12.11.08

छैला बाबू

यूँ तो भगवान् जी ने दुनिया बना कर जो झमेला मोल ले लिया है, उसके पचड़े सल्टाते हुए उन्हें दम मारने की फुर्सत नही मिलती। पर अर्धांगिनी उनकी भी है,अपने गृह को कलह मुक्त रखने हेतु कभी कभार उन्हें भी होलीडे पर जाना ही पड़ता है.उस समय मनुजों की इस धरा को मनुजों के हवाले कर (दुनिया में सारे बड़े बड़े मार काट ऐसे ही समयो में हुआ करते हैं) अर्धांगिनी संग अन्य रमणीय ग्रह भ्रमण पर चले जाया करते हैं. ऐसा नही है कि उन्हें इसमे आनद नही आता या रिलेक्स रहना उन्हें नही भाता . वे तो बस इस चक्कर में कि कहीं उनकी अनुपस्थिति में उनके बनाये ये मनुष्यरूपी प्राणी उनकी इस श्रमसाध्य श्रृष्टि को सिरे से उलट पुलट कर न रख दें, इस चक्कर में इसके पहरे में बैठे इसीमे फंसे खपते रह जाते हैं.लेकिन जब भी वे इस अवकाश से रिलेक्स होकर आते हैं तो फ़िर जो कुछ भी रच जाते हैं ,वो अद्भुत हुआ करते हैं॥


ऐसे ही अवकासोपरांत अतिप्रसन्न मस्तीभरे मूड में उन्होंने एक मनुष्य बनाया. ऐसे मनोयोग से रूप रंग सूरत सीरत गढा कि उनके रूप की आभा से घर में बिजली गुम हो जाने पर उनके चंद्रमुखी प्रभा से लोग ट्यूब लाइट की रौशनी सा प्रकाश पा लेते थे..उनकी सुन्दरता अनिद्य सुंदरी अप्सराओं के सुन्दरता को भी लज्जित करती थी.चेहरा इतना चिकना कि नजर डालो तो फिसल फिसल जाए.उन्हें टिकाये जमाये रखना मुश्किल.सीरत और विनम्रता ऐसी कि मन मुग्ध कर लें.कुशाग्रबुद्दी ऐसी कि पढ़ा सुना एक पल में कंठस्थ कर लेते..कुछ चिरकुट टाइप शिक्षक इनकी उत्तर पुस्तिका में गलतियाँ खोजने में जी जान लगा देते थे पर कभी कामयाब न हो पाए थे.


नगर भर में स्थिति यह थी कि, जैसे श्री राम जब जनकपुर गए थे और तरुणियों को प्रेमी सम ,माताओं को पुत्र सम ,योद्धाओं को काल सम और ज्ञानियों को विद्वान् सम लगे थे.वैसे ही लालबाग नगर के ये छैला बाबू नगरभर के नयनतारे थे. हर माता पिता इनके से पुत्र के लिए लालायित रहते थे और इन सम न होने के कारण मुहल्ले भर के लड़के अपने माँ बाप से पिटा करते थे. लड़कों के दृष्टि में ये शत्रुसम थे.पर मजे की बात यह कि कोई खुलकर इन्हे अपना शत्रु नही मानता था, क्योंकि क्लास भर के सहपाठियों का होम वर्क कर उन्हें मास्टर साहब के कोपभाजन बनने से यही तो बचाते थे.सो सबके सब इनके अहसान तले आपादमस्तक निमग्न थे. तीसरी कक्षा के विद्यार्थी थे तभी से लडकियां इनपर दिल लुटाने लगीं थीं,इनके लिए आहें भरा करती थीं.इनके एक स्नेह दृष्टि के लिए उत्कंठित और विकल रहतीं थीं.


यह तो बात हुई बालपन की . जैसा कि अपेक्षित था,युवावस्था को प्राप्त होते होते अपने प्रतिभा के बल पर देश के शीर्षस्थ लब्धप्रतिष्ठित अभियांत्रिकी संस्थान में सहज ही प्रवेश पा गए और अपने प्रतिभा और योगदान से प्रतिष्ठान को गौरवान्वित किया. माने कि, पूरे संस्थान में "पुरुसोत्तम"(पुरुषों में उत्तम ) टाइप थे और जैसा कि स्वाभाविक था इनके व्यक्तित्व कृतित्व से सम्मोहित प्रत्येक बाला इस छैल छबीले की प्रेयसी बनने को लालायित रहती थी. ये एक बार इंगित कर दें तो, ह्रदय तो क्या प्राणोत्सर्ग को प्रस्तुत थी. बालपन में पड़ा नाम " छैला " पूर्ण रूपेण सार्थक रहा था.पर बेचारे छैला बाबू के ह्रदय की संकट को कौन समझता.कोमल चित्त के स्वामी किसी को भी निराश किए बिना सबपर बराबरी से अपनी कृपादृष्टि बनाये रखना चाहते थे.पर थे तो मनुष्य ही न....... एकसाथ इतनो के बीच सामंजस्य बनाये रखना सरल होता है क्या ???सो नितांत संकटासन्न ,व्यथित रहते थे...अपने भर पूरी मेहनत करते कि सबको यह लगे कि ये सिर्फ़ और सिर्फ़ उनके ही हैं, पर पोल पट्टी यदा कदा खुल ही जाती थी . परिणाम स्वरुप संस्थान से निकलते निकलते इनका चरित्र इस तरह विवादित हो चुका था कि इनकी कई भग्न हृदया प्रेमिकाओं को सहारा दिए इनके सहपाठीगन उन सुंदरियों के स्वामी बने उन्हें अपनी जीवनसंगिनी बना संग लिए चल दिए और असंख्य चाहने वालियों के होते हुए भी इन्हे एक प्रियतमा न मिली.


खैर ,दुखी होने की बात नही.जब ये कर्मक्षेत्र में एक लब्ध प्रतिष्ठित संस्थान में प्रयुक्त हो नए नगर को आए,तो पुनः नगरभर के नयनतारे हो गए. अब भला एक ऐसे संस्थान से जहाँ जाकर अभियांत्रिकी सीखने से अधिक महत्वपूर्ण धूम्र पान,सुरापान इत्यादि इत्यादि सीखने और इसे जीवन का अभिन्न अंग बनाने की पुनीत परम्परा निर्वहन का व्रत लिया जाता हो वहां से कोई बाकी चीजें तो छोड़ दीजिये , चाय ,पान खाए बिना निकल आए तो वह समाज में किस स्थान को प्राप्त करेगा ,सहज ही कोई भी परिकल्पित कर सकता है..... इनके रूप गुण की गाथाएं जैसे ही नगर में फैली ,नगर भर की ललनाये जो अपने पतिरूप में ऐसे ही व्यक्तित्व की परिकल्पना किए हुए थीं , इनके सपने सजाने लगीं और बलात अवसर खोज इनके चन्हुओर मंडराने लगीं. छैला बाबू की विपन्नता पुनः दूर हुईं. आत्मगौरव की परिपुष्टता ने उनके रूप को और निखार दिया.फ़िर तो आए दिन उन्हें रमणियों के मातापिता के घर से सुस्वादु भोजन के लिए नेह निमंत्रण आने लगे. प्रत्येक रमणी के अभिभावकों की अभिलाषा थी कि उनकी पुत्री छैला बाबू द्वारा पसंद कर उनकी प्रियतमा बनने का सौभाग्य प्राप्त करे और उन्हें ये दिव्यपुरुष जमाता रूप में गौरवान्वित करें...


और चलिए एक सुंदरी सुकन्या नगरभर के बालाओं को पछाड़कर विजयिनी हुई और परम सौभाग्य को प्राप्त कर छैला जी की अर्धांगिनी बन गई. छैला बाबू ने नगर भर की रमणियों के ह्रदय पर नैराश्य का तुषारापात करते हुए ,बड़ी ही निर्ममता से उन्हें खंडित कर स्वप्नसुंदरी को अपना अंकशायिनी बनाकर गौरवान्वित किया..वर्षभर में ही स्वप्न सुंदरी ने छैला बाबू को पितृत्व पद पर विराजित कर अपने कर्तब्य का निर्वहन किया और दिन ब दिन गृहस्थी में निमग्न हो अपने रूप यौवन के रख रखाव से विमुख होती गई.


छैला बाबू विवाहोपरांत ही स्वयं को ठगा हुआ अनुभूत करने लगे थे जो कि समय के साथ साथ अपने विवाह के निश्चय पर गहरे क्षोभ में डूबते गए।अब पूर्व की भांति ललनाये उन्हें अपने जीवन साथी रूप में पाने को लालायित हो उनके आस पास नही मंडराती थी,सो उनका यह असंतोष स्वाभाविक था. उनके वर्षों की आदत थी ,जबतक बालाएं उनके आगे अपने को कालीन सा बिछातीं न थी,उनका अहम् परिपुष्ट न होता था.


खैर अधिक दिनों तक उन्हें कष्ट में न रहना पड़ा।इस कलयुग में अधिकांशतः बालाओं के लिए यह अधिक महत्वपूर्ण होने लगा है कि, पुरूष उच्चपदासीन अतुल धन संपदा और वैभव का स्वामी है या नही और उस पर भी यदि इन योग्यताओं के साथ साथ पुरूष रूपवान (हैंडसम) हो तो उसका विवाहित होना कोई मायने नही रखता.सो परम रूपवान,अतुलित धन वैभवसंपन्न छैला बाबू के नेहनिमंत्रण को कौन अस्वीकारता......इनके प्रयास से शीघ्र ही नेह्बंध में आबद्ध होने को उत्सुक बालाओं की कमी न रही और फ़िर तो छैला बाबू रास रंग में आकंठ निमग्न हो गए.......


पर कहते हैं न " खैर खून खांसी खुशी,वैर प्रीत मधुपान,रहिमन दाबे न दबे,जानत सकल जहान " , सो इनके प्रेम प्रसंगों की सुगंध भी छुपी न रह सकी और इनका स्वप्न आनन(स्वीट होम) रणक्षेत्र बन गया. जब स्वप्नसुंदरी का धैर्य चुक गया और लाख चेतावनियों के बाद भी छैला बाबू ने अपनी राह न छोड़ी तो स्वप्नसुंदरी ने ही इनकी राह छोड़ दी.अँधा क्या चाहे दो आँखें.... छैला बाबू को यही तो चाहिए था.बस फटाफट उन्होंने उल्टे फेरे(तलाक) लिया और उन्मुक्त भाव से रमणियों संग रमण करने लगे.परन्तु कई वर्षो के दरम्यान कुछ जिनको इनसे सच्चा प्रेम हुआ,वो इनके जीवनसंगिनी की कसौटी पर खरी नही उतरी और उनके संग विहारोपरांत इन्होने उनसे किनारा कर लिया और कुछ जिनसे इन्हे सच्चा प्रेम हुआ था उन्होंने इन्हे अपनी कसौटी पर खरा नही पाया, सो इन्हे आजमा वे किसी और के प्रति गंभीर हो उनके संग अपनी गृहस्थी बसा ली. स्थिति वही ढ़ाक के तीन पात वाली रही.छैला को सच्ची लैला न मिली............


एक बार तो दिल टूटने तथा मित्रों द्वारा ताना प्राप्त कर ये तैश में आ गए और इन्हे लगा कि अब तो गंभीर हो गृहस्थी बसा सिद्ध कर ही देंगे कि ये भी सफल दांपत्य निभा सकते हैं.बस यहीं गड़बड़ हो गई,जल्दबाजी में दो बार तलाकशुदा से ब्याह रचा बैठे और अनुभवी उस महिला ने जब इनका हर प्रकार से दोहन आरम्भ किया तो घर बार संपत्ति देश सब छोड़ छाड़ कर भाग खड़े हुए.


वर्तमान में छैला बाबू एक ऐसे देश में रह रहे हैं, जहाँ पूर्ण वैधानिक स्वछंदता है. एकसाथ जितना जी चाहे स्त्रियों से प्रेम, विवाह, तलाक का खेल खेलो या जी ऊब जाए तो पुरूष से ही विवाह कर डालो....वैसे तो छैला बाबू का मानना है कि व्यक्ति ह्रदय से युवा हो तो वृद्धावस्था तक युवा रह सकता है, पर इधर कुछ वर्षों से उन्हें आभास हो रहा है कि समय किसी के भी यौवन को रौंदे बिना नही छोड़ती. इसलिए अन्न त्याग कर फलाहार पर अपने अक्षत यौवन के प्रति सतत सजग सचेष्ट रह उसे सम्हाले हुए हैं और अपने लिए पूर्ण दोषमुक्त, मनोनुकूल, रूपमती प्रियतमा की तलाश में हैं............

49 comments:

Shiv said...

छैला बाबू सरीखे प्रेम के प्रति श्रद्धावान मनुष्य धरा पर कम ही हैं. छैला बाबू ऐसे ही 'छैलाते' रहेंगे. उम्र पर ब्रेक लगाने वाला फलाहार उनके काम आता रहे. और वे दूसरों के.

कथा आनंददायक है. बाकी प्रेरणादायक न रहे, वही अच्छा.

रंजू भाटिया said...

बढ़िया लिखा है ..थोड़ा पढने में समय लगा :)...व्यंग सही है

Vinay said...

अपनी-अपनी सोच, क्या छैला बाबू क्या कोई और... अपनी ज़िन्दगी अपना ढंग अपना ढगरा!

ताऊ रामपुरिया said...

"वर्तमान में छैला बाबू एक ऐसे देश में रह रहे हैं, जहाँ पूर्ण वैधानिक स्वछंदता है. एकसाथ जितना जी चाहे स्त्रियों से प्रेम, विवाह, तलाक का खेल खेलो या जी ऊब जाए तो पुरूष से ही विवाह कर डालो..."

बहुत सटीक ! शुभकामनाएं !

P.N. Subramanian said...

छैला बाबू के भी ज्ञान चक्षु खुलेंगे पर शायद तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. अच्छा लगा. आभार.
http://mallar.wordpress.com

BrijmohanShrivastava said...

अत्यधिक सुंदर ब्यंग्य रचना /अभी तक में केवल एक विधा से ही परिचित था कविता -चित्र -आज इस कला से भी परिचित हुआ /हकीकत को व्यंग्य बना कर बात कहना मसलन पुरूष का धनसंपन्न होना आवश्यक है शादीशुदा होना बेमानी है /स्वीट होम का स्वप्न आनन् ,तलाक का उल्टे फेरे ,बहुत सुंदर बन पड़ा है /बैधानिक स्वछंदता वाला देश इसमे जहाँ कटाक्ष है वहीं समय किसी को रोंदे बिना नहीं छोड़ता में जीवन की हकीकत बतलादी है रचना में मुहबरों का प्रयोग सारगर्भित है तथा कवि रहीम का दोहा माकूल जगह पर लिखा गया है /लब्धप्रतिष्ठित संस्थान जैसे क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग रुचिकर लगा /भगवान् वाबत पहला पेराग्राफ इतना आकर्षण बन पड़ा है कि पाठक को इस पद के पढने के पश्चात् पूरा लेख पढने की उत्सुकता जाग्रत हो जाती है

दीपक कुमार भानरे said...

समय किसी के भी यौवन को रौंदे बिना नही छोड़ती.
सुंदर व्यंग्य अभिव्यक्ति. बधाई.

makrand said...

bahut accha vyangathmak chitran
regards

पारुल "पुखराज" said...

acchha hai di..:)

Unknown said...

BAHUT SUNDAR.

मोहन वशिष्‍ठ said...

अच्‍छा व्‍यंग्‍य लिखा है रचना जी आपने बहुत ही अच्‍छा लगा मेरे दिमाग की टेंशन को भी भूल गया मैं अब और टेंशन हो गई

अच्‍छा लिखा है आपने

Gyan Dutt Pandey said...

छैला बाबू भारतीय पुरुष का एक ऐसा ब्राण्ड है जो आकर्षक है, बढ़िया पैकेजिंग वाला है। बाकी माल की न गारण्टी है न वारण्टी।
बहुत कुछ मूरी मार्केट या फोरा फाउण्टेन के फुटपाथ पर बिकनेवाले चाइनीज ह्वाइट गुड्स ब्राण्ड!
कहना न होगा यह रेखा चित्रात्मक पोस्ट बहुत अच्छी लगी।

परमजीत सिहँ बाली said...

बढ़िया लिखा है।बधाई।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

जीवित कर दिया आपने छैला बाबू को
बहुत बढिया कथा लिखी है !
स्नेह,
- लावण्या

Dileepraaj Nagpal said...

गाना गया जाए...मेरा बाबु छैला छबीला मैं तो नाचूंगी...बढ़िया1 पढ़कर काफी मजा आया1

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर ढंग से आप ने यह कहानी एक व्‍यंग्‍य रुप मे लिखी है, ओर इस से हमे शिक्षा भी लेनी चाहिये, जवानी मै जो हम करते है उसे आधेड ओर बुढापे मै भुगताना भी तो है....
धन्यवाद

जितेन्द़ भगत said...

बहुत ही अच्‍छा लि‍खा है आपने।

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

very sharp satire-
वर्तमान में छैला बाबू एक ऐसे देश में रह रहे हैं, जहाँ पूर्ण वैधानिक स्वछंदता है. एकसाथ जितना जी चाहे स्त्रियों से प्रेम, विवाह, तलाक का खेल खेलो या जी ऊब जाए तो पुरूष से ही विवाह कर डालो....

राकेश खंडेलवाल said...

बेहतरीन

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

छैला बाबू पढने का अवसर मिला! अच्छा लगा!

आप अगर धर्म मे रुचि रखती है तो मेरे ब्लोग पर पधारे

Smart Indian said...

आपने तो छैला बाबू के पूर्ण चित्र खींच दिया! बहुत सुंदर!

MANISH TRIPATHI said...

वाह बहुत बेहतरीन तरीके से आपने छैला बबून को प्रस्तुत किया है ।

बधाई ।।

MANISH TRIPATHI said...

थोड़ा फोंट बड़ा करें पढ़ने मे आसानी होगी ।

योगेन्द्र मौदगिल said...

छलिया का तो छलना काम
तभी तो छैला बाबू नाम

"अर्श" said...

बहोत ही बढ़िया ब्यंग कसा है आपने चेला बाबु के रूप में बहोत पसंद आई आपकी ये ब्यंग रचना ...आपको ढेरो बधाई ..

दिगम्बर नासवा said...

आपके संवेदना संसार से ऐसी भीनी फुहार भी आएगी पता न था
बहुत ही अच्छा व्यंग समाज के चलन पर

बधाई

sandeep sharma said...

बेहद सुंदर लेखनी...

डॉ .अनुराग said...

आपके शब्द सयोंजन कमाल के होते है ओर संदेश भी ....

राजीव करूणानिधि said...

Thoda chota likhenge to padhne me aasani hogi...waise aap likhti achcha hai...jaari rakhiye

Jimmy said...

Bouth he aacha Soch Hai Aapke Dear

nice blog !!!!!

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RADHIKA said...

बहुत अच्छी व्यंग कथा ,ऐसे छैला बाबुओ के ज्ञान चक्षु कभी नही खुलते ,जब खुलते हैं तब ये कब्र में पैर लटकाए हुए होते हैं :-)

पुरुषोत्तम कुमार said...

बहुत अच्छी व्‍यंग्‍य कहानी.

"Nira" said...

bahut achi vyang katha hai.
acha likha hai
badhai

समीर सृज़न said...

achha laga..bhawnao ko aapne jis tarah net ke panno par ukera hai ..wakai ye kabiletarif hain...likhte rahiye...

महेन्द्र मिश्र said...

सुंदर व्यंग्य अभिव्यक्ति.बधाई

Bahadur Patel said...

achchha prayas hai achchhi bhasha ke sath sanyojan hai.badhai.

अनूप शुक्ल said...

बेहतरीन! छैला को लैला मिली। तीन दिन से अपने स्क्रीन पर रखे रखे आज पढ़ पाये। बहुत अच्छा लगा। शानदार!

रवीन्द्र प्रभात said...

अच्छा लगा!आपके शब्द सयोंजन बेहतरीन हैं,बधाई!

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत सुंदर रंजना जी एकदम सटीक पैनी व्यंग धार और अद्भुत शब्द प्रवाह

अभिषेक मिश्र said...

शब्दों के अद्भुत संयोजन के साथ छैला बाबु का अच्छा शब्द चित्रण. उम्मीद है उनको सच्चा जीवनसाथी मिले चाहे वो पुरूष ही हो!
स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.

Dr. Nazar Mahmood said...

good work
though its really long to read

Arvind Mishra said...

आपकी भाषा ने मंत्रमुग्ध किया -उत्कृष्ट लेखन ,कौन कहता है कि अंतर्जाल पर हिन्दी का स्तर कमजोर है -
इस बाँध कर रखने वाले लेखन पर १०० में १०० अंक ,बाकी पहलुओं पर तो गुनी जनों ने विचार व्यक्त कर ही दिए है !

कडुवासच said...

छैला बाबू एक ऐसे देश में रह रहे हैं, जहाँ पूर्ण वैधानिक स्वछंदता है. एकसाथ जितना जी चाहे स्त्रियों से प्रेम, विवाह, तलाक का खेल खेलो या जी ऊब जाए तो पुरूष से ही विवाह कर डालो....।
...बहुत ही रोचक व प्रभावशाली लेख है।

Amarjeet said...

aap to bahut acha likhtee hai

Manuj Mehta said...

वाह बहुत खूब लिखा है आपने.

मैं कुछ दिनों के लिए गोवा गया हुआ था, इसलिए कुछ समय के लिए ब्लाग जगत से कट गया था. आब नियामत रूप से आता रहूँगा.

निर्झर'नीर said...

ranjana jii comment to pahle hi bahot aa chuke hai ..yakinan ek bahoot gahra kataksh kiya hai aapne kahani mai.

par sath sath lagta hai ki ek sacchi ghatna ka chitran kiya hai aapne .
ghatna bhi kahin na kahin aapke aas paas hi ghatit hui hai ..shyad isliye hii sanskar or samaj jeevan ka aadhar mane jate hai jinse aaj ki yuva pidhii vimukh hai.
ye samaj or sanskriti ke vightan ka sanket hai.

daad hazir hai kubul karen.

!!अक्षय-मन!! said...

man moh liya badi sarthak dhang se vyakhyaan kiya hai...
मैंने मरने के लिए रिश्वत ली है ,मरने के लिए घूस ली है ????
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑

आप पढना और ये बात लोगो तक पहुंचानी जरुरी है ,,,,,
उन सैनिकों के साहस के लिए बलिदान और समर्पण के लिए देश की हमारी रक्षा के लिए जो बिना किसी स्वार्थ से बिना मतलब के हमारे लिए जान तक दे देते हैं
अक्षय-मन

prashant said...

आपके लिखने की शैली,आपके अनुभवी होने का प्रमाण है ।

Prakash Badal said...

रंजना जी,

छैला बाबू बेशक थोड़ा लंबा है मगर रुचिकर है। अच्छे लेखन के लिये आपको बधाई।