दूर तक फैले हरे भरे खेत,आम लीची कटहल के बगीचे,तुलसी चौरा के चारों ओर फैला गोबर लिपा बड़ा सा आँगन, अनाज भरे माटी की कोठियाँ बखारी, बथाने पर गाय बैल छौने और उनके बड़े बड़े नाद, बड़ा सा खलिहान, अनाज दौनी करते बैल, पुआलों के ढेर, जलवान और गोइठे के लिए अलग से बना घर, जिसमें केवल जलावन ही नहीं, साँपों का भी बसेरा,आँगन के बाहर सब्जियों की बाड़ी, जिसमें से लायी गयी ताज़ी सब्जियों के छौंके का सुगन्ध,घर में भरे तीन चार पीढ़ियों के इतने सारे सदस्य,ऊपर वाली पीढ़ी के सामने खड़े नजरें झुकाये निचली पीढ़ी अकारण भी गालियाँ सुन लें, पर न तो उफ़ करें न जवाब सफाई दें।
...यह था हमारा गाँव। केवल सुख सुख सुख।
...यह था हमारा गाँव। केवल सुख सुख सुख।
लेकिन फिर न जाने क्या हुआ, किसकी नजर लगी, आँगन के छोटे छोटे टुकड़े ही न हुए,तुलसी चौबारे तक बँट गए,गाय बैलों के बथान उजड़ गए, खलिहान बगीचे टुकड़े टुकड़े हो गए या फिर मिट गए,दालानों पर शाम की बैठके और ठहाके उजड़ गए,केस मुक़दमे कोर्ट कचहरी से बचा कोई घर न रहा.शाम ढलने से पहले ही गले में गमछा और मुँह में गुटका चुभलाते 14 से 64 साल के पुरुषों के कदम चौक पर स्थित दारू अड्डे की तरफ मुड़ गये। शरीफ लोग अँधेरा घिरने से पहले घरों में कैद होने लगे कि न जाने कब हुड़दंगी आकर बेबात मारपीट मचा दें या कब कोई गैंग आकर अपहरण रंगदारी का खेल खेलने लगे। और फिर आधी रात ढ़ले सन्नाटे गुलजार होने लगे पिटती औरतों के करुण चित्कार से,लेकिन किसकी हिम्मत कि जाकर उन्हें छुड़ा बचा ले।
जीने की जद्दोजहद में जुटे अशिक्षित अल्पशिक्षित लोगों ने तो मजदूरी के लिए दुसरे राज्यों की राह ली और जो उच्च शिक्षित थे,पहले ही से राज्य से बाहर नौकरियों में निकले हुए थे,पर दोनों के ही आँखों में एक दिन फिर कर अपनी उस मिटटी में बसने और मिटने की चाह बनी रही।
लेकिन जब वो लौटे तो अवाक हतप्रभ।उनके घर खेत अपनों ही के द्वारा या फिर दबंगो द्वारा हथियाये जा चुके थे।उनकी स्थिति दुर्योधन के सामने अपने जायज हक़ के लिए याचक बने खड़े पाण्डवों सी।और हाथ में उपाय कि या तो युद्ध लड़ो या दबंगों द्वारा हड़पे संपत्ति के रद्दी के भाव लेकर वापस लौट जाओ।थाना कचहरी जाकर क्या होता,वर्दीवाले काले कोट वाले डाकू लूट लेते।
लेकिन जब वो लौटे तो अवाक हतप्रभ।उनके घर खेत अपनों ही के द्वारा या फिर दबंगो द्वारा हथियाये जा चुके थे।उनकी स्थिति दुर्योधन के सामने अपने जायज हक़ के लिए याचक बने खड़े पाण्डवों सी।और हाथ में उपाय कि या तो युद्ध लड़ो या दबंगों द्वारा हड़पे संपत्ति के रद्दी के भाव लेकर वापस लौट जाओ।थाना कचहरी जाकर क्या होता,वर्दीवाले काले कोट वाले डाकू लूट लेते।
अपूर्व सुखद लगा यह सुनना कि शराब रुपी जो दीमक वर्षों से राज्य को चाट रही है,अब राज्य उससे मुक्त हो जाएगा।
लोकहितकारी सजग सरकार इतनी बड़ी आय को प्रदेशहित में न्योछावर कर दे रही है।
लेकिन वर्षों से ऑफिसयली गुटका भी तो प्रतिबन्धित है राज्य में सौ में से केवल कोई बीस पच्चीस मुँह तो दिखा दीजिये जो गुटकारहित हो।क्या हुआ इसमें?
लोकहितकारी सजग सरकार इतनी बड़ी आय को प्रदेशहित में न्योछावर कर दे रही है।
लेकिन वर्षों से ऑफिसयली गुटका भी तो प्रतिबन्धित है राज्य में सौ में से केवल कोई बीस पच्चीस मुँह तो दिखा दीजिये जो गुटकारहित हो।क्या हुआ इसमें?
5 का गुटका 25 में मिलने लगा और 20 रूपये की बन्दर बाँट गुटका बनाने,बेचने और पकड़ने वाले के बीच हो गया।
क्या यही हाल इस शराब बन्दी का भी नहीं होगा? क्या सरकार के पास वो मशीनरी है कि दो नम्बरी शराब से लेकर कफ शिरप, नींद की दवाएँ या ऐसे ही अन्य दवाइयों को नशे के रूप में लेने से रोक सकें या फिर यह एक नये उद्योग की आधारशिला रखी जा रही है,अपहरण उद्योग की तरह?
सुलगते सवाल हैं ये।
सुलगते सवाल हैं ये।
2 comments:
kuch nahi hoga...haryana mein bhi huii thi sharab bandi aaj sabse jyada theke vahin par hai...ek chintak or vicharak hi ye soch sakta hai ...lekh bahut accha hai .
सरकार ने शराब बंदी की......अच्छा किया...ये एक बड़ा फैसला है....और साथ में बड़ा सवाल भी !
बात यहीं खत्म नहीं हो जाती.....सवाल ये उठता है कि क्या वहां के लोग इस फैसले से सहमत हैं....अगर हाँ तो वाकई ये बड़ा कदम है और अगर नहीं...?????
तो फिर एक सवाल उपजता है कि क्यों नहीं....???
शराब बंदी से पहले सरकार को लोगों तक ये बात पहुंचानी चाहिये कि शराब से लोगों के शरीर को क्या क्या नुकसान हैं.....ऐसा कतई नहीं है कि लोग जानते नहीं हैं....बड़ी बात ये है कि ये मानते नहीं हैं !
चलिए मान लिया शराब बंदी करवा दी आपने तो अब प्रश्न उठता है कि अब इसका असर क्या होगा....??
कुछ उच्च वर्ग के शौक़ीन लोग तो बाहर से मंगवा के पीने लगेंगे (बड़े डाक्टर, इंजीनिअर, वकील टाइप लोग अपनी थकान मिटाने के लिए अक्सर अच्छी किस्म की शराब का सेवन करते हैं जिसकी निश्चित मात्रा लेने से उन्हें लाभ भी होता है)
रहे बचे मध्यमवर्गीय जो हप्ते-पन्द्रह दिन वाले हैं....वोह भी किसी आस-पास के प्रदेश से मंगवाना उचित समझेंगे !!
अब आते हैं छोटे तबके वाले (जिनकी संख्या बिहार में सबसे ज्यादा है) जो रोजाना कमा के खाते हैं या यूँ कहें कि अगर वोह एक दिन काम न करें तो शाम की सब्जी के लिए भी पैसे नहीं जुटा पाते.....सवाल उठता है वोह क्या करेंगे..??
अब एक बड़ा काम होगा.....दारू की भट्टियां शुरू होंगी जिससे वहां के लोग उस जहरीली शराब के आदी हो जायेंगे और सरकार को भी अच्छी फायदा होगी....और आबादी भी कम होगी.....और हाँ यी बात पक्की है कि फिर दोबारा इन लोगों को अंग्रेजी शराब पसंद आने से रही......और कोई सरकार ये कच्ची जानलेवा शराब बंद नहीं करवा पायेगी !!
मैंने देखा है उन बड़े लोगों को भी जो ये कच्ची शराब पीके खुद तो शमशान चले गए और अपने परिवारके लिए भी नर्क का रास्ता खोल गए......ये आदत नहीं ये तडप है....और तड़प को बयां करना मेरे बस की बात नहीं...!@!
अगर बंदी करवानी है तो पूरे देश में की जाये और ये होने से रहा क्योंकि देश को सबसे ज्यादा राजस्व की प्राप्ति शराब से ही होती है !!
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