गिनती के पच्चीस दिन ही तो बचे थे चुनाव के.दिन भर की दौड़ धूप गोष्ठी और मगजमारी के बाद थक कर चूर हो चुके थे बिन्देश्वर बाबू. हवा का जो रुख अभी दिखाई पड़ रहा था,वह बहुत अधिक उत्साह जनक नहीं था.कुछ भी अनुमान लगाना मुश्किल था. अब पहले वाली बात न रही थी.उनकी धाक और दबंगता के आगे खुलकर भले कोई सामने आने की हिम्मत अब भी न रखता था ,पर भीतर ही भीतर सुलगती आग कभी भी भड़क कर विकराल विनाशक बन सकती थी. राजपूतों,सवर्णों के आपसी मतभेद तथा अंहकार और छोटी जातिवाले में अधिकार के प्रति सजगता और उनके संगठित हो रहे शक्ति ने परिदृश्य बहुत बदल दिया था।
जगदेव पासवान और हबीब मिया, जिन्हें उन्होंने ही अपोजिसन में खडा किया था, उन्हें विरोधी ताकतों ने उकसाकर भितरघात करने को बहुत हद तक राजी कर लिया था. इन सबने भी अन्दर ही अन्दर अपने लिए अच्छी खासी जमीन तैयार कर ली थी....कुछ घर राजपूत ,ब्रह्मण और यादव से तो वो निश्चिंत थे, पर बाकी सभी के साथ दुसाध,भुइंयाँ,कुर्मी कहार,चमार, मुसलमान आदि वोटर किसके सर जीत का सेहरा बंधेंगे, अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा था..मुंह पर सभी सबको आश्वासन दे रहे थे,पर अंततः करेंगे क्या,यह कोई नहीं जानता था.
पिछले तीन टर्म से बिन्देश्वर बाबू निर्विरोध चुनाव जीत रहे थे. इतना ही नहीं अपने अपोजिसन के केंडीडेट भी वे ही तय किया करते थे और उनकी जप्त जमानत की भरपाई भी वही किया करते थे.इस इलाके में सदियों से उनके पुरखों ने ही राज किया था और परम्परानुसार घर का बड़ा बेटा ही राज के लिए उत्तराधिकारी हुआ करता था,भले जमींदारी समाप्त हो प्रजातंत्र का यह पंचायती चुनाव ही क्यों न हो. हमेशा से इसी परिवार का मुखिया उत्तराधिकारी नियत करता आ रहा था. लेकिन सदियों की यह परंपरा इसबार ध्वस्त हो गयी थी.पत्नी साले और इनसे डाह रखने वाले कुचाक्रियों के बहकावे में आकर रामेश्वर बाबू अपने बड़े भाई बिन्देश्वर बाबू के खिलाफ खड़े हो गए थे।
बिन्देश्वर बाबू समय पहचान रहे थे और आज भाई को छोड़ कोई और अगर खिलाफत में इस तरह सामने आता और मोर्चा खोलता तो उन्हें इतना असह्य कष्ट न होता,पर आज जो अपना भाई ही परम्परा को छिन्न भिन्न कर दुश्मनी पर उतर आया था और उन सारे लोगों को जो वर्षों से इनकी एकता को खंडित कर इनके ताकत और प्रभाव को समाप्त करना चाहते थे,उन्हें सुनहरा मौका दे रहा था,यह बात उन्हें तिल तिल कर तोड़ रही थी..आज तक इस इलाके में उनके परिवार का एकछत्र शासन रहा था.लोग इतने भयाक्रांत रहा करते थे कि चाहकर भी कोई सामने आकर इनका अहित करने की नहीं सोच पाता था. पर आज तो सबको खुला अवसर मिल गया था,हंसने का भी और काटने का भी.
जनानियों के चिख चिख से तंग आकर दोनों भाइयों के सम्मिलित सहमति से जो चूल्हे अलग हुए,वह अलगौझा आज यहाँ तक आ पहुंचा था..पहले चूल्हे अलग हुए,फिर आँगन और अब दिल भी अलग हो गए थे. दोनों तरफ आग लगाने वालों को सुनहरा मौका मिल गया था. बिन्देश्वर बाबू कान के कच्चे न थे,पर कमअक्ल रामेश्वर बाबू को लोग आसानी से फुसला लिया करते थे..हालाँकि बिन्देश्वर बाबू अपने भाई की कमजोरी जानते थे और उन्हें पाता था कि उसके अधिकाँश हरकतों के पीछे उनसे वैर रखने वालों का ही हाथ हुआ करता था,पर इस तरह रामेश्वर को लोगों के हाथों कठपुतली बने इस्तेमाल होते देखना, उन्हें बड़ा ही क्षुब्ध कर जाता था..
चुनाव के नोमिनेशन से पहले तक किसी तरह घर की इज्ज़त को बिन्देश्वर बाबू ढंके हुए थे.पर रामेश्वर ने उनके खिलाफ खड़े होकर चाहरदीवारी के अन्दर के विवाद को सड़क पर लाकर खडा कर दिया था.अब तो हितचिंतकों की नजरों में भी बिन्देश्वर बाबू को व्यंग्य दीखता था.जो घर आज तक दूसरों के झगडे सुलझाया करता था,उसीके किस्से अब सारे आम चटखारे लेकर बांचे जाते थे..
बिन्देश्वर बाबू ने सोचा खुद ही चुनाव से नाम वापस लेकर घर की इज्ज़त बचा लें,पर तबतक बात इतनी आगे बढ़ गयी थी कि उनके इस फैसले के विरोध में उनके अपने परिवार और हितचिन्तक ही अड़ गए थे. एक तरह से उनके वापस मुड़ते पैर को उनके पक्षधरों ने हथियार बनाकर आगे बढा उसे सामने जमीन पर ऐसे रोप दिया था दिया था कि चाहकर भी उसे हिलाने डुलाने में वे अक्षम हो गए थे.
रात दो पहर बीत चुका था. घर में कुत्ते और पहरेदारों को छोड़ लगभग सभी सो चुके थे.पर नींद बिन्देश्वर बाबू के आँखों से कोसों दूर थी.क्षोभ चिंता क्रोध आदि आदि ने उन्हें ऐसे घेर लिया था कि नीद उनकी आँखों से पलायन कर चुकी थी.उसी समय उनके दरवाजे की सांकल बजी.आशंकित स्वर में बिन्देश्वर बाबू ने पूछा....कौन????
बाहर से पहरेदार सुखदेव ने प्रत्युत्तर में अपना नाम बताते हुए दरवाज़ा खोलने का आग्रह किया....
सुखदेव के स्वर की व्यग्रता ने बिन्देश्वर बाबू को आशंकित कर दिया..लगभग भागकर उन्होंने दरवाज़ा खोला...सुखदेव ने खबर दी कि दरवाजे पर रामेश्वर बाबू खड़े हैं और अभी तुंरत मिलने की जिद कर रहे हैं....क्या किया जाय ???
घड़ी भर तो बिन्देश्वर बाबू ऊहापोह में रहे...फिर उन्होंने रामेश्वर को बैठक में लिवा लाने को कहा...आदेश पाकर भी सुखदेव ठिठका रहा, तो उन्होंने उसे आश्वस्त करते हुए कहा....."जो भी है,भाई है मेरा....कोई बहुत बड़ा अहित नहीं कर सकता...डर मत, जाकर लिवा ला.......देखते हैं, क्या बात है "
...यह बात उन्होंने सुखदेव से कही जरूर थी, पर यह दिलासा उन्होंने अपने आप को भी दिया था, क्योंकि आज कुछ लोग दबी जुबान बिन्देश्वर बाबू को रामेश्वर से सम्हल कर रहने की सलाह दे गए थे,जिसे उन्होंने उस समय तो उन्होंने झिड़क दिया था...पर मन से पूरी तरह न झिड़क पाए थे....
बिन्देश्वर बाबू के बैठक में पहुंचने के कुछ क्षणों बाद ही रामेश्वर सुखदेव के साथ पहुँच गए...आते ही वे बिन्देश्वर बाबू के कदमो पर लोट गए और ''भैया हम बर्बाद हो गए" कहकर पैर पकड़कर फूट फूट कर रोने लगे।
बिन्देश्वर बाबू इस अप्रत्याशित स्थिति के लिए बिलकुल तैयार न थे,बुरी तरह अकबका गए और रामेश्वर को किसी तरह पैरों से खींचकर उठाकर उन्होंने खडा किया.खींचतान में रामेश्वर बाबू की ओढी चादर हट गयी थी और जब वो खड़े हुए तो उनके खून से तर कपडों को देख बिन्देश्वर बाबू बुरी तरह आशंकित हो गए...समझा बुझाकर, पानी वगैरह पिलाकर उन्होंने किसी तरह रामेश्वर बाबू को शांत किया और सारा मामला पूछा .रामेश्वर बाबू ने जो बताया, सुनकर दो पल को उनका दिमाग भी एकदम से सन्न रह गया.....
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24 comments:
itani achhi kahani kaphi dino baad padhane ko mili..
बेहद सटीक कहानी चल रही है । आगे के अंक की प्रतीक्षा रहेगी । बढ़िया शुरूआत की है आपने पारिवारिक मतभेद को लेकर । वास्विकता के काफी करी लगा ये पहला अंक । पाठक को बांधने में सफल रही है आप।
बढ़िया कहानी अगले भाग की प्रतीक्षा में
कैसा वक़्त आ गया है न आज कल . सही उभर के आया है आपकी इस कहानी के अंक में
आगे का इन्तिज़ार रहेगा ..कहानी ने बांधे रखा
बहुत सुंदर शुरुआत है आगे का इन्तजार है.
रामराम.
बहुत दिनों के बाद एक रोचक कहानी पढने को मिली है, कृपया इसकी रोचकता को समाप्त मत कीजियेगा. अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी. विदेश में बैठे बैठे एक दिन अपने घर और अपनेपन की याद दिला दी..., कोटिश धन्यवाद..
रोचक! उत्तरार्ध की प्रतीक्षा रहेगी।
भारत के ग्रामीण सामंती माहौल को आपने अच्छी तरह देख रखा है!
यह कहानी भी बहुत रोचक लगी, पहली कहानियो की तरह से, अब जल्दी से अगली कहानी भी लिख डाले.
धन्यवाद
बनावट व बुनावट में भी कहानी सधी हुई है। ऐसे सामाजिक विषयों पर महिलाओं का लिखना एक बहुत अच्छा संकेत है।
अब तक की कहानी बहुत अच्छी लगी ...अगली कड़ी का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा !!!!!!!
एकदम जाना पहचाना चुनावी माहौल लगा और अहसास होता रहा मानो चलचित्र देख रहे हैं.
बहुत बहावयुक्त सधी हुई रोचक कथा जो एक सस्पेन्स पर आकर अगले अंक का इन्तजार करवा जाये तो उससे सफल कथाकारी और क्या हो सकती है, जिओ!!!
इन्तजार कर रहे हैं अगले अंक का!!
aapne to chitra kheench diya aankhon ke saamne
आपने तो रोम रोम में रोमांच भर दिया.. दिमाग़ में सीन बाय सीन कहानी चल रही थी.. प्लीज़ इंतेज़ार मत करवाएगा.. इसे जल्द से जल्द प्रकाशित करिए..
javab nahii aapka ..laajavab
pritksha mein hai agle bhaag kii.
jab aap apna kahani sangrah prakashit kareN to ek priti bheiT mein humeN bhi bhejna.
aagaaz uttam...anjaam jaldi bataye.n
रंजना जी कहानी लिखना भी बहुत ही संयम का काम है!
आप की कहानी की शुरुआत अच्छी लगी..
रामेश्वर बाबू ने ऐसा क्या कहा?यह जानने हेतु अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी.
दिलचस्प है रंजना जी...इस बार के कथादेश में एक ऐसे ही नेता जी के बाहने काफी कुछ कहा गया है...आपके अगले भाग का इंतज़ार रहेगा
Achhi kahani hai...
aapne kahani ke bahane kafi kuchh kah diya...
बहुत अच्छी कहानी...
बहुत-२ बधाई...
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रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
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आपकी कहानी हमेशा बहुत पसँद आतीँ हैँ ये भी बाम्धे रखती है आगे की प्रतीक्षा रहेगी
स्नेह,
- लावण्या
बहुत सुन्दर और वास्तविक कहानी - आगे की कड़ी का इंतज़ार है.
aapake blog ki rachanaayen padhakar mujhe sukhad anubhuti hui. khaskar bhasha ki shudhata. aapane saahity waala mandand banaaye rakha hai, warana aaj blogging men atirikt prabhav aur lopriyata ke liye shabdon ko bewajah vikrit kiya jaa raha hai.
jaise baazaar men har tarah ka saahity milta hai waise hi internet par har tarah ke blogger hain. jise jo chahiye wo mil jaayega.
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