पर्यावरण बचाने को पटाखों से और स्वास्थ्य बचाने को भारतीय मिठाइयों से परहेज़ हेतु व्यापक और प्रभावी अभियान स्कूलों से लेकर टीवी विज्ञापनों पर अविराम चल रहा है।बाज़ार यह समझाने में लगभग सफल हो गया है कि दीपोत्सव का अर्थ नए नए कपड़े,सोने गहने की खरीदारी और मिठाई के स्थान पर चॉकलेट खाना खिलाना है।
होली दिवाली जैसे पर्व कितने पर्यावरण अहितकारी, अवैज्ञानिक, दाकियानूसी त्योहार/परंपराएं हैं, यह सिद्ध करने में यूँ भी तथाकथित प्रगतिवादी वर्षों से अपने प्राण झोंके हुए हैं।
ऐसे में बेचारे सामान्य जन जिन्हें पर्व परम्पराएँ भी खींचती हैं और वामी प्रगतिशीलता भी, कनफ्यूज कनफ्यूज हैं।उन्हें साफ दिख रहा कि मिठाइयों में धड़ल्ले से मिलावट हो रही है, पटाखों से ध्वनि प्रदूषण और रंगबिरंगे फुलझड़ियों से वायु प्रदूषण ऐसे हो रहा है कि पर्व के हफ्ते भर बाद तक वायुमण्डल धुएँ से आच्छादित रहता है,साँस लेना दूभर लगता है।
बस यही समय है कि दो घड़ी को बैठकर खुद भी समझें कि हमें क्या और कैसे करना चाहिए और अपने बच्चों को भी यह समझायें-
वर्षा ऋतु में जमे पानी के गड्ढे जितने कीट पतंगे मच्छड़ आदि की बहुतायत के कारण बनते हैं,घर के भीतर भी जो गन्दगी फंगस आदि जमा होते हैं, सफाई के द्वारा पहले उनके उत्पादन स्थल को नष्ट करने के लिए ही दिवाली पूर्व व्यापक सफाई की परंपरा "नहीं तो लक्षमी घर में नहीं आएँगी", कहते पुरातन काल से चली आयी है।
तो घर के बड़ों का प्राथमिक कर्तब्य बनता है कि बच्चों को साथ लेकर घर के अन्दर बाहर गली मुहल्लों तक में सफाई करें।यह दीप से दीप जलाने जैसी बात होगी।एक परिवार को इस तरह से सफाई करते और इस क्रम में साथ सहयोग का आनंद लेते लोग देखेंगे तो एक से दो,दो से चार प्रभावित होते चले जाएँगे।
चंद्रविहीन अमावस की काली रात में अधिकाधिक मिट्टी के दीये ही क्यों जलाए जाने चाहिए,बच्चों को यह समझाएँ और उनसे दीये जलवाएँ।जब वे प्रत्यक्ष कीट पतंगों मच्छडों को नष्ट होते देखेंगे तो जीवन भर के लिए इसको अपना लेंगे।
यह दिन और रात मानसिक अंधकार को दूर कर सात्विकता और हर्ष द्वारा मन को उत्तम विचारों से प्रकाशित करने का दिन है, प्रभु राम को हृदय में विराजित कर इसे अयोध्या(जो कभी किसी के द्वारा जीता न जा सके, नकारात्मकता जिसपर कभी भी आधिपत्य न जमा सके) बनाने का दिन है।
और इस हेतु समझिए कि जबतक हम पर्यावरण की, गौ की, मानव मूल्यों की और सम्बन्धों की गरिमा नहीं रखेंगे, उनके संरक्षण हेतु तत्पर नहीं होंगे कभी सच्चे अर्थों में दीपोत्सव नहीं मना पाएँगे।
हमने गौ का बहिष्कार और तिरस्कार कर इसे सेकुलडिता के अन्तर्गत वध्य(फ्रीडम ऑफ फ़ूड या च्वाइस फ़ॉर फ़ूड) स्वीकार लिया, गायों को कसाईखाने और कुत्तों को ससम्मान घर के अन्दर लाकर पूज्य बना दिया,,तो अब मिठाई के लिए छेना खोया की जगह केमिकल कचड़े ही तो मिलेंगे।लेकिन इसके बाद भी उपाय और विकल्प "चॉकलेट" तो कतई नहीं है।हमारे घर की अन्नपूर्णाएँ इतनी सिद्ध हैं कि बिना खोये छेने के भी 50 तरह के मिष्टान्न बना सकती हैं।उनसे अनुरोध है कि थोड़ी सी मेहनत करें और बच्चों को साथ लेकर घर पर ही कुछ मिष्टान्न बना लें।विश्वास करें, जो आह्लाद मिलेगा,वह अपूर्व होगा।इसके साथ ही बच्चे भी यह सब बनाना सीखेंगे।
ध्यान रखें, अमावस्या की यह रात्रि सिद्धिदात्री होती है।काल/समय अपने कालिका रूप में पृथ्वी पर अपने साधकों को वर देने को विचरती रहती हैं। इसमें आप जो सिद्ध करेंगे, वह सिद्ध होगा।सात्विकता सिद्ध करेंगे तो वह सधेगा,यदि शराब जुआ पार्टीज आदि(नकारात्मकता) सिद्ध करेंगे तो हृदय का असुर सिद्ध होगा जो एक पल को भी सकारात्मकता की रश्मियों को हृदयतल तक पहुँचने न देगा।सबकुछ होते हुए भी आप शान्ति सन्तोष और सुख का अनुभव नहीं कर पाएँगे।
इस तरह, दीपमालिका से सजी पावन और सुन्दर दीपावली मनाइए।
और हाँ, दान हमारे सनातन की अनिवार्य प्रक्रिया है, इसके बिना पर्व पूर्ण नहीं होता।
सो, वंचितों को अवश्य कुछ न कुछ दीजिये ताकि उनके हृदय के प्रसन्नता का प्रकाश आपके जीवन को प्रकाशित कर दे।
"आप सभी को शुभ दीपोत्सव की अग्रिम शुभकामनाएँ....जय श्रीराम"
6 comments:
पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत अच्छा लेख। अपने सभी ग्रुप्स में इसे शेयर किया।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (25-10-2019) को "धनतेरस का उपहार" (चर्चा अंक- 3499) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका बहुत बहुत आभार मीणा जी
आभार भाई साहब
आपको भी
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