8.12.08

हे प्रभु वर दो !

हे करुणाकर करुणा कर दो,

उर सबके सद्बुद्धि भर दो.

हिंसा द्वेष विध्वंश मिटाकर,

जीवन सबका सुखमय कर दो.



भार हो रहा जीवन जीना,

आताताई ने सुख छीना.

हे त्रिनेत्र अब नेत्र खोल दो,

धरा न चाहे शोणित पीना.



तुमने यह संसार बनाया,

सब सुख से है इसे सजाया.

विष को अपने कंठ में रख कर,

श्रृष्टि पर अमृत बरसाया.



असुर कित्नु कुछ शेष रह गए,

मनुज देह धर कपट कर रहे.

भांति भांति संहार रचाकर ,

मानवता को त्रस्त कर रहे.



विध्वंसक की बुद्धि हर लो,

भस्मासुर को अब न वर दो.

फ़िर से मोहिनी रूप रचाकर,

दुष्ट दम्भी को भस्म ही कर दो.



अधर्म पाप का ग्रहण हटाओ,

सदाचारियों को प्रभु तारो.

सत्य धर्म को विजय दिलाकर,

अनाचार सामूल मिटा दो.

44 comments:

P.N. Subramanian said...

आपकी इस प्रार्थना में हम भी शामिल होते हैं. आभार.

रंजू भाटिया said...

विध्वंसक की बुद्धि हर लो,
भस्मासुर को अब न वर दो.
फ़िर से मोहिनी रूप रचकर,
दुष्ट दम्भी को भष्म फ़िर कर दो.

yahi har dil maang raha hai aaj kal ..

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

हे प्रभु हमारी मनोकामना पूरी कर दो

BrijmohanShrivastava said...

बहुत सुंदर प्रार्थना /करुणा कर के सब के जीवन को सुख मय कर देने की प्रार्थना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय है /त्रिनेत्र खोलदो चूंकि उनका नाम ही त्रिनेत्र है क्योंकि तीन नेत्र है यहाँ तीसरे नेत्र को कोई समुचित शब्द होता तो ठीक था /हलाहल में शायद मात्रा कन्फर्म करनी पड़ेगी क्योंकि हाला का मतलब शायद शराब से लिया जाता है /असुर वाली बात बहुत सटीक है गोस्वामी जी ने भी कहा है ....जिनके ये आचरण भवानी ,ते जानहु निशिचर सब प्रानी""/हिंसा और विद्रोह को ग्रहण कह कर अच्छी उपमा दी गई है /सत्य और धर्म की तो सदैव विजय होती है /टोटल मिलकर एक बहुत अच्छी प्रार्थना है जो आरती के बाद शाम सुबह घरों में की जा सकती हैं

ताऊ रामपुरिया said...

हिंसा विद्वेष का ग्रहण हटाओ.
सदाचारियों को प्रभु तारो.
सत्य धर्म को विजय दिलाकर,
अनाचार सामूल मिटा दो.

सुंदर अति सुंदर प्रार्थना ! सभी सुखी हों का भाव !

रामराम !

रवीन्द्र प्रभात said...

हिंसा विद्वेष का ग्रहण हटाओ.
सदाचारियों को प्रभु तारो.
सत्य धर्म को विजय दिलाकर,
अनाचार सामूल मिटा दो.



सुंदर अभिव्यक्ति ...

कुश said...

आमीन!!

सुप्रतिम बनर्जी said...

बहुत अच्छी रचना। सुंदर, सौम्य और सार्थक।

Vineeta Yashsavi said...

Apke sath mai bhi yahi dua mangti hu. ummid hai jarur puri hogi

शोभा said...

अच्छा लिखा है।

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत ओजस्वी है और बहुत गेय भी।
दफ्तर में बैठा बड़ी मुश्किल से अपने को इस कविता का सस्वर पाठ करने से रोक पा रहा हूं।

श्यामल सुमन said...

अच्छी कामना है इन पँक्तियों के माध्यम से। बधाई।

सुखमय सबका जीवन होवे मानवता की यही पुकार।
कुछ रक्षक दानव बन बैठे लूट लिया सबका संसार।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

Alok Nandan said...

bahut sundar!!

डॉ .अनुराग said...

काश ईश्वर इस प्राथना को सुन ले

Udan Tashtari said...

सहज भाव से सुन्दर प्रार्थना की है, हम भी शामिल हैं. जरुर सुनी जायेगी.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सच्चे मन से लिखी प्रार्थना ईश्वर अवश्य सुनेँगेँ
स स्नेह,
- लावण्या

राज भाटिय़ा said...

विध्वंसक की बुद्धि हर लो,
भस्मासुर को अब न वर दो.
फ़िर से मोहिनी रूप रचकर,
दुष्ट दम्भी को भष्म फ़िर कर दो.

सारा भारत, सारा विश्व सुखि हो जाये अगर भगवान आप की यह प्रार्थना सुन ले, हम भी दिल से यह प्रार्थना करते है.
धन्यवाद

Shiv said...

बहुत सुंदर. सुंदर शब्दों में सच्ची प्रार्थना.
ये कहना रश्म अदायगी होगी कि आप बहुत बढ़िया लिखती हैं.

subhash Bhadauria said...

माननीया धन्य है आपका ईश्वर.
वो क्षीरसागर में शेषनाग की सैया पे आराम फर्मा रहा था और दुश्मनों ने मुंबई पर हमला कर दिया.
एक ईश्वर गोपियों के साथ लीला करने में लगा रहता है और लोगों की ऐसी तैसी होती रहती है.
एक जाने कब तीसरा नेत्र खोलेगा कहीं हिमालय में धूनी जमाये बैठा होगा.
हरिवंश राय बच्चनजी की बहुत ही प्रचलित कविता याद आ गयी.
प्रार्थना मत कर,मत कर,मत कर.
झुकी गर्दन,नतप्रभ लोचन,
ये मनुष्य का चित्र नहीं है,पशु का है रे कायर.
मनुष्य का चित्र तो कुछ और ही है उन्हीं के शब्दों में
अग्निपथ-अग्निपथ-अग्निपथ
क्या महान दृष्य है चल रहा है मनुष्य है,
अश्रु,स्वेद,रक्त से लथपथ-लथपथ-लथपथ.
उर्दू के एक शायर ने सच ही कहा है-
वो सख्त जां कुछ ईज़ा पसंद था इतना,
लहू में तैरते ज़ख्मों का फूल कहता था.
आप हमारे ब्लॉग पर आयीं थीं हमने भी अपना फ़र्ज़ अदा कर दिया.
हम से तो कुछ होता नहीं सब कुछ ईश्वर पर ही छोड़कर धन्य हो जाते हैं.
तल्खियों के लिये ख़तावार हूँ.सूरदास के शब्दों मे कहूँ तो-
प्रभु हमरे औगन चित न धरौ.
पर हम सूरदास नहीं हैं हमारी दृष्टि तो प्रभू के औगुनो को भी देखती है क्या करें.सो वैसा लिख गये.
जय हो प्रभू की और उनके भक्त-भक्तिनों की.

पुरुषोत्तम कुमार said...

कविता आपकी बहुत अच्छी है पर इस टिप्पणी के बहाने ही सही भदौरिया जी की बातें भी बड़ी अच्छी लगीं।

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

bahut sundar rachana aur bahut sundar bhav-
असुर कित्नु कुछ शेष रह गए,
मनुज देह धर कपट कर रहे.
भांति भांति संहार रचकर,
मानवता को त्रस्त कर रहे.

Smart Indian said...

बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद!

असुर किंतु कुछ शेष रह गए,
मनुज देह धर कपट कर रहे.
भांति भांति संहार रचकर,
मानवता को त्रस्त कर रहे.


सच है - देवासुर संग्राम तो अनादी काल से चलता रहा है - हमें तय करना है की हम किस तरफ़ हैं और कितनी शिद्दत से लड़ने को तय्यार हैं.

रश्मि प्रभा... said...

ranjana ji , aapki is sashakt,saarthak prarthna mein shaamil hun,dil se

Jimmy said...

dear aaone bouth he aacha post kiyaa hai ji read ker ki bouth aacha lagaa


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makrand said...

हिंसा विद्वेष का ग्रहण हटाओ.
सदाचारियों को प्रभु तारो.
सत्य धर्म को विजय दिलाकर,
अनाचार सामूल मिटा दो.

bahut sunder rachana

"अर्श" said...

upar wale se yahi main prarthana karunga ke wo aapki prarthana sunle... bahot khub likha hai aapne dhero badhai aapko...

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत सुंदर प्रार्थना...

दिगम्बर नासवा said...

भार हो रहा जीवन जीना,
आतताई ने सुख है छीना.
हे शिव अब त्रिनेत्र खोल दो,
धरा न चाहे शोणित पीना.

बहुत ही सारगर्भित, ओजपूर्ण धाराप्रवाह रचना
बार बार गीत कि तरह गाने को जी चाह

आपके संवेदना संसार मैं खिला ये पुष्प अति सुंदर है

vijay kumar sappatti said...

aapki ye kavita itni bhaktipoorn hai ki kuch shabd nahi hai mere paas tarref ke liye

bahut bahut badhai


vijay

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आशीष कुमार 'अंशु' said...

Bahoot sundar.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

या धरती के जख्मों पर मरहम रख दे......
या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह !!
और क्या कहूँ.....बस....बहुत अच्छी प्रार्थना......!!

प्रदीप मानोरिया said...

हिंसा विद्वेष का ग्रहण हटाओ.
सदाचारियों को प्रभु तारो.
सत्य धर्म को विजय दिलाकर,
अनाचार सामूल मिटा दो.
यथार्थ चिंतन बहुत सुंदर बधाई

hindustani said...

हिंसा विद्वेष का ग्रहण हटाओ.
सदाचारियों को प्रभु तारो.
सत्य धर्म को विजय दिलाकर,
अनाचार सामूल मिटा दो.

Manuj Mehta said...

माफ़ी चाहूँगा, काफी समय से कुछ न तो लिख सका न ही ब्लॉग पर आ ही सका.

आज कुछ कलम घसीटी है.

आपको पढ़ना तो हमेशा ही एक नए अध्याय से जुड़ना लगता है. आपकी लेखनी की तहे दिल से प्रणाम.

naresh singh said...

सुंदर अभिव्यक्ति है वैसे मुझ जैसे ठूंठ आदमी को काव्य का बिल्कुल ज्ञान नही है लेकिन आपके शब्द बोलचाल वाले होने कि वजह से समझ मे आ जाते है।

विक्रांत बेशर्मा said...

विध्वंसक की बुद्धि हर लो,
भस्मासुर को अब न वर दो.
फ़िर से मोहिनी रूप रचकर,
दुष्ट दम्भी को भष्म फ़िर कर दो.


बहुत ही सुंदर रचना है !!! आपकी प्रार्थना ,हम सबकी प्रार्थना है ,इश्वर अवश्य सुनेंगे !!!!!!

abhivyakti said...

achchi aur samsamyik rachana
-dr.jaya

Prakash Badal said...

आदरणीय रचना जी

आपकी ये कविता बहुत अच्छी है आपने जो कविता में मांगा है अगर मिल जाए तो सचमुच हर जगह शांति और खुशी हो। एक पंक्ति की और आपका ध्यान चाहूंगा मुशे लगता है कि नीचे दी गई लाईनों में अंतिम पंक्ति में "भष्म" के स्थान पर "भस्म" आए तो शायत शब्द अच्छा लगे, ये भी हो सकता है आपका ही कहना ही ठीक हो। आशा है इसे अन्यथा नहीं लेंगी।

विध्वंसक की बुद्धि हर लो,
भस्मासुर को अब न वर दो.
फ़िर से मोहिनी रूप रचकर,
दुष्ट दम्भी को भष्म फ़िर कर दो.

कडुवासच said...

... प्रसंशनीय रचना है।

travel30 said...

bahut sundar rachna.. hum bhi yahi prathna karege aapke sath

New post - एहसास अनजाना सा.....

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाहवा.... बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति. वाह... बधाई आपको....

निर्झर'नीर said...

ishvar aapkimanokaamna poori kare.
bahot sundar bhaav
bandhai ho itni khoobsurat prartna likhne ke liye ..

gdutta17 said...

बहुत ही सुंदर कविता है, भाभी.
मुंबई की घटनाओ के बाद ऐसा लगता है मनो निराशा के चरम सीमा पर आ पहुचे है हम सभी. ऐसे समय पर शायद भगवान् के सामने हाथ जोर कर प्रार्थना करने के सिवाई और कोई चारा नही है हमारे सामने.
प्रणाम.

Divya Narmada said...

करुणाकर करुणा मत कर..

अगर तू सबको स्द्भुद्धि दे देगा तो सब नेकी कर मुक्त हो जायेंगे. स्वर्ग में जनसंख्या बढ़ने से समस्या हो जायेगी. धरती पर वैसे ही लोग अधिक ज़मीन कम है, उस पर भी रंजना हिंसा मिटाने की प्रार्थना कर रही है. उसे सुनकर अपनी फजीहत मत करा बैठना. सबका जीवन तुम्ही सुखमय कर दोगे तो कोई श्रम क्यों करेगा?धरा न चाहे शोणित पीना.
महाराज यम तीसरा नेत्र खोलना मत, वरना लोग प्रदर्शनी में तुम पर टिकेट लगा कर कमाई कराने लगेंगे. तुमने रंजना का क्या बिगाडा कि वह तुम्हारी मिट्टी पलीद करने पर तुल गयी. सारी पोल खोले दे रही है. स्मगलरों को जैसे ही पता लगेगा कि तुम्हीं ने तुमने यह संसार बनाया, सुख से सजाया वे तुम्हें अपहृत कर लेंगे. भ्रष्टाचार को कुछ दिनों में मिटाने की घोषणा करे वाले गुलजारी लाल नंदा कुछ दिन भी चैन से नहीं बिता सके. हे प्रभु रंजना से बच

आचार्य संजीव सलिल
सलिल.संजीव.ब्लागस्पाट.कॉम