12.3.12

गुहार ...


पिता भाई ने विदा किया था, अबकी डोली तुम उठवाना.
पहले मुझको विदा कराके, घर सहेजकर फिर तुम आना.
दाम्पत्य की गरिमा हेतु, सप्त पदी के वचन निभाना,
सांसों की लड़ियाँ जब टूटे, विकल न होना गले लगाना..

भरना मांग सिन्दूर सजन, करना मेरा सोलह श्रृंगार,
सज धज रूप दमक ले मेरा, पहनाना फूलों का हार.
संचित इक अभिलाषा मेरी, पाऊं यह अनुपम उपहार,
प्रिय, आमजन हित लगवाना, कई- कई वृक्ष फलदार..



तुमसे पूर्व पहुँच जो जाऊं, लीपपोत गृह-द्वार संवारूं,
मोहक बंदनवार रचाकर ,कुसुम सुसज्जित सेज बिछाऊं,
मेंहदी बेंदी सेंदुर गहना, पहन के अपना रूप निखारुं,
जैसे ही पहुंचो तुम देहरी, पौ पखार जयमाल पिन्हाऊं..

सजे गृहस्थी फिर से अपनी, ठने रार तो कभी बरसे प्यार.
दोनों मिल जब एक ही हैं तो,किसकी जीत औ किसकी हार.
जन्म जन्म के संगी हों हम, रहे सदा अखंडित यह क्रमवार.
ह्रदय से यह आशीष दो प्रियवर, प्रभु से भी मेरी यही गुहार..
_________________________




48 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

गुहार क्यों ? ख़्वाहिश कहिए .... सुंदर भाव ... शुभकामनायें

रंजू भाटिया said...

बहुत बेहतरीन ...

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

दिगम्बर नासवा said...

प्रेम ही नहीं जैसे श्रधा के भाव हैं इस रचना में ... पर प्रिय के मन की भी सोचें ... क्या वो ऐसा चाहेगा ... क्या वो ऐसे जी पायगा ...
सुन्दर शब्द और लयात्मक रचना ... भावों का गहरा संसार ... आपको होली की मंगल कामनाएं ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मेरी टिप्पणी कहाँ गयी ? स्पैम मेन देखिएगा

हरकीरत ' हीर' said...

दोनों मिल जब एक ही हैं तो,किसकी जीत औ किसकी हार.....

ranjna ji aisa sunder misra to sirf aap hi likh sakti hain ....

ye pyaar bna rahe ....:))

Shikha Kaushik said...

.sundar rachna ...gahre bhav samete huye .aabhar .AB HOCKEY KI JAY BOL

Pallavi saxena said...

सुंदर भाव संयोजन से सुसजित सुंदर रचना.....

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हृदयस्पर्शी...... अद्भुत शाब्दिक संयोजन लिए भाव

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रेम सदा ही पल्लवित होता रहे, यही जीवन की एकमेव अभिलाषा रहे..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

किसकी जीत औ किसकी हार....

बहुत सुन्दर रचना...
सादर.

ashish said...

सावित्री की निष्ठां शब्दों में ढली . बनी रहे जोड़ी -----. बाकि हरकीरत जी से सहमत .

वाणी गीत said...

दोनों मिल एक हुए तो किसकी जीत किसकी हार !
वाह !बहुत बेहतरीन !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अंत आते आते काव्य का सौंदर्य चरम पर पहुँच जाता है। सुंदर भाव सजे इस कविता के लिये बहुत बधाई।

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर भाव....
हृदयस्पर्शी...

सादर.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

sundaram!

Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।

महेन्‍द्र वर्मा said...

सजे गृहस्थी फिर से अपनी, ठने रार तो कभी बरसे प्यार.
दोनों मिल जब एक ही हैं तो,किसकी जीत औ किसकी हार.
जन्म जन्म के संगी हों हम, रहे सदा अखंडित यह क्रमवार.
ह्रदय से यह आशीष दो प्रियवर, प्रभु से भी मेरी यही गुहार..

छंदों में आबद्ध बहुत सुंदर कामना।
आपके अच्छे स्वास्थ्य के लिय शुभकामनाएं।

मनोज कुमार said...

मानवीय संवेदना की आंध में सिंधी हुई ये कविता हमें मानवीय रिश्ते की गर्माहट प्रदान करती है ।

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

रंजना जी भारतीय नारी की यह सबसे बडी साध होती है । भाव पूर्ण रचना । आपकी गहन और भावपूर्ण
टिप्पणियाँ मेरी उपलब्धि हैं ।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

सदा सौभाग्यवती रहो बहिन... एगो बड़ा भाई एही आसिरबाद दे सकता है!!

Smart Indian said...

भावनायें हृदयस्पर्शी हैं परंतु अपन दिगम्बर नासवी जी से सहमत हैं। मृत्यु भले ही जीवन संगिनी हो, फिर भी ...

dinesh gautam said...

बहुत सात्विक सी पवित्र सी कामनाएँ है आपकी इस रचना में। आमीन कहूँगा टिप्पणी के रूप में । बहुत अच्छी और छंदबद्ध अभिव्यक्ति है आपकी। बधाई

Avinash Chandra said...

अत्यंत सुन्दर, स्नेहिल काव्य!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

अर्थपूर्ण अभिलाषा है यह कैसे कहें गुहार
यही समर्पण प्रेम यही है,यही मधुर मनुहार.

Dr Varsha Singh said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

वाह...वाह...वाह...
सुन्दर प्रस्तुति.....बहुत बहुत बधाई...

Poonam Agrawal said...

Harek vivahita ke dil ki yahi kamna hoti hai ... jise aapne behad khoobsurti se lafjo se sajaya hai ... Fantabulous ... keep it up ... God bless ...

amrendra "amar" said...

बहुत सुंदर रचना.....

RADHIKA said...

वाह दी क्या सुंदर लिखा हैं ..बहुत समय बाद इतनी सुंदर रचना पढ़ी..थैंक्स

mridula pradhan said...

bhawbhini......

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...





तुमसे पूर्व पहुँच जो जाऊं, लीपपोत गृह-द्वार संवारूं,
मोहक बंदनवार रचाकर ,कुसुम सुसज्जित सेज बिछाऊं,
मेंहदी बेंदी सेंदुर गहना, पहन के अपना रूप निखारुं,
जैसे ही पहुंचो तुम देहरी, पौ पखार जयमाल पिन्हाऊं..


आदरणीया बहन रंजना जी
प्रणाम !
एक सच्ची भारतीय नारी के आदर्शों को जीवन में ढाले हुए
श्रद्धा , स्नेह, समर्पण , त्याग से प्रेरित भावुकता में लेखनी चला कर एक श्रेष्ठ काव्य रचना तो आपने हमें सौंप दी ...
लेकिन साथ ही मन को गहन उदासी का एहसास और पलकों की कोर को नमी का उपहार तो उचित नहीं न ... !

आप सपरिवार स्वस्थ - सानंद रहें !
कितनी बार इस पोस्ट को आधा-अधूरा पढ़ कर बिना कुछ कहे लौटा हूं ...
सच्चे ह्रदय से मंगलकामनाएं हैं !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

‎.

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

*चैत्र नवरात्रि और नव संवत् २०६९ की हार्दिक बधाई !*
*शुभकामनाएं !*
*मंगलकामनाएं !*

Asha Joglekar said...

हर भारतीय नारी के मन की बात कह दी ।
दोनों मिलकर जब एक हैं किसकी जीत और किसकी हार ।
अनुपम ।

प्रेम सरोवर said...

सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

vikram7 said...

हृदयस्पर्शी रचना.

Shikha Kaushik said...

hrdy ko jhanjhorti rachna ...aabhar
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ललितमोहन त्रिवेदी said...

आपकी गुहार हमेशा फले फूले रंजना जी , प्रभु से यही मंगल कामना है !....बहुत सुन्दर रचना ..

Naveen Mani Tripathi said...

सजे गृहस्थी फिर से अपनी, ठने रार तो कभी बरसे प्यार.
दोनों मिल जब एक ही हैं तो,किसकी जीत औ किसकी हार.
जन्म जन्म के संगी हों हम, रहे सदा अखंडित यह क्रमवार.
ह्रदय से यह आशीष दो प्रियवर, प्रभु से भी मेरी यही गुहार.
vakai bahut hi sundar rachana ....badhai

नितिन शर्मा said...

तुमसे पूर्व पहुँच जो जाऊं, लीपपोत गृह-द्वार संवारूं,
प्रीत की ये पराकाष्ठा !
हर पंक्ति हर छंद , प्रेम से ओत प्रोत है
बहुत सुंदर रचना!!

अरुण चन्द्र रॉय said...

बढ़िया गीत है... मर्मस्पर्शी... भावुक हो गया मैं...

Rakesh Kumar said...

अति सुन्दर भावभीनी प्रस्तुति.
भावविभोर करती हुई.
मेरे ब्लॉग पर आपके आने के लिए
हार्दिक आभार.

Dr.NISHA MAHARANA said...

sundar prastuti ...

सुधाकल्प said...

प्रेम में भीगे हार्दिक उद्गारों का संचन है कविता |

दिल की गहराई में उतरने वाली है यह कविता |

Madan Mohan Saxena said...


so nice.

Madan Mohan Saxena said...
This comment has been removed by the author.
Madan Mohan Saxena said...
This comment has been removed by the author.
Prabhat Sinha said...

शादी तोड़ो, परिवार छोडो का अभियान चलाती, नारीमुक्ति का गान गाती, सारे पुरुषों को रावण, दु:ह्शाषण बताती और ब्लॉग की दुनिया में पतिव्रता को गाली बताती अनगिनत लेखों को पढने के बाद आपकी रचना तो एक ऐसी ठंडी फुहार है जो हमे आश्वश्त करती है कि सारे ज्ञान, धन और सम्मान प्रेम के सामने फीके हैं. पति- पत्नी के रिश्तों कि गहराई का अनुभव कराती आपकी कविता किसी भी पति या पत्नी के दिल सारे तार झंकृत कर देगा - कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ .. आपको मेरी शुभकामना - प्रभात सिन्हा
आपकी ये पंक्तियाँ बहुत सरल और सुन्दर लेकिन उतनी ही गहरी है
सजे गृहस्थी फिर से अपनी, ठने रार तो कभी बरसे प्यार.
दोनों मिल जब एक ही हैं तो,किसकी जीत औ किसकी हार.
जन्म जन्म के संगी हों हम, रहे सदा अखंडित यह क्रमवार.
ह्रदय से यह आशीष दो प्रियवर, प्रभु से भी मेरी यही गुहार..