23.12.08

कर्मफल

बहुधा ही सहज रूप में एक प्रश्न मन में आया करता है.....कि जब परमात्मा इस सम्पूर्ण श्रृष्टि में कण कण में व्याप्त है, उसके कृपा के बिना पत्ता भी नही हिलता तो फ़िर इसी जगत में इतना कुछ विभत्स/अनाचार/ग़लत कैसे घटित हो रहा है ? नास्तिकों की छोडें ,बहुधा घोर आस्तिकों के मन को भी यह सोच ऊहापोह और शंशय में डाल व्यथित और विचलित किया करता है.


आस्था मानती है कि ईश्वर तो प्रेम और करुणा के स्वरुप हैं,उस करूणानिधि के अखंड साम्राज्य में विभत्सता का स्थान कैसे हो सकता है.........परन्तु फ़िर भी हम देखते आ रहे हैं कि युगों से संसार दुष्ट शक्तियों द्वारा आक्रांत रहा है.ऐसे में सहज ही मन पूछ बैठता है कि जब सम्पूर्ण जगत ही उनसे संचालित है और जब उसके सहमति के बिना एक पत्ता भी नही हिलता ,तो फ़िर क्या इस ग़लत घटित होने में भी उनकी सहमति है??? यदि इस ग़लत पर उनका नियंत्रण नही तो फ़िर वे कैसे सर्वसमर्थ हैं ?


..पर जब भी सच्चे ह्रदय से उस परमपिता से कोई जिज्ञासा की जाती है,वह सहज ही किसी न किसी मध्यम से हमारे उन जिज्ञासाओं का समाधान दे दिया करते हैं..तनिक गहनता से अनुभूत करेंके तो बड़ा ही स्पष्ट अनुभूत होगा कि ईश्वर प्रतिपल किसी न किसी माद्यम से हमसे बात करते रहते हैं और जब भी मन व्यग्र हो शंकाओं का निवारण चाहता हो तो तो उनके समाधान भी भेज दिया करते हैं.वही परम पिता जीवन में सुख के रूप में आनादोप्भोग के अवसर देते हैं तो दुख के रूप में अनमोल शिक्षा प्रदान किया करते हैं....


......... श्रृष्टि के आरम्भ में ईश्वर ने जलचर ,नभचर,स्थलचर, कोटि कोटि भिन्न भिन्न प्रजातियों की रचना की.परन्तु इतना कुछ बना चुकने के बाद भी उन्हें संतोष न हुआ और तब उन्होंने अपरिमित सामर्थ्य संपन्न जीव 'मनुष्य' की सर्जना की. अन्य जीवों की भांति समस्त अंग प्रत्यंग देने के साथ साथ बुद्धि रूप में मनुष्य को सामर्थ्य की वह पूंजी सौंपी जिससे मनुष्य केवल आहार विहार और संतानोत्पत्ति ही नही वरन उस ईश्वर की श्रृष्टि में बहुत कुछ फेर बदल सकने का सामर्थ्य भी रखता था.अपने इस रचना पर वे स्वयं ही इतने अभिभूत और मुग्ध हुए कि उसके ह्रदय में अपना निवास बनाने का निश्चय किया और वहां विवेक रूप में अवस्थित हो गए.अपरिमित सामर्थ्य और विवेकरूपी अपना अंश समाहित कर उस महत कृति मनुष्य को पृथ्वी पर उनमुक्त भाव से कर्म करने और उनके रचे समस्त प्रकृति के आनंदोप्भोग के लिए छोड़ दिया.


हमारे सामने समस्त उद्धरण हैं...जिस मनुष्य ने आत्मा/विवेक/ईश्वर को अनुभूत करते हुए सन्मार्ग पर चल सत्कर्म किए,वे देवतुल्य पूज्य हुए और जिस मनुष्य ने अपने अंतरात्मा की आवाज को अनसुना कर कुमार्ग पर अपनी गति रखी वह उतनी ही दुर्गति को प्राप्त हुआ.सामर्थ्य और विवेक देने के बाद ईश्वर प्रत्यक्ष रूप में कर्म करने के क्रम में किसी का हाथ पकड़कर रोकने नही आते.यह तो व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि ईश्वर ने विवेकरूप में जब उसे कुमार्ग गमन पर चेताया तो उसने अपने आत्मा की आवाज सुनी या नही. वैसे जो समग्र रूप में अपने कर्मो को उस परमपिता को समर्पित कर सच्चे ह्रदय से उससे सन्मार्ग पर चलने की शक्ति की याचना करता है,ईश्वर सचमुच किसी न किसी माध्यम से हाथ पकड़कर उसे ग़लत करने से रोकने चले आते हैं,इसके उदाहरणों की कमी नही है.व्यावहारिक रूप में हम भी इसे आजमा कर देख सकते हैं..


बहुत से लोग ईश्वर की प्रमाणिकता पर ही प्रश्न उठा बैठते हैं.तो यही कहा जा सकता है कि अनुभूतियों को केवल अनुभूत ही किया जा सकता है प्रकट रूप में उसे प्रमाणित या ठोस अवयव रूप में दृष्टिगत कराना कठिन है.हम देख सकते हैं कि कोसों दूर रहकर भी यदि हम अपने प्रियजनों के सुख दुःख, मनोभावों को बिना किसी सूचना के भी अनुभूत कर लेते हैं तो निश्चय ही एक कोई ऐसी परम शक्ति है ,जो प्रकट रूप में न भी दिखे तो भी इतने प्रखर रूप में अनुभूत होता है कि उसकी उपस्थिति अस्वीकृत नही की जा सकती.


अब बात रही कि कई बार यह देखा जाता है कि कोई अत्याचारी,व्यभिचारी,कुमार्गगामी भी बड़ा ही सुखी है और चाहे जितने भी पाप कर्म करे उन्मुक्त विचरण करता है और धन के बल पर दण्डित होने से बचा रहता है.ऐसे अवसरों पर पीडित होने पर बड़े बड़े आस्तिकों की आस्था डोल जाती है और ईश्वर के न्याय पर ही संदेह करने लगता है.परन्तु भौतिकी का यह सिद्धांत है कि ......... " हर क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है....." यह शाश्वत और अकाट्य सत्य है . इस श्रृष्टि में कोई भी क्रिया निष्क्रिय या नष्ट नही होती.हम चलते बोलते खाते पीते यहाँ तक कि सोचते हुए जो कुछ भी क्रिया कर्म संपादित करते हैं, वह अदृश्य तरंग रूप में इस ब्रह्माण्ड में सुरक्षित रहता है और उस क्रिया की प्रतिक्रिया होती ही है.


जैसे ही मनुष्य जन्म लेता है उसके कर्मो का एक व्यक्तिगत खाता खुल जाता है और उसके द्वारा प्रतिपादित प्रत्येक कर्म का लेखा जोखा जमा होने लगता है.हमारे शाश्त्रों में इसकी बड़ी सुंदर व्याख्या की गई है.कर्मफल को '' प्रारब्ध, संचित और क्रियमाण " इन तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है.कर्म प्रतिपादन का माध्यम भले यह शरीर हो ,परन्तु समस्त कर्म संचालित मन और चेतना द्वारा ही होते हैं,जो कि कभी नष्ट नही होती ,केवल माध्यम (शरीर) ही निश्चित अवधि के बाद नष्ट होती है. तो इस चेतना/आत्मा को कई जन्मो तक संचित सुकर्म अथवा दुष्कर्म का फल भोगना पड़ता है.हमारे द्वारा मन वचन और कर्म द्वारा सुकर्म या दुष्कर्म जो प्रतिपादित होते हैं,वह हमारे लिए संचित हो जाता है और इसी के परिणामस्वरूप कोई पापी भी अपने संचित पुण्य भाग को भोगता हुआ पापकर्मों में लिप्त रहते हुए भी निष्कंटक विचरता है और कोई पुनीत कार्य कर भी कष्टों को भोगता है.परन्तु दोनों ही स्थितियां स्थायी नही हैं. जैसे ही कुकर्म अथवा सुकर्म के संचित फलों का भण्डार चुक जाता है,परिस्थितियां बदल जाती हैं.कर्मानुसार फलभोग निश्चित है,चाहे इसके लिए कई जन्म क्यों न लेना पड़े..


अतः यह कहना कि वह सर्वसमर्थ ईश्वर पापाचार अनाचार क्यों नही रोकता, मूढ़ता है। ईश्वर के दिए सामर्थ्य का यदि कोई दुरूपयोग करे और दोष ईश्वर को दे,यह कहाँ तक न्यायसंगत है.यह सब तो अपने हाथ ही है, इस सामर्थ्य का सदुपयोग कर मानव भी ईश्वर तुल्य पूज्य हो जाता है और इसी का दुरूपयोग कर महान विध्वंसक भी होता है. परन्तु किसी भी अवस्था में पूज्य धर्म के मार्ग पर चलने वाला ही होता है ,भले अल्पकाल के लिए दुराचारी अपने विध्वंशक शक्ति के बल पर लोगों को भयभीत कर दे.

17.12.08

चिंता नही, इरेजर है न.......

इस डिजिटल युग में ईरेजर . ...विज्ञान प्रदत्त मनुष्य को एक ऐसी सुविधा है जिसने मानव जीवन को अपार सुगमता दी है. स्याही से लिखी जाती थी और गलती/अशुद्धि होने पर लिखे कागज और मूड, दोनों का कचड़ा हो जाता था .पहले तो पेन्सिल से लिखे को मिटाने की सुविधा हुई और अब?


अब तो कागज पेंसिल सब बाय बाय.सीधे इलेक्ट्रानिक मिडिया में लिखो और वहां तो भई मिटाने की छोड़ो आपकी गलतियों को रेखांकित कर सही शब्द और वाक्य विन्यास के लिए भी पूर्ण प्रावधान उपलब्ध हैं.अब गलतियों से डरने या घबराने की कोई आवश्यकता नही.सुख में कहीं कोई अवरोध नही आ सकता.चाहे लिखते समय हो या गीत संगीत द्वारा मनोरंजन के समय.


पहले एक आधार था रेडियो....रेडियो जो बजा दे, सुनते रहिये ,पसंद आया तो ठीक नही तो कान या रेडियो मूँद कर प्राण बचाइए.लेकिन अब तो भई हमारे पास तरह तरह के छोटे से बड़े आकार में एक से बढ़कर एक इलेक्ट्रानिक उपकरण उपलब्ध हैं जिसमे एक साथ अपने पसंदीदा हजारों गीत एकत्रित कर रख सकते हैं. जब जिससे मन भर जाय और अप्रिय लगने लगे, झट ईरेज कीजिये.फोटो खींचना हो,कुछ गड़बड़ हो गई,पसंद की फोटो न खिंची,कोई दिक्कत नही.......ईरेज कीजिये.सब डिजिटल है भाई.
अब मनोरंजन हो या रोजमर्रा की सुविधाएँ,प्रत्येक क्षेत्र में जब 'ईरेजात्मक' सुविधा उपलब्ध है. ऐसे में चिकित्सा क्षेत्र क्यों पीछे रहे?


ई-रेजरों की इसी श्रृंखला में चिकित्सा जगत में क्रांति कारी उपलब्धि यह नवीन औषधि है "आई-पिल "। गलती हो गई, कोई बात नही.बहत्तर घंटें हैं आपके पास,अपनी गलती को ईरेज करने के लिए. सरकार ने इसे बिना किसी चिकित्सक के अनुज्ञा ( प्रिस्क्रिप्सन) के सभी औषधालयों में ग्राहकों को उपलब्ध कराने का आदेश दिया है.

वैसे तो यदि यह औषधि कारगर हुई तो भ्रूण हत्या रोकने के क्रम में यह एक अत्यन्त सार्थक सराहनीय वरदान सा होगा और इस परिपेक्ष्य में इसकी मुक्त कंठ से प्रशंशा होनी चाहिए.पर देखा जाए तो आज जितने गर्भपात होते हैं,उसमे से कितने गर्भपात दम्पतियों के बीच हुए तथाकथित गलती का परिणाम होते हैं?


आंकडों पर दृष्टिपात करें तो स्वैक्षिक गर्भपात में चालीस प्रतिशत कन्या भ्रूण की हत्या होती है और पचपन प्रतिशत गर्भपात अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध से हुए गर्भधारण का परिणाम है।मुश्किल से पाँच प्रतिशत या उससे भी कम ही गर्भपात विवाहिता के अनैक्षिक गर्भधारण का परिणाम होती है॥यह आई-पिल बनाम ईरेजर पूर्ण संज्ञान में अच्छी खासी मात्रा में व्यय कर भ्रूण परिक्षनोपरांत कन्या भ्रूण हत्या में तो कतई अवरोधक या कारगर न होगा. ,हाँ अवांछित गर्भधारण और भ्रूण हत्या पर अवश्य कुछ रोक लगा सकता है.

समस्या इसके सदुपयोग में नही इसके दुरूपयोग में है. आज हमारा किशोर और युवा वर्ग नैतिक मूल्यों को धता बताते हुए जिज्ञासा और आनंदोप्भोग के लिए जिस तरह आँख मूंदकर भागा जा रहा है, यह उनके द्वारा सर्वाधिक उपयोग में लाया जाएगा और भ्रूण हत्या भले रुक जाय पर नैतिक पतन किस पराकाष्ठा पर पहुंचेगा ,पता नही......


समाज को सीमाओं में निबद्ध रखने में भय की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है.अभी कुछ दिनों पहले एक ख़बर टी वी में सुना कि पाँचवीं छठी वर्ग की क्षत्राएँ गर्भपात के लिए चिकित्सकों के पास जाने लगी हैं..ऐसा नही कि यह सिर्फ़ सुना भर ,अपने आस पास यह सब देखा भी है.


किशोर वय जो कि एक आंधी की तरह बहना चाहते हैं,नैतिकता की बातें उनके लिए प्रहसन है,किसी अवरोध को स्वीकारना उन के लिए उनके अधिकारों का हनन ही नही अभिभावकों का उनपर अत्याचार है... उनके बहकते कदम को रोकने के लिए इस भय का होना अत्यन्त आवश्यक है. एक समय था जब भय,शील, धर्म, मर्यादा, आत्मसम्मान इत्यादि इत्यादि बेडियाँ थीं,जिसमे बंधकर मन को बांधकर रखा जाता था.समय के साथ शील धर्म मर्यादा नैतिक मूल्य की बातें तो दरकिनार होती गयीं ,बस एक भय बचा था,कि अंततः सुखोपभोग की कीमत लडकी को ही तो चुकानी पड़ती है.


लोकोपवाद तथा सबकुछ भुगतना लडकी को ही पड़ता है ,यह भय उत्सुकता और आकांक्षा पर भारी पड़ता था और कुछ हद तक अवरोधक का काम करता था।भले यह आई-पिल भ्रूण हत्या रोकने में समर्थ होगा पर यह स्वच्छंद शारीरिक सम्बन्ध को और बढ़ाने में सहायक भी होगा.... अब तो यह दुस्साहसी निडर पीढ़ी, इस उपाय के सहारे निःसंकोच जिज्ञासा समाधान और आनादोप्भोग के लिए निकल पड़ेंगे.

पहले एड्स पश्चिम के उन्मुक्त समाज का रोग माना जाता था।पर आज भारत में भी समस्या दिन प्रतिदिन भयावह होती जा रही है.यह रोग उस उन्मुक्त यौनाचार का ही प्रतिफल है, यह तथ्य किसी से छुपा तो नही. वर्तमान में जितनी गंभीर समस्या अजन्मे शिशु की अमानवीय हत्या है उतना ही स्वछन्द यौनाचार भी है,जो बड़ी तेजी से पूरे संस्कृति और समाज को पतनोन्मुख किए जा रहा है॥


पश्चिम में जहाँ पूर्ण यौन स्वछंदता है,अधिकांशतः अल्पवयस्क बच्चे कच्ची उम्र में ही अनैतिक यौनाचार और नशीली दवाओं के सेवन में निमग्न हो जाते हैं और उनमे विवाह परिवार जैसी व्यवस्थाओं के प्रति अनास्था का भाव आ जाता है,जिससे समाज में एक तरह से उच्छ्रिन्खला और विघटन व्याप्त हो जाता है।आज जितनी मात्रा में मनोरोगी पश्चिमी सभ्यता या उसके अनुकरण करने वाले किसी भी देश में रह रहे उस के अनुयायियों में पाया जाता है वह संतुलित जीवन जीने वालों में नही.जैसे मिठाई पसंद करने वाला यदि अत्यधिक मात्रा में प्रतिदिन केवल मिष्टान्न का सेवन करने लगे तो स्वस्थ्य का तो जो होगा सो होगा,एक अवधि के बाद उसे मिठाई से वितृष्णा हो जायेगी. वैसा ही इसके साथ भी है.


इस पिल के द्वारा गर्भस्थ शिशु की हत्या रोकने का प्रयास तो हो चुका है पता नही पीढी को व्यभिचार से विमुख करने के लिए कोई उपाय मिलेगा या नही?

8.12.08

हे प्रभु वर दो !

हे करुणाकर करुणा कर दो,

उर सबके सद्बुद्धि भर दो.

हिंसा द्वेष विध्वंश मिटाकर,

जीवन सबका सुखमय कर दो.



भार हो रहा जीवन जीना,

आताताई ने सुख छीना.

हे त्रिनेत्र अब नेत्र खोल दो,

धरा न चाहे शोणित पीना.



तुमने यह संसार बनाया,

सब सुख से है इसे सजाया.

विष को अपने कंठ में रख कर,

श्रृष्टि पर अमृत बरसाया.



असुर कित्नु कुछ शेष रह गए,

मनुज देह धर कपट कर रहे.

भांति भांति संहार रचाकर ,

मानवता को त्रस्त कर रहे.



विध्वंसक की बुद्धि हर लो,

भस्मासुर को अब न वर दो.

फ़िर से मोहिनी रूप रचाकर,

दुष्ट दम्भी को भस्म ही कर दो.



अधर्म पाप का ग्रहण हटाओ,

सदाचारियों को प्रभु तारो.

सत्य धर्म को विजय दिलाकर,

अनाचार सामूल मिटा दो.

5.12.08

एक पत्र भारतीय प्रधान मंत्री के नाम............

क्रोध,क्षोभ,घृणा,आक्रोश और अवसाद इत्यादि ने मनोभूमि को ऐसे आच्छादित कर दिया कि उसने समस्त शब्दों को ही कुंठित कर दिया.लगातार मस्तिष्क में ये वाक्य कौंध कौंध कर हथौडे मारते हैं कि आठ व्यक्तियों ने मिलकर कैसे पूरे देश को झकझोर डाला.कितना सरल है सौ करोड़ आबादी वाले देश को एक झटके में पूरी तरह हिला देना......जब सबकुछ इतना आसान है तो फ़िर लंबे चौडे विनाशक युद्धों की आवश्यकता ही क्या है.बस दो,चार,आठ दस लोग लाव लश्कर के साथ टहलते हुए आयेंगे और खूनी खेल खेलकर चले जायेंगे.अबकी तो मारे गए, अगली बार किसी वरिष्ठ मंत्री के नाते रिश्ते वालों को बंधक बनायेंगे और भारत सरकार उन्हें अपने सरकारी विमान से सकुशल उनके इच्छित देश की सुरक्षित सीमाओं में पहुँचा आयेंगे.


इतने वर्षों से झेलते हुए यूँ तो जननेता संग जनता ऐसी आतंकवादी घटनाओ की आदी सी हो चुकी है,पर इसबार यह घटना जिस ढंग से हुई,जनताओं के लिए भले यह आम सी बात रह गई पर आम जनता के सब्र का प्याला जरूर छलक गया है.इस त्रासदी के बीच ये दो बातें बड़ी ही सुखद रही कि एक तो आम जनता बिना प्रायोजित और किसी राजनेता के अगुआई के ही सडकों पर उतर आई और दूसरे इस घटना ने जाति पांति धर्म भाषा की दीवार को द्वस्त करते हुए प्रत्येक भारतीय के मन को व्यथित आक्रोशित और आंदोलित किया.यह कोई छोटी उपलब्धि नही.जिस विध्वंसक प्रयोजन का आधार ही हिंदू मुस्लिम में साम्प्रदायिकता को भड़काकर सांप्रदायिक सौहाद्र को ध्वस्त करना हो ,वहां यदि इसके उलट दोनों समुदाय वैर भाव भुलाकर इसकी भर्त्सना करे और विरोध को एकजुट हो जाए तो इसमे निश्चित रूप से भारत की जीत है. इसके पूर्व की अन्य घटनाओं ने भले यह स्थिति न आने दी हो ,पर इस घटना ने तो यह कमाल कर ही दिया.आतंकवादियों को कम से कम अब समझ जाना चाहिए कि भारत जैसे देश में जहाँ हिंदू मुस्लिम संस्कृतियाँ इस तरह से घुली मिली हैं,इतना सहज नही है इन्हे पूरी तरह से अलग करना या देश को अस्थिर करना.


इन दिनों पूरे देश में ईमेल तथा एस एम् एस द्वारा जो एक दूसरे को संदेश भेजे जा रहे हैं,वे अत्यन्त प्रभावी और शुभ हैं.जहाँ आम जनता पर आक्षेप लगाया जाता था कि जनता आत्मकेंद्रित है,अपने कर्तब्यों अधिकारों के प्रति बिल्कुल भी सजग नही,उन्हें देश से नही सिर्फ़ अपने नफे नुक्सान से मतलब है,वहां इस तरह देश तथा अपने कर्तब्यों अधिकारों के प्रति सजगता देखकर अपार हर्ष होता है.चाहे कोई कुछ भी कहे पर मैं मानती हूँ कि आज भी आमजनों में देशभक्ति का जज्बा उन जांबाजों से कम नही जो आजादी के जंग में दुश्मनों के सामने अपने सीने खोलकर निकल चले थे.जनता सो नही रही है बस अन्दर अन्दर सब सुलग रहे हैं,अब देशवासियों का धैर्य उस सीमा पर पहुँच गया है जहाँ एक छोटी सी भी घटना उसे भ्रष्ट राजनेताओं और विध्वंसक शक्तियों के ख़िलाफ़ अस्त्र उठाने को मजबूर कर सकती है.


आज एक ईमेल मुझे भी प्राप्त हुआ इसे अपने समस्त संपर्कों में प्रसारित करने के अनुरोध के साथ.उसको पढ़ ऐसा लगा कि सचमुच यह अपने ही मन की बात हो........आप भी पढ़ें.........

READ TILL END………….


A PERFECT LETTER TO PM.
LETTER TO PRIMEMINISTER
Dear Mr. Prime minister ,
I am a typical mouse from Mumbai. In the local train compartment which has capacity of 100 persons, I travel with 500 more mouse. Mouse at least squeak but we don't even do that.
Today I heard your speech. In which you said 'NO BODY WOULD BE SPARED'. I would like to remind you that fourteen years has passed since serial bomb blast in Mumbai took place. Dawood was the main conspirator. Till today he is not caught. All our bolywood actors, our builders, our Gutka king meets him but your Government can not catch him. Reason is simple; all your ministers are hand in glove with him. If any attempt is made to catch him everybody will be exposed. Your statement 'NOBODY WOULD BE SPARED' is nothing but a cruel joke on this unfortunate people of India.
Enough is enough. As such after seeing terrorist attack carried out by about a dozen young boys I realize that if same thing continues days are not away when terrorist will attack by air, destroy our nuclear reactor and there will be one more Hiroshima.
We the people are left with only one mantra. Womb to Bomb to Tomb. You promised Mumbaikar Shanghai what you have given us is Jalianwala Baug.
Today only your home minister resigned. What took you so long to kick out this joker? Only reason was that he was loyal to Gandhi family. Loyalty to Gandhi family is more important than blood of innocent people, isn't it?
I am born and bought up in Mumbai for last fifty eight years. Believe me corruption in Maharashtra is worse than that in Bihar. Look at all the politician, Sharad Pawar, Chagan Bhujbal, Narayan Rane, Bal Thackray , Gopinath Munde, Raj Thackray, Vilasrao Deshmukh all are rolling in money. Vilasrao Deshmukh is one of the worst Chief minister I have seen. His only business is to increase the FSI every other day, make money and send it to Delhi so Congress can fight next election. Now the clown has found new way and will increase FSI for fisherman so they can build concrete house right on sea shore. Next time terrorist can comfortably live in those house , enjoy the beauty of sea and then attack the Mumbai at their will.
Recently I had to purchase house in Mumbai. I met about two dozen builders. Everybody wanted about 30% in black. A common person like me knows this and with all your intelligent agency & CBI you and your finance minister are not aware of it. Where all the black money goes? To the underworld isn't it? Our politicians take help of these goondas to vacate people by force. I myself was victim of it. If you have time please come to me, I will tell you everything.
If this has been land of fools, idiots then I would not have ever cared to write you this letter. Just see the tragedy, on one side we are reaching moon, people are so intelligent and on other side you politician has converted nectar into deadly poison. I am everything Hindu, Muslim, Christian, Schedule caste, OBC, Muslim OBC, Christian Schedule caste, Creamy Schedule caste only what I am not is INDIAN. You politician have raped every part of mother India by your policy of divide and rule.
Take example of former president Abdul Kalam. Such a intelligent person, such a fine human being. You politician didn't even spare him. Your party along with opposition joined the hands, because politician feels they are supreme and there is no place for good person.
Dear Mr Prime minister you are one of the most intelligent person, most learned person. Just wake up, be a real SARDAR. First and foremost expose all selfish politician. Ask Swiss bank to give name of all Indian account holder. Give reins of CBI to independent agency. Let them find wolf among us. There will be political upheaval but that will better than dance of death which we are witnessing every day. Just give us ambient where we can work honestly and without fear. Let there be rule of law. Everything else will be taken care of.
Choice is yours Mr. Prime Minister. Do you want to be lead by one person or you want to lead the nation of 100 Crore people?