5.11.08

अनुग्रह

दाता के अनुग्रह जो देखूं,
तो सुध बुध ही बिसराती हूँ.
कृतज्ञ विभोर, अवरुद्ध कंठ,
हो चकित थकित रह जाती हूँ.


हे परम पिता, हे परमेश्वर ,
तूने दे दे झोली भर दी.
पर क्षुद्र ह्रदय इस लोभी ने,
तेरे करुणा की क़द्र न की.


तुझसे संचालित अखिल श्रृष्टि ,
कण कण में करुणा व्याप्त तेरी.
पर अंतस में तुझे भाने बिना,
हम भटक रहे काबा कासी .


तूने हमको क्या क्या न दिया,
पर मन ने न संतोष किया,
लोलुपता हर पल पली रही,
कोसा तुमको और रोष किया.

दुःख गुनने में ही समय गया,
सुख आँचल में चुप मौन पड़ा.
दुर्भाग्य कहूँ या मूढ़मति,
सुख साथ था, मन दिग्भ्रमित रहा.


कैसे सम्मुख अब आयें हम ,
कैसे ये नयन मिलाएँ हम .
कैसे आभार जताएं हम ,
निःशब्द मौन रह जाएँ हम.


हम पर इतना जब वारा है,
हम कृतघ्नों को ज्यों तारा है.
अब एक कृपा प्रभु और करो,
मन के कलुष दुर्बुद्धि हरो.


सद्धर्म प्रेम पथ अडिग चलें ,
उर में संतोषरूपी निधि धरें .
तेरे अनुदान इस जीवन को ,
पुण्य सलिला सा निर्मल करें.......

41 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...

हम पर इतना जब वारा है,
हम कृतघ्नों को ज्यों तारा है.
अब एक कृपा प्रभु और करो,
मन के कलुष दुर्बुद्धि हरो.

बेहतरीन रचना के लिए बधाई हो रंजना जी

Anonymous said...

हम पर इतना जब वारा है,
हम कृतघ्नों को ज्यों तारा है.
अब एक कृपा प्रभु और करो,
मन के कलुष दुर्बुद्धि हरो.

बेहतरीन रचना के लिए बधाई हो रंजना जी

Anonymous said...

हम पर इतना जब वारा है,
हम कृतघ्नों को ज्यों तारा है.
अब एक कृपा प्रभु और करो,
मन के कलुष दुर्बुद्धि हरो.

बेहतरीन रचना के लिए बधाई हो रंजना जी

Anonymous said...

अच्‍छी रचना। बधाई। पंक्तियां खासतौर पर पसंद आईं-
तूने हमको क्या क्या न दिया,
पर मन ने न संतोष किया,
लोलुपता हर पल पली रही,
कोसा तुमको और रोष किया

कुश said...

मन को आनदित कर देने वाला प्रवाह लिए हुए है ये आपकी रचना

सुशील छौक्कर said...

फिर से एक अच्छी रचना।
दुःख गुनने में ही समय गया,
सुख आँचल में चुप मौन पड़ा.
दुर्भाग्य कहूँ या मूढ़मति,
सुख साथ था, मन दिग्भ्रमित रहा.

बहुत उम्दा।

फ़िरदौस ख़ान said...

हे परम पिता, हे परमेश्वर ,
तूने दे दे झोली भर दी.
पर क्षुद्र ह्रदय इस लोभी ने,
तेरे करुणा की क़द्र न की.

रेवा स्मृति (Rewa) said...

हम पर इतना जब वारा है,
हम कृतघ्नों को ज्यों तारा है.
अब एक कृपा प्रभु और करो,
मन के कलुष दुर्बुद्धि हरो.

Bahut sunder...aur kafi differnt rachna padhne ko mila. Dhanyawad Ranjana ji mere blog per aane ke liye, Achha laga.

www.rewa.wordpress.com

अजय कुमार झा said...

sirf itnaa kehnaa chaahtaa hoon ki aapkee shabdaawalee hameshaa mujhe chakit kartee hai aur kuchh ya shaayad bahut kuchh seekhne ko mil raha hai, likhtee rahein.

दीपक कुमार भानरे said...

दुःख गुनने में ही समय गया,
सुख आँचल में चुप मौन पड़ा.
दुर्भाग्य कहूँ या मूढ़मति,
सुख साथ था, मन दिग्भ्रमित रहा.

सुंदर अभिव्यक्ति . बधाई.

Smart Indian said...

हम पर इतना जब वारा है,
हम कृतघ्नों को ज्यों तारा है.
अब एक कृपा प्रभु और करो,
मन के कलुष दुर्बुद्धि हरो.

हमेशा की तरह एक और सच्ची और सुंदर रचना, बधाई!

दिगम्बर नासवा said...

हम पर इतना जब वारा है,
हम कृतघ्नों को ज्यों तारा है.
अब एक कृपा प्रभु और करो,
मन के कलुष दुर्बुद्धि हरो.

बहुत सुंदर तरीके से भावों को संजोया है

अतिसुन्दर

रंजू भाटिया said...

सद्धर्म प्रेम पथ अडिग चलें ,
उर में संतोषरूपी निधि धरें .
तेरे अनुदान इस जीवन को ,
पुण्य सलिला सा निर्मल करें.......

बस यही रहे दिल में ..बहुत सुंदर लगी आपकी यह रचना .

डॉ .अनुराग said...

हिन्दी के सम्रद्ध शब्दों का प्रयोग....बेहतरीन रचना ....

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत सरल और सात्विक उद्गार।
धन्यवाद यह पढ़ाने के लिये।

अमिताभ मीत said...

बहुत अच्छी रचना ....

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत पसँद आयी आपकी
भावभरी सुँदर रचना -

राज भाटिय़ा said...

आप की यह कविता बहुत ही सुंदर लगी, क्या बात है .धन्यवाद

!!अक्षय-मन!! said...

mann bhavuk karti ye vandana mujhe hi pasand aai ..
bahut hi bhavpurn ehsaaon ko vyakt karti ek sundar rachna ...
akshaya-mann

RADHIKA said...

तुझसे संचालित अखिल श्रृष्टि ,
कण कण में करुणा व्याप्त तेरी.
पर अंतस में तुझे भाने बिना,
हम भटक रहे काबा कासी .
बहुत ही सुंदर रचना

कुन्नू सिंह said...

बहुर बढीया, लाजवाब, एक्सीलेंट

Anonymous said...

तूने हमको क्या क्या न दिया,
पर मन ने न संतोष किया,
लोलुपता हर पल पली रही,
कोसा तुमको और रोष किया.

this is nice lines.
bahut sunder likhati hain aap.
Ummeed hai aur behatareen rachnaye milengi

makrand said...

सद्धर्म प्रेम पथ अडिग चलें ,
उर में संतोषरूपी निधि धरें .
तेरे अनुदान इस जीवन को ,
पुण्य सलिला सा निर्मल करें.......

bahut sunder rachana

निर्झर'नीर said...

ek bhajan ki tarah ya yuN kaho ek prarthna ki tarah .. man ke bhavo ko lafz dekar aapne insan ko ek acche path par chalne ke liye prerit karne ki jo khoosburat koshish ki hai vo yakinan daad ki haqdaar hai.
kubool karen..

Unknown said...

sundar kash main bhi bhawo ko....geet bana pata, to thoda khud ko or baya kar pata....

kuch naye ke liye swagat hai.....

अनुपम अग्रवाल said...

कैसे सम्मुख अब आयें हम ,
कैसे ये नयन मिलाएँ हम .
कैसे आभार जताएं हम ,
निःशब्द मौन रह जाएँ हम.
prabhu se nazren mila naheen pa rahe hain .wah

ताऊ रामपुरिया said...

हे परम पिता, हे परमेश्वर ,
तूने दे दे झोली भर दी.
पर क्षुद्र ह्रदय इस लोभी ने,
तेरे करुणा की क़द्र न की.
बहुत सुंदर और ओजमयी रचना ! बहुत बहुत शुभकामनाएं !

art said...

bahut hi praavaahmayi kavita lagi.....din ki sabse sundar rachna padhi maine yahan.........

Prakash Badal said...

बहुत अच्छा लिखना जारी रखें

समय चक्र said...

हम पर इतना जब वारा है,
हम कृतघ्नों को ज्यों तारा है.
अब एक कृपा प्रभु और करो,
मन के कलुष दुर्बुद्धि हरो.
Bahut sundar rachana . ranjana ji badhai .isi tarah likhati rahe. dhanywad.

PREETI BARTHWAL said...

हम पर इतना जब वारा है,
हम कृतघ्नों को ज्यों तारा है.
अब एक कृपा प्रभु और करो,
मन के कलुष दुर्बुद्धि हरो.

बहुत सुन्दर

महेश लिलोरिया said...

इसे कहते हैं शब्दों में रचियता का अवतरण। जैसा कि आपका मानना है कि व्यक्ति द्वारा जीवन में प्रतिपादित कर्म ही उसकी पहचान बनते हैं... सही है। इसी के साथ यहां मेरा यह भी कहना है कि जब व्यक्ति की पहचान शब्दों में नजर आने लगे तो उसका रचनाकार होना सार्थक लगने लगता है। आप इसी दिशा में बढ़ रही हैं। बधाई!
-महेश

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह
बहुत ही खूबसूरत कविता
मन को छूती हुई

Anonymous said...

तुझसे संचालित अखिल श्रृष्टि ,
कण कण में करुणा व्याप्त तेरी.
पर अंतस में तुझे भाने बिना,
हम भटक रहे काबा कासी .

bahot badhiyan. dhnyabad

जितेन्द़ भगत said...

आपकी कवि‍ता सच्‍चे ह्दय से की गई एक प्रार्थना सी लगती है। इतनी सरलता संजोए रखना अदभुत है आज के जमाने में।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

सद्धर्म प्रेम पथ अडिग चलें ,
उर में संतोषरूपी निधि धरें .
तेरे अनुदान इस जीवन को ,
पुण्य सलिला सा निर्मल करें.......
आपकी कविता....याकी ह्रदय का गहरा भाव...याकि एक दिली-प्रार्थना जो भी हो....भगवान् पूरन करे.....और हमारी भी यही प्रार्थना बने......

Vinay said...

बिल्कुल पावन जोत जैसी रचना है!

परमजीत सिहँ बाली said...

तूने हमको क्या क्या न दिया,
पर मन ने न संतोष किया,
लोलुपता हर पल पली रही,
कोसा तुमको और रोष किया.
bahut sunadar rachanaa hai.badhaai

अभिषेक मिश्र said...

दुःख गुनने में ही समय गया,
सुख आँचल में चुप मौन पड़ा.
दुर्भाग्य कहूँ या मूढ़मति,
सुख साथ था, मन दिग्भ्रमित रहा.
सही कहा है आपने.अक्सर ऐसा ही होता है. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.

Satish Saxena said...

मुझे यह यह ज्ञात न था कि आप कवियत्री भी हैं , बहुत अच्छी रचना , आनंद आगया !

प्रदीप मानोरिया said...

तूने हमको क्या क्या न दिया,
पर मन ने न संतोष किया,
लोलुपता हर पल पली रही,
कोसा तुमको और रोष किया.
बहुत सुंदर कविता अद्भुत विचार अद्भुत शब्द सयोंजन

बहुत लंबे अरसे तक ब्लॉग जगत से गायब रहने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ अब पुन: अपनी कलम के साथ हाज़िर हूँ |