बड़े आराम से यह कहा जा सकता है कि लालू मुलायम मायावती से लेकर जातिवादी राजनीति करते अपनी व्यक्तिगत दुकान चलाने वाले आरक्षण पैरोकारों से लेकर नवोदित "हार्दिक पटेल" जैसे लोगों तक की रैलियों में जो विशाल भीड़ उमड़ती है,वह भाड़े की होती है...
लेकिन मुझे लगता है यह सत्य से मुँह मोड़ना होगा।
देशतोड़कों द्वारा लाख पैसे फूँके जाएँ, मिडिया कवरेज दे,,फिर भी उस हुजूम में सारे सेट किये ही लोग होते हैं,यह नहीं कह सकते हम।जेनुइन लोग होते हैं इसमें यह मानना होगा..और जब हम यह मानेंगे,तभी उन मूल कारणों तक भी पहुँच पाएँगे और समाधान की दिशा में बढ़ पाएँगे।
स्कूल कॉलेज में बच्चों का एडमिशन करवाना हो,रेलवे टिकट कटवाना हो,मंदिर में भगवान का दर्शन करना हो या जीवन के किसी भी क्षेत्र में,जहाँ भारी भीड़ हो और अवसर कम हो,यह निश्चितता न हो कि अवसर मिलेगा हमें, क्यू में स्वेच्छा और निश्चिंतता से खड़ा होना चाहते हैं क्या हम?कभी भी,कहीं भी, सही गलत कुछ भी करते, अगर शार्ट कट मिल रहा हो,हममें से कितने हैं ज अपना लोग संवरण कर पाते हैं?121 करोड़ की आबादी में 8-10 हजार लोग बमुश्किल निकल पाएँगे जो अगर उसके अगल बगल के सभी लोग सुविधा/ सिस्टम का बेजा इस्तेमाल भी कर रहे हों तो अपना ईमान पकड़ कर रखते हैं और मुफ़्त मिल रही अन्हक सुविधा को भीख और आत्मसम्मान पर ठेस समझते हैं?
तो कुल मिलाकर बात यह हुई कि पिछले दशकों में सत्तासीनों ने देश का जो चारित्रिक संस्कारण किया है,मुफ्तखोरत्व,निकम्मेपन और बेशर्मी को उस स्तर पर पहुँचा दिया है जिससे कुछ वर्षों में समझा बुझा कर तो नहीं हटाया जा सकता,,तो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को ही आगे बढ़ स्वतः संज्ञान लेते एक बड़ा वाला झाड़ू चलाते सारे ही आरक्षणों को इस आधार पर रद्द करे कि -
*इससे समूहों के बीच वैमनस्यता फैलती है
*प्रतिभावान का हक़ मारा जाता है और अयोग्य लोग अंततः देश की प्रगति में बाधक होते हैं
* कुछ ही परिवारों के पुश्त दर पुश्त आरक्षण मलाई का भक्षण करते फूलते फलते हैं और जो पिछड़े हैं,पिछड़ते ही चले जाते हैं।
अतः यह प्रत्येक दृष्टि से देश की एकता अखंडता,प्रत्येक नागरिकों के लिए सामान अधिकार के समदृष्टिमूलक मूल सिद्धांत के विरुद्ध और प्रगति का बाधक है..और इसका अंत आवश्यक है।
इसके स्थान पर बिना किसी भेदभाव के देश के बड़े छोटे अमीर गरीब सभी नागरिकों के लिए शिक्षा की एक व्यवस्था(सरकारी स्कूलों में सभी सरकारी मुलाजिमों को अपने बच्चों को पढ़वाने की जैसी व्यवस्था अभी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने की)हो,प्रतिभा/योग्यता ही एकमात्र आधार आगे बढ़ने का हो।आर्थिक रूप से वंचित वर्ग की उन कठिनाइयों को दूर किया जाय जो उन्हें भोजन संधान में लिप्त रखते शिक्षा से दूर रखते हैं।
लेकिन मुझे लगता है यह सत्य से मुँह मोड़ना होगा।
देशतोड़कों द्वारा लाख पैसे फूँके जाएँ, मिडिया कवरेज दे,,फिर भी उस हुजूम में सारे सेट किये ही लोग होते हैं,यह नहीं कह सकते हम।जेनुइन लोग होते हैं इसमें यह मानना होगा..और जब हम यह मानेंगे,तभी उन मूल कारणों तक भी पहुँच पाएँगे और समाधान की दिशा में बढ़ पाएँगे।
स्कूल कॉलेज में बच्चों का एडमिशन करवाना हो,रेलवे टिकट कटवाना हो,मंदिर में भगवान का दर्शन करना हो या जीवन के किसी भी क्षेत्र में,जहाँ भारी भीड़ हो और अवसर कम हो,यह निश्चितता न हो कि अवसर मिलेगा हमें, क्यू में स्वेच्छा और निश्चिंतता से खड़ा होना चाहते हैं क्या हम?कभी भी,कहीं भी, सही गलत कुछ भी करते, अगर शार्ट कट मिल रहा हो,हममें से कितने हैं ज अपना लोग संवरण कर पाते हैं?121 करोड़ की आबादी में 8-10 हजार लोग बमुश्किल निकल पाएँगे जो अगर उसके अगल बगल के सभी लोग सुविधा/ सिस्टम का बेजा इस्तेमाल भी कर रहे हों तो अपना ईमान पकड़ कर रखते हैं और मुफ़्त मिल रही अन्हक सुविधा को भीख और आत्मसम्मान पर ठेस समझते हैं?
तो कुल मिलाकर बात यह हुई कि पिछले दशकों में सत्तासीनों ने देश का जो चारित्रिक संस्कारण किया है,मुफ्तखोरत्व,निकम्मेपन और बेशर्मी को उस स्तर पर पहुँचा दिया है जिससे कुछ वर्षों में समझा बुझा कर तो नहीं हटाया जा सकता,,तो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट को ही आगे बढ़ स्वतः संज्ञान लेते एक बड़ा वाला झाड़ू चलाते सारे ही आरक्षणों को इस आधार पर रद्द करे कि -
*इससे समूहों के बीच वैमनस्यता फैलती है
*प्रतिभावान का हक़ मारा जाता है और अयोग्य लोग अंततः देश की प्रगति में बाधक होते हैं
* कुछ ही परिवारों के पुश्त दर पुश्त आरक्षण मलाई का भक्षण करते फूलते फलते हैं और जो पिछड़े हैं,पिछड़ते ही चले जाते हैं।
अतः यह प्रत्येक दृष्टि से देश की एकता अखंडता,प्रत्येक नागरिकों के लिए सामान अधिकार के समदृष्टिमूलक मूल सिद्धांत के विरुद्ध और प्रगति का बाधक है..और इसका अंत आवश्यक है।
इसके स्थान पर बिना किसी भेदभाव के देश के बड़े छोटे अमीर गरीब सभी नागरिकों के लिए शिक्षा की एक व्यवस्था(सरकारी स्कूलों में सभी सरकारी मुलाजिमों को अपने बच्चों को पढ़वाने की जैसी व्यवस्था अभी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने की)हो,प्रतिभा/योग्यता ही एकमात्र आधार आगे बढ़ने का हो।आर्थिक रूप से वंचित वर्ग की उन कठिनाइयों को दूर किया जाय जो उन्हें भोजन संधान में लिप्त रखते शिक्षा से दूर रखते हैं।