भइया, सुनो पते की बात
जो तुमको बनना हो नेता
तो मारो शरम को लात.
भैया, सुनो पते की बात ...
झूठ, कपट, चोरी, बेईमानी
साध इसे करना मनमानी
दीन धरम और नीति की बातें
केवल मुख से है चुभलानी,
जो कभी भाव ये ह्रदय विराजे,
तो जायेगी जात...
कि भैया सुनो पते की बात...
पढना लिखना पाप समझना ,
पर जुगाड़ के डिग्री रखना ,
सात्विक बातें , मोहक वाणी,
सुथरे कपडे पहन के ठगना,
अगर नहीं कर सकते तिकड़म
नहीं बनेगी बात...
ओ भैया सुनो पते की बात..
पहले अस्त्र शस्त्र चमकाओ,
जन मन में आतंक बसाओ,
फिर जा बैठो नेता के दर ,
राजनीति में छवि चमकाओ,
फहराओ गर भय का झंडा
तभी बढे औकात...
कि भैया सुनो पते की बात..
सत्ता की बस यही कला है
इसी पे चलकर हुआ भला है
सद्विचार संस्कार धर्म ने
राजनीति को सदा छला है
छाया भी तेरा प्रतिद्वंदी है
दे न रहा यदि साथ....
कि भैया सुनो पते की बात...
एक बार जो कुर्सी धर ली
समझो भवसागर ही तर ली,
माल बनालो ऐसे जमकर
दस पुश्तों के जनम सुधर ली.
राजा के सम नहीं जिए तो..
जीने में क्या स्वाद ..
कि भैया सुनो पते की बात..
जो तुमको बनाना हो नेता
तो मारो शरम को लात.
कि भैया सुनो पते की बात ...
.......
जो तुमको बनना हो नेता
तो मारो शरम को लात.
भैया, सुनो पते की बात ...
झूठ, कपट, चोरी, बेईमानी
साध इसे करना मनमानी
दीन धरम और नीति की बातें
केवल मुख से है चुभलानी,
जो कभी भाव ये ह्रदय विराजे,
तो जायेगी जात...
कि भैया सुनो पते की बात...
पढना लिखना पाप समझना ,
पर जुगाड़ के डिग्री रखना ,
सात्विक बातें , मोहक वाणी,
सुथरे कपडे पहन के ठगना,
अगर नहीं कर सकते तिकड़म
नहीं बनेगी बात...
ओ भैया सुनो पते की बात..
पहले अस्त्र शस्त्र चमकाओ,
जन मन में आतंक बसाओ,
फिर जा बैठो नेता के दर ,
राजनीति में छवि चमकाओ,
फहराओ गर भय का झंडा
तभी बढे औकात...
कि भैया सुनो पते की बात..
सत्ता की बस यही कला है
इसी पे चलकर हुआ भला है
सद्विचार संस्कार धर्म ने
राजनीति को सदा छला है
छाया भी तेरा प्रतिद्वंदी है
दे न रहा यदि साथ....
कि भैया सुनो पते की बात...
एक बार जो कुर्सी धर ली
समझो भवसागर ही तर ली,
माल बनालो ऐसे जमकर
दस पुश्तों के जनम सुधर ली.
राजा के सम नहीं जिए तो..
जीने में क्या स्वाद ..
कि भैया सुनो पते की बात..
जो तुमको बनाना हो नेता
तो मारो शरम को लात.
कि भैया सुनो पते की बात ...
.......
43 comments:
सुनो भई सुनो पते की बात,
वहाँ पर नहीं कटेगी रात,
जनमानस के सपनों में भी, आँसू की बरसात।
पते की बात.....क्या बात....क्या बात....क्या बात....
सुन्दर गीत .. गाने का मन कर रहा है..
बहुत खूब ...।
आहा.. मज़ा आ गया..!
ऐसा लगा जैसे कोई व्यंग्य नाटक का बैकग्राउंड है.. वैसे नहीं है तो हो भी सकता है.. मजेदार है
'एक बार जो कुर्सी धर ली
समझो भवसागर ही तर ली,
माल बनालो ऐसे जमकर
दस पुश्तों के जनम सुधर ली.
राजा के सम नहीं जिए तो..
जीने में क्या स्वाद ..
कि भैया सुनो पते की बात..'
आद. रंजना जी,
नेताओं की यही तो सच्चाई है !
देश को चलाने की इतनी बड़ी क़ीमत वसूलने के बाद भी इन्हें भारत माँ की चीखें नहीं सुनाई देती !
सामाजिक सरोकारों के प्रति आपका गहन चिंतन आपकी लेखनी को विशिष्ट बनाता है !
साधुवाद !
जो तुमको बनाना हो नेता
तो मारो शरम को लात.
कि भैया सुनो पते की बात ...
...bilkul pate kee baat kahi hai..
आदरणीय रंजना सिंह जी
आपकी कविता वर्तमान राजनितिक परिदृश्य पर सटीक व्यंग्य करती है , वर्तमान राजनेताओं पर यह बातें अक्षरशः सटीक बैठती हैं ...आपका आभार इस रचना के लिए
Ekdam pate kee baat akhi hai aapne..
bahut badhiya prabhavi rachna.
वाह .. क्या खूब लिखा है !!
पढना लिखना पाप समझना ,
पर जुगाड़ के डिग्री रखना ,
सात्विक बातें , मोहक वाणी,
सुथरे कपडे पहन के ठगना,
वाह...क्या खूब लिखा है...अच्छी खबर ली है,नेताओं की
ए रंजू! आज त कमाले हो गया है.. हम अपना हँसी रोकें कि देस का किस्मत पर आँसू बहाएँ.. मगर कुच्छो हो, नेता का चरित्र चित्रण अद्भुत है.. कोनो गुन का बखान बाकी नहीं रहा है!!
Nice post.
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यह एक अभियान है मां के गौरव की रक्षा का .
मां बचाओ , मानवता बचाओ .
http://pyarimaan.blogspot.com/2011/02/blog-post_03.html
एक वह समय था जब नेता को आदर से देखा जाता था और उसे समाज सेवी कहा जाता था॥ और आज..... :(
आज की राजनीति की पोल खोलती खौलती कविता॥
सुनो भई सुनो पते की बात,तीन पीढी से आगे नही चलता हराम का पेसा, ओर यह पुरे खाना दान का सत्यनाश कर देता हे.
बहुत सुंदर रचना जी धन्यवाद
सत्य वचन..अक्षरशः सहमत हूँ नेताओं के इस काव्यात्मक आकलन से
रंजना जी बहुत सुंदर रचना की है आपने. यह तो कविता से बढ़कर कोचिंग क्लास हो गयी नेता बनाने की. बहुत ही करारा व्यंग और कटाक्ष आज की परिस्थितियों पर. बधाई.
कमाल कर दिया रंजनाजी ..... बढ़िया क्लास लगाई है.....जीवंत और सार्थक कटाक्ष
एकदम्मै ऐप्रोप्रिएट कहा है।
वसंत पंचमी पर मंगलकामनायें!
आजकल के समयों की बेहद यथार्थपरक और सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
आप को वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
एकदमे पते की बात है ये तो.
सीना ताने धोखा देते
दोनों हाथ देश को लूटें
आज देश के नेता खाते
जनता का विश्वास
ओ भैया बड़े पते की बात
आनंद आ गया आज यह गीत पढके ...
शुभकामनायें आपको !
pate ki baat vastav men pate ki hi hai.
didi suno ab hamri baat...
jinki nahi insa ki aukat..
o bante neta aur khate lat
waqt aa gaya bilkul pas...
jab log karenge jute ki barsat..
ab neta sune public ki baat..
nahi to dikhaee jayegi unki aukat..
fannatedar vyanga.....
pranam.
रंजना जी ,
बहुत ही प्रवाहमयी व्यंग रचना है | बिलकुल खरी-खरी बात सीधे-सपाट लहजे में |
असली नेता बनने के लिए इन सभी महागुणों का होना तो आज के दौर में जरूरी है ही |
रंजना जी , सच बहुत ही पते कि बात.......... बिल्कुल सच्चाई बयां करती हुई. सुंदर प्रस्तुति.
.
सैनिक शिक्षा सबके लिये
बढिया लगा यह नेतानामा।
---------
ब्लॉगवाणी: एक नई शुरूआत।
सत्य वचन
पहले अस्त्र शस्त्र चमकाओ,
जन मन में आतंक बसाओ,
फिर जा बैठो नेता के दर ,
राजनीति में छवि चमकाओ,
फहराओ गर भय का झंडा
तभी बढे औकात...
कि भैया सुनो पते की बात..
व्यवस्था एवं राजनेताओं पर सुन्दर /सटीक व्यंग..
और लोकतंत्र के नाम पर,हर पांच साल बाद हमारे पास केवल एक अवसर रह जाता है-इधर कुआं उधर खाई में से कोई एक विकल्प चुनने का!
बिल्कुल सच्चाई बयां करती हुई. सुंदर प्रस्तुति|
आदरणीया रंजना जी बहुत ही भाव पूर्ण कविता के लिए आपको बधाई |
एक बार जो कुर्सी धर ली
समझो भवसागर ही तर ली,
माल बनालो ऐसे जमकर
दस पुश्तों के जनम सुधर ली।
वाह, जबरदस्त व्यंग्य ।
कुर्सीधारियों को इसे पढ़ना चाहिए। लेकिन उन्हें क्या फर्क पड़ेगा, वे तो चिकने घड़े हैं।
:)
सत्यवचन
जो तुमको बनाना हो नेता
तो मारो शरम को लात.
कि भैया सुनो पते की बात ...
क्या पते की बात कही है....
इतना अच्छा लगा तो ब्लॉग फॉलो तो करना ही है...
बहुत-बहुत बधाई...
छाया भी तेरा प्रतिद्वंदी है
दे न रहा यदि साथ....
कि भैया सुनो पते की बात...
...यह बात तो आपने बड़े पते की कही।
छाया भी तेरा प्रतिद्वंदी है
दे न रहा यदि साथ....
कि भैया सुनो पते की बात...
...यह बात तो आपने बड़े पते की कही।
सुन्दर व्यंग , आज के राजनीतिक पटल पर और राजनेताओ पर आपकी पैनी नजर , सत्य बयां करते हुए , ये रचना दिल के करीब लगी . एक कविता मैंने भी ऐसी लिखी थी जो इन राजनेताओ के पहले का पार्ट है . हाहाह . बाहुबली , लीजिये लिन्क्वा देता हूँ .
http://ashishkriti.blogspot.com/2010/10/blog-post.html
नेताओं पर सुन्दर व्यंग है..
एक बार जो कुर्सी धर ली
समझो भवसागर ही तर ली,
माल बनालो ऐसे जमकर
दस पुश्तों के जनम सुधर ली.
राजा के सम नहीं जिए तो..
जीने में क्या स्वाद ..
कि भैया सुनो पते की बात..
.........सुंदर प्रस्तुति.
वाह, जबरदस्त व्यंग्य
आजकल के समयों की बेहद यथार्थपरक और सटीक अभिव्यक्ति. badhai ..
वाह रंजना जी,क्या खूब कविता बन पड़ी है। मैं देर से आया, अफ़सोस है। आज के माहौल पर आपके ही छंद में चार लाइनें टिप्पणी स्वरुप जोड़ता हूँ :
भ्रष्टाचारी मिलकर सारे
सत्ता की गद्दी को धारे
अनशन करते रहे ‘हजारे’
जनगण तन-मन-धन हैं वारे
चार दिनों तक चमक चाँदनी
फिर अँधियारी रात
भैया सुनो पते की बात
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