बरसों तक केवल चैनपुर ही नहीं, आस पास के कई गांवों के मामले भी बिना मियां हबीबुल्लाह अंसारी के सरपंची के निपटता न था. अपनी नेकदिली और शराफत के बदौलत सबके दिलों पर बादशाहत हासिल थी उन्हें.. मियां बीबे के झगडे से लेकर इलाके के बड़े बड़े मसले वे चुटकियों में ऐसे निपटा देते , कि उनकी अक्लमंदी देख लोग दंग रह जाते...लेकिन कहते हैं न पूर्व जन्म के कु और सु कर्म वर्तमान जन्म में इंसान को औलाद के रूप में मिलते हैं.तो शायद यही वजह रही होगी कि निहायत ही शरीफ मियां जी के पिछले सभी जन्मों का हिसाब बराबर करने को अल्लाह मियां ने तीन तीन नालायक औलाद से नवाज दिया...मियां की लाख कोशिशों के बाद भी न तो वे तालीम हासिल कर पाए ,न नेकदिल इंसान बन पाए . अव्वल बढ़ती उम्र के साथ दिन ब दिन लंठई और लुच्चई में खरे होते गए. आये दिन अपने कारनामो से ये बाप की जान छीलते रहते थे..
लोग शिकायत फ़रियाद लेकर आते,पंचयती बैठती,फैसला भी होता,पर उसे मानता कौन.. थक हार कर लोगों ने मियां जी से किनारा कर लिया..न कोई उन्हें अपने मामलों में बुलाता और न ही उनके बेटों की शिकायत लेकर उनके पास जाता.मियां जी के पास जाने से सीधे थाने जाना लोगों को अधिक जंचने लगा. लेकिन इन गुंडे मवालियों ने थानेदार से भी ऐसी सांठ गाँठ कर रखी थी कि वह इन लफंगों की नहीं थाने पहुंचे शिकायतकर्ता पर ही गाज गिराता था...
औलाद की करतूतों ने मियांजी को खुद से नजरें मिलाने लायक भी न छोड़ा था...एक तो अन्दर की टूटन ऊपर से बेवफा बुढ़ापा.आठों पहर दोजख की आग में जलते रहते वे..साठ की उमर पहुँचते पहुँचते जैसे ही रतौंधी ने ग्रसा, कि मौके का फायदा उठा उनकी औलादों ने धोखे से जायदाद के कागजातों पर उनसे दस्तखत करवा,उनका सबकुछ कब्जिया लिया..इसके बाद तो रोटी के दो कौर के लिए कुत्ते से भी बदतर उनकी जिदगी बना दी..
लम्बे समय तक खटियाग्रस्त रहने के बाद, अपना अंत नजदीक जान एक दिन हबीब मियां ने अपने सभी बेटे और बहुओं को ख़ास राज बताने के लिए बुलाया..बेटों को लगा अब्बा शायद किसी गड़े छिपे धन के बारे में बताएँगे...और सचमुच मियांजी ने उन्हें अपने वालिद की तस्वीर के पीछे छिपा कर रखी हुई सौ अशर्फियों का पता दे दिया, लेकिन इससे पहले उन्होंने उनसे करार करवा लिया कि वे उनकी आखिरी ख्वाहिश जरूर पूरी करेंगे..
उनकी यह ख्वाहिश कुछ यूँ थी -
" बचपन में जिस सरकारी स्कूल में उन्होंने अपनी पढ़ाई की थी,उसके आहते में एक आसमान छूता आम का पेड़ था..पेड़ों पर चढ़ने में वे इतने उस्ताद थे कि पेड़ की जिस शाख पर बन्दर भी चढ़ने से पहले तीन बार सोचते थे,पलक झपकते ही वे चढ़ जाते थे और फिर चाहे उसपर डोल पत्ता खेलने की बात हो, या कच्चे पक्के आम तोड़ने की बात, उनसा अव्वल पूरे गाँव में कोई न था..अपने इस उस्तादी के बल पर वे सब के लीडर बने थे और इसी दरख़्त ने उन्हें हरदिल अजीज बनाया था...
तो मियांजी की आखिरी ख्वाहिश यही थी कि जब भी उनका इंतकाल हो , बिना किसी को खबर लगे, रात के नीम अँधेरे में उन्हें उस दरख़्त की सबसे ऊंची शाख (जहाँ तक उनके बच्चे पहुँच सकते हों) पर उनके पैरों में रस्सी बाँध, उन्हें उल्टा लटका कर पूरे चौबीस घंटे के लिए छोड़ दिया जाय..इन दुनिया को छोड़ कर जाने से पहले वे अपने उस अजीज, महबूब, दरख़्त के आगोश से मन भर लिपट लेना चाहते थे.. अगरचे ऐसा न किया गया तो उनकी रूह कभी सुकून न पायेगी,यह दावा था उनका....
और जबतक वे पेड़ पर लटके हों , उनके बच्चे अपने तमाम यार दोस्तों और समधियाने वालों को इकट्ठी कर, उनके दिए इन अशर्फियाँ में से दो अशर्फियाँ खर्च कर,सबको खूब अच्छी सी दावत दें..लेकिन सनद रहे, कि दावत ख़त्म होने तक किसी को यह इल्म न हो कि उनका इंतकाल हो गया है..अपने बच्चों और अजीजों को खाते पीते जश्न मानते देख वे खुशी खुशी जन्नतनशीन हो जायेंगे..."
बड़ी अटपटी सी थी यह ख्वाहिश...पर बेटे बहुओं ने सोचा,चलो जिन्दगी भर तो बुड्ढे की एक बात न रखी..अब इस छोटी सी बात को रख लेने में कोई हर्ज नहीं है..वैसे भी इसकी ख्वाहिश न पूरी की, तो हो सकता है बुढऊ जिन्न बनकर जीना हराम कर दे..सो तय हुआ कि अब्बा हुजूर की यह ख्वाहिश जरूर पूरी की जायेगी...
संयोग से महीने भर के अन्दर हबीब मियां अल्लाह को प्यारे हो गए..ढलती शाम में उनका इंतकाल हुआ था..बेटों ने रात गहराने का इन्तजार किया और तबतक सभी यार दोस्तों को अगली दोपहर के दावत के लिए न्योत आये..और फिर जैसा मियां ने कहा था,वैसा ही कर दिया..अगले दिन दोपहर को उस शानदार दावत में थानेदार, आस पास के इलाके के सभी लफंगे और बहुओं के मायके वालों का जबरदस्त मजमा लगा..
इधर दावत शबाब पर थी और उधर शहर में एस पी के पास गाँव वालों का खाफिला इस शिकायत के साथ पहुंचा हुआ था कि हबीब मियां के तीनो मवाली बेटों ने अपने बाप का खून कर उसे स्कूल के आहते में पेड़ पर लटका दिया है,जिस दरिंदगी मे थानेदार की भी शह है और अब सारे मिल मजलूम बाप के मौत का जलसा मना रहे हैं.बदमाशों से निजात पाने को लालायित कई लोग खुद को इस वाकये के चश्मदीद गवाह भी ठहरा रहे थे..
एस पी को दल बल सहित पहुंचकर कार्यवाई करनी ही पडी..वहां पहुँच एस पी की भी लौटरी खुल गयी..क्योंकि एकसाथ इक्कट्ठे इतने अपराधियों को पकड़ना कोई हंसी थोड़े न था.. इलाके के लगभग सभी नामी गिरामी गुंडे और भ्रष्ट अफसर बैठे ठाले एस पी के हाथ लग गए.
और मियां हबीबुल्लाह अंसारी ... जीते जी जो न्याय नहीं कर पाए ,मरते मरते कर गए थे....
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48 comments:
bahut achha laga
bahut hee khoobsurat!
वाह ! क्या खूब
अंतिम न्याय अनोखे तरीके से ..
हा हा! भोले भाले हबीब मियाँ तो बहुत जालिम निकले। अल्लह उन्हें जन्नत बख्शे!
आज की दुनिया में एस पी साहब भी उस जशन में शामिल रहते:(
nyaay ho to aisa.
यह हुआ न न्याय बहुत बढ़िया पोस्ट
हबीब मियां की जय हो!
क्या नैरेशन है...बहुत खूब!
मियां हबीबुल्लाह अंसारी कोप जन्नत नसीब हो, अपनी नालयाक ऒलाद के संग सारे बदमाशो को भी पकडवा दिया. अमीन
एक बहुत ही अच्छी पोस्ट।
बहुत सुन्दर कहानी। न्याय हुआ।
रोचक ..................
सुंदर प्रस्तुति!
हिन्दी हमारे देश और भाषा की प्रभावशाली विरासत है।
बड़ी सुन्दर कथा है. बचपन में सुनी हुई कथाओं की तरह.
सुंदर कथा,ल्यात्मक्ता बनी रही है।
आभार
मैं परेशान हूँ--बोलो, बोलो, कौन है वो--
टर्निंग पॉइंट--ब्लाग4वार्ता पर आपकी पोस्ट
उपन्यास लेखन और केश कर्तन साथ-साथ-
मिलिए एक उपन्यासकार से
आपका ये किस्सा लोक गल्प के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है.
सरसस है और चुटीला भी. ऐसे किस्से और लिखियेगा कि हमारी लोक संपदा को शब्द की बड़ी जरुरत है. वे उपेक्षित भी रही हैं.
आभार.
फिलहाल तो यूँ करिए हफ्ते में एक रोज जरा वक़्त निकलकर अपनी कलम को पैना कीजिये ....कसम से आप में किस्सा गोई के खासे हुनर है .....
bahoot achchha nyay kiya ..........
bahoot hi sunder rachna
जो न्याय जीते जी नहीं कर पाए ...मरते मरते कर ही दिया ...
GR8...
अजब ख्वाहिश थी भई ...वाकई आप तो कहानियाँ लिखने की महारत हासिल किये हुए हैं ।
पूर्व जन्म के कु और सु कर्म वर्तमान जन्म में इंसान को औलाद के रूप में मिलते हैं.
satya vachan
ek acchi kahani ke liye aabhar
न्याय का ये अंदाज़ भी लाजवाब है ... वैसे औलाद अच्छी निकले ज़रूरी नही .... ये बात तो स्वयं भगवान श्री कृष्ण भी न कर सके ... शायद वो भी ये संदेश देना चाहते थे समाजको ....
आप की रचना 20 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
An attractive narration!
बहुत बढ़िया कहानी ....ऐसे बच्चों को ऐसे ही सीख मिलनी चाहिए ...
lajawaab hai........sadhuwaad..
achcha style he , badhai
Ye sab kissa kahaniyan kahan se gadh leti hain. Waise miyan ji ka badla shaandaar raha.
अपने बड़े ही सुंदर अंदाज में यह कहानी पिरोई है। आपकी शैली बेहद रोचक और शब्द चयन काफी प्रभावशाली है। कभी मित्र मंडली से बहुत ही भदेस शैली में एक ऐसी ही कहानी सुनी थी कि एक बुरे आदमी ने मरते वक्त भी गांव वालों से कुछ ऐसा करने को कहा था कि उसकी हत्या के आरोप में पूरा गांव गिरफ्तार हो गया था।
अपने बड़े ही सुंदर अंदाज में यह कहानी पिरोई है। आपकी शैली बेहद रोचक और शब्द चयन काफी प्रभावशाली है। कभी मित्र मंडली से बहुत ही भदेस शैली में एक ऐसी ही कहानी सुनी थी कि एक बुरे आदमी ने मरते वक्त भी गांव वालों से कुछ ऐसा करने को कहा था कि उसकी हत्या के आरोप में पूरा गांव गिरफ्तार हो गया था।
ज़बरदस्त ... हबीब मियाँ आखिर मे काम कर गए ... :) कहानी की लय और तरलता बनी रही अंत तक ... सुन्दर कहानी के लिए शुक्रिया आपका
बहुत खूब, न्याय का यह अनोखा तरीका बहुत पसंद आया
अच्छी सीख और अच्छा न्याय ..जीते जी न सही मरने के बाद ही सही.रचना के लिए बधाई.
Wah kya khoob nyay rah Hubeeb miyan ka.
Badhiya kahani. Bhut dino bad aayee aapke blofg par per maja aaya.
हबीब मियां का न्याय खूब रहा और आपका कहानी कहने का अंदाज माशा अल्लाह |
खूबसूरत प्रस्तुति.
सुन्दर कहानी,
इस पोस्ट के साथ अच्छा न्याय किया आपने.
.
कई बार बहुत कुछ अंतिम क्षणों के लिए निर्दिष्ट होता है।
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bahut achha laga padhkar...
सुंदर लिखा अफसाना .मुझे तो लगा जेसे मोडर्नडे की जातक या पंचतंत्र कथा पढ़ रहा हूँ पर विपरीत क्लीमेक्स से .आज के दोर को देखते हुवे तो पुलिस और गुंडे मिल कर हबीब जी की लाश को ठिकाने लगा देते
like the narration
बढ़िया पोस्ट!
बहुत मार्मिक (और मजेदार भी) कहानी. मैं भी इसे न्याय ही कहूंगा
sunder katha
अच्छा लेखन । रोचक - मनभावन विषय । संवेदनशील प्रस्तुति । बधाई । अच्छा लगा ब्लॉग ।
एक बार फिर सही न्याय तो हुआ, देर से ही सही................
सुन्दर दिल को छू लेने वाली कहानी पर आपको हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
एक बार फिर सही न्याय तो हुआ, देर से ही सही................
सुन्दर दिल को छू लेने वाली कहानी पर आपको हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
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