हे करुणाकर करुणा कर दो,
उर सबके सद्बुद्धि भर दो.
हिंसा द्वेष विध्वंश मिटाकर,
जीवन सबका सुखमय कर दो.
भार हो रहा जीवन जीना,
आताताई ने सुख छीना.
हे त्रिनेत्र अब नेत्र खोल दो,
धरा न चाहे शोणित पीना.
तुमने यह संसार बनाया,
सब सुख से है इसे सजाया.
विष को अपने कंठ में रख कर,
श्रृष्टि पर अमृत बरसाया.
असुर कित्नु कुछ शेष रह गए,
मनुज देह धर कपट कर रहे.
भांति भांति संहार रचाकर ,
मानवता को त्रस्त कर रहे.
विध्वंसक की बुद्धि हर लो,
भस्मासुर को अब न वर दो.
फ़िर से मोहिनी रूप रचाकर,
दुष्ट दम्भी को भस्म ही कर दो.
अधर्म पाप का ग्रहण हटाओ,
सदाचारियों को प्रभु तारो.
सत्य धर्म को विजय दिलाकर,
अनाचार सामूल मिटा दो.
8.12.08
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44 comments:
आपकी इस प्रार्थना में हम भी शामिल होते हैं. आभार.
विध्वंसक की बुद्धि हर लो,
भस्मासुर को अब न वर दो.
फ़िर से मोहिनी रूप रचकर,
दुष्ट दम्भी को भष्म फ़िर कर दो.
yahi har dil maang raha hai aaj kal ..
हे प्रभु हमारी मनोकामना पूरी कर दो
बहुत सुंदर प्रार्थना /करुणा कर के सब के जीवन को सुख मय कर देने की प्रार्थना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय है /त्रिनेत्र खोलदो चूंकि उनका नाम ही त्रिनेत्र है क्योंकि तीन नेत्र है यहाँ तीसरे नेत्र को कोई समुचित शब्द होता तो ठीक था /हलाहल में शायद मात्रा कन्फर्म करनी पड़ेगी क्योंकि हाला का मतलब शायद शराब से लिया जाता है /असुर वाली बात बहुत सटीक है गोस्वामी जी ने भी कहा है ....जिनके ये आचरण भवानी ,ते जानहु निशिचर सब प्रानी""/हिंसा और विद्रोह को ग्रहण कह कर अच्छी उपमा दी गई है /सत्य और धर्म की तो सदैव विजय होती है /टोटल मिलकर एक बहुत अच्छी प्रार्थना है जो आरती के बाद शाम सुबह घरों में की जा सकती हैं
हिंसा विद्वेष का ग्रहण हटाओ.
सदाचारियों को प्रभु तारो.
सत्य धर्म को विजय दिलाकर,
अनाचार सामूल मिटा दो.
सुंदर अति सुंदर प्रार्थना ! सभी सुखी हों का भाव !
रामराम !
हिंसा विद्वेष का ग्रहण हटाओ.
सदाचारियों को प्रभु तारो.
सत्य धर्म को विजय दिलाकर,
अनाचार सामूल मिटा दो.
सुंदर अभिव्यक्ति ...
आमीन!!
बहुत अच्छी रचना। सुंदर, सौम्य और सार्थक।
Apke sath mai bhi yahi dua mangti hu. ummid hai jarur puri hogi
अच्छा लिखा है।
बहुत ओजस्वी है और बहुत गेय भी।
दफ्तर में बैठा बड़ी मुश्किल से अपने को इस कविता का सस्वर पाठ करने से रोक पा रहा हूं।
अच्छी कामना है इन पँक्तियों के माध्यम से। बधाई।
सुखमय सबका जीवन होवे मानवता की यही पुकार।
कुछ रक्षक दानव बन बैठे लूट लिया सबका संसार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
bahut sundar!!
काश ईश्वर इस प्राथना को सुन ले
सहज भाव से सुन्दर प्रार्थना की है, हम भी शामिल हैं. जरुर सुनी जायेगी.
सच्चे मन से लिखी प्रार्थना ईश्वर अवश्य सुनेँगेँ
स स्नेह,
- लावण्या
विध्वंसक की बुद्धि हर लो,
भस्मासुर को अब न वर दो.
फ़िर से मोहिनी रूप रचकर,
दुष्ट दम्भी को भष्म फ़िर कर दो.
सारा भारत, सारा विश्व सुखि हो जाये अगर भगवान आप की यह प्रार्थना सुन ले, हम भी दिल से यह प्रार्थना करते है.
धन्यवाद
बहुत सुंदर. सुंदर शब्दों में सच्ची प्रार्थना.
ये कहना रश्म अदायगी होगी कि आप बहुत बढ़िया लिखती हैं.
माननीया धन्य है आपका ईश्वर.
वो क्षीरसागर में शेषनाग की सैया पे आराम फर्मा रहा था और दुश्मनों ने मुंबई पर हमला कर दिया.
एक ईश्वर गोपियों के साथ लीला करने में लगा रहता है और लोगों की ऐसी तैसी होती रहती है.
एक जाने कब तीसरा नेत्र खोलेगा कहीं हिमालय में धूनी जमाये बैठा होगा.
हरिवंश राय बच्चनजी की बहुत ही प्रचलित कविता याद आ गयी.
प्रार्थना मत कर,मत कर,मत कर.
झुकी गर्दन,नतप्रभ लोचन,
ये मनुष्य का चित्र नहीं है,पशु का है रे कायर.
मनुष्य का चित्र तो कुछ और ही है उन्हीं के शब्दों में
अग्निपथ-अग्निपथ-अग्निपथ
क्या महान दृष्य है चल रहा है मनुष्य है,
अश्रु,स्वेद,रक्त से लथपथ-लथपथ-लथपथ.
उर्दू के एक शायर ने सच ही कहा है-
वो सख्त जां कुछ ईज़ा पसंद था इतना,
लहू में तैरते ज़ख्मों का फूल कहता था.
आप हमारे ब्लॉग पर आयीं थीं हमने भी अपना फ़र्ज़ अदा कर दिया.
हम से तो कुछ होता नहीं सब कुछ ईश्वर पर ही छोड़कर धन्य हो जाते हैं.
तल्खियों के लिये ख़तावार हूँ.सूरदास के शब्दों मे कहूँ तो-
प्रभु हमरे औगन चित न धरौ.
पर हम सूरदास नहीं हैं हमारी दृष्टि तो प्रभू के औगुनो को भी देखती है क्या करें.सो वैसा लिख गये.
जय हो प्रभू की और उनके भक्त-भक्तिनों की.
कविता आपकी बहुत अच्छी है पर इस टिप्पणी के बहाने ही सही भदौरिया जी की बातें भी बड़ी अच्छी लगीं।
bahut sundar rachana aur bahut sundar bhav-
असुर कित्नु कुछ शेष रह गए,
मनुज देह धर कपट कर रहे.
भांति भांति संहार रचकर,
मानवता को त्रस्त कर रहे.
बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद!
असुर किंतु कुछ शेष रह गए,
मनुज देह धर कपट कर रहे.
भांति भांति संहार रचकर,
मानवता को त्रस्त कर रहे.
सच है - देवासुर संग्राम तो अनादी काल से चलता रहा है - हमें तय करना है की हम किस तरफ़ हैं और कितनी शिद्दत से लड़ने को तय्यार हैं.
ranjana ji , aapki is sashakt,saarthak prarthna mein shaamil hun,dil se
dear aaone bouth he aacha post kiyaa hai ji read ker ki bouth aacha lagaa
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हिंसा विद्वेष का ग्रहण हटाओ.
सदाचारियों को प्रभु तारो.
सत्य धर्म को विजय दिलाकर,
अनाचार सामूल मिटा दो.
bahut sunder rachana
upar wale se yahi main prarthana karunga ke wo aapki prarthana sunle... bahot khub likha hai aapne dhero badhai aapko...
बहुत सुंदर प्रार्थना...
भार हो रहा जीवन जीना,
आतताई ने सुख है छीना.
हे शिव अब त्रिनेत्र खोल दो,
धरा न चाहे शोणित पीना.
बहुत ही सारगर्भित, ओजपूर्ण धाराप्रवाह रचना
बार बार गीत कि तरह गाने को जी चाह
आपके संवेदना संसार मैं खिला ये पुष्प अति सुंदर है
aapki ye kavita itni bhaktipoorn hai ki kuch shabd nahi hai mere paas tarref ke liye
bahut bahut badhai
vijay
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Bahoot sundar.
या धरती के जख्मों पर मरहम रख दे......
या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह !!
और क्या कहूँ.....बस....बहुत अच्छी प्रार्थना......!!
हिंसा विद्वेष का ग्रहण हटाओ.
सदाचारियों को प्रभु तारो.
सत्य धर्म को विजय दिलाकर,
अनाचार सामूल मिटा दो.
यथार्थ चिंतन बहुत सुंदर बधाई
हिंसा विद्वेष का ग्रहण हटाओ.
सदाचारियों को प्रभु तारो.
सत्य धर्म को विजय दिलाकर,
अनाचार सामूल मिटा दो.
माफ़ी चाहूँगा, काफी समय से कुछ न तो लिख सका न ही ब्लॉग पर आ ही सका.
आज कुछ कलम घसीटी है.
आपको पढ़ना तो हमेशा ही एक नए अध्याय से जुड़ना लगता है. आपकी लेखनी की तहे दिल से प्रणाम.
सुंदर अभिव्यक्ति है वैसे मुझ जैसे ठूंठ आदमी को काव्य का बिल्कुल ज्ञान नही है लेकिन आपके शब्द बोलचाल वाले होने कि वजह से समझ मे आ जाते है।
विध्वंसक की बुद्धि हर लो,
भस्मासुर को अब न वर दो.
फ़िर से मोहिनी रूप रचकर,
दुष्ट दम्भी को भष्म फ़िर कर दो.
बहुत ही सुंदर रचना है !!! आपकी प्रार्थना ,हम सबकी प्रार्थना है ,इश्वर अवश्य सुनेंगे !!!!!!
achchi aur samsamyik rachana
-dr.jaya
आदरणीय रचना जी
आपकी ये कविता बहुत अच्छी है आपने जो कविता में मांगा है अगर मिल जाए तो सचमुच हर जगह शांति और खुशी हो। एक पंक्ति की और आपका ध्यान चाहूंगा मुशे लगता है कि नीचे दी गई लाईनों में अंतिम पंक्ति में "भष्म" के स्थान पर "भस्म" आए तो शायत शब्द अच्छा लगे, ये भी हो सकता है आपका ही कहना ही ठीक हो। आशा है इसे अन्यथा नहीं लेंगी।
विध्वंसक की बुद्धि हर लो,
भस्मासुर को अब न वर दो.
फ़िर से मोहिनी रूप रचकर,
दुष्ट दम्भी को भष्म फ़िर कर दो.
... प्रसंशनीय रचना है।
bahut sundar rachna.. hum bhi yahi prathna karege aapke sath
New post - एहसास अनजाना सा.....
वाहवा.... बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति. वाह... बधाई आपको....
ishvar aapkimanokaamna poori kare.
bahot sundar bhaav
bandhai ho itni khoobsurat prartna likhne ke liye ..
बहुत ही सुंदर कविता है, भाभी.
मुंबई की घटनाओ के बाद ऐसा लगता है मनो निराशा के चरम सीमा पर आ पहुचे है हम सभी. ऐसे समय पर शायद भगवान् के सामने हाथ जोर कर प्रार्थना करने के सिवाई और कोई चारा नही है हमारे सामने.
प्रणाम.
करुणाकर करुणा मत कर..
अगर तू सबको स्द्भुद्धि दे देगा तो सब नेकी कर मुक्त हो जायेंगे. स्वर्ग में जनसंख्या बढ़ने से समस्या हो जायेगी. धरती पर वैसे ही लोग अधिक ज़मीन कम है, उस पर भी रंजना हिंसा मिटाने की प्रार्थना कर रही है. उसे सुनकर अपनी फजीहत मत करा बैठना. सबका जीवन तुम्ही सुखमय कर दोगे तो कोई श्रम क्यों करेगा?धरा न चाहे शोणित पीना.
महाराज यम तीसरा नेत्र खोलना मत, वरना लोग प्रदर्शनी में तुम पर टिकेट लगा कर कमाई कराने लगेंगे. तुमने रंजना का क्या बिगाडा कि वह तुम्हारी मिट्टी पलीद करने पर तुल गयी. सारी पोल खोले दे रही है. स्मगलरों को जैसे ही पता लगेगा कि तुम्हीं ने तुमने यह संसार बनाया, सुख से सजाया वे तुम्हें अपहृत कर लेंगे. भ्रष्टाचार को कुछ दिनों में मिटाने की घोषणा करे वाले गुलजारी लाल नंदा कुछ दिन भी चैन से नहीं बिता सके. हे प्रभु रंजना से बच
आचार्य संजीव सलिल
सलिल.संजीव.ब्लागस्पाट.कॉम
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