1.11.10

तरु और लता...

कहीं किसी एक कानन में, था सघन वृक्ष एक पला बढ़ा,

था उन्नत उसका अंग अंग, गर्वोन्नत भू पर अडिग अड़ा.


वहीँ पार्श्व में पनपी थी, कोमल तन सुन्दर एक लता.
नित निरख निरख तरु की दृढ़ता, हर्षित उसका चित था डोला.

तरुनाई कोमलता उसकी , तरुवर के मन को भी भायी,
निज शाख झुकाकर उसने भी, कोंपल की उंगली थाम ही ली.


प्रिय ने जो अंगीकार किया, तन मन अपना वह वार चली,
हर शाख शाख पत्ते पत्ते, लिपटी लिपटी वह खूब खिली.


था प्रेम प्रगाढ़ ही दोनों में,पर तरु का मन था अहम् भरा,
आश्रयदाता अवलम्बन वह ,यह भी मन में था बसा रहा.


लघु तुच्छ सदा उसे ठहरा कर, तरु तुष्टि बड़ा ही पाता था,
निज लाचारी को देख ,लता का ह्रिदय क्षुब्ध हो जाता था.


था आत्मविश्वास न रंचमात्र, जो प्रतिकार वह कर पाती,
अपमान गरल नित पी पीकर, भाग्य मान सब सह जाती.


आशंका से मन था कम्पित, कहीं तरु निज हाथ छुड़ा न ले,
कैसे उस बिन जी पायेगी, कहाँ जायेगी इस तन को ले.


तरु ने यदि त्याग दिया उसको,फिर कहाँ ठौर वह पायेगी,
जो भूमि पड़ी उसकी काया, नित पद से  कुचली जायेगी.


था पड़ा सुप्त उसका चेतन, उसको न किंचित भान रहा,
योगक्षेम वाहक जग का, अखिलेश्वर केवल एक हुआ.


जीवन दाता सब जीवों का, सुखकर्ता सबका दुःख हरता,
उसकी कृति ही हर एक प्राणी,नहीं कोई हीन न कोई बड़ा.


सत का सूरज उर में प्रकटा , निर्भय विभोर निश्चिन्त हुई,
मृदुस्वर से प्रिय को समझाकर, उस से हित की ये बात कही.


है सत्य मेरे आधार तुम्ही, तेरे प्रश्रय से विस्तार मेरा,
तुम सदा रहे रक्षक मेरे, तुमसे सुरभित संसार मेरा.


पर तुच्छ नहीं मैं भी इतनी, है व्यर्थ नहीं मेरा होना,
जिस सर्जक की तुम रचना हो,वह ही तो मेरा हेतु बना.


माना कि तुम सम बली नहीं,तुम सा मेरा सामर्थ्य नहीं,
पर कर्तब्य परायण मैं भी हूँ, कभी छोड़ा तेरा संग नहीं.


तुम मुझे सम्हाले रहते हो, तो मैं भी तो रक्षक तेरी,
हो धूप कि आंधी या वर्षा,तुझसे पहले मैं सह लेती .


विपदा जो तेरी ओर बढे ,मैं सदा ढाल बन अडती हूँ ,
मेरे होते कोई वार करे, यह कभी न मैं सह सकती हूँ.


चाहा तेरा है साथ सदा, चाहे जिस ओर गति तेरी,
यूँ ही जीवन भर संग रहूँ , नहीं दूजी कोई साध मेरी.


फिर क्या तुलना क्या रंज भेद, क्यों मन में कोई घाव भरें,
आ स्नेह से हिल मिल संग रहें,क्यों सुखमय जीवन नष्ट करें.


था सार छुपा इसमें सुख का, तरुवर के मन को भी भाया,
जो अहम् बना दुःख का कारण, तरुवर ने उसको त्याग दिया.


...........

37 comments:

vandana gupta said...

बहुत ही भावप्रवण रचना।

रश्मि प्रभा... said...

तरुनाई कोमलता उसकी, तरुवर के को मन को भी भायी,
निज शाख झुकाकर उसने भी, कोंपल की उंगली ली थामी.
laga jaise ... bahut kuch laga , patton ki chhuwan
rasprabha@gmail.com per bhejen parichay aur tasweer ke saath vatvriksh ke liye

रंजू भाटिया said...

वाह अदभुत बहुत सुन्दर लिखा है आपने इसको बहुत ही भाव पूर्ण अभिव्यक्ति माना कि तुम सम बली नहीं,तुम सा मेरा सामर्थ्य नहीं,
पर कर्तब्य परायण मैं भी हूँ, न छोड़ा तेरा संग कभी .

सच कहा पर मानता कौन है ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर शब्दों में बड़ी सहजता से अमरबेल के माध्यम से नारी की व्यथा कथा कह दी है ...सुन्दर अभिव्यक्ति

प्रवीण पाण्डेय said...

अद्भुत लेखन, पढ़कर रम गये हर पंक्ति में। मन को इतना स्पष्ट व्यक्त कर दिया आपने।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

रंजना जी!
सह अस्तित्व और सहचर के प्रति सम्मान को बहुत ही ख़ूबसूरती से प्राकृतिक बिम्बों के सहारे दर्शाया है!
निम्नांकित परिवर्तन कर लें. टाइपिंग की त्रुटि है..

पारश्व: पार्श्व
तरुवर के को मन: तरुवर के मन को

M VERMA said...

अद्भुत .. शब्द संयोजन के क्या कहने
भाव बेमिसाल

योगेन्द्र मौदगिल said...

bahut sunder kavita..........aajkal akaal hai aisi kavitaon ka....aapki lekhni ko naman karta hoon....

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर अद्भुत रचना धन्यवाद

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

`चाहा तेरा है साथ सदा, चाहे जिस ओर गति तेरी,
यूँ ही जीवन भर संग रहूँ , नहीं दूजी कोई साध मेरी.'

यह तो हर किसी की अभिलाषा होगी ना! :)

pran sharma said...

Kavita mein katha , katha mein
vyatha aur vah bhee battees
maatraaon ke chhand mein , bahut
khoob ! Mun mein aanand bhar gayaa
hai. Ranjnaa jee , aapko dher saree
badhaaee aur shubh kamna .

पारुल "पुखराज" said...

बहुत सुन्दर कविता दी ,

"प्रिय ने जो अंगीकार किया, तन मन अपना वह वार चली,
हर शाख शाख पत्ते पत्ते, लिपटी लिपटी वह खूब खिली."

फिर लगता है... अमरबेल क्यों श्रापित जग में ?
जहाँ आश्रय पाए वहीं बंजर उपजाए...

कविता लौट-लौट पढूंगी

डॉ. मोनिका शर्मा said...

भावपूर्ण ,अर्थपूर्ण और मनोभावों की बेहतरीन प्रस्तुति...... रचना थोड़ी लम्बी है पर आपने प्रवाह कहीं ना टूटने दिया....
बहुत सुंदर...आभार

Apanatva said...

bahut sunder bhavbharee abhivykti........
laajwaab.

Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर कविता.. अभिव्यक्तियों को अच्छे शब्द दिए हैं ....
मेरे ब्लॉग पर कभी कभी....

निर्मला कपिला said...

प्रिय ने जो अंगीकार किया, तन मन अपना वह वार चली,
हर शाख शाख पत्ते पत्ते, लिपटी लिपटी वह खूब खिली.
नारी के प्रेममय जीवन की शुरूआत।

था आत्मविश्वास न रंचमात्र, जो प्रतिकार वह कर पाती,
अपमान गरल नित पी पीकर, भाग्य मान सब सह जाती.
फिर उसके संघर्ष, उसकी अवहेलना उसे दुखी करती मगर
फिर क्या तुलना क्या रंज भेद, क्यों मन में कोई घाव भरें,
आ स्नेह से हिल मिल संग रहें,क्यों सुखमय जीवन नष्ट करें.
नारी की सहनशीलता उसे जीने को प्रेरित कर ती। नारी के सम्पूर्ण जीवन की सुन्दर झाँकी।
दीपावली की शुभकामनाये।

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

यह रचना मन को बहुत आस बँधाती है। काश यह भाव चारो ओर फैले...।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

चाहा तेरा है साथ सदा, चाहे जिस ओर गति तेरी,
यूँ ही जीवन भर संग रहूँ , नहीं दूजी कोई साध मेरी.

wah wah wah!

के सी said...

बहुत सुंदर कविता, भाषा यहाँ भी अपने पूरे सौन्दर्य के साथ उपस्थित है. बधाई.

निर्झर'नीर said...

प्रिय ने जो अंगीकार किया, तन मन अपना वह वार चली,
हर शाख शाख पत्ते पत्ते, लिपटी लिपटी वह खूब खिली.

मैंने जब भी आपका लेख पढ़ा हमेशा एक भ्रम पाल लिया की आपका गध आपके काव्य से श्रेष्ठ है लेकिन जब भी आपने कोई काव्य लिखा ये भ्रम हमेशा टूट जाता है ,
आज के बाद ऐसा नहीं सोचूंगा ,शायद ये सोचना ऐसा ही था जैसे की दो आँखों में देखकर इन्सान कहने लगे की ये ज्यादा सुन्दर है या ये ज्यादा ..
मनमोह लिया आपकी कविता ने ...कविता के साथ दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें .इश्वर आपके ज्ञान का प्रकाश हर तरफ फैलाये

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बेहतरीन ! शब्द रचना और भावनात्मकता दोनों लाजवाब हैं !

Abhishek Ojha said...

अद्भुत ! इसे गाकर पोस्ट करिए न.

Kunwar Kusumesh said...

कविता में भावपक्ष प्रबल है.
एक और खास बात है कि जैसे जैसे कविता आगे बढ़ती है,पढ़ने की उत्सुकता बढ़ती जाती है.
आपकी कलम में ताकत है.good.

Asha Joglekar said...

फिर क्या तुलना क्या रंज भेद, क्यों मन में कोई घाव भरें,
आ स्नेह से हिल मिल संग रहें,क्यों सुखमय जीवन नष्ट करें.

सुंदर कोमल भावों वाली कविता और सीख भी सुंदर ।

पर अमर बेल परजीवी होती है ।

Sunil Kumar said...

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति दीपावली की शुभकामनाये।

BrijmohanShrivastava said...

आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ

RockStar said...

wish u a happy diwali and happy new year

दिगम्बर नासवा said...

फिर क्या तुलना क्या रंज भेद, क्यों मन में कोई घाव भरें,
आ स्नेह से हिल मिल संग रहें,क्यों सुखमय जीवन नष्ट करें. ..

भाव पूर्ण ... आशा वादी ... जीने की प्रेरणा देती .... सुन्दर शब्दों से सजी ... प्रारम्भ से अंत तक जैसे कोई कहानी जन्म ले रही हो ... उत्सुकता भरी रहती है इस रचना में ... बेहद सुन्दर रचना के लिए बधाई ..... आपको और परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं ..

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

आपने गर्वोन्नत अडिग ‘वृक्ष’... और विनयावनत्‌ सुकोमल-सुनम्य ‘अमरबेल’ के दो प्रतीकों को बख़ूबी साधकर वह सब कह दिया, जो आप कहना चाहती थीं।

सांकेतिकता में बँधी यह काव्यात्मक कथा...और कथान्त में सन्निविष्ट-संप्रेषित संदेश ने आपको बधाई का सच्चा सुपात्र बनाया है!

निम्नोद्धृत पंक्तियों-

"लघु तुच्छ सदा उसे ठहरा कर, तरु बड़ी तुष्टता पाता था,
निज लाचारी को देख ,लता का ह्रदय क्षुब्ध हो जाता था."

-में ‘ह्रदय’ शब्द को टाइप करने में थोड़ी चूक हो गयी है आपसे। सही वर्तनी होगी- ‘हृदय’(बराह पैड में लिखें hRuday) ! ...और ‘तुष्टता’ शब्द का प्रयोग मैंने कभी-कहीं देखा या पढ़ा नहीं हैं। ‘तुष्ट/संतुष्ट’ के संज्ञा शब्द ‘तुष्टि/संतुष्टि’ हैं। ख़ैर...देख लीजिएगा आप... इधर मैं भी खोजूँगा।

समग्रतः भाषा पर आपका बहुत सराहनीय अधिकार है...सब सामने दिख रहा है।

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

अंतर्मन की संवेदनाओं को छूने में समर्थ रचना !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वृक्ष से लता का मिलना
अटूट विश्वास
अंततः विजय।
....सुंदर कविता पढ़कर सुंदर भाव जगे।

vijay kumar sappatti said...

aapki hindi kitni acchi hai na ..
ye rachna padhkar bahut aacha laga .. shabd aur bhaav sundar roop se jhalak rahe hai ..

bahut sundar rachna

badhayi

vijay

anita saxena said...

वाह क्या बात है , बहुत सुंदर अभिव्यक्ति । नहीं कोई बडा , नहीं कोई हीन....बहुत प्यारी रचना

M VERMA said...

अंत भला सो सब भला
सुन्दर रचना .. सघन भाव

anita saxena said...

फिर क्या तुलना क्या रंज भेद, क्यों मन में कोई घाव भरें,
आ स्नेह से हिल मिल संग रहें,क्यों सुखमय जीवन नष्ट करें..... सुन्दर रचना .
क्या कमाल का लिखती हो आप ? बहुत ही प्यारी कविता , ... सीधे दिल को छू गई!

vijai Rajbali Mathur said...

अहम् त्यागने का बहुत अच्छा सन्देश आपने दिया है ,काश लोग समझें और अमल करें तो समस्त संसार सुखी हो जाए.

Alpana Verma said...

सुन्दर शब्द संयोजन..अर्थ और भावपूर्ण अद्भुत है तरु और लता !