नेताजी बहुतै खिसियाये हुए हैं.आजकल जहाँ देखिये वहां चैनल सब पर चमक रहे हैं और सबको चमका रहे हैं...एलान किये हैं कि उनका लाश पर महिला आरक्षण बिल पास होगा.....नेताजी फरमाते हैं .....वे महिलाओं के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि वो तो इतना चाहते हैं कि महिला आरक्षण का लाभ पढी लिखी फ़र फ़र उडती फिरती परकटी बलकटी उन महिलाओं को नहीं ,बल्कि यह उन महिलाओं को मिले, जो नरेगा के अंतर्गत बोझा ढ़ोने का काम करती हैं,जो अल्पसंख्यक समाज से आती हैं,जो अत्यंत पिछड़े वर्ग से आती हैं..संसद में जा राज्य व्यवस्था चलाने का अधिकार उन महिलाओं को मिलना चाहिए जो शिक्षा से वंचित हैं,पारिवारिक सामाजिक अधिकार से वंचित हैं..
देखिये तो,कितना पवित्र बात करते हैं नेताजी , कितना बड़ा ह्रदय है उन का..जो लोग मंत्री जी को घाघ और महिला विरोधी सिद्ध करते उनकी कथनी करनी में भेद बताते हैं,वे यह भूल जाते हैं कि यदि नेताजी महिलाओं के खिलाफ होते तो एक गोबर थपनी, अंगूठा छाप को मुख्यमंती बनाते..भाई बहुत हुआ , बहुत दिन राज कर लिया पढ़े लिखों ने अब तो अवसर उन्हें मिलना चाहिए जिनका कलम किताब से कोई वास्ता न हो..
नेताजी महान समाजवादी हैं...वे समाज में ऊंच नीच का भेद समाप्त करने में नहीं,बल्कि सभी नीच को ऊंच बना देने और सभी ऊंच को नीच बना देने में विश्वास करते हैं..और हाँ,नीच और ऊंच का पैमाना है जाति और धर्म..नेताजी कहते हैं राजनीति खून बनकर उनके नस नस में बहती है..उनके बाप दादा चप्पलो नहीं पहनते थे...पर देखिये तो, ऊ अपना कैसा मकाम बनाये हैं (....कि उनका कम से कम अगला सात पीढी कुछो नहीं कमाएगा तो भी जमीन पर बिना पाऊं रखे जीवन बिता सकता है,एकदम राजशाही अंदाज में...) एहिसे सब लोग उनसे जलता है और उनका बदनाम करने का हर घड़ी साजिश रचता रहता है..
हम तो भाई लोहा मान लिए इनका और इनके जैसे जैसों का..राजनीति सही माने से ये ही लोग सीखे हैं और कर रहे हैं...किसी भी देश में एकछत्र शासन जमाये रखने और चलाने के लिए जो सबसे सफल टोटका काम में आता है,ऊ एहई है....जितना फूट डालोगे जितना आमजन को भरमाओगे, ओतना सुखी और समृद्ध रहोगे..
महिला आरक्षण वाला ई केस में नेताजी को मालूम है, जदी इनका ई गोटी चल गया तो दू तीन झक्कास ऑप्शन खुलेगा...सबसे प्रबल सम्भावना तो इसीका बनेगा कि महिला आरक्षण का ई बिले पास नहीं हो,जैसे एतना साल से लटका हुआ है ...खुदा न खास्ता, पास होइयो गया तो उसमे इतना इतना पेंच होगा कि देश और महिलाओं को अगला दो टर्म उसे समझने में ही लग जायेगा और तबतक तो नेताजी का नैया शुभ शुभ करके पार हो लेगा.....और तीसरा सबसे बड़ा सफलता ई होगा कि संसद में स्थान, महिला हो कि पुरुष, केवल अनपढ़ ,लंठ लठैत लोग के लिए बचेगा.अपना दादागिरी सदा सर्वदा के लिए कायम रखने को ई बड़ा आवश्यक है.
सब भाई बहिनी लोग कभी जाति के नाम पर,कभी भाषा और छेत्रवादिता के नाम पर और कभी धर्म के नाम पर सिर फुटौअल करते रहें,ये माई बाप लोग देश के बाहरी भीतरी लंठों / आतंकियों की सेनाओं को पोसते रहें और अंततः दिहाड़ी कमाने वालों से लेकर बड़े बड़े औद्योगिक घराने तक खाने पीने सूंघने की चीजों से लेकर उपयोग की हर वस्तु पर टैक्स अदा कर कर के इनके स्विस बैंक को आबाद करने के लिए पिसते रहें...हो गयी राजनीति...हम भी खुश कि हम सबसे बड़े प्रजातान्त्रिक राष्ट्र में रहते हैं और ये भी मस्त कि ये इतने बड़े जनतंत्र को चलाते हैं...
चलिए हम सब मिलकर इनकी हाथों को और मजबूत बना दें ताकि देश में बस एक ही योग्यता चले कि हम आप जन्मे किस जाति में हैं या कौन देवी देवता को पूजते हैं...तो क्या हुआ यदि किसीने कलम कागज़ घिस घिस कर अस्सी,पचासी,नब्बे प्रतिशत अंक अर्जित किया है....यदि आप निम्न जाति के नहीं, अल्पसंख्यक(??) नहीं, तो भाई आपके लिए नौकरी के नाम पर मैकडोनाल्ड,पिज्जा हट , कॉल सेंटरों या कोर्पोरेट हाउसों में काम है (...अभी हाल फिलहाल के लिए तो बस ये ऐसे कुछ राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संस्थान हैं, जहाँ आरक्षनासुर पहुंचा नहीं है)...
आज हमारे माननीय नेतागण चित्त में पूर्णतः धंसा चुके हैं कि देश/प्रशासन को चलाने के लिए प्रतिभा की नहीं, बल्कि जातिगत योग्यता की आवश्यकता है.सवर्ण यदि पंचानवे प्रतिशत अंक भी लाता है तो उसमे कुशल प्रबंधन की वह योग्यता, प्रतिभा नहीं होगी जो चालीस पैंतालीस प्रतिशत अंक लाने वाले पिछड़े,अल्पसंख्यक इत्यादि जातिवालों में होगी..और जहांतक पंचायत से लेकर विधान सभा, लोकसभा या राज्यसभा इत्यादि में जा देश/ प्रशासन के कुशल प्रबंधन की बात है,उसके लिए न तो किसी भी प्रकार के शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता है और न ही पूर्वानुभव की..अपने देश में राजनीति एकमात्र रोजगार है जिसके लिए न किसी परीक्षा में उतीर्ण होने की, न कार्य/प्रभाग के विशेषज्ञता की या पूर्वानुभव की आवश्यकता है...बल्कि अधिकांशतः तथाकथित गरीबों के मसीहा,जमीनी नेताओं को विश्वास है कि एक अशिक्षित महिला/पुरुष जितनी कुशलता से राज काज चला सकता है,उतना पढ़ा लिखा तो कदापि नहीं..
बड़ा जी कर रहा है कि पूछूं ...नेताजी यदि महिलाओं के लिए सीट आरक्षित हो भी जाती है तो क्या उसमे ऐसा कोई प्रावधान होगा क्या, कि गाँव शहर से पढी लिखी काबिल महिलाओं को खोज खोज कर आप लायेंगे और उन्हें संसद तक पहुंचाएंगे ??? अरे भाई, डरते काहे को हैं,आज अपने देश में जितने भी राजनितिक दल हैं,कुछेक अपवादों को छोड़ लगभग सबके सब तो दलविशेष के शीर्ष "नेता एंड फेमिली" के ही हैं और "राजा/रानी एंड संस" के तर्ज पर ही पीढी दर पीढी चल रहे हैं, तो भाई आप जिसे अपनी पार्टी का टिकट देंगे वही तो चुनाव में खड़ा होगा न ??? तो भाई ,आप अपने और अपने परिवार वालों तथा लग्गू भग्गुओं की पत्नी ,बहु बेटियों को ही टिकट दीजियेगा.....और हाँ यदि आपको यह लगता है कि पढ़ी लिखी महिला केवल रबर स्टंप न रह कुर्सी चुभुक कर धर अपना कब्ज़ा जमा सकती है, तो थोडा मेहनत कीजिये,परिवार से ऐसी महिला को चुनिए जो एकदम ठप्पा हो...
अरे.... अरे ,ई मति समझिये कि हम "आ-रक्षण" के विरिधी हैं...हम कद्दू आम जन तो बस एही आकांक्षा रखते हैं कि समाज में दबे कुचले वंचित प्रत्येक जन का रक्षण शासन प्रशासन करे...पर भाई, ऐसे नहीं,जैसे आज आप लोग कर रहे हैं....तनिक आँख खोलकर चारों ओर देखिये...आज अमीरी गरीबी जातिगत नहीं रह गया है, गरीबी किसीको भी जाति के आधार पर नहीं बख्सता....तो सरकार, तनिक रहम कीजिये, साधनहीन को साधन दीजिये,खाने-पीने, पढने-लिखने, स्वस्थ रहने और जीने का सामान अधिकार और सुविधा , प्रत्येक देशवासी को बिना जात-पात, धर्म, भाषा, क्षेत्र का भेद किये दीजिये..देश को प्रगति के पथ पर ले जाना है तो प्रतिभावान को अवसर दीजिये,उसके हाथों तंत्र / व्यवस्था दीजिये,जिससे वह जनतंत्र को सच्चे मायने में सफल सजग और मजबूत बना सके....
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16.3.10
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33 comments:
आपने बहुत वैचारिकता के साथ मुददे को प्रस्तुत किया है -आभार !
वैसे दो नेता जी की बहुए .बीविया धडाधड इलेक्शन लड़ रही है .एक तो हार गयी पर अगली बार फिर लड़ेगी......किसी ने बिहार वाले नेता जी से पूछा.आप महिलायों के विरोधी है ....किसने कहा.वे बोले ....हमारी पार्टी ने तो मुख्या मंत्री बनाया महिला को.......
सादर वन्दे!
लेख का आधार जब विस्तृत मानसिकता होता है तो कलम विचारों का मार्गदर्शक हो जाता है, उचित लेख.
# भारतीय नववर्ष 2067 , युगाब्द 5112 व पावन नवरात्रि की शुभकामनाएं
# रत्नेश त्रिपाठी
अब क्या करे, सब के सब एक ही थेली के चट्टे वट्टॆ है
रंजना जी आपने तो इस मुद्दे को इतने रोचक ढंग से लिखा है कि भिगो भिगो कर जूते भी मारे नेताओं को और अपनी बात भी प्यार से समझा दी । बहुत अच्छा लगा आलेख धन्यवाद।
देश के बर्बादी के अनेक कारणों में से एक है आरक्षण। खासकर जतिगत आरक्षण। अगर आरक्षण होना ही है तो योग्यता के आधार पर होना चाहिये। लेकिन भय है कि इस देश में योग्यता के आधार पर आरक्षण हो भी गया तो योग्य लोगों को उचित लाभ नहीं मिल सकेगा, क्यों कि योग्यता के जाली प्रमाण पत्र बनाना बहुत ही आसान काम है।
एकदम स्टीक लेख है आपका।
बहुत बढ़िया आलेख!
भारतीय नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!
इस रचना में आपकी साफ़गोई और निष्पक्ष तेवर देखते ही बनता है। प्रस्तुत विचारों से सहमत हूं।
रंजना जी लालू और मुलायम की राजनीति से जनता वाकिफ़ है। आरक्षण के मुद्दे को तो आपने कवर किया पर आपका लेख शत्रुघ्न सिन्हा और महंत अवैद्यनाथ सरीखे कई नेताओं के महिला आरक्षण विरोध को अपने व्यंग्य में लपेट नहीं सका। लालू के तो जमा सिंगल डिजिट के MP हैं।
इस आरक्षण विधेयक के मूल विरोधी तो काँग्रेस और बीजेपी में बैठे हैं जो व्हिप के डर से चोरी छुपे वक्तव्य दे रहे हैं। दरअसल पुरुष, राजनीति में अपना वर्चस्व सीधे गँवाने को तैयार नहीं हैं। वे जानते हैं कि इस विधेयक के आने के बाद अपनी परंपरागत सीट से हाथ धो बैठेंगे और सत्ता सुख भोगने से वंचित हो जाएँगे।
जिस तरह की परिवारवाद की परंपरा भारतीय राजनीति में है उसके चलते इस विधेयक से मुझे तो निकट भविष्य में बहु, बेटियों का ही भविष्य उज्जवल दिखाई पड़ रहा है। पर शायद धीरे धीरे राह सबके लिए खुले....
व्यंगात्मक शैली में लिखा अच्छा लेख....सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं...:):)
समाज में दबे कुचले वंचित प्रत्येक जन का रक्षण शासन प्रशासन करे...पर भाई, ऐसे नहीं,जैसे आज आप लोग कर रहे हैं....तनिक आँख खोलकर
--जबरदस्त विचारणीय...उनकी आँखें खोलती हैं तो सिर्फ वोट दिखता है, क्या करियेगा.
बेहतरीन आलेख और शानदार शैली.
aap se zyaada sundartaa se is mudde ko koi bayaan nahi kar saktaa tha Ranju ji...
bahut achhey...
लगता है मिसिर जी से बात हुई है आपकी इन दिनों.. ये उनका ही काम है नेताजी की भावनाओ की वाट लगाना..
वैसे आपने तो खूब लपेटा इस बार.. पढ़ पढ़ के मुस्कुरा ही रहे है.. इसे ही कहते है भिगो के मारना...
"राजा/रानी एंड संस" के तर्ज पर ही पीढी दर पीढी चल रहे हैं'
वाह!
क्या बात कही ,यही तो हो रहा है और होता रहेगा.
बहुत सटीक लेख है रंजना जी.
हम 'कद्दू आम जन 'भी आप की बातों से सहमत है.[देखें क्या क्या नहीं होता "आ-रक्षण"के मुद्दे पर..
बहुत बढ़िया पोस्ट.
अगर साधने दे देंगे त सब गड़बड़ा न जाएगा. साधन पाकर पब्लिक सब आगे बढ़ जाएगा. आगे बढ़ेगा त फिर आरक्षण किसको दिलाएंगे?
bahut badhiya likha aapne...ranjana ji, badhaai
आरक्षण में सबसे ज्यादा उनका फायदा होता है जो एक बार पहले भी इसका लाभ उठा चुके हैं. बाकी तो जैसे थे वैसे ही रहते हैं. हाँ नुकसान बहुतों का होता है. नेताजी की तो अच्छी खबर ली आपने.
करारा व्यंग्य लेख. इस लेख में आपकी अद्भुत व्यंग्यात्मक लेखन शैली की झलक देखने को मिली. आप यूँ ही लिखा करें..एक नहीं अनेक विषय हैं जहाँ ये अपना मनमाना राज चलाना चाहते हैं.
...बधाई.
विचारणीय
बेचैन आत्मा ji se sahmat hun
vaise bhi jane-kyun bechain aatmaon se hum aksar sahmat ho hi jate h
LOL
आरक्षण देना ही है तो आर्थिक रूप से दीजिये ,खूब पुस्तकें उपलब्ध कराइए ,उत्तम ट्यूटर की व्यवस्था कीजिये यहा उपलब्ध न हो तो विदेश से आयात कीजिये,एसी रूम सहित सब सुविधा दीजिये लेकिन किसी डाक्टर को ज़ीरो नम्बर पर एडमीशन मत दीजिये ,क्योकि आप तो जुकाम का इलाज कराने विदेश चले जाते है और इनके बनाये पुल का उदघाटन करने से बचते है लेख की कुछ लाईने बेहद अच्छी लगीं मसलन""क्या गाव शहर से पढी लिखी महिलाओं को खोज कर लायेंगे "" कुशल प्रबंधन की वह योग्यता, प्रतिभा नहीं होगी जो चालीस पैंतालीस प्रतिशत अंक लाने वाले " राज्य व्यवस्था चलाने का अधिकार उन महिलाओं को मिलना चाहिए जो शिक्षा से वंचित हैं,पारिवारिक सामाजिक अधिकार से वंचित हैं..""यदि नेताजी महिलाओं के खिलाफ होते तो एक गोबर थपनी, अंगूठा छाप को मुख्यमंती बनाते""बल्कि सभी नीच को ऊंच बना देने और सभी ऊंच को नीच बना देने में विश्वास करते हैं ""आज से बहुत बरस पहले कवि हरिओम पवार ने कविता पढी थी उसकी एक लाइन यह थी ""।आरक्षण का देश है तक्षक विधान है ,गधे और घोड़े में गधा महान है""॥आर्थिक आरक्षण वाबत बहुत लेख पढ़े ,भाषण सुने ,बाद बिबाद सुने मगर जो लहजा आपने इस लेख में प्रयोग किया है वह अपनी जगह निराला है ,व्यंग्य भी ,सचाई भी ,और अगर माने तो शिक्षा भी
हम 'कद्दू आम जन 'भी आप की बातों से सहमत है.[देखें क्या क्या नहीं होता "आ-रक्षण"के मुद्दे पर..
सचमुच लाजवाव.
बेहतरीन अभिव्यक्ति बहुत गहरी बातें
bahut hi sarthak aalekh
aapki tamaam baaton se sahamat hain apan bhi.......!!
bahut acchha lekh aur ek jaandar vyangye...dil kar raha he kuchh jute me b ikatthhe kar lu.
Nirmala ji sahmat hun! Saanbhi mare aur lathi bhi na tute wala andaaz...wah!
नेताजी महान समाजवादी हैं...
अजब इत्तेफाक है - समाजवादी मजदूर जर्मन पार्टी का नेता और १ करोड़ से अधिक रोमा और यहूदियों का हत्यारा हिटलर भी समाजवादी था.
Lalu chcha khisiyahat jagjahir hai..
बहुत अच्छा लगा आलेख धन्यवाद।
राजनेता बस अपनी रोटियाँ सकते हैं ... ३३% आरक्षण अच्छी शुरुआत है ... पर सामाजिक बदलाव अभी भी कोसों दूर नज़र आता है ...
शुक्रिया
आपका महिला आरक्षण का लेख मुझे सबसे बेहतरीन लेख लगा. और उस पर ये तंज़िया. अंदाज़ ! बहुत ख़ूब . .
पर कभीकभी आरक्षण जरुरी भी हो जाता है, यह अलग बात है उसके पीछे भोंडे तर्क न हों.
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"शब्द-शिखर" पर सुप्रीम कोर्ट में भी महिलाओं के लिए आरक्षण
देश को प्रगति के पथ पर ले जाना है तो प्रतिभावान को अवसर दीजिये,उसके हाथों तंत्र / व्यवस्था दीजिये,जिससे वह जनतंत्र को सच्चे मायने में सफल सजग और मजबूत बना सके....
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बिलकुल सही....सहमत.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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