भगवान् ने अपनी पसंद से माँ बाप संतान या रिश्तेदार चुनने का हक किसी को नहीं दिया है,यदि दिया होता तो ऐसे असंख्य लोग होते जिन्होंने अपने से जुड़े लोग बदल लिए होते....
अपनी मेहनत और काबिलियत के बल पर गुरबत में भी इंजीनियरिंग और एम् बी ए की डिग्रियां हासिल कर गुप्ता अंकल ने ऊंचा ओहदा हासिल किया और इसी ऊंचे ओहदे के बल पर आंटी जैसी स्मार्ट मेधावी लड़की पत्नी रूप में पाया यहाँ तक तो सब उनके बस में था पर आगे की जिन्दगी में बहुत कुछ ऐसा घटा जिनपर उनका कोई वश नहीं चला॥
गुप्ता आंटी अपने समय में बड़ी ही मेधावी और महत्वकांक्षी थीं लेकिन हाथ आये इतने अच्छे रिश्ते को उनके अभिभावक छोड़ना नहीं चाहते थे,सो उन्होंने आंटी के आगे पढने और बढ़ने के सारे सपनो को विराम दे उनके हाथों बड़े साहब की पत्नी बनने का सौभाग्य और मिसेज गुप्ता नाम की डिग्री पकडा दी।
गुप्ता आंटी भी कम जीवट न थी। जबतक गुप्ता अंकल कलकत्ते में रहे, शादी और बेटे राजीव के जन्म के बाद भी आंटी ने हार नही मानी और बेटे को स्कूल भेजने के बाद उन्होंने अपनी पढाई का सिलसिला जो कि इन्टरमीडियेट के बाद रुक गया था फिर से चलाया और एक बच्चे को लेकर भी उन्होंने ग्रेजुएसन और ला की पढाई पूरी की.एक अच्छे फार्म में उन्होंने प्रैक्टिस भी शुरू कर दी थी.लेकिन इसी बीच अंकल को एक नए आ रहे फैक्टरी में बहुत ही ऊंचे पोस्ट का आफर मिला और अपने भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए उन्होंने उस कम्पनी को ज्वाइन कर लिया॥
यह नयी फैक्टरी ऐसे उजाड़ बियावान में बसाया जा रहा था जिसके सबसे नजदीक के शहर से दूरी डेढ़ सौ किलोमीटर थी...अंकल के सितारे तो बुलंद हो गए पर आंटी का अपने पैरों पर खड़े होने,अपनी पहचान बनाने के सपनों पर फिर से धूल पड़ गया। राजीव को होस्टल में डाल दिया गया था. आंटी के पास अब कोई इंगेजमेंट नहीं बचा था॥वे बुरी तरह डिप्रेस रहने लगीं.अंकल को और कोई उपाय न सूझा तो उन्होंने आंटी को फिर से मातृत्व रूपी इंगेजमेंट दे दिया...
यहीं रागिनी का जन्म हुआ था।अंकल और हमलोग पडोसी थे.उनके बड़े से बंगले के बगल में हमारा छोटा बंगला.मेरे पापा अंकल से दो पोस्ट नीचे थे.इस अंतर को ऑफिस से लेकर घर तक पूरी तरह मेंटेन किया जाता था.न ही हम दोनों परिवार में बहुत अधिक घनिष्टता थी और न ही दूरी.
रागिनी मुझसे तीन साल छोटी और मेरी छोटी बहन बबली से साल भर बड़ी थी।दूध सी गोरी चिट्टी बड़ी बड़ी आँखों वाली रागिनी किसी की भी आँखें बांध लेती थी पर उम्र के साथ साथ स्पष्ट अनुभव किया जाने लगा कि उसका मेंटल और फिजिकल ग्रोथ एक सामान नहीं हो रहा था. उनके सामने हमारी बबली थी जो इतनी तेज थी कि जैसे लगता था मानसिक परिपक्वता में वह रागिनी से न जाने कितने साल बड़ी है॥
आंटी ने न कभी अपना हारना बर्दाश्त किया था और न ही वो अपने बच्चों का किसी भी बात में किसी से भी कम होना बर्दाश्त कर सकती थीं।रागिनी की कमजोरी भी वह बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर पाती थीं॥जब उन्होंने डाक्टरों को दिखाना शुरू किया और उन्होंने भी इस बात से सहमति जताई कि रागिनी पूर्णतः मंदबुद्धि तो नहीं पर उसका दिमागी विकास सामान्य बच्चों से कुछ धीमा जरूर है..तो भी आंटी यह मानने को तैयार न थी कि उनकी बेटी में इस तरह की कोई कमी हो सकती थी.
वो बहुत ही फ़्रसटेटेड रहने लगीं।उनका सारा गुस्सा अंकल और रागिनी पर निकलता था.जैसे जैसे रागिनी बड़ी हो रही थी अंकल आंटी की बढती चिंताओं के साथ डाक्टरों के पास उनका भाग दौड़ भी बढ़ रहा था.पर कोई बहुत अधिक सुधार होता नहीं दिख रहा था॥दस बारह वर्ष की उम्र में भी उसकी बुद्धि पांच छः वर्ष के बच्चे से अधिक न थी.बहुत ही सरल और भोली थी वह.बल्कि कहा जाय कि न ही यह दुनिया इस सरल भोली लडकी के लायक थी और न ही इस समझदारों की दुनिया में इसकी सच्ची क़द्र थी..
भोलेपन में की गयी उसकी हरकतें बड़ी अजीब हुआ करती थीं। वह करीब ग्यारह साल की थी.एक दिन वह मेरे साथ कहीं जा रही थी. उसने मुझसे कहानी सुनाने की जिद की तो मैं उसे एक कहानी सुनाने लगी.आंटी के यहाँ एक बड़ा सा कुत्ता था जो कि रागिनी का बेस्ट फ्रेंड था॥रागिनी को कुत्ते बहुत पसंद थे सो मैं उसे कुत्तों की ही कहानी सुनाने लगी......अचानक उसे क्या हुआ कि उसने मुझे कहा...दी, पता है डॉगी कैसे शूशू करता है और जबतक मैं उसे पकड़ती सम्हालती,सड़क किनारे पैंटी खोलकर लैंप पोस्ट के ऊपर पैर उठाकर उसने शू शू कर दिया..आते जाते लोग हंसते हुए खड़े हो गए.मैंने झपटकर उसे पकडा और लगभग घसीटते हुए घर ले कर आई और घर पहुंचकर उसे एक चांटा लगाया.बेचारी गाल सहलाती रह गयी कि इसमें बुरा क्या किया उसने....
दुनियादारी से पूरी तरह अनजान ,इतनी भोली और मासूम थी वह कि बहुत सी सामान्य बातें वह समझ ही नहीं पाती थी।पढाई की बातें भी उसे समझ नहीं आती थी.अब चूँकि कंपनी का ही स्कूल था तो हरेक क्लास में किसी में साल भर किसी में दो साल तक फेल होने पर अंकल का लिहाज कर उसे प्रोमोशन दे दिया जाता था.पर अंकल आंटी बहुत ही चिंतित थे रागिनी के भविष्य को लेकर...
संयोग से एक बार कंपनी ने अपने कर्मचारियों के मेंटल फिटनेस के लिए सात दिवसीय योग साधना शिविर आयोजित कराया..आयोजन इतना सफल रहा कि अगले महीने इसे कर्मचारियों के परिवार वालों के लिए भी आयोजित कराया गया.माँ पापा के कहने रागिनी को भी आंटी शिविर में ले गयीं...
आश्चर्यजनक परिणाम मिले...आजतक वर्षों से खिलाई जा रही सारी दवाईयां जो न कर सकी इस सात दिन के शिविर ने वह चमत्कार कर दिखाया॥
योग गुरु ने दावा किया कि अधिकतम साल डेढ़ साल में वे रागिनी को पूरी तरह ठीक कर देंगे...अंकल आंटी के खुशी का पारावार न रहा था।लेकिन समस्या यह थी कि तो अस्थायी शिविर था.योग आश्रम में अकेले रागिनी को लम्बे समय तक छोड़ना भी मुश्किल था॥
अंकल ने हाइयर मैनेजमेंट से बात कर यह व्यवस्था करवा दी कि योग आश्रम का एक योग प्रशिक्षक वहीँ कम्पनी के पे रोल पर बहाल कर दिया जायेगा जो रेगुलर बेसिस पर स्कूल में योगा क्लासेस लिया करेगा और कम्पनी के कर्मचारियों तथा उनके परिवारवालों के लिए भी नियमित कार्यशालाएं आयोजित करवाया करेगा।
जब से रागिनी इस योग क्लास को रेगुलर अटेंड करने लगी थी,उसमे अप्रत्यासित सुधार होने लगा था।पढाई में भी अब उसे बहुत दिक्कत नहीं रही थी॥योगा टीचर तो अंकल आंटी के लिए भगवान् बन गए थे.अंकल आंटी उन्हें अपने सर माथे पर बिठाते थे.वे जब चाहें उनके घर आ जा सकते थे..एक तरह से रागिनी के गार्जियन वही हो गए थे. बीच बीच में रागिनी को उनके साथ विशेष प्रशिक्षण के लिए आश्रम भी भेज दिया जाता था.
रागिनी का ऐसा काया पलट हो रहा था की उसका एक नया ही रूप सब देख रहे थे। दो साल पहले मैं तो शहर के कालेज होस्टल में रहने लगी थी पर बबली से रागिनी के बारे में बहुत कुछ सुनती रहती थी.बबली की खूब बनती थी उसके साथ.
उन्ही दिनों जब मैं होस्टल में थी,एक दिन अप्रत्यासित रूप से माँ ने फोन पर ऐसी खबर दी कि मैं अन्दर तक हिल गयी।
रागिनी ने आत्महत्या कर ली थी।अपने कानो पर मुझे बिलकुल भी भरोसा न हुआ॥माँ ने बताया कि सुबह करीब दस बजे गुप्ता आंटी ने फोन कर बबली को बताया कि रागिनी उसे बुला रही है॥बबली जब उनके घर पहुँची तो आंटी ने कहा कि रागिनी नहाने गयी है और उसे इन्तजार करने को कहा है..आधे घंटे इन्तजार करने के बाद भी जब रागिनी बाहर नहीं आई तो आंटी ने बबली से कहा कि जाओ उसे आवाज दो..बबली ने बाथरूम के दरवाजे के बाहर से उसे तीन चार आवाजें लगायी पर अन्दर केवल पानी गिरने की आवाज आती रही रागिनी ने कोई जवाब नहीं दिया...
बबली चिढ़कर आंटी के पास जाकर बोली कि आंटी वह पता नहीं और कितने देर नहायेगी,मैं जा रही हूँ निकलने पर उसे कह दीजियेगा वही मेरे पास आ जाय।आंटी ने बबली को साथ लेकर यह कहते हुए कि चलो उसे डांटती हूँ बाथरूम तक ले गयी और कई आवाजें लगायी.जब अन्दर से कोई आवाज नहीं आई तो उन्होंने दरवाजा ठेला और अन्दर देखा कि रागिनी के गले में चुन्नी बंधी हुई थी जिसका छोर वेंटिलेटर में बंधा हुआ था.
केस पुलिस तक पहुँची। कालोनी क्या आस पास के पूरे इलाके में खबर तूफ़ान सा फ़ैल गया॥केस के गवाह में बबली का नाम भी फंसा और उसके दोस्तों के फेरहिस्त में मेरा नाम भी आया था.पूरी सम्भावना थी कि पुलिस मुझसे भी पूछताछ करती.माँ ने इसी वजह से मुझे फोन किया था कि अगर पुलिस आकर मुझसे होस्टल में या घर आने पर पूछती है तो उन्हें बस इतना ही बताना था कि रागिनी अपने पढाई में पिछड़ने को लेकर बहुत ही हतास और फ़्रसटेटेड रहा करती थी और हमेशा सुसाईट की बातें किया करती थी,हो सकता है इसी वजह से उसने ऐसा किया हो....
यह सरासर गलत था ...मैं जितना जानती थी रागिनी को कभी उसे हतास परेशान नहीं देखा था या ऐसा कोई भी कारण नहीं महसूस किया था जो उसे आत्महत्या करने को मजबूर करता...फोन पर माँ से बहुत पूछा कि इस अनहोनी की वजह क्या हो सकती है,पर माँ ने कुछ नहीं बताया।
मेरे दिमाग में सवालों ने भूचाल मचा दिया था।किसी तरह विश्वास नहीं हो रहा था कि जिस रागिनी को बात बात पर इतना डर लगता था,जो पिछले कुछ सालों से अपने सफलता से इतनी खुश रहने लगी थी, जिसे आंटी के फ्रस्टेशन और गुस्से को सहने की आदत पड़ी हुई थी और ये कभी भी उसे विचलित नहीं करते थे... वह आत्महत्या जैसा कदम कैसे उठा सकती थी......
जिस वेंटिलेटर से लटकने की बात हो रही थी,वह वेंटिलेटर तो पांच ही फिट ऊपर था,उसपर कैसे लटका जा सकता था....माँ ने कहा फंदा गले में लगा था और वह बाथरूम में बैठी हुई थी...ऐसे मरना कैसे संभव था...मेरा सर फटा जा रहा था इन सवालों के जवाब पाने को....
भागी हुई मैं घर पहुँची थी।बबली इस हादसे से इतनी डर गयी थी कि उसे कम्पोज का इंजेक्सन देकर कई दिन तक सुलाए रखा गया था।माँ पापा तथा डाक्टरों की सख्त हिदायत थी कि बबली के सामने उस हादसे का कोई जिक्र न किया जाय. मैं तो अपने सवालों के जवाब पाने के लिए बस छटपटा कर रह गयी थी, उससे कुछ पूछने का रास्ता ही बंद हो गया था....
केस को तो किसी तरह पुलिस के साथ गंठजोड़ कर निपटा दिया गया था...पर जो सवाल उठे थे उन्हें कैसे खामोश किया जा सकता था।सालों तक वह हवाओं में तैरता रहा॥
घटना के सात महीने बाद गुप्ता अंकल ने यह कंपनी छोड़ एक विदेशी कम्पनी ज्वाइन कर लिया और सपरिवार भारत को अलविदा कह वहीँ जा बसे।
कई महीनो बाद एक दिन अचानक माँ पापा और राजन अंकल जो कि गुप्ता अंकल के सहयोगी थे और जिन्होंने गुप्ता अंकल के केस के निपटारे में बड़ा ही महत्वपूर्ण रोल निभाया था,उनकी फुसफुसाती आवाजें मेरे कानो में पड़ गयी और उन कुछ वाक्यों ने मेरे सारे सवालों के जवाब मुझे दे दिए...
पोस्ट मार्टम में खुलासा हुआ था कि रागिनी तीन महीने की गर्भवती थी और उसकी शरीर की कई हड्डियाँ टूटी हुई थी।शरीर पर गहरे घावों के निशान पाए गए थे.... पर जो पोस्ट मार्टम रिपोर्ट दर्ज हुई उसमे से ये सारी बातें लाखों रुपये के झाडू से साफ़ कर दिए गए थे॥फाइनल रिपोर्ट में इस केस को सिंपल आत्महत्या का केस करार दिया गया था...
एक मासूम जान चली गयी ..........असली गुनाहगार कौन था ........
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42 comments:
ये सिर्फ एक महिला की कहानी नहीं घर घर में फैला एक ऐसा आतंक है जिसके कारन अब लड़की शादी करने से डरती है.......
लेकिन उसके दिमाग में तो अपने घर वालों की बातें घुमती है.....की लड़की पराया धन है.....यथार्थ
उसका अपना जीवन भी उसका नहीं.........
हर तरहां के रिश्तों की डोर में बंधी एक कठपुतली.....
आपने सही विषय उठाया है.......धन्यवाद
मैंने भी कुछ लिखा है...आप जरुर देखिएगा......
अक्षय-मन
पढकर हिल गया। दिमाग में कई सवाल घूमने लगे है। आपने सही समस्या को उठाया है अपनी पोस्ट में।
'इज्जत' बहुत कीमती होती है...गुप्ता अंकल विदेश में रहकर अपनी इज्जत में इजाफ़ा कर रहे होंगे.
kahani अच्छी लगी ।
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति रही आपकी
बधाई
क्या मां ऎसी भी होती है ? बच्चे गलती भी करते है , उन्हे सजा भी देनी चाहिये... लेकिन इतनी भयंकर सजा तो शायद कोई डायन भी ना दे अपने बच्चे को, आप की यह कहानी मुझे अंदर तक हिला गई, ओर हमे जबाब भी मिल गया.
बहुत ही संवेदन शील मुद्दे पर आलेख लिखा है. सुन्दर प्रस्तुति .
samaaj kyun ek masoom ladki ko sazaa deta hai,wah garbhwati ho gai,to paap !aur jisne yah kukritya kiya?????????
ishwar insaaf kare
पूरा वाक़या ..कहानी.या हकीकत..जो भी था. बार बार पढा..समझ नहीं पा रहा हूँ की क्या लिखूं..आपने अद्भुत लिखा है इसमें कोई शक नहीं..शैली और रवानगी दोनों ही बेजोड़ लगी...जहां तक मैं समझा ..गुनाहगार वो योग गुरु ही honge ...मगर एक बात मेरी समझ में नहीं आयी की उन आंटी ने जो आपके अनुसार बहुत ही जीवट किस्म की थी आखिर ऐसा क्यूँ हो जाने दिया...सच कहूँ तो ये पराकाष्ठा थी अन्याय की...
bahut dardanak hai ye....! kuchh kahate nahi ban raha
पैसा आज सबके सिर पर चढ कर नाच रहा है। हालांकि यह अत्यंत दुखद है, पर किया भी जा सकता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
इस कहानी ने दिमाग मे बहुत उथल पुथल मचा दी. सही कहूं तो झकझोर कर रख दिया.
रामराम.
दर्दनाक हादसा लिखा है यह आपने ..आज किस कदर इंसान अपनी सब भावनाएं खो रहा है ,यह इस दर्दनाक घटना से साफ़ पता चलता है ..इस तरह के समाज को देख कर लगता है कि यहाँ हर कोई अपने स्वार्थ के बारे में अधिक सोचता है .रिश्ते सब झूठे लगते हैं ..चाहे वह कितने ही करीब के क्यों न हो ...उस योग गुरु ने एक अमानवीय व्यवहार उस मासूम के साथ किया जो अपने आस पास की दुनिया को समझने की कोशिश करने में लगी थी ..पर घर से उसको जो मौत मिली वह तो न कभी माफ़ करने वाली है ,न भूलने वाली ...घर वाले चाहते तो उस योग गुरु को सबक सिखाते .पर उनका जोर भी उस मासूम पर ही चला जो शायद समझ भी न पायी हो की उसके साथ क्या घट गया है ..यही है हमारे समाज के आज की तस्वीर.... इज्जत के साथ दुनिया के किसी कोने में रह ले वह पर क्या कभी वो उस मासूम चेहरे को भूल पायेंगे ...बहुत गहरा असर किया है आपकी लिखी इस घटना ने .... कई दिन तक दिलो दिमाग को कुरेदती रहेगी यह ..
"जो पोस्ट मार्टम रिपोर्ट दर्ज हुई उसमे से ये सारी बातें लाखों रुपये के झाडू से साफ़ कर दिए गए थे..फाइनल रिपोर्ट में इस केस को सिंपल आत्महत्या का केस करार दिया गया था..."
bahut hi dardanaak vakya. kya kahe ?
ये सिर्फ बानगी है है या हिस्सा है हमारे आस पास के ढके समाज का ....अनेको मौत वजह की तलाश में आज भी अपने साथ अपने अपने कारण लेकर दफ़न है ......मैंने अनेको परिवारों को किसी सदस्य को मानसिक रोग को देखते बूझते भी उसे अस्वीकार करने की इस सहज प्रवति से गुजरते देखा है ...नुकसान किसी अबोध को उठाते देख ......या किसी मानसिक रोगी या थोडा मंद बुद्धि के लड़के के साथ किसी गरीब लड़की को घुट घुट कर जिंदगी गुजारते .जैसे सार्वजनिक तौर पे हम उस पे बिना बोले तरस देते है ...
कोई भी आत्महत्या किसी एक की नहीं होती है ...उसमे एक समूह हिस्सेदार होता है ..घर परिवार या कोई भी.....
इसलिए हमें अपने शरीर की किसी बात पे गर्व नहीं करना चाहिए ....ये ईश्वर का अभयदान है जो उसने हमें एक स्वस्थ शरीर या मस्तिष्क दिया ...सोचने वाली बात ये है की हमने उससे अब तक क्या किया ...
dardnaak haadsa hai ek bholi bhali ladaki ke liye jindagee kadam kadam par chhalawa bhejati hai.....rongate khade ho gaye.....asamaajika tatwa ki bakhiyaudhedta sach ......yani ki samaaja sirf samaajik tatwa se nahi balki asmaajika tatwa se bhi bani hai.yah ek gambheer samasyaa hai
रंजना जी,
आपने बहुत उद्वेलित करने वाला लेख लिखा है...
किन्तु एक प्रश्न अधूरा छोड़ दिया...
कौन था असली गुनाहकार??
१) आंटी की मानसिक दशा का...
- समाज और हमारे कुछ तकबों की पिछडी मानसिकता.
२) रागिनी की दशा का..
- गर्भवती होने का?? > यह उत्तर तो अधूरा है.. आपके कई पाठकों ने योग गुरु पर शक किया है.. और उससे मैं बहुत विचलित हूँ... इससे थोडा बहुत दाग लग जाता है हजारों लोगों पर जो निस्वार्थ भाव से योग सिखातें हैं.. मैं इस तरह के चित्रण से सहमत नहीं हूँ... क्षमा करें.. पर कई बार देख चुका हूँ की साहित्य में गुरु, बाबा, साधू, संन्यासी आदि बहुत आसानी से नकारात्मक रूप में दिखाए जाते हैं... बहुत कम बार देखने को मिलता है की इन लोगों को सकारात्मक रूप में दिखाया गया हो..
- मौत का?? > शक की सुई जाती है आंटी या अंकल पर.. बहुत ही मार्मिक बात है.. कोई अपनी पुत्री को कैसे मार सकता है!!
मैं इससे अन्दर से हिल गया हूँ... पुनः आंटी की दशा का जिम्मेदार कौन है??
~Jayant
AAPKI YE KAHAANI APNE CHARO TARAF GHATIK GHATANAWON SE RUBARU KARAATI HUI HAI ... BAHOT HI KARINE SE AAPNE AAPNI BAAT KO BEBAAKI TAUR SE RAKHAA HAI .... IS HAUSALE KI LIYE BAHOT BAHOT BADHAAYEE AAPKO...
ARSH
दर्दनाक वाकया
dard kee yeh dastan kewal ek ghatna nahin hai varan samaj kee jhoothi sachchaiyon ko ujagar karti hai.
jhakjhorane wali rachana.
क्या कहूँ आँखों मे आँसू गये हैं ये हमारे समाज को क्या हो गया है इसमे किस का कसूर कहें मा-बाप का या सारे समाज का सम्वेदनाये मर्यादायें खत्म हो रही हैम सिर ऐसी घटनायें आब आम हो गयी हैंआदमी इतना बहशी केसे हो सकता है निशब्द हूँ
ये कैसी अजब दास्ताँ हो गयी है..
छुपाते छुपाते, बयाँ हो गई है :-((
दिमाग मे बहुत उथल पुथल मचा दी
अन्दर तक हिला कर रख दिया ...इस पूरे वाक्ये ने
कहानी कहना इस आलेख का अपमान करना होगा, यह तो ज़मीनी हक़ीक़त है....बहुत बढ़िया लिखा आपने......मगर कुछ प्रश्न अनुत्तरित रह गए हैं, जिनका खुलासा शायद आप अपनी अगली पोस्ट में करेंगी, ऐसी उम्मीद है...
साभार
हमसफ़र यादों का.......
एक (दो) निर्दोष जीवन का बहुत दुखद अंत. एक बच्चे का जानता हूँ जो कहता था, "एक दिन मैं सब मांसाहारियों को अपने घर बुलाऊंगा और उन्हें रोटी खिलाऊंगा." अगर मैं वह बच्चा होता तो यही कहता कि सभी वयस्कों को स्कूल बुलाऊंगा और इंसानियत सिखाऊंगा. कहानी बहुत प्रभावशाली है. शर्म की बात है कि ऐसा सब वास्तविक जीवन में होता है और निर्दोष लोग दूसरों के पापों के लिए बलि देते हैं.
रंजना जी
बहुत ही संवेदन शील घटना के माध्यम से समाज नें फैली इस समस्या को उठाया है आपने.......... हमारे आस पास ऐसे कितनी ही घटनाएं मिल जाती हैं जो इस बात का आभास करा जाती हैं की हम कितने संवेदन हीन हो गयी हैं.......... स्वार्थ भरी इस दुनिया ने मानवी रिश्तों और संवेदनाओं को मर दिया है....... व्यक्तिगत महत्त्व उंचा हो गया है ............... अपने सपने bacchon के माध्यम से पूरा करना चाहते हैं......... अपनी नाक, अपना नाम बस ये ही सबसे ऊपर हो गया है...........
dardnaak hai...
vishvas uth jaata hai kanoon se aur insaan se bhi...
आपकी कलम मे जादू है. पूरा चित्र आपने शब्दों से खींच दिया.....
लिखते रहिये.. मेरी शुभकाम्नायें
नोएडा के चर्चित आरूषि कांड से प्रभावित लगती है यह रचना...
जीव एवं जीवन के प्रति प्रश्नचिन्ह उकेरती हुई..
खैर....
RANJANA KEE KAHANI MEIN VE SABHEE
VISHESHTAAYEN HAIN JO ACHCHHE
KAHANI MEIN HOTEE HAIN.EK SANVEDAN
SHEEL KAHANIKAAR SE AESEE HEE
KAHANI KEE APEKSHA KEE JAA SAKTEE
HAI.MEREE NANA BADHAAEEYAN.
bhut hi drdnak khani .aisi township vali colonys me is trhki ki bato ko aisa hi anjam diya jata hai aur unche pdo par baithe logo ka pad aur uncha ho jata hai .apni jhuthi mryada ko bachane keliye inke liye rishto ka koi astitv nhi hai.
एक बडा उलझा सा सवाल देकर कहानी बंद कर दी है आपने । किसने मारा रागिनि को । क्या उसे योग-शिक्षक से प्रेम हो गया था जो कि गुप्ता साहब के पद के अनुकूल नही था इसीसे......... ।
रंजना आप की आप बीती ने दिल को झकझोर दिया...बेचारी रागनी
इसे पढ़ने के बाद मन में कई प्रश्न उठ खड़े हुये हैं। बहुत दुखद, दर्दनाक वाकया।
एकदम उलझ कर रह गया....नहीं, आपकी लेखनी से नहीं। लेखनी तो आपकी माशल्लाह हमेशा की तरह लाजवाब, स्पष्ट और सम्मोहक है....
कहानी के अंत का प्रश्न खुद ही कई प्रश्न खड़े कर दे रहा है...क्या कहूँ?
मन एकदम से विचलित सा हो गया
कहानी का कथानक कहानी को आवेग प्रदान करता है पर लेखिका को अपने स्तर से अंग्रेजी शब्दों के बारम्बार प्रयोग से परहेज करना चाहिये-यथा; स्मार्ट,ग्रेजुएसन ,ला,ज्वाइन , डिप्रेस ,इंगेजमेंट,मेंटेन,फ़्रसटेटेड ,बेस्ट फ्रेंड हाइयर ,रेगुलर अटेंड ,इत्यादि।
फिर भी रंजना जी की कहानी लेखन पर पकड़ के कारण कहानी का उत्कर्ष पाठक को बांधे रखता है जो इसकी सफलता की ओर इंगित करता है।- सुशील कुमार, चाईबासा से।
bahut hi dardnak......
असली गुनहगार तो हमारा समाज है, जो ऐसी घटनाओं को देखने के बाद भी चुप रह जाता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
sanvedna sansar ...sach hi to hai .
aapne aapne bahut soch samajhkar naam diya hai blog ko......
आये दिन इस तरह के किस्से सुन-पढ़ कर हमारी संवेदनायें मानो खत्म सी हो गई है, अब इस तरह की खबरें सुन कर कुछ मिनिटों के लिये ही हम विचलित होते हैं फिर सामान्य हो जाते हैं।
रागिणी की जैसी कई बच्चियां रोज रोज प्रताड़ित की जाती है- मारी जाती है।
बहुत ही मार्मिक कथा, आपकी लेखनी ने हमें हिलने नहीं दिया, बहुत सुन्दर बहाव लेखन का...
Jesa socha...vesa ant paaya....
par haqiqat mein ye 1 dil ko hilaane wani katha hai....mujhe apni likhi kuchh panktiya yaad aa gayi...
जाने कैसे इतने बेदर्द बन जाते है लोग...
जाने कैसे वादा कर के मुकर जाते है लोग...
ख्वाब में भी जो सोच नही पाते हम...
जाने कैसे वो कर गुजर जाते है लोग....
बातें करके चाहतों की कैसे कत्ल कर जाते है लोग...
सीरत में अपनी वफ़ा दिखा के कैसे दगा दे जाते है लोग...
सूरत से भी किसीकी क्या पहचान करें ....
चेहरे पे कई कई चेहरे लगा लेते है लोग....
रुलाके किसीको कैसे ठहाका लगा लेते है लोग...
गिराके किसीको कैसे मंजिल पा लेते है लोग...
वक्त तो हर एक का आता है इस दुनिया में....
फ़िर किस तरह अपना "वक्त" आने पर खुदा से नजरे मिलाते है ये लोग....
www.vishnusaboo.blogspot.com
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