30.4.12

आदर्शवादी ..

घबराए आवाज में बुचिया ने मून बाबू को हंकारा लगाया- "ओ भैया, दौड़ के आओ हो,देखो तो मैया को का हो गया.."
मून बाबू हड़बडाये दौड़ के आँगन में पहुंचे तो देखा मैया का केहुनी रगडाया हुआ है और माथे पर भी गूमड़ निकल आया है..
वो समझ गए कि गिरने के कारण कोई बहुत गहरी चोट तो न आई है ,पर मन पर चोट का क्षोभ गहरा है....
उन्होंने पुचकारा, "का हुआ माई कहाँ और कैसे गिर गई...? अच्छा कोई बात नहीं, बहुत गहरा जखम नहीं है ,दुई चोट दवाई में एकदम ठीक हो जायेगा..जा रे तो सोनू, मेरा दवाई का बकसवा तो दौड़ के उठा ला..आ बुचिया, तू जरा दौड़ के पानी तो गरमा ला, घाव साफ़ कर मरहम पट्टी कर दें..."
 
 
मैया अबतक भरी आँखें और भर्राए गले से जो चुपचाप बैठी हुईं थीं, गुर्राई..खबरदार जो कोई सटा है हमसे.. नहीं कराना है हमको दबाई बीरो..

का हुआ माई, कुछो बताएगी, काहे एतना खिसियायेल है, मून बाबू बोले..और साथ ही उन्होंने लखना के तरफ आँखों के इशारे से पूछा कि बात क्या हुई..

लखना बोला, मालिक बात ई हुआ कि दादी मंदिरवा से फिरल आ रही थी कि घरे के पास वाले रोडवा पर हेंज के हेंज उ जमुन्वा मन्तरी का गुंडवा सब मोटरसाइकिलवा पर जा रहिस था, ओही में से दू गो मोटरसाइकिलवा वाला दादी के एकदम नगीचे आ के मोटर साइकिलवा हेंडा दिहिस..डरे के मारे दादी बगले हटीं त खड्डा में चित्त होई गयीं..सब गुंडवन ठट्ठा उड़ाते निकल लिए हुआं से, एहिसे दादी जोरे खिसियायेल हैं..

ओह त ई बात...

छोड़े न माई, का उ गुंडवन उचकवन सब के बात मन से लगा रही है...जाने दे..मून बाबू बोले..

क्षोभ क्रोध मिश्रित आवाज में माई बोली.. हाँ रे..!! जाने काहे न दें.. जब भाग में कीड़ा पडल हो तो सबे जाने देना पड़ेगा..
सब कसूर तोहरे बाप के है..ओकरे कारण हमको का का भोगना लिखा है राम जाने..


का माई, काहे बात बात में बाबूजी को लई आती हो, ई कौनो अच्छा बात है का,मून बाबू और बुचिया ने एकसाथ प्रतिवाद किया..

काहे न लायें, बोल...काहे न लायें..आज जौन भी दुर्दशा हमरा , हमरा परिवार का हुआ है,इसका जिम्मेवार तोहरे बाप के सिवा है कौन..??

पूरा गाँव का भिखमंगवन के रात दिन जुटाए रहे घर में, अपना बच्चा सब का हिस्सा का खाना पीना, कपडा लत्ता, किताब कलम सबमे बाँट दिया..
कभी न सोचा कि पहले अपना घर में दिया जला लें फेर मंदिर की सोचेंगे..अपना घर फूंक के गाँव उजियार किया जिनगी भर...का मिला फल बोल, का मिला..?

ऐसे काहे कहती हो माई, बाबूजी को भगवान् मानता है सारा गाँव, केतना इज्जत है उनका, ई का छोटा कमाई है. मून बाबू बोले..

कमाई..?? देख, आग न लगा देह में, कहे देते हैं...ई कमाई है ,त काहे नहीं ई कमाई का फीस भरके अंगरेजी डाक्टर बनाया तुझे ..?? फीस का रकम सुनके तो होसे उड़ गया था बाप बेटा का, याद है कि नहीं..?..बाप बेटा मिलके ऊ घड़ी भी हमको ठगा..अंगरेजी डाक्टर त अपना देस में ढेरे  है, बेटा आयुर्वेदी डाक्टर बनेगा, उसमे फीस भी नामे का लगेगा..
और लो बन भी गया डाक्टर तो इसमें भी तो कमाई है, लेकिन बेटा चला बाप के आदर्श की राह...लोक कल्याण करेगा...बाप का दुर्दशा देखा फिर भी नहीं चेता..


क्या बेटा.. क्या बेटी ... सबको बाप वाला आदर्श का रोग लगा है..ई करमजली को कहे कि एतना पढ़ी लिखी,निकल जा शहर , बड़का अफसर बन, खूब कमा और अपना जिनगी सम्हाल...लेकिन नहीं, ई महरानी भी बाप का विरासत ऊ कंगला इस्कूले चलाएगी.दहेज़ लेने वाले से बियाह न करेगी, जिनगी भर बिनब्याही बैठे रहेगी..सब मिल के करो अपने अपने मन का और मरते रहो..

आह!! देखो तो ,फोड़ डाला उस राच्छस के सेना ने, लेकिन खून नहीं खौला मेरे संतानों का, इससे बढ़िया तो हम बांझे रहते...जाने कैसा आदर्श, कैसा क्षमाशीलता है ई ..?


हम कहे थे ,हजार बार कहे थे, कि ई संपोलवा के न पोसो...ई मुसखौका छोटका जात, बचपन्ने से एक नंबर का झुट्ठा , एक नंबर का चोर था,पहला किलास से मैट्रिक, आइये, बीए सब चोरी आ धांधलेबाजी कर के पास किया..का सोचे थे, कि अभी जो छोटका चोरी कर रहा है, आगे जाकर बड़का बडका डाका नहीं डालेगा..कम से कम अनपढ़ रहता त मूसे न खाता, आज त आदमी खाता है..
कोयला बिभाग के किरानी पद पर बहाल हुआ औ एतना चोरी बेईमानी किया कि पंदरह बरस सस्पेन रहा, लेकिन देखो, ई पंदरह बरस में पैसा का अइसा बुरुज लगाया कि झीटकी जैसा पैसा उड़ा, चुनाव जीत गया औ सीधे मंतरिए बन गया..अब आग मूत रहा है तो बस सब मिल के झेलो..

मून बाबू ने साहस कर एक बार फिर प्रतिवाद किया- ऐसे काहे कहती है माई, सब जमुन्वे थोड़े न बन गया..देखो बाबूजी के पढाये आज एक से एक पद पर पहुंचा हुआ है कि नहीं.भला लोक को याद करो न,बुरा को याद करके का फायदा है..

माई का स्वर अब और ऊंचा उठा गया.. हाँ, हाँ, रे देखे. पद उद भी देखे ..
बडका कलक्टर है न पसमनमा ..
अपने से जाके हम घिघियाये, बचवा बचा लो हमरा घर, उ रच्छसवा जमुन्वा से.बड़का मशीन लगा के ढाह रहा है रे ..

त कहा , माफ़ कई दे माई , मंत्री के खिलाफ एक्सन लेवे के पावर हमरा नहीं है..औ उसके पास तो मास्साब का हस्ताक्षर किया भेलिड कागज भी है..केतना कहे हम, बिटवा गुरूजी काहे कागज पर दस्खत करेंगे रे..ऊ सब उसका धोखा है .. उसका पुरखन को हमरे पुरुखन रहे के बास दया खाकर ऐसे ही दिए थे, अपना घर से एकदम अलग हटके..ई फैलाते फैलाते हमरे घर से दीवार सटा लिया और अब अपना घर बगीचा सुन्दर बनाने को हमरे घर का आधा हिस्सा भी चाहिए उसको..अब बता न हम जान बूझके अपना आधा घर आ खलिहान काहे को उसके नाम करेंगे..

पर ऊ..एक सुना हमरा..??

बात में सच्चाई थी, इसका उत्तर किसीके पास नहीं था..लम्बी खामोशी रही..

इस भारी माहौल को हल्का करने के लिए बुचिया ने ही पहल की..नन्हे भतीजों को इशारे से दादी को लाड़ करने को कहा..दोनों बच्चे दादी से लिपट गए और एक हाथ पकड़ कर अपने पिता से कहने लगा देखो बापू दादी को लहरने वाली दवाई न लगाना, प्यारी प्यारी दवाई लगाना जिससे जले भी न और घाव झट्ट से ठीक हो जाए..दूसरा दादी के माथे के गूमड़ को सहलाने लगा. मून बाबू की पत्नी तबतक गरम गरम दूध हल्दी का गिलास ले उपस्थित हो गई थी..इस एकत्रित लाड़ ने माई के क्षोभ की अग्नि को हल्का और ठंढा करने में प्रभावकारी काम किया..
मरहम पट्टी कर चुकने के बाद मून बाबू ने बड़े लाड़ से कहा, माई, तू इतना कोसती रहती है बाबूजी को ,पर बाबूजी जैसा देवता इंसान, इतना बड़ा दिल वाला आदमी दुनिया में कितना देखा सुना है बता ना..और जानती है, बाबूजी ने पैसा भले न कमाया, पर जो नाम, सम्मान और संतोष रूपी धन उन्होंने कमाया, वह बिरले को नसीब होता है..

मैया कराह उठी...बोली- बिटवा , उनके सारे किये मैं माफ़ कर देती, अगर सचमुच वो अपना दिल को बड़ा और कड़ा बनाये रख लेते रे..जिस दिन उनका ई प्यारा शिष्य , यही जमुन्वा ,धोखे के कागज के बल पर घर ढहवा रहा था, उस घड़ी जदि अपना यही बड़प्पन, सहनशीलता कायम रख उस झटके को सह लेते,अपना प्राण न त्यागे होते , तो हमरा दुनिया ऐसे उजड़ता रे, बोल !!! हमरा तो सोहाग भाग,सबकुछ लुटे लिए चले न गए अपने साथ.कैसे माफ़ कई दें उनको, तू ही कह...


यह दुःख केवल उन्ही तक सीमित न रह पाया, सबकी आँखों से झर धरती भिंगोने लगा..
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