3.6.19
सावित्री कथा, वैज्ञानिकता के परिप्रेक्ष्य में
इस व्रत का नाम "वट सावित्री व्रत" है,जिसमें कथा केन्द्र में पतिपरायणा सती नारी सावित्री हैं,जो यमराज से न केवल पति के प्राण वापस ले आती हैं अपितु अपने मातृ और स्वसुर कुल के लिए भी यमराज से वरदान प्राप्त कर सबको सुखी समृद्ध और अभावहीन कर देती हैं।
सम्बन्धों और सम्बन्धियों के प्रति निष्ठा, समर्पण, सेवा भाव आदि मानवीय भावों को थोड़ी देर के लिए बगल में रख देते हैं और वहाँ जाते हैं जहाँ वन में लकड़ियाँ काट रहे सत्यवान क्लान्त होकर विश्राम की इच्छा प्रकट करते हैं और सावित्री उन्हें वटवृक्ष के नीचे विश्राम का आग्रह करतीं हैं।
सत्यवान प्रगाढ़ निद्रा में लीन होते हैं और यमराज उनके प्राण लेकर अपने लोक को गमन करते हैं।पतिव्रता सावित्री यमराज का अनुसरण करते उनके पीछे चलने लगती हैं।
स्थूल रूप से यह सम्भव नहीं लगता।लेकिन जिनकी इस विषय में रुचि है,यदि उन्होंने थोड़ा भी अध्ययन किया है या जो सिद्ध पुरुष हैं और अपने अनुभवों से यह शक्ति पाया है, वे जानते हैं कि व्यक्ति का स्थूल शरीर केवल एक आवरण है जो पूर्णतः शूक्ष्म शरीर द्वारा संचालित होता है और उस शूक्ष्म शरीर के साथ व्यक्ति कहीं भी गमन कर सकता है।
अब चूँकि सावित्री को ज्ञात था कि(जिसे ज्योतिष शास्त्र का ठीक ठाक ज्ञान हो,जीवन की घटनाएँ आयु मृत्यु आदि की गणना वह आज भी कर सकता है) अमुक दिन सत्यवान की आयु शेष हो रही है तो उसने अपना पूरा ध्यान वहीं केन्द्रित कर रखा था। मानवीय दुर्बलताओं,विकारों से एक सामान्य मनुष्य भी यदि स्वयं को बचा लेता है तो उसमें सात्विक ऐसी शक्तियाँ विकसित हो जाती हैं जिसके बल पर उसका कहा सत्य होता है,उसके आशीर्वाद और श्राप सिद्ध होते हैं और अपने शूक्ष्म शरीर के साथ वह न केवल कहीं आ जा सकता है अपितु परकाया प्रवेश भी कर सकता है( ये बातें केवल पढ़ी सुनी नहीं कह रही, बहुत कुछ स्वानुभूति के आधार पर, इस तरह के कई लोगों के अनुभूति के आधार पर कह रही हूँ)।
हमारे एक मित्र हैं, जिन्होंने वैज्ञानिक ढंग से यह सिद्ध कर दिया है कि जिसे हम प्राण कहते हैं,उसका भी एक वजन होता है,उसके गमन का एक मार्ग होता है,अँगूठे सी आकृति वाला धुँधला पर उज्ज्वल वह प्रकाशमान होता है जिसे सामान्य दृष्टि/आँखों से नहीं देखा जा सकता।हाई रेज्युल्यूशन सॉफ्स्टिकेटेड ऐसे कैमरे बनाये जा चुके हैं जिसके द्वारा व्यक्ति के ऑरा/प्रभाकिरण तथा प्राण के उस प्रकाश को देखा जा सकता है।ऑरा हीलिंग के लिए तो ऐसे कैमरों के प्रयोग आरम्भ भी हो चुका है।
तो जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर चले तो ध्यान में लीन सावित्री अपने शूक्ष्म शरीर के साथ उनका अनुगमन करने लगी और उसकी प्रतिबद्धता ने जाते हुए उस प्राण का,गमन बाधित किया जो शरीर से निकलने के बाद उससे मुक्त हो अपने गंतव्य की ओर जा रहा था,जहाँ उसे मोहमुक्त होकर एकाकी ही जाना था। उस प्राण/चेतना को ही हम थोड़ी देर के लिए यम मान लेते हैं।
हममें जो भी शक्ति होती है,स्थूल कार्यों के लिए शारीरिक बल चाहे प्रत्यक्ष रूप में उपयुक्त होती हो,पर इसके पीछे भी असली शक्ति प्राण/चेतना की ही होती है।शरीर में रहते यह शक्ति भले सीमाओं में बन्धा हो,पर शरीर मुक्त होने पर अपनी सात्विकता के अनुपात में अपरिमित सबल सामर्थ्यवान हो जाती है।
तो, अपने मार्ग में बाधा पाने पर मुक्त होने के लिए वह सावित्री से पीछा छुड़ाने के लिए उसको वे सारे वरदान देता चला गया जो सावित्री का अभीष्ट था। परन्तु इस क्रम में यह भी हुआ कि सावित्री का कुल के प्रति निष्ठा और समर्पण भाव देख वह प्राण मुग्ध होता बन्धता भी चला गया और अंततः अपनी प्रिया की संतान प्राप्ति के कोमल भाव के प्रति समर्पित होता हुआ,उसका इच्छित उसे देने को मुक्त होने के स्थान पर पुनः अपने शरीर में वापस आने को प्रस्तुत हो गया।
अब जैसा कि हम सभी जानते हैं, वटवृक्ष को अक्षयवट इसलिए कहा जाता है कि इसका कभी क्षय नहीं होता।आज भी धरती पर हजारों हजारों वर्ष से अमर कई वटवृक्ष हैं जिनकी ईश्वर रूप में ही पूजा होती है।वटवृक्ष और पीपल, ये चौबीस घण्टे ऑक्सीजन ही देते हैं,यह तो आधुनिक विज्ञान ने भी कह दिया है। यही कारण है कि पक्षी और सरीसृप प्राथमिकता से इसी पर अपना बसेरा बनाते हैं।
सावित्री ने इस वृक्ष के नीचे सत्यवान को इसलिए रखा ताकि वह एक तरह से ऑक्सीजन से आवृत्त उस वेंटिलेटर के सानिध्य में तबतक रहें जबतक प्राण पुनः स्थापित हो शरीर को सुचारु रूप से चलाने की अवस्था में न पहुँच जाय।
अब पूरी कथा को एक सूत्र में पिरोकर देखिये।अब भी क्या आपको यह किवदंती, काल्पनिक कथा,असम्भव या हास्यास्पद लगती है?
वटसावित्री पूजन के दिन ऐसे वृक्ष को प्राथमिकता दी जाती है जिसमें बड़गद और पीपल एक साथ हों या फिर पास पास।वृक्ष के चारों तरफ रक्षा सूत्र लपेटती विवाहिताएँ पतिव्रता देवी सावित्री के महान कर्मों का स्मरण करते जहाँ अपने लिए अखण्ड सौभाग्य का वरदान माँगती हैं वहीं अपने धर्म कर्म निष्ठा और प्रेम के प्रति प्रतिबद्धता भी दुहराती हैं।जहाँ एक जीवनदायी वृक्ष के संरक्षण का यह उद्योग है, वहीं स्वच्छ ऊर्जा ग्रहण कर अधिक सामर्थ्यशाली बनने का उपकरण भी।
विवेक जो जागृत रखते जब हम विज्ञान को साथ लेकर चलेंगे, तभी अपने लिए कल्याणकारी मार्ग निकाल पाएँगे।आधुनिक विज्ञान जो कि पूर्णतः स्थूल साक्ष्यों को ही स्वीकार करता है, जो प्रतिपल नया कुछ सीख जान रहा है,उसकी स्थूल सीमाओं में उस ज्ञान को बाँधना जो शूक्ष्म शरीर द्वारा जाना भोगा गया हो, स्वयं को ही छोटा करना नहीं होगा??
अस्तु, मेरा आग्रह है कि व्रत करें न करें, एकबार शान्त मन इस वृक्ष के नीचे आँखें बन्द करके आत्मलीन होकर बैठिए और फिर बताइये कैसी अनुभूति हुई।यदि आनन्द और ऊर्जा मिले तो चिन्तन को उस आनन्द के मूल की ओर ले जाइए। पौराणिक कथा की प्रासंगिकता और वैधता स्वयं आपका मन आपको बताएगा।
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6 comments:
आदरणीया रंजनाजी, पौराणिक कथाएँ अपनी जगह पर सही होंगी। आज के युग में स्त्री घर बाहर दोनों सँभालकर दिन रात पति के साथ गृहस्थी की गाड़ी खींचती है। बराबर का सहयोग देती है। फिर भी, यदि पति को कुछ हो जाता है तो पत्नी को ही मनहूस करार दे दिया जाता है।
एक जमाना था जब मैं भी इन सब बातों पर आँखें मूँदकर विश्वास करती थी किंतु अब लगता है कि ये सब बकवास है। हाँ, पेड़ बरगद का हो या पीपल का, वह इंसानों से ज्यादा वफादार है, परोपकारी है, दाता है, सकारात्मकता और शांति से भरपूर है, इसलिए हर वृक्ष पूजा के योग्य है।
बहुत बहुत आभार आपका
स्त्री सदैव से ही शक्ति सम्पन्न अधिक सामर्थ्यशाली रही हैं मीना जी।
इस पौराणिक कथा में भी यही रेखाँकित किया गया है कि अपने प्रेम की रक्षा के लिए वह मृत्यु से भी लड़ जाती है।
बाकी रही समाज के दूषित सोच और मानसिकता की बात,,तो जितना सत्य धर्म है,उतना ही अधर्म भी। समाज मे जब जिसकी मात्रा अधिक रही है,वह हावी रहा है। आखिर इसको धारण करने वाला भी तो मनुष्य ही है,चाहे धर्म हो या अधर्म।
और हाँ, धर्म से मेरा तातपर्य पूजा पद्धति नहीं,अपितु "मानव धर्म/मानवीयता" से है।
आभार शिवम जी।
आपने पोस्ट पढ़ी,इस हेतु आभार आपका
Really Appreciated . You have noice collection of content and veru meaningful and useful. Thanks for sharing such nice thing with us. love from Status in Hindi
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