सन्नाटों का कोलाहल,
नित चित को कर देता चंचल।
नित चित को कर देता चंचल।
एकांत है चिंतन का साथी,
भावों के पाँख उगा जाती ।
भावों के पाँख उगा जाती ।
शशि की शीतल कोमल किरणें
उर डूब उजास पाता जिसमें।
उर डूब उजास पाता जिसमें।
उस पल में कविता है किलके,
रस शब्द ओढ़ चल बह निकले।
रस शब्द ओढ़ चल बह निकले।
माना आँखों से सब दीखता,
दृग मूंदे ही पर जग दीखता।
दृग मूंदे ही पर जग दीखता।
नीरवता के कुछ पल खोजो,
दुनियाँ के संग संग मन बूझो।
दुनियाँ के संग संग मन बूझो।
अन्तरचिंतन बिन सृजन कहाँ,
गहरे उतरो मिले मोती वहाँ।
गहरे उतरो मिले मोती वहाँ।