शादी ब्याह ,पूजा पाठ ,पर्व त्यौहार इत्यादि पर भले लोग अपने अपने धर्म समुदाय में प्रचलित पंचांगों का अनुसरण करें,पर इस वैश्वीकरण के युग ने इतना तो किया है कि विश्व के विभिन्न मत मतान्तर के अनुयायियों द्वारा वर्षभर के बारहों महीनो में अलग अलग समय में नव वर्ष का प्रारम्भ मानने वाला विश्व समुदाय अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से एक जनवरी को ही नए वर्ष के पहले दिन के आरंभिक दिन रूप में उत्सव सहित मानते हैं। सही ग़लत की बात छोड़ दें, तो इस बात पर उत्साहित हुआ ही जा सकता है और हर्ष मनाया जा सकता है कोई एक तो मौका और कारण ऐसा है जो विश्व समुदाय को एकजुट करता है. नही तो एक कैलेंडर बदलने से अधिक नए वर्ष के नाम पर और क्या बदलता है.भूख, गरीबी, हिंसा, विध्वंश, दुराचार ,अत्याचार ........सब अपनी जगह पर यथावत या कुछ और ही अधोमुख.
इतने सारे वर्ष निकल गए शुभकामनाओं के आदान प्रदान और शुभ की अपेक्षा में।पर चहुँओर घटित दुर्घटनाओ,विध्वंश, अधर्म और अनाचार के फैलते पसरते साम्राज्य को देख मन कभी कभी इतना हतोत्साहित हो जाता है कि लगता है इतने हृदयों से निकली शुभ की कामना क्यों विलुप्त हो जाती है.......क्यों नही यह फलित होती......और तब इच्छा ही नही होती औपचारिकताओं (शुभकामनाओ के आदान प्रदान) को निभाने की या शुभ के लिए बहुत अधिक आशान्वित रहने की.
शुभ की कामना अवश्य रखनी चाहिए । नए वर्ष या किसी अवसर विशेष पर ही क्यों , सदैव रखनी चाहिए.पर यह भी स्मरण रखना होगा कि वर्षों से शुभ की कामना मन में रखे और उद्गारों के आदान प्रदान के बाद भी यदि दिनानुदिन धार्मिक ,सामाजिक ,सांस्कृतिक , राजनितिक ,आर्थिक इत्यादि प्रत्येक क्षेत्र से धर्म बहिष्कृत होती जा रही है,धर्माचरण हास्यास्पद और मूर्खता का पर्याय ठहराया जाने लगा है, तो अब ऐसे में केवल शुभकामनाओं के आदान प्रदान और शुभ घटित होने की अपेक्षा रखने भर से काम न चलेगा.आवश्यकता है कि अपने आचरण में दृढ़ता से शुभ (सदाचार) को प्रश्रय देने की और अपने व्यग्तिगत स्वार्थ से उपार उठते हुए अपने सरोकारों को विस्तृत करते हुए समाज देश और विशव के सरोकारों से जुड़ने की. जहाँ कहीं भी अशुभ आचरण का अनुगमन हो रहा हो,उसके विरुद्ध मोर्चा खोले बिना किसी भी मोर्चे पर पतन को रोक पाना असंभव है॥
अपने अन्दर और बहार दोनों जगहों से अशुभ (अनाचार) को ध्वस्त कर ही हम शुभ की आशा रख सकते हैं और अपनी अगली पीढी को वह अवसर और परिवेश थाती में दे सकते हैं,जिसमे वह पूर्ण हर्षोल्लास के साथ उत्साहित हो शुभ की कामना करे और उसे फलित होता हुआ पाये...
कामना !!
पल पल छिन छिन चुकती जाए यह साँसों की पूंजी,
विधि ने जो है नियत किया वह अभी भी है अनबूझी.
बूँद बूँद कर रीती जाती घट जीवन जल वाली ,
संचित कर्म को गुनु तो पाऊं हाथ अभी भी खाली.
हे दाता दे हमको अपनी करुणा का अवलंबन,
सत्पथ पर चलने हेतु सद्बुद्धि धैर्य समर्पण.
काम क्रोध मद मोह लोभ से रक्षा करो हमारी,
भोग रोग न ग्रसित करे मति दृढ़ता भरो हमारी.
रोग शोक भय क्षोभ मुक्त हो प्रयाण की पावन बेला,
अंजुरी भर संतोष संग ले संपन्न हो जीवन लीला.
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33 comments:
बूँद बूँद कर रीती जाती घट जीवन जल वाली ,
संचित कर्म को गुनु तो पाऊं हाथ अभी भी खाली.
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने..बहुत ही अच्छी कविता है....
अपने अन्दर और बहार दोनों जगहों से अशुभ (अनाचार) को ध्वस्त कर ही हम शुभ की आशा रख सकते हैं और अपनी अगली पीढी को वह अवसर और परिवेश थाती में दे सकते हैं,जिसमे वह पूर्ण हर्षोल्लास के साथ उत्साहित हो शुभ की कामना करे और उसे फलित होता हुआ पाये...
इतनी सुन्दर बात कही है आपने कि दिल खुश हो गया। यह विचार जन-जन तक पहुँचे यही कामना है।
कामना !!
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने पढकर दिल खुश हो गया इतना अच्छा आर्टिकल और कविता के तो क्या कहने
काम क्रोध मद मोह लोभ से रक्षा करो हमारी,
भोग रोग न ग्रसित करे मति दृढ़ता भरो हमारी.
कविता भावपूर्ण एवं ज्ञानवर्धक एवं प्रेरणादायक भी कह सकते हैं बेहतरीन रचना के लिए बधाई
bahut hi achha likha hai,prerna deti bhawnayen
बहुत सुंदर लिखा है, शुभ की आशा अशुभ का अंत कर के ही होती है और शुभ की कामना यथा शक्ति होनी चाहिए, अनिश्चय में ही निशी छुपा है, निराशा में आशा का वास है. उम्मीद से भरा यह लेख सभी जन पढ़ें, मेरी यही आशा है
कविता भी बहुत भावः पूर्ण है
ईश्वर सब शुभ करें !
आपके ब्लॉग से कभी खाली हाथ नही लौटा हू... और यही आपकी ख़ासियत है..
शुभ की कामना के साथ...
सकरात्मक सोच शुभ की तरफ ले जाती है ..बहुत बढ़िया लिखा है आपने रंजना .कविता की पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी
बहुत सुन्दर्तम कविता. आपका सार्थक सोच की तरफ़ बढाने का प्रयास बहुत लाजवाब लगा. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
"...केवल शुभकामनाओं के आदान प्रदान और शुभ घटित होने की अपेक्षा रखने भर से काम न चलेगा.आवश्यकता है कि अपने आचरण में दृढ़ता से शुभ (सदाचार) को प्रश्रय देने की और अपने व्यग्तिगत स्वार्थ से उपार उठते हुए अपने सरोकारों को विस्तृत करते हुए समाज देश और विशव के सरोकारों से जुड़ने की. जहाँ कहीं भी अशुभ आचरण का अनुगमन हो रहा हो,उसके विरुद्ध मोर्चा खोले बिना किसी भी मोर्चे पर पतन को रोक पाना असंभव है॥
बहुत सही कहा. समय आ गया है जब "सर्वे भवन्तु सुखिनः..." के शब्दों को सिर्फ़ दोहराने से आगे बढ़कर उसे अपने मन और कर्म में भी लाया जाए. आपको भी नव वर्ष पर ढेरों शुभकामनाएं!
sach to ye he ki aaj SHUBHKAMNAYE bhi vayvsaik ho chali he..logo me iska adan pradan ese hota he maano apna kam nikaal rahe ho..
vo aatmiyata kamnao me knha jo maata pita dvara di gai kamna si lage..aaj to aoupcharikta dikhti he..
aapki kalam nissandeh bhavnao se paripurna he..aapki kaamna falibhoot ho, esi meri kamnaye he..
shubhkamnaye.
आपने बहुत सुँदर पोस्ट लिखी मन को बहुत बल मिला -शुभमस्तु
स-स्नेह,
- लावण्या
बहुर ही प्यारा भावपूर्ण लिखा है एक प्रेरणा देती हुई रचना....बहुत ही सधे हुए शब्दों मे.
अक्षय-मन
शुभ की कामना अवश्य रखनी चाहिए ,बहुत सुंदर विचार रखे आप ने,धन्यवाद
बूँद बूँद कर रीती जाती घट जीवन जल वाली ,
संचित कर्म को गुनु तो पाऊं हाथ अभी भी खाली.
बहुत सुंदर ....प्रभावित कर प्रेरणा देती है आपकी भावनायें....धन्यवाद
बिल्कुल सही बात है। ...कविता भी बहुत अच्छी है।
पहले तो इतनी सुदर रचना के लिये बधाई। फिर आपके सुंदर भावों को। बिल्कुल सही, अपने आचरण को सही रख कर, व्यवहार और चरित्र को सही रख कर ही आदमी ऊँचा उठ सकता है।
bahut achchi soch hai aapki inhee bhavo ko sabdo me pirokar kaha hai aapne
post ke liye shukriya
रंजना जी बहुत अच्छी कविता लिखकर शुभ की कामना की हैं आपने,और यह भी सही हैं की सिर्फ़ शुभ की कामना करने से शुभ नही होगा .उसके लिए प्रयत्न भी करने होंगे .
बड़ी शुभ और सत्य बातें दोहरायीं आपने!
---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें
सही है - वैदिक प्रार्थना की तर्ज पर प्रार्थना हो सकती है - ईश्वर, हमें अशुभ से शुभ की ओर ले चल!
पहली बार पढ़ा तो लगा कि आप का इरादा अंधों दे शहर में आइना बेचना है /दुबारा पढ़ा /आप का हतोत्साहित हो जाना स्वाभाविक लगा /यह जानते हुए भी कि आपकी इन बातों से किसी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला इसके बाद भी लिखने का प्रयास किया /यह बहुत अच्छी बात है /सौ में से एक पर भी प्रभाव हो गया तो समझो अपना लिखना सौ प्रतिशत सफल हो गया /
आपने सही कहा कि जब तक हम अपने भीतर और बाहर के अशुभ को ध्वस्त नहीं करते तब तक शुभ की कामना करना व्यर्थ है।
पल पल छिन छिन चुकती जाए यह साँसों की पूंजी,
विधि ने जो है नियत किया वह अभी भी है अनबूझी.
बहुत सुन्दर। अापका संदेश बहुत उपयुक्त और सामयिक है।
शुभ की कामना।
हार्दिक शुभ कामना।
ranjana ji , aapne itni achi rachan likhi , bus kya kahun , do baar pad chuka hoon , aapki bhasha par commond dekhkar mujhe bahut acha laga ..
is kavitya mein aapne antarman ke bhaavo ko itne achae se darshaya hai ..
अंजुरी भर संतोष संग ले संपन्न हो जीवन लीला.
is akeli pankti mein jeevan ka saar hai ..
is amulay rachan ke liye badhai ..
maine kuch nai nazme likhi hai ,dekhiyenga jarur.
vijay
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केवल शुभकामनाओं के आदान प्रदान और शुभ घटित होने की अपेक्षा रखने भर से काम न चलेगा.आवश्यकता है कि अपने आचरण में दृढ़ता से शुभ (सदाचार) को प्रश्रय देने की और अपने व्यग्तिगत स्वार्थ से उपार उठते हुए अपने सरोकारों को विस्तृत करते हुए समाज देश और विशव के सरोकारों से जुड़ने की.
samaj ke andjeron ko chiirti aapki ye prakashmay pankti man ko roshan kar gayii..
दाता दे हमको अपनी करुणा का अवलंबन,
सत्पथ पर चलने हेतु सद्बुद्धि धैर्य समर्पण.
काम क्रोध मद मोह लोभ से रक्षा करो हमारी,
भोग रोग न ग्रसित करे मति दृढ़ता भरो हमारी
sundar bhaktimay prarthna
prabhu pukaar sune har man kii
बहुत अच्छी कविता..बहुत सुँदर पोस्ट .
काम क्रोध मद मोह लोभ से रक्षा करो हमारी,
भोग रोग न ग्रसित करे मति दृढ़ता भरो हमारी.
रोग शोक भय क्षोभ मुक्त हो प्रयाण की पावन बेला,
अंजुरी भर संतोष संग ले संपन्न हो जीवन लीला.
बहुत अच्छी कविता
अच्छे विचार...सार्थक प्रस्तुति.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बहुत ख़ूब रंजना जी। आपने सही दिशा दिखाई है शुभ तो हर दिन हर पर और हर घड़ी सोचना चाहिए और यदि नव वर्ष की तरह हम हर दिवस को शुभकामनाओं के साथ मनाएं तो ज़ाहिर है हमारा सारा समय शुभ ही गुज़रेगा।
सुंदर अभिव्यक्ति
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