समय हो तो पढ़ें
मदरसा, आरक्षण और आधुनिक शिक्षा http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_05.html
और इस विमर्श में हस्तक्षेप अवश्य करें !
बहुत सही कहा आपने.
यहाँ राज्य प्रशासन के लिए कौन से मुद्दे महत्वपूर्ण हैं और कैसे व्यवहार करना है, आज सिखाने की जरुरत है.
सटीक बात कही है...
अजी जो रायफ़ल बेच कर जमा पुंजी से कोई काम करता है , उसे पहले सोचना चाहिये कि वो राफ़ल किस के काम अये गी, किसे मारेगी.... बाकी यह नेता जो स्वीस बेंको मै अपनी हरम की ओलाद के लिये धन जमा कर रही है इन से पुछो अगर तुम्हारी ऒलाद ही मर गई तो......क्योकि हराम का धन पा कर नालायक ओलाद ही पेदा होती है, जो नशो मै ही मर खप जाती है
सीधा, सरल व स्पष्ट व्यंग। सीधी बात समझ पाना पर कितना कठिन है।
व्यंग्य सटीक है और अपने उद्देश्य में सफल है। आपके शब्द सोचने को बाध्य करते हैं परंतु जिन्हें पढना चाहिये वे शायद यहाँ तक नहीं पहुंचेंगे। फिर भी, "वो सुबह कभी तो आयेगी..."
इंसास के बारे में मुझे इतना पता है कि एके ४७ की कॉपी है लेकिन क्वालिटी में नहीं. कॉपी कर नहीं पाए ठीक से. और डिजाइन भेजी जाती है तो बनाने वाले भी माल में मिलावट कर देते हैं.
अब ये बात मुझे डिजाइन करने वाले एक इंजिनियर ने बताई थी. बनाने वालों का पक्ष पक्का इससे अलग होगा. हाँ अब बन गया तो एक इंसास के पीछे का अर्थशास्त्र भी रोचक निकला. चोरी फिर सदुपयोग... बाकी जिसे जो करना है वो तो करता ही रहेगा.
सही ही है कि जो न्याय और कानून व्यवस्था को अच्छी तरह संभाल सकते हैं ...क्यूँ ना शासन की डोर उनके हाथों में थमा दी जाए ...मगर क्या गारंटी है कि सत्ता सुंदरी का सानिध्य उन्हें ज्यादा देर नियंत्रित रहने देगा ...
सटीक व्यंग्य है ...मगर जिन्हें पढना- समझना- शर्मसार होना चाहिए ...आँख , कान, नाक बंद करे बैठे हैं ...कुसूर उनका नहीं ..गांधीजी के सच्चे अनुयायी हैं ...
" बुरा देखना और सुनना बंद कर दिया है " ...हाँ कहना ...वो तो आप जैसे लोगों के लिए छोड़ रखा है ...:):)
शानदार ...!
great article...!
इनके हाथों राज्य की बागडोर आते ही निश्चित ही राज्य का बहुमुखी विकाश होगा..राज्य व्यवस्था प्रत्यक्ष इनके हाथों होगी तो , न तो इनके द्वारा न आमजन द्वारा हड़ताल, बंदी या अन्य अव्यवस्था की स्थिति बनेगी. तो ऐसे में निश्चित है कि राज्य का आय बढेगा ही बढेगा.इसमें समग्र रूप से नेता ,जनता तथा संगठन सबका हित होगा
great ..............as always ...
bilkul sahi, spasht lekhan
एक सार्थक व्यंग्य.
....अवकाश प्राप्ति के निकट पहुंचा एक पुलिसकर्मी , इतने वर्षों की चाकरी के उपरान्त भी अपने लिए एक नंबर के पैसे से स्कूटी, टी वी जैसे सामान्य उपकरण भी न खरीद पाए ,तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है...और ऐसे में इस नीरीह जीव से यदि हम अपेक्षा करें कि अपना सर्वस्व न्योछावर करने में तो वह एक पल न लगाये ,पर अपने और अपने संतान के भविष्य के लिए वह किंचित भी चिंतित न हो ,तो यह इनके प्रति अन्याय नहीं तो और क्या है ???
....नक्सलवाद का समस्या से वास्तव में छुटकारा पाना है तो हमें पुलिस कर्मियों की समस्याओं पर भी ध्यान देना होगा जिसके कारण वे कर्तव्य पथ से विचलित होते हैं.
..उम्दा पोस्ट.
आलेख में एक प्रकार की सहजता है। लोक-राग की सी सहजता और यह सहजता रंजना जी आपके परिपक्व लेखन शैली की मिसाल है। एक निबंधात्मक आलेख में एकरसता होती है परंतु आपकी लेखनी में वह बेलौस, बेखौफ सी सहजता है जो कहीं-कहीं गुस्सैल दिखाई देती है तो कहीं कहीं वह प्रखर व्यंग्यात्मकता से लैस है। इस रचना में एक कुशल किस्सागो की तरह आप ‘ब्यौरों’ का ऐसा मोड़ दे देती हैं कि पलभर के अंदर पाठक एक स्थिति से दूसरी स्थिति में छलांग लगा लेता है।
व्यंग्य सटीक है और अपने उद्देश्य में सफल है। रंजना जी के शब्द सोचने को बाध्य करते हैं कि ....नक्सलवाद की समस्या से यदि हमें छुटकारा पाना है तो हमें पुलिस कर्मियों की समस्याओं पर भी ध्यान देना होगा जिसके कारण वे कर्तव्य पथ से विचलित होते हैं।
रंजना जी
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा ...............बहुत अच्छा लिखती हैं आप
अक्सर पढने से छूट जाते हैं आपके लेख .. इसलिए आज फोलो कर लिया है !!
यदि यह न किया गया तो जनमानस को कभी न समझाया जा सकेगा कि धन चाहे इमानदारी का हो या बेईमानी का सदा उसका सदुपयोग ही करना चाहिए...
-बिल्कुल सही कहा...सार्थक विचारणीय आलेख.
पुलिस को जिस ट्रेनिंग, कुशल नेतृत्व और सबसे अहम जिस मनोबल की आवश्यकता है वही इस सेवा से पूर्णतः लुप्त है। आर्थिक और प्रशिक्षण सुविधाओं की इन्हें सख्त जरूरत तो है ही पर इसमें ऍसे लोगों की भरमार हो गई है जो भ्रष्ट तंत्र का सहारा लेकर प्रमुख पदों पर आसीन हो गए हैं। इस सिस्टम में वर्षों पराज्य पुलिस की अधिकांश फोर्स शारीरिक और मानसिक रूप से नक्सलों का मुकाबला करने लायक ही नहीं रह गई है। सी आर पी एफ इस मायने में बेहतर है पर उसकी अलग ही समस्याएँ हैं।
अच्छा व्यंग्य है। इत्ते पैसे नहीं मिलेंगे जितना सोचे गये हैं इंसास राइफ़ल को बनाने के। इंसास राइफ़ल एके-47 की कापी नहीं है। उस जैसी राइफ़ल दूसरी है।
हमेशा की तरह सहज सार्थक आलेख। शुभकामनायें
Ranjana ji aapka yah vynag nahi katu satya hai... bhrastachar ke jad par jaake prahaar kiya hai aapne.. dukh is baat ka hai kijin logon tak yah baatpahuchni chahiye wo nahi pahunch rahi hai.. saarthak lekhan.
राज्य व्यवस्था प्रत्यक्ष इनके हाथों होगी तो , न तो इनके द्वारा न आमजन द्वारा हड़ताल, बंदी या अन्य अव्यवस्था की स्थिति बनेगी. तो ऐसे में निश्चित है कि राज्य का आय बढेगा ही बढेगा.इसमें समग्र रूप से नेता ,जनता तथा संगठन सबका हित होगा...
--व्यंग्य के ज़रिये बहुत ही सही कटाक्ष किया है.
बहुत ही बढ़िया व्यंग लिखा है आपने ..आपके लेखन में एक प्रवाह है जो अपने साथ साथ बहाए चलता है ...बहुत पसंद आया यह शुक्रिया
is post k jariye bahut kuch kaha hai aapne... badhaai...
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
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लगता है हथियार के खरीदार बहुत पिछड़े हुए और अग्यानी थे। उन्हें पता नहीं था कि हमारी पुलिस को जो हथियार दिए जाते हैं वे चलते ही नहीं है। वर्ना इतना पैसा उस हथियार का नहीं मिला होता। उसे बेचने वाला निश्चित रूप से समझदार था। उसने न सिर्फ अच्छे दाम पर हथियार बेचा बल्कि धन का उचित निवेश भी किया।
sateek evm samyik...wah
बहुत अच्छा...
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
बड़े ही सहज भाव से लिखा गया आज के परिदृश्य को बेबाकी से दर्शाता मन को खिन्न कर देने वाला भयावह चित्र. बहुत बहुत बधाई
देरी से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ. बहुत ही सार्थक और व्यंगय पूर्ण लेख लिखा आपने. आज ऐसे ही लेखन की जरुरत है. बधाई.
चोरी तो चोरी होती है चाहे सुई की हो या अशर्फी की . पर जिस मार्मिकता के साथ घरेलु सामान की सूचि (लोवेर मिडिल क्लास के स्कूटी जेसे सपने ) द्वारा आपने हालत पर व्यंग किया है काबिल ए दाद है.मेरा मानना है देश के हर जनसेवक/अफसर के हराम की कमाई से अटे प्राइवेट लोकर खुल जाये तो शायद रिसर्व - बैंक की जमापूंजी शर्मा जावे यानि देश का धन जो विकास में लगना चाहिए था ,लुटेरों के खजानों में दफन है .यहीं से नक्सलवाद का जन्म होता है.भूक ,बेरोज़गारी ,लाचारी और हताशा से त्रस्त जिस्म और ज़हन ज़िदगी और मोत का फर्क भी भूल जाते है .किशोर बालकों को सत्ता बन्दूक की नाल से निकलती है जेसे नारे लुभाने लगते हैं.जिसे गोल्डन और ग्रेट इंडिया बनना चाहिए था i=illiteracy,n=nepotism,d=discrimination ,i==injustice,a=acrimony वाला इंडिया बन गया है. खतम करू वरना कुछ जयादा हो जायेगा. आपकी सोच को सलाम के साथ
सही और सटीक बात सामने रखी है आपने....
आज आपके ब्लॉग पर आना हुआ है..... अच्छा लगा आपकी रचनाएँ पढ़कर
अब आती रहूंगी......
वो पुलिसवाला तो चोर ही कहायेगा मैम...
पुलिसवाला ही तो है ...
कोई नेता थोड़े ही है...!
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