इस डिजिटल युग में ईरेजर . ...विज्ञान प्रदत्त मनुष्य को एक ऐसी सुविधा है जिसने मानव जीवन को अपार सुगमता दी है. स्याही से लिखी जाती थी और गलती/अशुद्धि होने पर लिखे कागज और मूड, दोनों का कचड़ा हो जाता था .पहले तो पेन्सिल से लिखे को मिटाने की सुविधा हुई और अब?
अब तो कागज पेंसिल सब बाय बाय.सीधे इलेक्ट्रानिक मिडिया में लिखो और वहां तो भई मिटाने की छोड़ो आपकी गलतियों को रेखांकित कर सही शब्द और वाक्य विन्यास के लिए भी पूर्ण प्रावधान उपलब्ध हैं.अब गलतियों से डरने या घबराने की कोई आवश्यकता नही.सुख में कहीं कोई अवरोध नही आ सकता.चाहे लिखते समय हो या गीत संगीत द्वारा मनोरंजन के समय.
पहले एक आधार था रेडियो....रेडियो जो बजा दे, सुनते रहिये ,पसंद आया तो ठीक नही तो कान या रेडियो मूँद कर प्राण बचाइए.लेकिन अब तो भई हमारे पास तरह तरह के छोटे से बड़े आकार में एक से बढ़कर एक इलेक्ट्रानिक उपकरण उपलब्ध हैं जिसमे एक साथ अपने पसंदीदा हजारों गीत एकत्रित कर रख सकते हैं. जब जिससे मन भर जाय और अप्रिय लगने लगे, झट ईरेज कीजिये.फोटो खींचना हो,कुछ गड़बड़ हो गई,पसंद की फोटो न खिंची,कोई दिक्कत नही.......ईरेज कीजिये.सब डिजिटल है भाई.
अब मनोरंजन हो या रोजमर्रा की सुविधाएँ,प्रत्येक क्षेत्र में जब 'ईरेजात्मक' सुविधा उपलब्ध है. ऐसे में चिकित्सा क्षेत्र क्यों पीछे रहे?
ई-रेजरों की इसी श्रृंखला में चिकित्सा जगत में क्रांति कारी उपलब्धि यह नवीन औषधि है "आई-पिल "। गलती हो गई, कोई बात नही.बहत्तर घंटें हैं आपके पास,अपनी गलती को ईरेज करने के लिए. सरकार ने इसे बिना किसी चिकित्सक के अनुज्ञा ( प्रिस्क्रिप्सन) के सभी औषधालयों में ग्राहकों को उपलब्ध कराने का आदेश दिया है.
वैसे तो यदि यह औषधि कारगर हुई तो भ्रूण हत्या रोकने के क्रम में यह एक अत्यन्त सार्थक सराहनीय वरदान सा होगा और इस परिपेक्ष्य में इसकी मुक्त कंठ से प्रशंशा होनी चाहिए.पर देखा जाए तो आज जितने गर्भपात होते हैं,उसमे से कितने गर्भपात दम्पतियों के बीच हुए तथाकथित गलती का परिणाम होते हैं?
आंकडों पर दृष्टिपात करें तो स्वैक्षिक गर्भपात में चालीस प्रतिशत कन्या भ्रूण की हत्या होती है और पचपन प्रतिशत गर्भपात अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध से हुए गर्भधारण का परिणाम है।मुश्किल से पाँच प्रतिशत या उससे भी कम ही गर्भपात विवाहिता के अनैक्षिक गर्भधारण का परिणाम होती है॥यह आई-पिल बनाम ईरेजर पूर्ण संज्ञान में अच्छी खासी मात्रा में व्यय कर भ्रूण परिक्षनोपरांत कन्या भ्रूण हत्या में तो कतई अवरोधक या कारगर न होगा. ,हाँ अवांछित गर्भधारण और भ्रूण हत्या पर अवश्य कुछ रोक लगा सकता है.
समस्या इसके सदुपयोग में नही इसके दुरूपयोग में है. आज हमारा किशोर और युवा वर्ग नैतिक मूल्यों को धता बताते हुए जिज्ञासा और आनंदोप्भोग के लिए जिस तरह आँख मूंदकर भागा जा रहा है, यह उनके द्वारा सर्वाधिक उपयोग में लाया जाएगा और भ्रूण हत्या भले रुक जाय पर नैतिक पतन किस पराकाष्ठा पर पहुंचेगा ,पता नही......
समाज को सीमाओं में निबद्ध रखने में भय की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है.अभी कुछ दिनों पहले एक ख़बर टी वी में सुना कि पाँचवीं छठी वर्ग की क्षत्राएँ गर्भपात के लिए चिकित्सकों के पास जाने लगी हैं..ऐसा नही कि यह सिर्फ़ सुना भर ,अपने आस पास यह सब देखा भी है.
किशोर वय जो कि एक आंधी की तरह बहना चाहते हैं,नैतिकता की बातें उनके लिए प्रहसन है,किसी अवरोध को स्वीकारना उन के लिए उनके अधिकारों का हनन ही नही अभिभावकों का उनपर अत्याचार है... उनके बहकते कदम को रोकने के लिए इस भय का होना अत्यन्त आवश्यक है. एक समय था जब भय,शील, धर्म, मर्यादा, आत्मसम्मान इत्यादि इत्यादि बेडियाँ थीं,जिसमे बंधकर मन को बांधकर रखा जाता था.समय के साथ शील धर्म मर्यादा नैतिक मूल्य की बातें तो दरकिनार होती गयीं ,बस एक भय बचा था,कि अंततः सुखोपभोग की कीमत लडकी को ही तो चुकानी पड़ती है.
लोकोपवाद तथा सबकुछ भुगतना लडकी को ही पड़ता है ,यह भय उत्सुकता और आकांक्षा पर भारी पड़ता था और कुछ हद तक अवरोधक का काम करता था।भले यह आई-पिल भ्रूण हत्या रोकने में समर्थ होगा पर यह स्वच्छंद शारीरिक सम्बन्ध को और बढ़ाने में सहायक भी होगा.... अब तो यह दुस्साहसी निडर पीढ़ी, इस उपाय के सहारे निःसंकोच जिज्ञासा समाधान और आनादोप्भोग के लिए निकल पड़ेंगे.
पहले एड्स पश्चिम के उन्मुक्त समाज का रोग माना जाता था।पर आज भारत में भी समस्या दिन प्रतिदिन भयावह होती जा रही है.यह रोग उस उन्मुक्त यौनाचार का ही प्रतिफल है, यह तथ्य किसी से छुपा तो नही. वर्तमान में जितनी गंभीर समस्या अजन्मे शिशु की अमानवीय हत्या है उतना ही स्वछन्द यौनाचार भी है,जो बड़ी तेजी से पूरे संस्कृति और समाज को पतनोन्मुख किए जा रहा है॥
पश्चिम में जहाँ पूर्ण यौन स्वछंदता है,अधिकांशतः अल्पवयस्क बच्चे कच्ची उम्र में ही अनैतिक यौनाचार और नशीली दवाओं के सेवन में निमग्न हो जाते हैं और उनमे विवाह परिवार जैसी व्यवस्थाओं के प्रति अनास्था का भाव आ जाता है,जिससे समाज में एक तरह से उच्छ्रिन्खला और विघटन व्याप्त हो जाता है।आज जितनी मात्रा में मनोरोगी पश्चिमी सभ्यता या उसके अनुकरण करने वाले किसी भी देश में रह रहे उस के अनुयायियों में पाया जाता है वह संतुलित जीवन जीने वालों में नही.जैसे मिठाई पसंद करने वाला यदि अत्यधिक मात्रा में प्रतिदिन केवल मिष्टान्न का सेवन करने लगे तो स्वस्थ्य का तो जो होगा सो होगा,एक अवधि के बाद उसे मिठाई से वितृष्णा हो जायेगी. वैसा ही इसके साथ भी है.
इस पिल के द्वारा गर्भस्थ शिशु की हत्या रोकने का प्रयास तो हो चुका है पता नही पीढी को व्यभिचार से विमुख करने के लिए कोई उपाय मिलेगा या नही?
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33 comments:
पहले एड्स पश्चिम के उन्मुक्त समाज का रोग माना जाता था।पर आज भारत में भी समस्या दिन प्रतिदिन भयावह होती जा रही है.यह रोग उस उन्मुक्त यौनाचार का ही प्रतिफल है, यह तथ्य किसी से छुपा तो नही. वर्तमान में जितनी गंभीर समस्या अजन्मे शिशु की अमानवीय हत्या है उतना ही स्वछन्द यौनाचार भी है,जो बड़ी तेजी से पूरे संस्कृति और समाज को पतनोन्मुख किए जा रहा है॥
आपने बहुत ही सामयिक और भयावह समस्या की तरफ़ ध्यान खींचा है जिसका समय रहते उपाय नही सोचा गया तो ये हमारा सामाजिक ताना बाना धवस्त कर देगी !
राम राम !
अच्छा लिखा आपने.......धन्यवाद!!!
बहुत ही सामयिक और भयावह समस्या.धन्यवाद
बहुत ही सामयिक और भयावह समस्या.धन्यवाद
bahut hi achha likha hai aapne
बहुत ही साहसिक लेख . यह सब इरेज़र चरित्र को ही मिटा रहे है . इतनी आधुनिकता कहाँ ले जाकर छोडेगी हम को . डर लगता है भविष्य की ओर देख कर
बहुत ही सामयिक लिखा है। अति सुन्दर।
इरेजर जो
रेजर बन
बींध रहा है
।
नैतिकता को
मूल्यों को
संस्कृति को
कब काटेगा
अनैतिकता को
।
ऐसे इरेजर
एक नहीं
अनेक हैं
सब रेजर
का कर रहे
हैं काम।
बड़ी गंभीर स्थिति है. सुंदर लेख के लिए आभार.
इस पिल के द्वारा गर्भस्थ शिशु की हत्या रोकने का प्रयास तो हो चुका है पता नही पीढी को व्यभिचार से विमुख करने के लिए कोई उपाय मिलेगा या नही?
बहुत सरल उपाय हैं आप जो नहीं चाहते की अगली पीढी करे वो ख़ुद ना करे . नयी पीढी को दोष देने से पहले देखे की पुरानी पीढी ने उनको संस्कार क्या दिये हैं . ना जाने कितने रिश्ते पनपते हैं विवाहितो के घर मे और समाज सजा देने की जगह "गलती" को भूल कर घर बचाओ अभियान मे जुट जाता हैं
बेटा जानता हैं की पिता की शादी भी नहीं टूटी "गलती " के बाद तो बेटा "गलती " करने को लालाइत हैं .
समाज की मान्यता बदले इस पर कुछ जागरूकता फेलाने वाले आजाये तो बदलाव ख़ुद बा ख़ुद आएगा .
सजा जरुरी हैं अपराध की लेकिन हम सजा अपराधी को नहीं जिसके साथ अपराध होता हैं उसको देते हैं .
बलात्कार होता हैं तो लोग कहते हैं कम कपडे पहन कर रात को कहा घूम रही थी और बलात्कारी आराम से घूमता हैं .
अविवाहित स्त्री के साथ विवाहित पुरूष का सम्बन्ध हैं पर समाज की दोषी अविवाहित स्त्री हैं , विवाहित पुरूष नहीं और वो पत्नी तो भी नहीं जो फिर भी ऐसे पुरूष के साथ रहती हैं और दैहिक सम्बन्ध भी बनाती हैं .
सो जिस समाज मे दोषी का ही पता नहीं वहाँ हर नयी पीढी व्यभिचार ही करेगी क्युकी उसको पता हैं व्यभिचार करने वाले को नहीं जिसके साथ व्यभिचार किया गया हैं वो सजा पायेगा
जिस advt की बात हो रही हैं उसमे ipill को abortion की पीड़ा से बचने के लिये सही बताया गया हैं और इसमे बुरा क्या हैं ??
A serious article on a serious mood about a very serious problem , indeed !
Hope we find some solutions, soon.
warm regards,
- L
बहुत ही सटीक विषय पर आपने लिखा है रंजना जी और जो बिंब आपने इरेज़र वाला प्रयोग किया है वाकेई फिट बैठता है। आपके इस लेख को उन लोंगों की नज़र के सामने लाना चाहिए जो ऐसी मूर्खता और ग़लती करते है। मेरा तो मानना है कि किसी भी गर्भपात करने वाले को कड़ी सजा मिलनी चाहिए और इन इरेज़ करने वाले प्रावधानो पर पूर्णतयः प्रतिबंध लगा देना चाहिए, चाहे वो गर्भपात लिंग के आधार पर हो या फिर ग़लती के आधार पर।
बहुत ही महत्वपूणॆ विषय पर बड़े ही तकॆपूणॆ ढंग से आपने अपनी बात रखी है। आपने जो सवाल उठाए हैं, उनके जवाब समाज के लिए बहुत जरूरी हैं। इस विषय को लोगों को सामने लाने और उस पर बहस की गुंजाइश बनाने के लिए धन्यवाद। मैं आपकी बातों से सौ फीसदी सहमत हूं।
बहुत अच्छी समस्या उठाई है आपने । आज आई िपल की िबक्री बहुत बडे पैमाने पर हो रही है । इससे समाज में अनैितकता के िवस्तार और पतनशील िस्थितयां ही बढेंगी । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख िलखा है-आत्मिवश्वास के सहारे जीतें िजंदगी की जंग-समय हो तो पढें और राय भी दें ।
http://www.ashokvichar.blogspot.com
बहुत अच्छा ओर बहुत ही साहसिक लेख लिखा आप ने इस लेख के लिये आप का धन्यवाद
आई पिल के बहाने आपने सधे संतुलित और प्रभावपूर्ण शब्दों में एक सार्थक बहस छेड़ी है -आपका लेखन प्रभावित करता है !
एक शब्द पर गौर करें -क्या यह आनंदोप्भोग ही है ?
सही मुद्दा उठाया आपने !
vicharniya thatya
great
well edited and composed too
सामयिक और ज्वलंत प्रश्न खडा किया है आपने, जितना भी खोजो, आज के मीडिया युग मैं इसका उत्तर ढूंढना उतना ही मुश्किल नज़र आता है. ये परिवर्तन का युग है और युवा वर्ग नए नए प्रयोगों की तरफ़ उन्मुक्त हो रहा है, जीवन शैली पुनः परिभाषित हो रही है, भारत मैं तो अभी शुरुआत है, पता नही भविष्य के गर्भ मैं क्या छिपा है.
समस्या को बेहतरीन तरीके से उठाया है आपने
स्पष्ट भाषा में लिखा जाना जरूरी भी हो गया है
बिल्कुल सही और साफ़ लिखा है आपने रंजना इस विषय पर खुल कर लिखा जाना जरुरी है
APNE JO LIKHA HAI WO EKDAM SATYA HAI..LEKIN APKO GHABARANE KI JARURAT NAHI HAI..NATURE YANI PRAKRITI APNA SANTULAN KHUD BANATI HAI..YE SEX MARKETING HAI AUR KUCHH NAHIN!
गंभीर मसलें, तथ्यपरक और सारगर्भित बातें... मेरी शुभकामनाएं...
विचारणीय लेख है। पढ़कर बहुत अच्छा लगा। अभी दुबारा भी पढ़ा। :)
रंजनाजी जो ईरेजर के बारे में लिखा है वह पूरी तरह से सच है । आपने शानदार तरीके से हरेक बाते रखी है । संरचना सही है । मेरे ब्लाग पर भी आए
बहुत अलहदा और जानदार
विषय चुना आपने.
अच्छी प्रस्तुति
बधाई.
==============
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
bahut accha likha hai , aaj ke samaj ki sachhi aur asli tasweer.
badhai..
pls visit my blog for some new poems.
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
'ईरेजात्मक' जैसे शब्दों का अच्छा प्रयोग किया है.......
युवा जिस आजादी को भोग रहे हैं अब उन्हें और स्वतंत्रता मिल जायेगी.....आई -पिल को ढंग से लिया .......
गजब लिखा है........
गंभीर, सटीक व सामयिक चिंतन... ज्वलंत मुद्दे के संयोजनार्थ साधुवाद....
aap aaj ki chintak or vicharak ho.
jahan bhi jaao roshan karoo is dhara ko.
Aapka blog pehli baar pada ....bahut achcha likhti hai aap.....mujhe sabhi posts bahut pasand aaye.....likhti rahiye...badhai
लेख की भाषा शैली शालीन व मर्यादित है, लेख कुछ सोचने को विवश करता है । ऐसे लेख के लिये अभार।
रंजना जी!
साफ़ और स्पष्ट सोच, सधी भाषा, साधुवाद.
यह चिन्तन और चिंता उस मध्यम वर्ग की है जो नीति-नियमों, मान्यताओं-मर्यादाओं को जीता है. तथाकथित उच्च वर्ग इन्हें ठेंगे पर मारता है (खासकर लड़कों के मामले में).और निम्न वर्ग को जीवन की तल्ख़ सचाई चाह कर भी मानने नहीं देती. तथाकथित प्रगतिवादी, नारी अधिकारों के नाम पर स्वच्छन्दता के हामी और चर्वाक्पन्थी तो भोग को ही सब कुछ मान कर जीते हैं. इधर त्याग के पक्षधरों में भी कुछ अतिवादी प्राकृतिक पारिवारिक जीवन के विरुद्ध प्रकृति-पुरूष संबंध को ही झुठला (ब्रम्हा कुमारी) रहे हैं. ऐसे में जो सामने आए उसका समाधान खोजना ही निदान है.
गुजरात में नवरात्रि के बाद गर्भपातों की संख्या में असाधारण वृद्धि रात्रि गरबा का परिणाम है. दूरदर्शन ने तन-मन परिपक्व होने के पहले ही शिशुओं को सीधा वयस्क बनने का बीडा उठा लिया है.
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