रामेश्वर अपनी ही बेटी के खून से अपने हाथ रंग आये थे...तेरह बरस में शादी और गौने से पहले ही साल भर के अन्दर विधवा हुई बेटी का दुःख उनसे देखा नहीं गया और उसके मोह में पड़कर घर परिवार सबकी बात काटते हुए उन्होंने अपनी अपार सहृदयता दिखाते हुए उसे पढाई में लगा दिया था.लडकी पढने में बहुत तेज़ थी.हर साल अपने कक्षा में अव्वल आती रही और बारहवीं के बाद उसने आगे पढ़नी चाही.रामेश्वर बाबू ने शहर में कालेज में उसका दाखिला करवा दिया.पर यहीं उनसे भारी चूक हो गयी.
लडकी को शहर की हवा लग गयी..परंपरा संस्कार और परिवार के इज्ज़त को ताक पर रखकर उसने अपने ही कालेज के प्रोफेसर से प्रेम की पींगें बढा ली, जो एक नीच जात का लड़का था.और तो और उस कमजात के साथ मुंह काला कर, खुलेआम उससे प्रेम का एलान कर रही थी और उससे ब्याह करने की जिद ठानी हुई थी.
रामेश्वर बाबू ने ममता और सहृदयता दिखाते हुए उसके जिंदगी सवारने के लिए आगे पढने की पूरी सहूलियत और छूट जरूर दी थी....लेकिन इसका यह मतलब न था कि उसे परंपरा और परिवार की प्रतिष्ठा को भी छिन्न भिन्न करने देते....लड़की ने जो अपनी सफ़ेद साडी के साथ साथ उनके परिवार के आबरू को दागदार करने की कोशिश की थी और वह भी एक नीच जात के लड़के के साथ..यह असह्य और अक्षम्य था.....
पत्नी के माध्यम से जब उन्हें इस बात की खबर लगी तो वे गुस्से से एकदम बौरा गए..... दहाड़ते हुए, बन्दूक लेकर घर से निकल पड़े लड़के को मारने....लेकिन किसी तरह बाँध छेककर परिवार वालों ने उन्हें रोका......
कितनी मुश्किल से तो रामेश्वर की पत्नी का अपने पति को मुखिया बनने, दोनों भाइयों और परिवार के बीच कभी न पाटी जा सकने वाली खाई बनाने का सपना साकार होने जा रहा था, इसे किसी कीमत पर वह खोना नहीं चाहती थी.. रामेश्वर के हाथ पैर धरकर किसी तरह उनसे हथियार छीना गया.उन्हें समझाया गया कि इस नाजुक समय में दिमाग से काम लेना चाहिए.सबका मत यही बना कि अभी अपनी लडकी को ही किसी तरह समझा बुझा या धमकाकर चुप करा दिया जाय,लड़की का पेट धुलवा दिया जाय और चुनाव निपटते ही लड़के को ठिकाना लगा दिया जायेगा...फिर न रहेगा बांस ,न बजेगी बंसी.
नाजायज बच्चा गिराना, विधवाओं के नाजायज सम्बन्ध या उम्रदराजों की भी लम्पटता, कोई अजूबी घटना न थी गाँव के लिए. लेकिन, खुलेआम चुनौती देकर ऐसा कुछ भी करने की हिमाकत धनाढ्य सवर्ण पुरुषों को छोड़ किसीमे न थी. विधवा का पुनर्विवाह या अंतरजातीय विवाह आज भी घोर कुकर्म था गाँव वालों के लिए...इस नाजुक मौके पर अगर विरोधी के हाथों यह मुद्दा लग जाता तो परिवार की प्रतिष्ठा और चुनाव,दोनों का बंटाधार हो जाता...
अब समझाते तो क्या, जैसे ही उन्होंने बेटी को धमकाना शुरू किया,वह भी थी तो आखिर उनका ही खून और साथ ही उच्च शिक्षा ने उसे कूपमंडूकता से बाहर निकाल अपने जीवन और अधिकारों के प्रति पर्याप्त सजग कर दिया था.लडकी मौके की नजाकत को न समझ पायी और भिड गयी बाप के साथ...
फिर तो बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ गयी कि रामेश्वर बाबू ने जो हाथ में आया उसीसे पीट पीट कर उसका कचूमर निकाल दिया और उसे मौत के मुंह में पहुंचाकर अपने क्रोध की प्यास बुझाई.....शरीर और विद्रोह के उस स्वर को टुकड़े टुकड़े कर परंपरा और प्रतिष्ठा बचा लिया था उन्होंने...
घर में कोहराम मच गया... बात ऐसी न हुई थी जो चाहरदीवारी के अन्दर ही छुपी रह जाती..क्रोध का ज्वार शांत हुआ तो परिणाम के भय ने आतंकित कर दिया....भयाक्रांत, क्षुब्ध और उदिग्न ह्रदय को अपने रक्षक और तारनहार रूप में केवल बड़ा भाई ही दिखा...आज भी वे मानते थे कि भाई के प्रभाव और औकात के आगे उनका अपना व्यक्तिव कितना बौना है.सो वे भाग चले आसरे की ओर.उस घड़ी दुर्घटना से अचंभित आतंकित किन्कर्तब्यविमूढ़ बाकी सदस्यों को भी तारनहार बिन्देश्वर बाबू ही दिखे थे...
मुसीबत की इस घड़ी ने पारस्परिक वैमनस्यता को अप्रासंगिक कर दिया था. आंसुओं में मन के सारे मैल बह गए थे. दोनों भाइयों के ह्रदय अभी एक से धड़क रहे थे,अंतर केवल इतना था कि जहाँ रामेश्वर अपनी सुध बुध खोये हुए थे वही बिन्देश्वर तेजी से अगले कदम के बारे में सोच रहे थे.....समय ठीक न था,जो भूल हो चुकी थी,उसके बाद एक भी चूक महाविनाशक हो सकती थी....
राजनीति बिन्देश्वर बाबू के खून में बसी थी...हवाओं का रुख मोड़ना उन्हें अच्छी तरह आता था. अविलम्ब घर के सभी सदस्यों को इकठ्ठा किया और दुर्घटना की जानकारी देते हुए परिस्थिति की गंभीरता और विकटता से अवगत कराया.परिस्थिति से निपटने के लिए जो योजना उन्होंने बनायीं थी,उसके अनुसार उन्होंने सबको जिम्मेदारियां सौंपी और सबके साथ रामेश्वर को संग ले उसके घर पहुंचे...
वहां भी सबको समझा बुझाकर स्थिति की कमान उन्होंने अपने हाथ ले लिया....घंटे भर के अन्दर बिरादरी के सभी गणमान्य प्रतिष्ठित लोगों का जुटान कर लिया गया और मामले को ऐसे परोसा गया,जिसके तहत यह बात सामने आई कि किसी दूसरे इलाके वाले ने उनके गाँव की प्रतिष्ठा को जो मैला किया,उसे अपने ही संतान के रक्त से धोकर इस महान परिवार ने समूची बिरादरी का उद्धार किया था...
बिन्देश्वर बाबू ने मामले को ऐसा घुमाया कि बिरादरी वालों के नजर में वे दोनों ही भाई पूज्य बन गए....बिन्देश्वर बाबू ने इसी बहाने बिरादरी वालों को जमकर लताडा जिनके आपसी फूट के वजह से छोटी जाति वाले आज इतने मजबूत हो गए थे....इन लोगों को सेट कर आश्वस्त हो जाने के बाद उन्होंने चुनाव के अन्य उम्मीदवारों जगदेव पासवान,हबीब मियां तथा गाँव के अन्य सभी रसूखदार लोगों को बुलवा पंचायत बैठाई.
पूरी घटना को वहां इस तरह रखा गया कि सभी लोग एक मत से दोनों भाइयों के इस कृत्य की सराहना करने लगे और लगे हाथ फैसला हुआ कि, शहर के उस कमजात छोकरे ने, जिसने कि एक विधवा की आबरू पर हाथ डाला, उसे उसके इस कुकृत्य की सजा मृत्युदंड के रूप में अविलम्ब दी जाय और पूरे समाज को सीख देने के लिए दोनों की चिता एक साथ जलाई जाय.....
जब तक यह पागल और बौराई हथियारों से लैस भीड़ उस दुस्साहसी आशिक को पकड़ने उसके घर पहुँचती,रामेश्वर बाबू की छोटी बेटी के मार्फ़त उसतक यह खबर पहुँच चुकी थी और वह वहां से जिला एस पी से मदद की गुहार लगाने निकल चुका था...
दोपहर होने को आया था पर युवक पकड़ में न आया था.तो बिन्देश्वर बाबू की राय पर सर्व सम्मति से फैसला हुआ कि अब शव का अंतिम संस्कार कर दिया जाय.लड़के को बाद में देख लिया जायेगा...
उस अभागन की अर्थी रसूखदार सवर्ण पिता के कन्धों पर भार नहीं बल्कि उनके प्रतिष्ठा को चार चाँद लगा गयी थी.समाज की परंपरा और परिवार की प्रतिष्ठा बचाने के लिए अपनी ही बेटी का बलिदान देना, कोई छोटी उपलब्धि तो नहीं थी.
चिता जलनी शुरू ही हुई थी कि किसी ने आकर खबर दी कि युवक पुलिस दल सहित एस पी साहब को लेकर वहां आ रहा है और किसी भी समय वहां पहुँच सकता है...
उस समय वहां की एकता देखते ही बनती थी. उत्साही उन युवकों ने, जो अबतक उस विधवा के नाम पर लार टपकाया करते थे,गाँव की प्रतिष्ठा बचाने के लिए अनान फनान में सभी जीपों मोटरसायकिलों तथा आस पास के घरों से पेट्रोल तथा मिट्टी के तेल इक्कट्ठे कर चिता के मद्धिम आग को लपटों में बदल दिया और सभी ने एक स्वर से दोनों भाइयों का जयकारा लगते हुए आश्वस्त किया कि एस पी साहब आयेंगे तो क्या,उन्हें पूरे गाँव से एक गवाह नहीं मिलेगा...किसी प्रकार की चिंता न करें वे....
और यही हुआ......एस पी उन रसूखदारों द्वारा सेट कर लिए गए.......महीने भर के अन्दर बेचारा युवक गायब कर दिया गया...बिन्देश्वर और रामेश्वाए बाबू के घर एक हो गए थे और सबसे बड़ी बात बिन्देश्वर बाबू भारी मतों से चुनाव जीत गए थे......
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31 comments:
कहानी पढ़ते हुए ही रौगटें खड़े हो जाते है.. कमाल का प्रवाह लिए हुए घटिया समाज की परते खोलती हुई कहानी.. यू कहु एक सशक्त कहानी..
इस पर तो ज़रूर एक फिल्म बननी चाहिए
मुझे इंतजार था कहानी के अगले भाग का और यह बहुत ही लाजवाब रहा ।रंजना जी कहानी के प्रथम भाग के बिल्कुल परे पहुँचा दिया यह दूसरा भाग । बहुत ही सधी कहानी आगे बढ़ी । समाज के काले चेहरे को उकेरा है आप ने । इस तरह के कुकृत्य सामने आते रहते हैं । तारीफ के निशब्द हूँ । बधाई बहुत बहुत ।
कहानी की एक एक पंक्ति बहुत ही रोंगटे खड़े कर देने वाली है ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
har pankti jaise jeevant drushya samne rakh gayi,bahut prabhavshali rahi kahani,badhai
काफी मेहनत करती हैं आप।
सच में ...कमाल का प्रवाह! एक भ शब्द कम या ज्याद नही प्रयुक्त हुए...! समाज का सच, राजनीति का सच, ऊँची नाक का सच....!
प्रशंसा के लिये शब्द कम पड़ रहे है...! ईश्वर आपको उस मकाम पर शीघ्र पहुँचाये जिसके आप योग्य हैं।
रंजना जी बहुत ही प्रभावशाली और मर्म स्पर्शी कहानी है.
be:shaq....
aap ek umda kahanikaar hai.
baat ko jis tarah se disha dii hai
kabil-e-tariif hai.
किसी भी स्थिति का लाभ लेना कोई इन राजनेताओं से सीखे। मैं सिद्धान्तत: बिन्देश्वर बाबू की घोर आलोचना करूंगा। पर मैं यह सिचयुयेशन कैश करने का गुणा अवश्य सीखना चाहूंगा- जो मुझे आता नहीं है।
कृष्ण इस विधा में पारंगत थे!
पूरी कहानी बढ़िया लिखी है. जातिगत से लेकर सारे समीकरण भुनाना राजनीतिज्ञ का 'गुण' है.
कहानी बढ़िया लिखी है
ये हमारे समाज का चरित्र है भले ही हम आज इसे केवल नेताओं की ओर धेकेल दे....पर सच में ये हमारे समाज का एक घिनोना चेहरा है
यह कहानी तो आज के समाज कि सच्चाई से ओत प्रोत है ।
दोनो भाग आज ही एक साँस में पढ़ गया। आजकल के चुनावी मौसम में ऐसी कहानी बिलकुल सटीक वातावरण की ओर इशारा करती है। थोड़ी अतिशयोक्ति होना कोई बड़ी बात नहीं है। सन्देश बड़ा स्पष्ट है।
लेकिन बेवकूफ़ तो यह वोटर ही न है जो इन ठगों के हाथों हमेशा छला जाता है। कोई न कोई संकुचित सोच हमारे हाथ से इन घटिया लोगों को सत्ता की चाभी दिलवा देती है।
सरकारी तंत्र में एक कुर्सी हथिया लेने के बाद लूट-खसोट अब एक स्थापित परम्परा बन गयी है। सभी मतदाता इस public disgrace में शामिल हैं।
बिलकुल शरतचंद्र जैसी कहानी ,भावुक ,प्रेरणाप्रद ,
समाज का घिनौना रूप दिखता सच्चा आइना है आपकी कहानी... बधाई...
बहोत ही प्रभावी ढंग से रखी है आपने अपनी बात इस कहानी में. बिन्देश्वर बाबू का चरित्र इतनी प्रभावी तरीके से बुना है, आजकल के नेताओं की तस्वीर सामने आ जाती है. कहानी का प्रवाह, विषय की पकड़, शब्दों का चयन बहूत ही उत्तम है. आज के ग्रामीण समाज की त्रासदी और फिर भोले भाले लोगों का सामाजिक शोषण किस तरह से होता है, कैसे किसी भी बात को अपनी तरफ ये राजनेता मोड़ते हैं, इस बात को सही तरह से बांधा है.
कहानी आज के समय और समाज का सही चित्रण करती है. बधाई है आपको इतनी उत्तम कृति के लिए
सुन्दर कहानी
लगातार लिखते रहने के लिए शुभकामनाएं
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
http://www.rachanabharti.blogspot.com
कहानी,लघुकथा एंव लेखों के लिए मेरे दूसरे ब्लोग् पर स्वागत है
http://www.swapnil98.blogspot.com
रेखा चित्र एंव आर्ट के लिए देखें
http://chitrasansar.blogspot.com
बहुत सटीक और सच्चाई को बयां करती पोस्ट. शुभकामनाएं.
रामराम.
रंजना जी, यह कहानी पढ कर लगता है आप ने हमारे इस झुठे समाज के चेहरे से एक नकाब उतार दिया हो, हम करते है ओर शो क्या करते है......
आप का धन्यवाद इस कहानी के लिये
आपकी लेखन ऊर्जा यूँही प्रवाहमान रहे रँजना जी -स्त्री का सँघर्ष
एक कभी ना खत्म होनेवाली
पटकथा है
जिसे समाज कालिख से
तो कभी खून से रँगता है
और आगे बढ जाता है
रह जाते हैँ बस - आँसू :-(
स स्नेह, आशिष
- लावण्या
अच्छी और सच्ची कहानी ।
स्तब्ध हूँ ..पर ऐसी घटनाएँ होती है इससे इंकार नही किया जा सकता है. कहने को हम चाँद तक पहुँच रहें हैं. ...पर समाज की कई ऐसी शक्तियाँ हैं जो इस प्रगति का मुह चिढाती सी लगती है.बहुत अच्छा लिखा दीदी.
कहानी अपने परिवेश में हो रहे बदलावों को निरंतर दर्ज करती हुयी आगे बढ़ रही है विषम परिस्थितियों में बिन्देश्वर बाबू की राजनैतिक सूझ बूझ ही नहीं वरन अपने खून के खिलाफ चुनाव न लड़ने का विचार कथा को जीवन प्रदान करता है, सही और गलत का फैसला करने की जगह कहानी ग्रामीण जीवन में विभिन्न जातियों के समक्ष उपस्थित चुनौतियों का रेखांकन करती है स्वर्ण जहां अपनी प्रतिष्ठा पर छा रहे भूमंडलीकरण के प्रभावों से चिंतित है वहीं कहानी निम्न जातियों के द्वारा निम्नता के भाव से बाहर न आ पाने को बखूबी बयान करती है. कहानी में कई कथन बेहद प्रभावी हैं जो हमारी सामजिक व्यवस्था को उधेड़ते से दिखते है,
"पहले चूल्हे अलग हुए,फिर आँगन और अब दिल भी अलग हो गए थे."
"नाजायज बच्चा गिराना, विधवाओं के नाजायज सम्बन्ध या उम्रदराजों की भी लम्पटता, कोई अजूबी घटना न थी गाँव के लिए."
और भी बहुत कुछ है...
आप बधाई की पात्र हैं.
kya bat hai! karara vyangya-prahar.kya re samaj aur kya ri rajniti.
AAPKA lekhan badhiya hai.
Kripya SHABDKAR ko bhi sahyog den.
http://shabdkar.blogspot.com
अच्छी कथा-रचना के लिये बधाई...
hi... read ur write-up...ur blog is full of rich Hindi literature...it is a pleasure to go through ur blog...
by the way, which typing tool are u using for typing in Hindi...? recently i was searching for the user friendly Indian language typing tool and found ... " quillpad " do u use the same...?
heard that it is much more superior than the Google's indic transliteration...!?
expressing our views in our own mother tongue is a great feeling...save, protect,popularize and communicate in our own mother tongue...
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Jai..HO....
To aware people towards global warming.
http://biharsandesh.blogspot.com/
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एक अच्छी बात रही की कहानी कभी अटकी नही. घटनायें तो लगता है कल ही किसी समाचार पत्र में छपी हो. समाज का सच्चा चित्र दिखाती कहानी के लिये बधाई.
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