सरला - क्या यार...कितने देर से तुझे फोन लगा रही हूँ.. कॉल जा रहा है पर तुझे तो उठाने की फुर्सत ही नहीं...
रीमा- अरे यार , मार्केट गई थी, शाम के लिए गिफ्ट खरीदने. मोबाइल पर्स में था, भीड़ भाड़ में सुनाई नहीं पड़ा.अभी तो घर पहुंची हूँ.
सरला - मैं भी तो इसी लिए तुझे खोज रही थी.....सुन,,,शाम को इक्कठे चलेंगे. तू अपनी गाडी न लेना ,मैं इनके साथ आउंगी और तुम दोनों को पिक कर लूंगी...साथ चलेंगे तो मजा आएगा..
रीमा - हाँ..हाँ, क्यों नहीं...
सरला - देख न, समझ में नहीं आ रहा कि गिफ्ट क्या लूँ.....वैसे तूने क्या लिया ??
रीमा - वियाग्रा...शिलाजीत !!!!
सरला - हा हा हा हा...
रीमा - हा हा हा हा...बता न.... और क्या दिया जाय ???
सरला - हाँ ,बोल तो सही ही रही हो..
बताओ न,यह भी कोई उम्र है शादी करने की??? पचास तो पार हो ही गया होगा, नहीं ???
रीमा- पचास नहीं रे...बावन...!!!
सरला - ओह !!!
सुना है, तीनो बच्चों ने विद्रोह कर दिया है..
रीमा - हाँ, और क्या..दोनों बेटे तो हॉस्टल से आये भी नहीं है..छोटी बेटी ने तो अपने को कमरे में कैद ही कर लिया है जब से चोपड़ा जी इंगेजमेंट कर के आये हैं.. किसी से मिलती जुलती नहीं, खेलती घूमती नहीं..दादी बुआ और चाचियाँ समझा कर थक गए हैं....
सरला - सही तो है...इस उम्र में बच्चे सौतेली माँ बर्दास्त कैसे करेंगे,उसपर भी जबकि उसे गुजरे ढेढ़ साल भी न बीते हों..आसान नहीं है बच्चों के लिए....
अच्छा,लडकी का पता है ???? सुना है, एकदम जवान है, सत्ताईस अट्ठाईस की ...
रीमा - हाँ रे,, सही सुना..
सरला - विधवा तलाकशुदा है या कुआंरी है ????
रीमा- एकदम कुआंरी ???
सरला - सोच तो क्या देखकर माँ बाप ब्याह रहे हैं इस बुढाऊ से ???
रीमा - देखेंगे क्या..पद है, पैसा है, रुतबा है और शरीर भी कोई ऐसा ढला हुआ तो है नहीं. दिखने में चालीस से ज्यादा के नहीं दीखते ...और लडकी बेचारी पांच बहन है.एक कलर्क पाँच पाँच बेटियों के लिए जवान और कमाऊ लड़का कहाँ से खोजेगा ??? वो तो भला हो कि चोपड़ा जी ने उनका उद्धार कर दिया उसका...
सरला - सही कह रही हो..
रीमा - लेकिन एक बात है,उद्धार करना ही था तो तेरी पड़ोसन का करते तो ज्यादा अच्छा होता.... नहीं??????
सरला - तू भी तो बात करती है. चोपड़ा जी इसका उद्धार करते तो फिर बेचारे मजनूँ का कौन करता ?????
हा हा हा हा....
रीमा - हा हा हा हा...वो तो है...
वैसे क्या चल रहा है अभी ???
सरला - अरे तुझे बताना भूल गई ..पता है, परसों क्या हुआ, कि मेरा एक कजिन देल्ही से हमारे यहाँ आया...ट्रेन लेट हो गई थी, रात साढ़े ग्यारह के बदले यह भोर चार बजे पहुंची ....उसके लिए दरवाजा खोला ,तो देखती क्या हूँ, कि मजनू मियां मैडम के छोटे बेटे को गोद में उठाये फ़्लैट के नीचे लिए चले जा रहे हैं और मैडम बड़ी बेटी को घर में ही सोती छोड़ दरवाजा बंद करके उनके पीछे जा रही हैं...यूँ तो मैं नहीं टोकती,पर मुझसे रहा न गया तो मैंने पूछ ही लिया, कि क्या हुआ ,कहाँ जा रही हैं इतनी रात को...तो कहने लगीं, बेटे की तबियत बहुत बिगड़ गई है ,डॉक्टर के पास जा रहे हैं....
अब बता, इतनी सुबह जो घर से निकले, मतलब रात भर मजनू मियां इनके घर ही रहे होंगे...
पहले पहल तो जब आना जाना शुरू हुआ था तो मैडम कहतीं थीं,कलीग हैं,,, मदद कर देते हैं...बच्चों को पढ़ाने आते हैं...
फिर देखा वो साहब इनकी सब्जी भाजी और राशन भी ढ़ोने लगे और अब तो कोई हिसाब ही नहीं कि कब आयेंगे और कब जायेंगे...
रीमा - ऐसा ही है तो दोनों शादी क्यों नहीं कर लेते ????
सरला - पागल हुई हो क्या ????? सब टाइम पास है ???? जवान है हैंडसम है ठीक ठाक पैसा कमाता है,उसे कुआंरी लडकी नहीं मिलेगी क्या जो सैंतीस अडतीस साल की दो बच्चे की अम्मा से शादी करेगा...वैसे तुझे बता दूं..मैंने सुना है कि इसकी शादी कहीं फिक्स हो गई है..दो तीन महीने के अन्दर ही हो जायेगी...
रीमा - हाय !!! फिर मैडम का क्या होगा....
हा हा हा हा...
सरला - होगा क्या ?? कोई और मिल जायेगा..इतनी सुन्दर हैं, दिखने में चौबीस पच्चीस से ज्यादा की नही लगतीं ... ऐसी सुन्दर बेवाओं के पीछे घूमने वालों की कोई कमी थोड़े न होती है...
रीमा - सही कहा रे...अच्छा अपने मियां को बचा कर रखना ..कहीं वो भी न ट्यूशन पढ़ाने निकल पड़ें...हा हा हा हा...
सरला - अरे यार..ये टेंशन तो कभी पीछा नहीं छोडती..इसलिए तो न खुद उधर झांकती हूँ ,न इन्हें झाँकने देती हूँ..
रीमा - सही कहा रे...गजब टेंशन है ये भी..मरद जात का कोई भरोसा नहीं..
अच्छा चल तुझसे बाद में बात करती हूँ..पार्लर वाली आ गई है.. फेसियल कराने के लिए उसे यहीं बुला लिया है..पार्लर की भीड़ मुझे नहीं जमती....
चल शाम में मिलते हैं...देखें बूढ़ी घोडी की लगाम कैसी है...
हा हा हा हा....
चल बाय !!!
रीमा - ओके... बाय !!! शाम में मिलते हैं..ठीक आठ बजे...
ओके...!!!
.............
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31 comments:
इस संवेदनाहीन समाज में ऐसे ही गपशप होते हैं... खोखलेपन को उजागर करती अच्छी रचना है...
जीवन में कुछ होते रहने की सनक यहाँ तक ले जाती है, ठण्डे दिमाग से बैठकर सोचें, इन सबसे परे भी है, सुखों की दुनिया।
अरुण राय जी से सहम्त हूँ। रिमा, सरला तो आज कल गली गली मे है। समय कैसे बितायें निट्ठली रिमायें सरलायें। वो ब्लागर थोडे ही हैं । हा हा हाशुभकामनायें।
अरुण जी और निर्मला जी ने सब कह ही दिया …………दोनो से सहमत हूं।
वैसे, पति को बान्धने वाला एलेक्ट्रोनिक, इंविज़िब्ल पट्टा बाज़ार में आ गया है। परायी स्त्री को देखते ही आंख में भूत-जोलोकिया का कन्संट्रेटेड अर्क गिर जायेगा।
इस बातचीत के माध्यम से समाज का परदे में छिपा हुआ दृश्य दिखाया है आपने।
अरे बाप रे... ऎसी पडोसनो से तो भगवान ही दुर रखे, ताकंती झकंती नही तब भी इतनी खबर रखती हे, अगर तांक झांक करेगी तो.....तो बस खुदा मालिक तोबा तोबा,
अन्तहीन बातें....
दूसरे के फटे में टांग अडाना इसी को कहते हैं ..खुद के गिरेबान में नहीं झांकते , पड़ोस में क्या हुआ इसकी खबर रहती है ...
kash koi inhe blog jagat se hi avgat kara de...vaise aajkal antarjaal me blogjagat bhi to apvad nahi raha.
hmmmm bas aap serial ki scriptwriter ke liye bilkul fit hain :)
बहुत ही बढ़िया पोस्ट. हमारे समाज से संवेदना धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है. दोनों सहेलियों की बातचीत यह बहुत ही अच्छे तरीके से दर्शाती है.
रंजू जी!
सम्वादों के माध्यम से आपने उस आडम्बर को उजागर किया है जो आज तथाकथित उच्च मध्यमवर्ग में व्याप्त है.
लगता ही नहीं कि एक महिला ने, दो महिलाओं की गॉसिप में एक तीसरी महिला का चरित्र चित्रण(?) किया है!!
लाजवाब व्यंग्य!!
यही आज समाज की स्तिति है........ जो संवादों द्वारा आपने व्यक्त कर दी ...
निठ्ठल्लों का यही कर्म है।
कभी मर्दों के बीच की बातें भी इसी तरह लिख देखिएगा। सौ से गुणा करना पड़ सकता है।
संवेदनहीनता कहे या सामाजिक ढांचे का खोखलापन , करारा व्यंग .
अलग अंदाज से आपने समाज के इस अंश का सच बयान किया।
..बधाई।
क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
आशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.
आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं
सादर
डोरोथी
hmm...
बातें तो बातें है ...इन लोगों का टाइम पास ...किसी की जिंदगी का सवाल !
रश्मि जी , ये संवेदनहीन समाज की अच्छी गोशिप है. हम आधुनिक जो दिन पर दिन होते जा रहे............ बहुत ही अच्छी प्रस्तुति सोंचने पर मज़बूर करती हुई .
फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
बचपन में गाते थे - लिल्ली घोड़ी, लाल लगाम।
बहुत हैं लिल्ली घोड़ियां मध्यवर्ग में!
आज दिनों बाद आया हूँ इधर दीदी तो इस मजेदार गपशप ने अपने आस-पास का बेरहम चित्र दिखा दिया...
सच में ऐसी बातें करने वाली औरतो के पास बहुत टाइम होता हैं ,ये समझती नही की सबकी अपनी व्यक्तिगत जिंदगी होती हैं .खैर बहुत सारे चुभते हुए कटु सत्य हमारे समाज के फिर से एक बार आपकी पोस्ट में थे दी .आपकी पोस्ट हमेशा दिल को छूती हैं और दिमाग को झकझोर देती है
सामाजिक अवमूल्यन पर अच्छा व्यंग किया है ..
रंजना जी,
कहानी समाज के चेहरे से मुखौटा नोच कर लुप्त होती संवेदना को प्राणवान करने का आग्रह समेटे हुई है !
संवाद में प्रवाह है जो पाठकों को बाँध सकने में सक्षम है !
धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
यह कहानी बहुत से सवालों को जन्म देती हुई तो कई का जवाब देती हुई सी महसूस हुई बेहतरीन प्रस्तुति के लिये आभार ।
संवेदनहीन होते समाज का बेहद सटीक चित्रण. आभार.
सादर,
डोरोथी.
vartman ka bahut sahaj-saral chitran.
समाज का सच यह भी है
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