अईसे काहे बघुआ के, अंखिया तरेर के देख रहा है बे,
साला..नंगा..भुक्खर ...???
आ ...समझा !!! ... भूखा है ???
त ई से हमको मतलब..???
सब अपना अपना भाग का खाते हैं...
हम भी अपना पुन्न का स्टाक से खा और इतरा रहे हैं...
तू भूखा.. नंगा... ई तोरा भाग...
त फिर हमरा भरलका मलाईदार छप्पन भोग थरिया देख के ई जलन काहे.. ई आक्रोस काहे..आयं ??
चल भाग इहाँ से..
नहीं भागेगा..??
त,,, का कल्लेगा बोल..???
जल्ला कट्टा बोली मारेगा...???
हा हा हा हा...कैसे ??
तोरा जीभ त है, हमरे जेब में ...!!!
त,,, अब का ...???
ओ....गोली मारेगा..???
लेकिन कैसे बे...???
हाथ है...???
सबका हाथ काट के हम जमा कर लिए अपना खजाना में...
अब हाथ, केवल औ केवल हमरे पास है...
आ जिसके हाथ में हमरा दिया हाथ है, ओही किसीको भी बोली या गोली, कुच्छो मार सकता है..
एहिलिये न कहते हैं, धड से आके धर लो ई हाथ...ससुर, राज करेगा राज ...!!!
" हमरा हाथ, हमरा हाथ धरने वाले हर जन- जनावर के साथ "
.......................
35 comments:
बहुत खूबसूरत पोस्ट |
निराला अंदाज |
बधाई ||
वाह ..
वाह बहुत अलग सी पोस्ट बढ़िया
वाकई हमारे हाथ किसी ने काट लिए हैं... गंभीर लघुकथा...
हाथ हो या हाथी.. घर-घर देखा एक्के लेखा!! नए फोर्मेट में गहरी बात!! तीखा व्यंग्य!!
वाह!
हाथ के साथ,
कर ली सब बात।
हाथों हाथ लेने योग्य पोस्ट!
ब्लॉगिंग का यह प्रयोग अच्छा लगा।
बड़ा करारा हाथ मारा है आपने उस 'हाथ' पर !
बहुत ही सटीक व्यंग्य
एकदम सटीक .... कितना कुछ कह गयीं आप....
saarthak evam sateek prastuti ....
badhiya vyangy .badhai
good presentation.
nayee bhaasha sekhne ko mili!
SIRF YE SAMAJH AAYA KI KI KATAKSH KISPE KIYA GAYA HAI ...OR KUCH NAHIIIIIII,,,,,,,,,,,,AAJKAL AAP LEKHAN SE BILKUL DOOR SI HO GAYII HAI ..
हाथ हाथ में गहरी बात कह गयी हैं आप.........तीखा व्यंग्य |
हाथ सलामत रह्र्ण पर वो भी आज कहाँ रह पाते अहिं ... गिरवी रहते हैं या खूनी हो जाते हैं ...
आपके रोचक और नए अदाज से परिचय हो रहा है आज ...
बढियां कटाक्ष
jabardast vyangya aur kadva sach jo ugr karne ko kafi hai.
रंजना जी अच्छा व्यंग्य है । कटे हाथ , बँधे हाथ जैसे मुहावरे इसी तरह तो बने हैं । हाँ विराम चिह्नों का सही प्रयोग होता तो ज्यादा स्पष्ट होता ।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
मेरा शौक
मेरे पोस्ट में आपका इंतजार है,
आज रिश्ता सब का पैसे से
करार हाथ मारा है ..नए अंदाज में..वाह.
हाथ वालों ने हमारे हाथ काट लिए हैं।
बहुत ही तीखा व्यंग्य।
Always a fun to read your writings...
Awesome read as ever... loved the hidden sarcasm !!
इस पोस्ट के लिए धन्यवाद । मरे नए पोस्ट :साहिर लुधियानवी" पर आपका इंतजार रहेगा ।
सटीक और करारा व्यंग्य है!!
बड़ा ही तीखा कटाक्ष, वाह !!!
तगड़े तेवर हैं...वाह!
" हमरा हाथ, हमरा हाथ धरने वाले हर जन- जनावर के साथ "
वाकई प्रभावी है ये पंक्तियाँ
ओह! आह.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए वाह!
बहुत ही निराला अंदाज लगा रंजना जी.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
सुन्दर,मनोरंजक एवं धारदार प्रस्तुति
वाह....रंजना जी !
बहुते जोरदार , इ समझो की बस पूरा शरीरवा ही झनझना गइल.
सुन्दर पोस्ट
ग़ज़ब का व्यंग्य है, निर्बल के बल राम!
मन प्रसन्न हो गया. दिन अच्छा कटेगा. आभार.
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