तीन, साढ़े तीन दशक !!!! बहुत लम्बा समय होता है यह..एक पूरी जन्मी पीढी स्वयं जनक बन जाती है इस अंतराल में.चालीस से अस्सी बसंत गुजार चुके किसी से पूछिए कि इस अंतराल में क्या क्या बदला देखा उन्होंने..समय की रफ़्तार की वे बताएँगे..परन्तु कई बार कुछ चीजों को देख प्रवाह और परिवर्तन की यह बात एकदम गलत और झूठी लगने लगती है.लगता है इस क्षेत्र विशेष में तो कुछ भी नहीं बदला.यहाँ आकर घड़ी की सुइयां एकदम स्थिर हो टिक टिक कर चलने ,गुजरने का केवल भ्रम दे रही हैं..
लगभग तीन दशक पहले मूर्धन्य व्यंगकार श्री शरद जोशी जी ने समय के उस टुकड़े को कलमबद्ध किया था अपने आलेख "तीस साल का इतिहास" में जो उनकी पुस्तक " जादू की सरकार" में संकलित है..कईयों ने पढ़ा होगा इसे, पर मैं अस्वस्त हूँ कि इसका पुनर्पाठ किसी को भी अप्रिय न लगेगा ...प्रस्तुत है श्री शरद जोशी जी द्वारा लिखित उनकी पुस्तक "जादू की सरकार" का आलेख " तीस साल का इतिहास " जिसे पढ़कर बस यही लगता है कि राजनीति में कभी कुछ नहीं बदलता,चाहे समय कितना भी बदल जाए..
"तीस साल का इतिहास"
कांग्रेस को राज करते करते तीस साल बीत गए . कुछ कहते हैं , तीन सौ साल बीत गए . गलत है .सिर्फ तीस साल बीते . इन तीस सालों में कभी देश आगे बढ़ा , कभी कांग्रेस आगे बढ़ी . कभी दोनों आगे बढ़ गए, कभी दोनों नहीं बढ़ पाए .फिर यों हुआ कि देश आगे बढ़ गया और कांग्रेस पीछे रह गई. तीस सालों की यह यात्रा कांग्रेस की महायात्रा है. वह खादी भंडार से आरम्भ हुई और सचिवालय पर समाप्त हो गई.
पुरे तीस साल तक कांग्रेस हमारे देश पर तम्बू की तरह तनी रही, गुब्बारे की तरह फैली रही, हवा की तरह सनसनाती रही, बर्फ सी जमी रही. पुरे तीस साल तक कांग्रेस ने देश में इतिहास बनाया, उसे सरकारी कर्मचारियों ने लिखा और विधानसभा के सदस्यों ने पढ़ा. पोस्टरों ,किताबों ,सिनेमा की स्लाइडों, गरज यह है कि देश के जर्रे-जर्रे पर कांग्रेस का नाम लिखा रहा. रेडियो ,टीवी डाक्यूमेंट्री , सरकारी बैठकों और सम्मेलनों में, गरज यह कि दसों दिशाओं में सिर्फ एक ही गूँज थी और वह कांग्रेस की थी. कांग्रेस हमारी आदत बन गई. कभी न छुटने वाली बुरी आदत. हम सब यहाँ वहां से दिल दिमाग और तोंद से कांग्रेसी होने लगे. इन तीस सालों में हर भारतवासी के अंतर में कांग्रेस गेस्ट्रिक ट्रबल की तरह समां गई.
जैसे ही आजादी मिली कांग्रेस ने यह महसूस किया कि खादी का कपड़ा मोटा, भद्दा और खुरदुरा होता है और बदन बहुत कोमल और नाजुक होता है. इसलिए कांग्रेस ने यह निर्णय लिया कि खादी को महीन किया जाए, रेशम किया जाए, टेरेलीन किया जाए. अंग्रेजों की जेल में कांग्रेसी के साथ बहुत अत्याचार हुआ था. उन्हें पत्थर और सीमेंट की बेंचों पर सोने को मिला था. अगर आजादी के बाद अच्छी क्वालिटी की कपास का उत्पादन बढ़ाया गया, उसके गद्दे-तकिये भरे गए. और कांग्रेसी उस पर विराज कर, टिक कर देश की समस्याओं पर चिंतन करने लगे. देश में समस्याएँ बहुत थीं, कांग्रेसी भी बहुत थे.समस्याएँ बढ़ रही थीं, कांग्रेस भी बढ़ रही थी. एक दिन ऐसा आया की समस्याएं कांग्रेस हो गईं और कांग्रेस समस्या हो गई. दोनों बढ़ने लगे.
पुरे तीस साल तक देश ने यह समझने की कोशिश की कि कांग्रेस क्या है? खुद कांग्रेसी यह नहीं समझ पाया कि कांग्रेस क्या है? लोगों ने कांग्रेस को ब्रह्म की तरह नेति-नेति के तरीके से समझा. जो दाएं नहीं है वह कांग्रेस है.जो बाएँ नहीं है वह कांग्रेस है. जो मध्य में भी नहीं है वह कांग्रेस है. जो मध्य से बाएँ है वह कांग्रेस है. मनुष्य जितने रूपों में मिलता है, कांग्रेस उससे ज्यादा रूपों में मिलती है. कांग्रेस सर्वत्र है. हर कुर्सी पर है. हर कुर्सी के पीछे है. हर कुर्सी के सामने खड़ी है. हर सिद्धांत कांग्रेस का सिद्धांत है है. इन सभी सिद्धांतों पर कांग्रेस तीस साल तक अचल खड़ी हिलती रही.
तीस साल का इतिहास साक्षी है कांग्रेस ने हमेशा संतुलन की नीति को बनाए रखा. जो कहा वो किया नहीं, जो किया वो बताया नहीं,जो बताया वह था नहीं, जो था वह गलत था. अहिंसा की नीति पर विश्वास किया और उस नीति को संतुलित किया लाठी और गोली से. सत्य की नीति पर चली, पर सच बोलने वाले से सदा नाराज रही.पेड़ लगाने का आन्दोलन चलाया और ठेके देकर जंगल के जंगल साफ़ कर दिए. राहत दी मगर टैक्स बढ़ा दिए. शराब के ठेके दिए, दारु के कारखाने खुलवाए; पर नशाबंदी का समर्थन करती रही. हिंदी की हिमायती रही अंग्रेजी को चालू रखा. योजना बनायी तो लागू नहीं होने दी. लागू की तो रोक दिया. रोक दिया तो चालू नहीं की. समस्याएं उठी तो कमीशन बैठे, रिपोर्ट आई तो पढ़ा नहीं. कांग्रेस का इतिहास निरंतर संतुलन का इतिहास है. समाजवाद की समर्थक रही, पर पूंजीवाद को शिकायत का मौका नहीं दिया. नारा दिया तो पूरा नहीं किया. प्राइवेट सेक्टर के खिलाफ पब्लिक सेक्टर को खड़ा किया, पब्लिक सेक्टर के खिलाफ प्राइवेट सेक्टर को. दोनों के बीच खुद खड़ी हो गई . तीस साल तक खड़ी रही. एक को बढ़ने नहीं दिया.दूसरे को घटने नहीं दिया.आत्मनिर्भरता पर जोर देते रहे, विदेशों से मदद मांगते रहे. 'यूथ' को बढ़ावा दिया, बुड्द्धों को टिकेट दिया. जो जीता वह मुख्यमंत्री बना, जो हारा सो गवर्नर हो गया. जो केंद्र में बेकार था उसे राज्य में भेजा, जो राज्य में बेकार था उसे उसे केंद्र में ले आए. जो दोनों जगह बेकार थे उसे एम्बेसेडर बना दिया. वह देश का प्रतिनिधित्व करने लगा.
एकता पर जोर दिया आपस में लड़ाते रहे. जातिवाद का विरोध किया, मगर अपनेवालों का हमेशा ख्याल रखा. प्रार्थनाएं सुनीं और भूल गए. आश्वासन दिए, पर निभाए नहीं. जिन्हें निभाया वे आश्वश्त नहीं हुए. मेहनत पर जोर दिया, अभिनन्दन करवाते रहे. जनता की सुनते रहे अफसर की मानते रहे.शांति की अपील की, भाषण देते रहे. खुद कुछ किया नहीं दुसरे का होने नहीं दिया. संतुलन की इन्तहां यह हुई कि उत्तर में जोर था तब दक्षिण में कमजोर थे. दक्षिण में जीते तो उत्तर में हार गए. तीस साल तक पुरे, पुरे तीस साल तक, कांग्रेस एक सरकार नहीं, एक संतुलन का नाम था. संतुलन, तम्बू की तरह तनी रही,गुब्बारे की तरह फैली रही, हवा की तरह सनसनाती रही बर्फ सी जमी रही पुरे तीस साल तक.
कांग्रेस अमर है. वह मर नहीं सकती. उसके दोष बने रहेंगे और गुण लौट-लौट कर आएँगे. जब तक पक्षपात ,निर्णयहीनता ढीलापन, दोमुंहापन, पूर्वाग्रह , ढोंग, दिखावा, सस्ती आकांक्षा और लालच कायम है, इस देश से कांग्रेस को कोई समाप्त नहीं कर सकता. कांग्रेस कायम रहेगी. दाएं, बाएँ, मध्य, मध्य के मध्य, गरज यह कि कहीं भी किसी भी रूप में आपको कांग्रेस नजर आएगी. इस देश में जो भी होता है अंततः कांग्रेस होता है. जनता पार्टी भी अंततः कांग्रेस हो जाएगी. जो कुछ होना है उसे आखिर में कांग्रेस होना है. तीस नहीं तीन सौ साल बीत जाएँगे, कांग्रेस इस देश का पीछा नहीं छोड़ने वाली...
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साभार, व्यंगकार श्री शरद जोशी जी के संकलन "जादू की सरकार" के "तीस साल का इतिहास" से !!!
40 comments:
---तीस साल तक कांग्रेस हमारे देश पर तम्बू की तरह तनी रही, गुब्बारे की तरह फैली रही, हवा की तरह सनसनाती रही, बर्फ सी जमी रही. पुरे तीस साल तक कांग्रेस ने देश में इतिहास बनाया, उसे सरकारी कर्मचारियों ने लिखा और विधानसभा के सदस्यों ने पढ़ा. पोस्टरों ,किताबों ,सिनेमा की स्लाइडों, गरज यह है कि देश के जर्रे-जर्रे पर कांग्रेस का नाम लिखा रहा. रेडियो ,टीवी डाक्यूमेंट्री , सरकारी बैठकों और सम्मेलनों में, गरज यह कि दसों दिशाओं में सिर्फ एक ही गूँज थी और वह कांग्रेस की थी--
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई स्वीकार करें ||
मैं शरद जोशी के व्यंग से सबसे ज्यादा प्रभावित रहा हूँ.. परसाई के व्यंग में क्लास है लेकिन शरद जी कहीं कहीं बहुत तल्ख़, मारक और अति कर जाते हैं जो व्यंग का अतिक्रमण कर पर्सनल होता हुआ लगा है... (अगर यथासंभव पढ़ी हो) फिर भी उन्होंने एक सम्मानित स्तर बनाये रखा. उसके बाद ज्ञान जी आये लेकिन उनके बिम्ब बहुत आम होने के चक्कर में कहीं-कहीं दोअर्थी और अश्लील हो जाते हैं... फिर कोई वैसा टच नहीं नहीं पाया... शरद जोशी के व्यंग में अधिकाँश राजनितिक व्यंग है...एक लेख में कुछ ऐसा लिखा था - नेता कुर्सी है, कुर्सी नेता है, मालाओं से नेता जी का गला भर गया है और इस हाल में बोल रहे हैं तो लोगों को लग रहा है कि जनता कि समस्या से उनका गला रुंध गया है, वो भाव विह्वल हैं, करुण हैं, अथाह वेदना है... कुर्सी के गद्दे में धंसे हुए हैं, उतना चाहते हैं पर उठते नहीं, क्योंकि साथ वाले में कमर टिका कर पहले ही अडवांस बुकिंग का दर दिखा दिया है, वो उठते हुए और धंस जाते हैं, जनता समझती है बेबस हो गए हैं. कार के गद्दे उन्हें भींचे रखती है... बुढ़ापे में आँख साथ नहीं देती... लोग कहते हैं नेता जी आँखें हमेशा सजल रहती हैं....
कभी कभी मुझे भी यही लगता है कि देश ने कोंग्रेस का नमक खाया है और गांधी नाम बिकता है इसलिए नेहरु परिवार ने गांधी टायटल ओढ़ लिया ... इसका फायदा आज भी है.... सोनिया गाँधी - राहुल गांधी.
अधिकतर समसामयिक व्यंग्य देखने को मिलते हैं। साल दो साल या दशक बीतते-बीतते दम तोड़ देते हैं । लेकिन शरद जोशी ऐसे कालजयी व्यंग्यकार थे जिन्होने व्यंग्य के माध्यम से न केवल खुद को अपितु व्यंग्य विधा को ही प्रतिष्ठित किया।
चाहे कोई जितनी बार पढ़ा हो, चाहे जब पढ़ा हो, मिल जाय तो उनके लेख पूरा पढ़े बिना आगे नहीं बढ़ सकता। है और नहीं है पर उन्होने मानो गहरा शोध किया था। नल है पर पानी नहीं है। पानी आता है मगर पीने लायक नहीं आता...जैसे सूत्र वाक्यों से उनके लेख भरे पड़े हैं। शरद जोशी एकमात्र ऐसे व्यंग्यकार रहे हैं जिन्होने लम्बा-चौड़ा व्यंग्य, मंच पर कविता की तरह पढ़कर वाही-वाही लूटी है। आज मंच पर लोग कविता पढ़ते हैं तो हूट हो जाते हैं वे लम्बा लेख भी कविता की तरह पढ़ते थे और सुपर-सुपर हिट होते थे।
जानकर खुशी हुई कि आपको व्यंग्य पढ़ना इतना अच्छा लगता है।
व्यंग्य की धार धारदार है. शरद जोशी की लेख्ननी को सलाम
जो जीता वह मुख्यमंत्री बना, जो हारा सो गवर्नर हो गया.
शरद जोशी जी के सारगर्भित व्यंग्य अच्छी चोट करते है आपका आभार .....
शरद जोशी के व्यंगों में सहजता के साथ एक जबर्दस्त्त मार होती है.
तीस क्या आज चौसंठ साल के बाद भी कुछ नहीं बदला कॉंग्रेस के लिए।
मैने भी पिछले साल इस विषय पर एक पोस्ट लिखी थी।
63 सालों का इतिहास
शरद जोशी के कटाक्ष का कोई जवाब नहीं ! :)
व्यंग्य तीखा है।
अभी अपने बेटे और बेटी को सुना रहा था पढकर... यह व्यंग्य संकलन मेरे कलेक्शन का एक कीमती हीरा है!!
शरद जी के व्यंग बहुत जबरदस्त होता है. पढवाने के लिये शुक्रिया.
सत्ता का चरित्र समय के साथ नहीं बदलता... वह वैसा ही रहता है... आज चौसठ साल बाद भी यह रचना सार्थक है.. बहुत सुन्दर...
अफ़सोस कि यह व्यंग्य लिखे जाने से लेकर अब तक भी कुछ नहीं बदला!
शरद जोशी का व्यंग्य लेखन युग बदलने पर भी उतना ही सटीक है ...
अब उनके लेखन की तारीफ करें या देश के दुर्भाग्य पर रोयें कि स्थितियां वहीं की वहीं है !
शरदजी के पुनः परिचय के लिए आभार!
शरद जोशी व्यंग के महारथी हैं, कितना कुछ कह जाते हैं।
तीस नहीं तीन सौ साल बीत जाएँगे, कांग्रेस इस देश का पीछा नहीं छोड़ने वाली...
शरद जोशी की दूरदर्शिता को को नमन करता हूँ
और आपने इस लेख से रु-ब-रु कराया इसका आभार
jeevant aur saarthak lekh...
http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2011/10/blog-post.html
shandaar vyagya prastuti..sadar badhayee aaur amantran ke sath
भाई वाह, साधुवाद बहुत बहुत... शरद जोशी का लेख पढवाने का.... सच्ची बताऊँ तो अभी तक ये जादू की सरकार नहीं पढ़ पाया..
दूसरा आपके पोस्ट पर सागर की टीप ...
भाई सुभानअल्ला.
शरद जी के व्यंग्य का कोई सानी नहीं ...कभी नियमित पढ़ा करती थी उन्हें...धर्मयुग के आलेखों में
शुक्रिया यहाँ साझा करने का..
शरद जोशी की रचना की बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
शुक्रिया इसे पढ़वाने के लिए।
व्यंग्य विधा में शरद जोशी का कोइ्र जवाब नहीं।
तीस साल की घटनाओं की सच्ची तस्वीरें।
बहुत सुन्दर,सामयिक और सटीक प्रस्तुति ..रंजना जी !
शरद जोशी जी के शालीन व्यंग्य लेखों का कोई जवाब नहीं ...ये कल जितने प्रासंगिक थे ,उतने ही आज भी हैं |
धन्यवाद इसे फिर से साझा करने के लिए।
आपने सही कहा है, इसका पुनर्पाठ किसी को भी अप्रिय न लगेगा।
शरद जोशी का व्यंग्य कालजयी है। मैं तो उनका संग्रह ‘यत्र तत्र सर्वत्र’ बार-बार पढ़ता हूँ।
ये व्यंग आज भी उतना प्रासंगिक है जितना काँग्रे के पहले तीस साल ...और लगता है आने वाले ३० सालों तक जोशी जी का ये व्यंग सामयिक और समाज का चित्रण होगा ...
शरद जोशी की रचना की बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
बहुत अच्छी प्रस्तुति ..
हम सब यहाँ वहां से दिल दिमाग और तोंद से कांग्रेसी होने लगे. इन तीस सालों में हर भारतवासी के अंतर में कांग्रेस गेस्ट्रिक ट्रबल की तरह समां गई.
ओह! अद्भुत वर्णन है कांग्रेस और कांग्रेसी होने का.
शरद जोशी जी के लेखन को बार बार पढ़ने का मन करेगा,इसमें कोई शक नही.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,रंजना जी.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है.
आप भूली तो नही हैं न.
इस बार 'नाम जप' पर आप अपने अमूल्य
विचार और अनुभव प्रस्तुत करके अनुग्रहित कीजियेगा मुझे.
भोजन का जैसे एसेंशियल तत्व है नमक, वैसे ही कांग्रेस राजनीति का है।
पर आजकल वह सब्जी की बजाय जलेबी में मिला नजर आता है! :)
दीपावली केशुभअवसर पर मेरी ओर से भी , कृपया , शुभकामनायें स्वीकार करें
आपको, परिजनों तथा मित्रों को दीपावली पर मंगलकामनायें! ईश्वर की कृपा आपपर बनी रहे।
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साल की सबसे अंधेरी रात में*
दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी
बन्द कर खाते बुरी बातों के हम
भूल कर के घाव उन घातों के हम
समझें सभी तकरार को बीती हुई
कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
प्रेम की गढ लें इमारत इक नई
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सटीक एवं सच्चे व्यंग्य,यथार्थपरक पोस्ट के लिए आभार
आपको दीपावली एवं नववर्ष की सपरिवार ढेरों शुभकामनाएं !
शरद जी को मैंने ठीक से अब तक पढ़ा नहीं पर आपके माध्यम से उनकी ये कालजयी "जादू की सरकार" के "तीस साल का इतिहास" को पढ़कर इतना कह सकता हूँ कि आज-तक मैंने कांग्रेस का ऐसा सटीक चरित्र-चित्रण कहीं नहीं पढ़ा |
नई पोस्ट नहीं लिखी तो क्या पढ़ना भी छोड़ दिया? तबियत तो ठीक है?
रंजना जी , शरद जी का व्यंग्य पढवाने का धन्यवाद । काँग्रेस के लिये नेति-नेति कहना बडा सटीक है । कहा जाता है कि राजनीति के हथकण्डे केवल काँग्रेस को ही आते है । बाकी तो सीख रहे हैं वह भी काँग्रेस से ही ।
रंजना जी, क्या आपने मेरे ब्लॉग को भुला दिया है?
मुझे आपकी सुन्दर टिपण्णी का इंतजार रहता है.
सुन्दर. जैसा रश्मि जी कह गयीं, हमने भी "धर्मयुग" के रहते तक उन्हें पढ़ा और मजे लिए.
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