22.2.16

बेशर्म आन्दोलन



हताश निराश आक्रोशित स्वर में वो कराह से उठे,बोले - देखो न,आरक्षण आंदोलन के नाम पर निकले हैं ये और दुकान मॉल लूट रहे हैं।
तो भैये,,ये क्यों नहीं समझते कि तथाकथित यह "आरक्षण" भी तो "लूट" ही है।जाति के नाम पर अवसर की लूट।प्रतिभा ले कर लोग बैठे रहें और जाति लेकर आप उनका हक़ लूट ले जाओ।


अंग्रेज लाट जब अपने होनहार नौनिहालों को अपने राज का केयरटेकर बना अपने मुलुक को निकल रहे थे,,, चचाजान ने पूछा - मालिक मी लॉर्ड, पिलीज से वो सूत्र तो देते जाओ,जिससे हमारी ही पुश्तें इस कुर्सी की अधिकारिणी रहे अनंत काल तक जबतक कि भारत का भ भर भी बचा रहे।
तो मी लार्ड मुस्कियाए औ प्यार से गाल पर पुचकारते रंगीले चचा को कहिन - धू बुड़बक,देखे नहीं,अभिये न तुमको एग्जाम्पल देखाया है रे। धरम कार्ड खेलते एक शॉट में देश तोड़ दिया और तुमको तश्तरी में सजाके कुर्सी धरायी है,,तो तुम भी बस यही फार्मूला धरे रहो।
पंडीजी बोले- लेकिन माई बाप,अभिये न धरम पर भाग किये,फिरसे वही करेंगे तो फोड़ नहीं डालेगें हमको सब मिल के।
तो ऊ कहिन, फिन से- धू बुड़बक,,धरम कार्ड नहीं है तो क्या हुआ,जात कार्ड है न,,खेलो बिंदास खेलो।ऊप्पर उप्पर से कहो,हम दबे कुचलों को मुख्यधारा में लाना चाहते हैं,देश से जाति व्यवस्था को समूल मिटाना चाहते हैं,लोग साधु साधु कह उठेंगे।
और जाति के साथ रिजर्भेसन अटैच कर दो।ससुर,सताब्दियाँ बीत जाएँगी,चिंदी चिंदी टुकड़े टुकड़े में बँट जायेगी भीड़ और फिर ऐश से शासन करियो।


सवा सौ करोड़ का देश,जिसमें कोई जाति ऐसी नहीं जिसकी सदस्य संख्या लाख से कम हो...और आंदोलन के लिए चाहिए क्या,कुछ हजार जांबाज़.. जो रेल सड़क रोकने,गाड़ियाँ जलाने, दुकान मकान लूटने में एक्सपर्ट हों,,फिर हो गया आंदोलन।लीजिये,जाट आरक्षण,पटेल आरक्षण,अलाना आरक्षण,फलाना आरक्षण।


जिनकी राजनीतिक दुकान ही आरक्षण की रोटी सेंक चलती है,वे आपके साथ होंगे और बाकी जो अपनी दूकान साफ़ फ्रेश माल से चलाना चाहते भी हैं,वे भी रिस्क नहीं लेना चाहेंगे,सो झक मारकर देंगे ही आरक्षण।

और बुद्धिजीवी(मिडिया,पत्रकार)? उनकी भी पार्टी लाइन है भाई।वे क्यों और कैसे कहें आपको -"भाइयों सावधान,ये राजनीतिक दल आपको आपस में ही लड़वा रहे हैं,,भाइयों ये आपको रीढ़विहीन बनाना चाहते हैं,,भाइयों उठो और नकार दो इन सबको यह कहते कि हम अपने पुरुषार्थ से लेंगे अपना हक़, भारत में हम सिर्फ भारतीय हैं,हमारी जाति भारतीयता है,हम में से जो साधनहीन हैं उन्हें बस साधन दो,अच्छे स्कूल,कॉलेज,शिक्षक,,इन तक पहुँचने के लिए सड़क,पाठ्य सामग्री,कदाचार रहित परीक्षाएँ.. बस,बाकी हम कर लेंगे।"

पर अफ़सोस,अफ़सोस,अफ़सोस...ऐसा कोई नहीं कहेगा,ऐसे कोई नहीं सोचेगा...क्योंकि एक मुख्य चीज "स्वाभिमान और कर्तब्यबोध" मर चुका है हमारा।मुफ्तखोरत्व नैतिक चरित्र बन चुका है हमारा।

अरे हम तो उस देश के वासी हैं,जहाँ नदियाँ नाले,बनादी हैं।

9 comments:

Dr ajay yadav said...

विल्कुल आरक्षण भी तो एक लूट ही हैं |

Samvednasansaar.blogspot.com said...

आभार अजय जी

Samvednasansaar.blogspot.com said...

आभार अजय जी

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बिल्कुल सही ..लूट ही है आरक्षण

निर्झर'नीर said...

Aap ne to khoob aaina dikhaya hai ,likin moorkho ki kami nahi hai ,or kuch log to paise or satta k liye apni bahan betiyon tak ko bechne se bhi nahi hichakenge fir unke liye desh kya or dharm kya
.. ...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सटीक....

रश्मि प्रभा... said...

http://bulletinofblog.blogspot.in/

रंजना said...

टुच्चोँ की फौज अपने ऊपर शासन करने को सुपर टुच्चे चुनते हैं भाई।
वो कहते हैं न कि लोभी के घर ठग कभी भूखे नहीं रहते,,,तो अँधे लोग यह नहीं देख पाते कि लाभ पाने की चाह में किस लोभी द्वारा ठगे जा रहे हैं।

रंजना said...

आभार