12.3.12

गुहार ...


पिता भाई ने विदा किया था, अबकी डोली तुम उठवाना.
पहले मुझको विदा कराके, घर सहेजकर फिर तुम आना.
दाम्पत्य की गरिमा हेतु, सप्त पदी के वचन निभाना,
सांसों की लड़ियाँ जब टूटे, विकल न होना गले लगाना..

भरना मांग सिन्दूर सजन, करना मेरा सोलह श्रृंगार,
सज धज रूप दमक ले मेरा, पहनाना फूलों का हार.
संचित इक अभिलाषा मेरी, पाऊं यह अनुपम उपहार,
प्रिय, आमजन हित लगवाना, कई- कई वृक्ष फलदार..



तुमसे पूर्व पहुँच जो जाऊं, लीपपोत गृह-द्वार संवारूं,
मोहक बंदनवार रचाकर ,कुसुम सुसज्जित सेज बिछाऊं,
मेंहदी बेंदी सेंदुर गहना, पहन के अपना रूप निखारुं,
जैसे ही पहुंचो तुम देहरी, पौ पखार जयमाल पिन्हाऊं..

सजे गृहस्थी फिर से अपनी, ठने रार तो कभी बरसे प्यार.
दोनों मिल जब एक ही हैं तो,किसकी जीत औ किसकी हार.
जन्म जन्म के संगी हों हम, रहे सदा अखंडित यह क्रमवार.
ह्रदय से यह आशीष दो प्रियवर, प्रभु से भी मेरी यही गुहार..
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