22.2.10

बहुत याद आये !!!

मादक मंद समीर बसंती,
छूकर तन, मन को सिहराए,
इस मोहक बेला में साथी, आये, बहुत याद तुम आये !!!

नींद पखेरू,पलकों को तज,
स्मृति गगन में चित भटकाए,
इस नीरव बेला में साथी,आये, बहुत याद तुम आये !!!

पूनम का चंदा ये चकमक,
छवि बन तेरा, नेह लुटाये,
इस मादक बेला में साथी, आये, बहुत याद तुम आये !!!

उर चातक के स्वाति प्यारे,
तुम बिन तृष्णा कौन बुझाये,
आकर साथी कंठ लगा ले, पाए हृदय मिलन-सुख पाए !!!


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52 comments:

पारुल "पुखराज" said...

रंजना दी ,आप अकसर गीत क्यूँ नहीं कहतीं ?

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

अति सुन्दर. मोहक पंक्तियाँ हैं...

रंजू भाटिया said...

बसन्ती फागुनी रंग जब यूँ छलक छलक जाए याद बहुत आये मनवा गीत यूँ ही मीठे गाये ..बहुत सुन्दर लिखा है जी आपने .शुक्रिया

Udan Tashtari said...

वाह!! बहुत मधुर गीत!! आनन्द आ गया.

Shiv said...

बहुत सुन्दर!
पारुल जी का सवाल मेरा भी माना जाय...:-)

Alok Nandan said...

अदभुत

संगीता पुरी said...

वाह !!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

एक बेहतरीन कविता कह सकता हूँ रंजना जी !

रश्मि प्रभा... said...

bade hi khoobsurat ehsaason ko racha hai......swatah kahne ka dil karta hai- waah

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मन मोहक बातें यूँ लिख दी
भावप्रवण गीतों की सरिता
डूब-डूब हम खूब नहाए,भाये,मन को कवि तुम भाए

रानीविशाल said...

वाह!! बहुत मनमोहक रचना .....बधाई !!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

देवेन्द्र पाण्डेय said...

प्यारा बसंत गीत.

निर्मला कपिला said...

उर चातक के स्वाति प्यारे,
तुम बिन तृष्णा कौन बुझाये,
आकर साथी कंठ लगा ले, पाए हृदय मिलन-सुख पाए
बहुत सुन्दर मन मोहक रचना है बधाई आपको।

vedvyathit said...

yad rhe hain sathi jb tk
tb tk mn gaye muskaye
bin yadon ke pnkh kte
pkshi jaisa vo ud n paye
bs tdfn hi sath nibhaye
duniya bemani ho jaye
dr.vedvyathit@gmail.com
http://sahityasrajakved.blogspot.com

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत ही मनमोहक गीत....अच्छा लगा!!
आभार्!

कंचन सिंह चौहान said...

are didi... ye rang to pahali baar dekh rahi hun aap ka....!

Parul se sahamat, aap aksar kyo nahi geet likhtiN ??

basanta pura chhaya hai geet par

मनोज कुमार said...

आपका सृजनात्मक कौशल हर पंक्ति में झांकता दिखाई देता है। शानदार और मनमोहक।

Alpana Verma said...

बेहद सुंदर गीत !

-[ यह बदलाव मनभाया.]

राज भाटिय़ा said...

पूनम का चंदा ये चकमक,
छवि बन तेरा, नेह लुटाये,
इस मादक बेला में साथी, आये, बहुत याद तुम आये !!!
बहुत ही सुंदर भाव धन्यवाद

Mithilesh dubey said...

बहुत ही खूबसूरत रचना लगी आभार आपका ।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सुन्दर कविता -
बासंती बयारें अब आयीं ही समझिये
स स्नेह,
- लावण्या

Smart Indian said...

बहुत बढ़िया. रंजना जी, अब इसे गाकर भी ब्लॉग पर लगाइए.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत मनमोहक रचना .....बधाई !!

Amitraghat said...

"धन्यवाद रंजना जी.."
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com

RADHIKA said...

बहुत ही सुंदर पंक्तिया लिखी हैं दीदी .आपके आलेख तो अच्छे होते ही हैं ,साथ ही आप सुंदर कविता भी लिखती हैं .ग्रेट दी

Akhilesh pal blog said...

bahoot he achha aapka kaveeta sundar hai

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

bahut hee badhiyaa...

aabhaar!

दिगम्बर नासवा said...

मादक मंद समीर बसंती,
छूकर तन, मन को सिहराए,
इस मोहक बेला में साथी, आये, बहुत याद तुम आये

बहुत सुंदर रचना ... प्रेम की मधुर अभिव्यक्ति ...

अजित गुप्ता का कोना said...

बहुत ही मधुर गीत, बधाई।

Manish Kumar said...

अच्छी कोशिश मौसम के अनुकूल !

स्वप्न मञ्जूषा said...

are waah !!
bahut hi sundar geet, ab isko gaa bhi do lage haathon, aur ye mat kahna ki nahi gaa sakti ho ...samjhi naa.

didi..

M VERMA said...

उर चातक के स्वाति प्यारे,
तुम बिन तृष्णा कौन बुझाये,
अत्यंत सुन्दर रचना मौसम अनुकूल

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत मीठा प्यार भरा गीत....शुभकामनायें

डॉ .अनुराग said...

वाह !!

सागर said...

वो जब याद आये, बहुत याद आये...

ग़म-ए-जिंदगी के अंधेरों में हमने चिराग ..... बहुत पसंद आया यह भी.,..

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही मनमोहक गीत....अच्छा लगा!!
आभार्!

Abhishek Ojha said...

सब इस बेला (बड़े स्तर पर मौसम?) का दोष है !

अनामिका की सदायें ...... said...

bahut manmohak geet ban pada hai. badhayi.

holi ki shubhkamnaye apko aur apke pariwar ko.

संजय भास्‍कर said...

रंग बिरंगे त्यौहार होली की रंगारंग शुभकामनाए

ललितमोहन त्रिवेदी said...

गद्य के क्षेत्र में तो आपकी रचनाएँ उत्कृष्ट हैं ही , पद्य में भी भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति मन मोह लेती है ! बहुत सुन्दर रचना !

के सी said...

आपकी इस समृद्ध भाषा का फैन तो था ही आज इतना मोहक उपयोग देख कर, जाने क्या क्या सोचता हूँ. पहला कमेन्ट पारुल जी का है मगर मैं भी सोचता हूँ.

शरद कोकास said...

अब लग रहा है कि बसंती समीर बह रही है ...।

लता 'हया' said...

shukria ranjana ji,
main blog par aaun na aaun par aap sab bahut yaad aaye, yaad aate hain aur aapki siddhi etc.bhi bahut mazedaar lagin.

vandana gupta said...

gazab ki prastuti hai....nishabd kar diya.

Kusum Thakur said...

वाह रंजना यह यह गुण तो पता ही नहीं था मुझे .....बहुत ही सुन्दर रचना है !!

निर्झर'नीर said...

उर चातक के स्वाति प्यारे,
तुम बिन तृष्णा कौन बुझाये,

कितने नपे -तुले अंदाज में आपने खूबसूरत शब्दों को जोड़ा है ..अति सुन्दर जैसे माथे पे बिंदिया चमकती है ऐसे ही आपका ये गीत चमक रहा है ..

BrijmohanShrivastava said...

मंदी हवा ,वह भी बसन्ती रंग की और मादक ,तन मन यदि सिहर जाए तो कोइ क्यों न याद आये |फिर नींद न आना और कल्पना संसार में गोते लगाना एकांत सुनसान कोइ क्यों न याद आये |उस पर पूनम की रात वह भी नशीली ,मैं चातक तुम स्वांति ,गले लग कर मिलन सुख की कल्पना |बहुत सुन्दर और होली के अवसर पर इससे अच्छी रचना हो भी नहीं सकती

पूनम श्रीवास्तव said...

kya kahun ,aapki is post ne mujhe nihshabd kar diya ek behatarin rachana.
poonam

लता 'हया' said...

शुक्रिया ,
देर से आने के लिए माज़रत चाहती हूँ ,
उम्दा पोस्ट .

गौतम राजऋषि said...

दी ये नया रूप तो अद्‍भुत है...

अब तक जाहिर क्यों नहीं किया? बहुत सुंदर लिखा है दी- बहुत सुंदर। और पढ़ना चाहेंगे हम जैसे फैन आपके कुछ ऐसी ही रचना। मेरे मन में हमेशा से था कि आपकी हिंदी इतनी अच्छी है आप जब कविता-गीत लिखने बैठेंगी, गज़ब होगा...

Shail said...

sundar geet..

Kulwant Happy said...

बेहद प्यारी रचना।