21.1.11

महानायक !!!



किसी भी कालखंड में काल विशेष के प्रसिद्द चर्चित व्यक्तित्वों के चरित्र और कृतित्व के विषय में लोक में जो कुछ भी प्रचारित रहता है, क्या वह वही होता है जो वास्तव में वह हैं या थे?? शायद नहीं न !!! क्योंकि व्यक्ति विशेष के विषय में लिखित रूप में जो कुछ भी संगृहित होता है,वस्तुतः वह लेखक /प्रचारक या लिखवाने प्रचारित करवाने वाले के हिसाब से होता है..लेखक अपने रूचि और संस्कार के अनुरूप व्यक्ति विशेष का चरित्र एवं कृतित्व गढ़ उसे लोक तक पहुंचता है. कभी कभी तो यह सत्य वास्तविकता से कोसों दूर हुआ करती है. कालांतर में व्यक्ति विशेष के विषय में जो विचार धारा सर्वाधिक प्रचार पाती है, वही मत स्थिर करने का आधार भी बनती है..

आज मिडिया सिने अभिनेता अमिताभ बच्चन जी का नाम " सदी के महानायक " लगाये बिना नहीं लेती..अमिताभ जी परिपक्व अभिनेता और प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी हैं,सुसंस्कृत शालीन सज्जन प्राणी हैं.. मेरे मन में उनके लिए बड़ा आदर भाव है,परन्तु उनके लिए इस उपाधि का प्रयोग मुझे अखर जाता है. हिन्दी भाषा जानने, शब्दों के अर्थ और महत्त्व समझने वालों की तो छोडिये, भारतीय सिनेमा के दर्शक /प्रशंशक भी क्या ह्रदय पर हाथ धर निरपेक्ष निष्पक्ष भाव से कह पाएंगे कि भारतीय सिनेमा के पिछले सौ वर्षों (सदी) में अमिताभ बच्चन जी सा धुरंधर अभिनेता हिन्दी सिनेमाँ में और कोई हुआ ही नहीं है ??? और जहाँ तक बात रही महानायकत्व की तो 'महानायक' शब्द का प्रयोग "महान अभिनेता" के अर्थ में होना चाहिए या "महान नेतृत्वकर्ता " के रूप में, यह हिन्दी भाषा के ज्ञाता विचार कर निर्धारित सकते हैं. वर्तमान का सत्य यही है कि यह उपाधि इतना प्रचारित कर दिया गया है कि इसपर प्रश्चिन्ह लगाने का कोई सोच भी नहीं पाता..यह प्रचार अतिरंजना ऐसे ही विस्तृत हुआ तो बहुत बड़ी बात नहीं कि आज से कुछ दशक या शतक वर्ष उपरान्त इनके चरित्र के साथ कुछ चमत्कारिक किंवदंतियाँ भी जुड़ जाएँ.. इन्हें महान अवतार ठहरा मंदिरों में प्रतिस्थापित करने लगा जाए और फूल फल अगरबत्ती से इनकी पूजा अर्चना आरम्भ हो जाए... अपने चारों ओर ऐसे दृष्टान्तों की कोई कमी नहीं.

एक और दृष्टान्त... आज खूब चर्चा में हैं डॉक्टर विनायक सेन..कुछ लोग इन्हें महान ठहराने में एड़ी चोटी साधे हुए हैं, तो कुछ आतंकवादियों का सहयोगी ठहरा अहर्निश निंदा में व्यस्त हैं..एक ही साथ,एक ही समय में , दो एक दम विपरीत विचारधाराएँ प्रचारित हैं. आमजन दिग्भ्रमित हैं कि इस व्यक्तित्व की वास्तविकता आखिर है क्या. अच्छा, बुरा क्या मानें इन्हें??.. आज जब व्यक्ति हमारे बीच उपस्थित है, तब तो वास्तविकता तक हमारी पहुँच नहीं, मान लिया आज से कुछ सौ वर्ष बाद इनपर चर्चा हुई या इनके विषय में मत स्थिर करना होगा, तो हम किस आधार पर करेंगे ??? संभवतः इसका आधार आज की बहुप्रचरित धारा ही होगी...नहीं ?? चलिए, वर्तमान की बात हो या दो ढाई सौ वर्ष पीछे की बात,किसी प्रसंग की सत्यता तक कोई अनुसंधानकर्ता पहुँच भी जाए ,पर बात जब हजारों या लाखों वर्ष पहले की हो तब ?? सत्यान्वेषण इतना ही सरल होगा क्या ???

विश्व में प्रचलित धर्म सम्प्रदायों में चाहे वह इस्लाम हो,इसाई हो या अन्यान्य कोई भी धर्म सम्प्रदाय, किसीमे भी अपने धर्म संस्थापकों, प्रवर्तकों , नायकों ,पूज्य श्रेष्ठ व्यक्तियों के चरित्र को लेकर अनास्था या मत विभिन्नता उतनी नहीं जितनी कि हिन्दुओं में है. यूँ भी एक परंपरा सी बनी हुई है कि हिन्दुओं के पौराणिक पात्रों तथा प्रसंगों को मिथ या कल्पना ठहरा नकार दिया जाए.. इधर कुछेक संस्थाओं , विद्वानों ने इनकी सत्यता जांचने का बीड़ा उठाया तो है, पर देखा जाय कि उनके प्रयोजन कितने निष्पक्ष हैं.. मुझे विश्वास है कि इस दिशा में यदि गंभीर और निष्पक्ष प्रयास किये जायं तो समय सिद्ध करेगा कि ये पौराणिक पात्र विशुद्ध इतिहास के अंग हैं, मिथ या कपोल कल्पना नहीं..

बात जब पौराणिक पात्रों युगपुरुषों, महानायकों की होती है,तो मर्यादापुरुसोत्तम राम और महानायक कृष्ण का नाम ध्यान में सबसे पहले आता है.. पर इनके विषय में लिखित संरक्षित साहित्य का अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि युग के इतिहास का रुख मोड़ देने वाले इन दो महापुरुषों में से राम के चरित्र के साथ कलमकारों ने जितना न्याय किया उतना कृष्ण के चरित्र के साथ नहीं किया. तुलसीदास जैसे सहृदय कवि ने जिस प्रकार राम कथा तथा उनके चरित्र को विस्तार दे इसे जन जन के ह्रदय में प्रतिष्ठित कर जनमानस के लिए पूज्य और अनुकरणीय बनाया, ऐसा सौभाग्य कृष्ण चरित्र को प्राप्त न हुआ..वैसे तुलसीदास ही क्या राम का चरित्र जिन हाथों गया और विवेचित हुआ अधिकाँश ने उसके साथ न्याय किया,परन्तु विडंबना रही कि कृषण के जीवन और चरित्र को प्रत्येक कलमकारों ने अपने रुचिनुसार खण्डों में ले खंडविशेष को ही विस्तार दिया.

कोई कृष्ण के बाल रूप पर मुग्ध हो, वात्सल्य रस में लेखनी डुबो बालसुलभ चेष्टाओं को चित्रांकित करने में लगा रहा तो कोई श्रृंगार में निमग्न उसे पराकाष्ठा देने में एडी चोटी एक करता रह गया..किसीने उन्हें अलौकिक,चमत्कारिक परमेश्वर ठहराया तो किसीको कृष्ण धूर्त चतुर कूटनीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ भर लगे. समग्र रूप में इस विराट व्यक्तित्व के सम्पूर्ण जीवन और कर्म की विवेचना करने में भक्तिकाल से लेकर रीतिकाल तक के किसी भी मूर्धन्य कवि ने अभिरुचि न दिखाई ..कृष्ण के लोक रंजक रूप पर तो खूब पन्ने रंगे गए पर उनके लोकरक्षक रूप को लोक के लिए अनुकरणीय रूप में समुचित ढंग से कोई नहीं रख पाया...

रीतिकालीन साहित्यकारों में तो श्रृंगार के प्रति आसक्ति ऐसी थी कि राज्याश्रित कवियों ने कृष्ण को लम्पट कामी और लुच्चा ही बनाकर छोड़ दिया.एक साधारण मनुष्य तक की गरिमा न छोडी उनमे.. यूँ भी श्रुति और स्मृति में संरक्षित हिन्दू धर्म ग्रंथों के उपलब्ध लिखित अंशों को सुनियोजित ढंग से प्रक्षेपांशों द्वारा विवादित बना छोड़ने और हिन्दुओं को दिग्भ्रमित करने में अन्य धर्मावलम्बियों ने शताब्दियों में अपार श्रम और साधन व्यय किया है. आस्था जिस आधार पर स्थिर और परिपुष्ट होती है,उसको खंडित किये बिना समूह को दुर्बल और पराजित करना सरल भी तो नहीं....


क्रमशः :-
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30 comments:

दिगम्बर नासवा said...

आपकी बात से सहमत हूँ की आज मीडिया जाने अनजाने ही कुछ लोगों को महानायक बनाने पर तुला है ... पर ये महानायक लम्बे समय तक महानायक बन के नहीं रह सकेंगे ...
आपकी इस बात से भी सहमत हूँ की राम और कृष्ण कपोल कल्पित नहीं बल्कि हमारे इतिहासिक महा नायक ही हैं .. और शायद १८ वी सदी तक हमारा जनमानस भी मानता था .. पर अंग्रेजों में इसे मिथ /एपिक की संज्ञा दे दी और तभी से ऐसा चला आ रहा है ... स्वतंत्र के बाद किसी राजनितिक शक्ति में इतना साहस नहीं रहा की इसे पुनः इतिहासिकता का दर्जा दे ... जहां तक राम और कृष्ण के चरित्र की बात है ये सच है की तुलसीदास ने राम को जनमानस तक पहुंचाया .... पर कृष्ण का चरित्र आज भी सबसे ज्यादा आकर्षित करता है जन-मानस को ... उसकी विविधता हमेशा सम्मोहित करती है ...
बहुत ही अच्छा विषय लिया है आपने ... और आपकी शैली तो कमाल की है लिखने की ... अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी ...

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

आपके इस आलेख में जिन जरुरी विषयों और चिंतन को रेखांकित किया गया है इसके लिए सर्वप्रथम आपका आभार व्यक्त करता हूँ.
किसी को पूजने अथवा सर्वशक्तिमान घोषित करने सम्बन्धी कुछ ऐसी ही बात पर मैं पिछले साल बड़ा परेशान भी हुआ था.
बातों बातों में आपने बहुत से क्षेत्रों की और इशारा किया है जी निश्चय ही भविष्य में इतिहास की नयी व्याख्या करने वाले होंगे.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

रही बात राम और कृष्ण के सम्बन्ध में, दोनों ही चरित्रों का पूर्ण विस्तार हुआ है. श्री राम के मुख्यता स्थिर और सहज रूप दर्शन होते हैं वहीँ श्री कृष्ण आज भी अनेक चमत्कारिक शक्तियों के स्वामी है. उनका समग्र दर्शन किसी एक प्रसंग मात्र से पूरा नहीं होता. अतः थोड़ी बहुत उंच नीच चरित्र व्याख्या में हो जाती है

अरुण चन्द्र रॉय said...

रंजना जी सदैव ही आपके विषय नवीन होते हैं और आपकी शैली प्रवाहमान.. दुःख होता है कि एक व्यक्ति जो पिछले २५-३० वर्षों से धूप, खेत खलिहान, आम आदमी, आम समस्या नहीं देखे.. किसी के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं ला सका.. वह महानायक कैसे हो सकता है.. सबसे प्रसिद्द अभिनेता की पहुच भी देश के एक चौथाई आबादी तक नहीं है.. ऐसे में वह पूरे राष्ट्र का नायक कैसे हो सकता है.. देश को गाँधी के बाद कोई नायक और नेतृत्वा करता नहीं मिला.. उस से पूर्व जरुर थे कुछ व्यक्तिव जैसे बोस, विवेकनद, दयानंद सरस्वती, राजा राम मोहन राय..

Satyendra PS said...

आपकी चिंता जायज है। इतिहास में भी इस तरह के तमाम मतभेद मिलते हैं। तमाम मामलों में तो आम लोगों में व्यक्तित्व के बारे में सोच बदलती रहती है। राम को तुलसीदास ने प्रसिद्धि दिलाई, कबीर को हजारी प्रसाद द्विवेदी ने दिलाई... ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाएंगे। इतिहास में औरंगजेब भी विवादास्पद हैं, एक तरफ तो उसके मंत्रालय में ३७ प्रतिशत हिंदुओं का उल्लेख होता है, जो किसी भी मुगल शासन की तुलना में सर्वाधिक पदाधिकारी थे, वहीं उसे हिंदू विरोधी भी कहा जाता है। एक वर्ग गांधी को नायक कहता है तो दूसरा सुभाष को। यह तो चलता रहता है और आगे भी चलता ही रहेगा।

Arvind Mishra said...

लेख को पढ़ते वक्त कई विचार स्फुलिंग कौंधे हैं मगर पूरा लेख तो पढ़ लूं -इंतज़ार है !

vijai Rajbali Mathur said...

हिन्दू शब्द फारसी का है और उसके बहुत गलत अर्थ हैं.फारसी आक्रान्ताओं ने हमारे देश और निवासियों को निकृष्ट सिद्ध करने हेतु यह नाम दिया था.
कुरान की तर्ज़ पर तब के शसकों ने यहाँ के पद -धन-लोलुप तथाकथित ज्ञानियों से पुराण लिखवाये थे.
कृष्ण का चरित्र हनन इन्हीं पुरानवादियों की करतूत है.
योगीराज श्री कृष्ण तत्कालीन राजनीति के महानतम एवं सफलतम राजनेता थे.
कलकत्ता में अभी भी अमिताभ बच्चन का मंदिर है.यह सब कुत्सित मानसिकता का परिचायक है.
बेहद सही मुद्दों पर आपका यह लेख है.धन्यवाद.

Ankur Jain said...

bahut sundar....

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

prerak lekh...
media jo kar le kam hai.

arvind said...

aapki baaton se sahmat hun.

shikha varshney said...

काफी हद तक सहमत हूँ आपसे ..अब तो हाल यह है कि १० लोग मिल कर जिसे मर्जी उठा दें और जिसे मर्जी गिरा दें.जिस तरह कुछ अंग्रेजों ने मिल कर हमारे इतिहास को ही मिथ एपिक करार दे दिया.
अच्छा विषय लिया आपने आगे का इंतज़ार है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

अत्यन्त सुंदर विवेचना की है, जो यह प्रदर्शित करती है कि वास्तविक चरित्रों को भी रचियता अपनी निगाहों से देखता है और कल्पना का मिश्रण कर उसे की पुनर्प्रस्तुत करता है। राम और कृष्ण भी यदि वास्तविक चरित्र रहे होंगे तो वे कम से कम वैसे तो नही ही रहे होंगे, जैसा हम साहित्य से उन्हें जानते हैं।

mark rai said...

तुलसीदास जैसे सहृदय कवि ने जिस प्रकार राम कथा तथा उनके चरित्र को विस्तार दे इसे जन जन के ह्रदय में प्रतिष्ठित कर जनमानस के लिए पूज्य और अनुकरणीय बनाया, ऐसा सौभाग्य कृष्ण चरित्र को प्राप्त न हुआ.......
..aisa to society me dekhne ko mil jata hai....apni lekhani ke dwara hi tulsi daas ne ram charitmanas ko itani prasiddhi dila di...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

ek gahan vaicharik lekh jo ati mahtvpoorn vishay par likha gaya....
bahut achchha vishleshan ..

प्रवीण पाण्डेय said...

चलती को गाड़ी कहें, नगद माल को खोया,
रंगी को नारंगी कहें, देख कबीरा रोया।

हमारे महापुरुषों को काल्पनिक बना कर पता नहीं किस निरपेक्षता को बल मिल रहा है।

उपेन्द्र नाथ said...

रंजन जी बहुत ही विचारणीय आलेख है. आपने बहुत ही विधिवत विश्लेषण किया है...... सच कभी कभी तो हम लगता है किसी को ज्यादा ही महान बना देते है जबकि ये उसका रोज का ही काम होता है जैसे की सबके. हा कोई कम कोई ज्यादा, ये तो रहता ही है. ........... सुंदर प्रस्तुति.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आपकी बात सही भी और विचारपूर्ण भी ....... आमतौर पर ऐसा महिमामंडन मीडिया के ज़रिये किया जाता है और फिर जन जन उसे ही दोहराने लगता है...... गहरे विश्लेषण और प्रभावी दृष्टिकोण से लिखे आलेख के लिए बधाई.....

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

रंजू, बिल्कुल सहमत हूँ सरी बातों से... ये महानायक वगैरह किसी के साथ जबर्दस्ती चिपका दिए जाते हैं... सचिन ब्रैडमैन से बेहतर, अमिताभ दिलीप से बेहतर और न जाने क्या क्या!! महानाय्क शब्द की कोई गरिमा ही बाक़ी नहीं!! अब देखो न मीडिया द्वारा बेस्ट कॉरपोरेट, इंडस्ट्रियलिस्ट का अवार्ड हर साल दिया जाता है... कभी बेस्ट फार्मर ऑफ द ईयर का अवार्ड देते नहीं सुना गया और अगर हो भी तो उसका लाइव टेलिकास्ट मेरी नज़रों से नहीं गुज़रा..
असली महानायक कौन है यह सिर्फ किसी के नाम के बाद या पहले सिर्फ यह शब्द जोड़ने से नहीं होता... यह मीडिया के दिये शब्द हैं, अमित जी ने कभी ऐसा नहीं कहा स्वयम् के लिये.. और मीडिया की बातें हैं, बातों का क्या!!

Manish Kumar said...

आपकी बातें विचारणीय हैं। इतिहास सत्य की ओर एक अनुमान ही दे सकता है और उसे उन्हीं अर्थों में लिया जाना चाहिए। किसी को मीडिया महिमामंडित करता है उसके आगे अपनी तरह के विशेषण लगाता है उसे हम चाहें भी तो रोक नहीं सकते। अब देखिए बच्चन महानायक हैं जब भी मैंने सुना तो मन में कभी खटका नहीं हुआ क्यूँकि मेरे मन में इस शब्द को लेकर महान अभिनेता का ही बोध हुआ।
जैसे आज किसी को उठाने गिराने का प्रचलन है वैसा पुरातनकाल में भी रहा होगा। अचानक ही ये ख्याल आ रहा है कि चंदबरदाई ने भी पृथ्वीराज चौहान के कृत्यों के बारे में कितनी बातें कहीं और उसे मानकर हम पृथ्वीराज चौहान की कहानियाँ सुनाते वक़्त गर्व करते हैं। हो सकता है कि चंदबरदाई ने अपने राजा के बारे में सारा सच ना लिखा हो। पुराने महानायक क्या सचमुच में उतने महान थे इस पर भी बस अनुमान ही लगाया जा सकता है।

Smart Indian said...

सटीक प्रश्न, सुन्दर विश्लेषण!

Abhishek Ojha said...

हम्म...

amrendra "amar" said...

sateeik chitran hamari mansikta ka aur aaj ke samaj ka .......http://amrendra-shukla.blogspot.com

Anonymous said...

बहुत विचारपूर्ण पोस्ट है.
ऐसे प्रश्न तो यदाकदा उठते ही रहते हैं. वैज्ञानिक चिंतन हमेशा ही तो सही नहीं होता.

pran sharma said...

Iqbal ne kabhee kahaa tha -

KHUDEE KO KAR BULAND ITNA
KI HAR TAQDEER KE PAHLE
KHUDAA BANDE SE YE POOCHHE
BATAA TEREE RAZAA KYA HAI

AMITABH BACHCHAN KO MAHAANAAYAK KAH
LIJIYE YAA MAHA ABHINETA , BAAT
EK HEE HAI . EK - DO KE KAHNE SE
VAH MAHAA NAAYAK NAHIN BANAA HAI .
US KE MAHAA NAAYAK BANNE KE PEECHHE
KEWAL DESH MEIN HEE NAHIN ,VIDESH
MEIN BHEE LAKHON - KARODON
LOGON KE SHUBH KAMNAAYEN HAIN .
LOGON KEE AESEE HEE SHUBH KAMNAAYEN MOHAN DAS KARM CHAND
GANDHI , BAL GANGADHAR TILAK ,
LALA LAJPAT RAI , SUBHASH CHANDRA
BOSE , BHAGAT SINGH ITYADI KE SAATH THEE AUR VE KRAMSHA MAHATMA
YAA RASHTRAPITA , LOKMAANYA ,
SHER - E - PANJAB , NETA JI ,
SHAHEED - E -AAZAM KAHLAAYE . LOGON KEE SHUBH KAMNAAYEN ZARRE KO
AASMAAN PAR BITHAA DETEE HAI .

BHAGWAN KRISHNA KEE LOKPRIYTA
BHAGWAN RAM SE KATAEE KAM NAHIN
HAI . BHAGWAN KRISHNA KO TO SOLAH
KALAA SAMPOORN MAANAA GAYAA HAI .
UNKE MUKH SHREE SE NIKLEE " GEETA "
SANSAAR KO AMMOOLYA DEN .SHAYAD HEE
KISEE ANYA BHAGWAAN KAA JANMDIWAS
ITNEE DHOOM DHAAM SE MANAAYAA JATA
HAI JITNA BHAGWAAN KRISHNA KAA .

LEKH KEE AGLEE KADEE PADHNE KEE
PRATEEKSHA RAHEGEE .

Rohit Singh said...

रंजना जी आपकी बात दुरुस्त है। एक संशोधन करना चाहूंगा कि अमिताभ बच्चन को हमेशा फिल्म के संदर्भ में ही महानायक कहा गया है। जब भी उनकी चर्चा होती है तो फिल्म के कारण ही होती है। इससे इतर उनका जिक्र नहीं के बराबर होता है मीडिया में। उन्हें कोई देश का महानायक नहीं कहता। ये खुद अमिताभ भी कुछ साक्षात्कार में मानते हैं कि मीडिया ने ही उन्हें ऐसी पदवी दी है जो सही नहीं है। दिल से हालांकि प्रशंसा सुनना सबको अच्छा लगता है मगर विनम्रता से अमिताभ हर बार अपने महानायक होने से इनकार करते रहे हैं। मैं उनका प्रशंसक हूं, पर कई मामलों में उनका घोर आलोचक भी। इसलिए उनको जब भी महानायक कहा गया है तो सिर्फ फिल्मों के ही संदर्भ में ही। ये ठीक है कि उन्होंने कई लोगो की पैसों से मदद की हैं जिनमें कुछ आंध्र के किसान भी हैं, पर उनके समाजिक प्रभाव को देखते हुए ये बेहद ही मामूली कहलाएगी।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

महानायक से शुरू कर आपने चर्चा को गहन विस्तार दिया है। देखें अंत कहाँ होता है !
अमिताभ बच्चन महान अभिनेता हैं। वैसे आप निश्चिंत रहें अतिशयोक्ति को वक्त अजगर की तरह निगल जाता है।
श्री कृष्ण की अलग-अलग रूपों में चर्चा उनके देवत्व को बढ़ाता है। कवियों के उर्जा श्रोत, सत्य के प्रथम ज्ञाता, मुरलीधर को कौन महत्व नहीं देगा ! महान दार्शनिक सिर्फ उन्हीं की शरण में जाना चाहते हैं। दूसरे धर्म के लोग भी उनके गुन गायेंगे...अभी तो कई सदियाँ आनी शेष हैं।

Rahul Singh said...

समष्टि की चेतना आसानी से पहचानी नहीं जाती लेकिन होती है वह शक्तिशाली और दीर्घजीवी.

निर्झर'नीर said...

क्या वह वही होता है जो वास्तव में वह हैं या थे??
..

shayad nahi..

bahut din se aapke lekh ka intjar thaa .

abhar

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....
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हिन्‍दी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले ब्‍लॉग।

Anonymous said...

मन्दिरों की संख्या प्रमाण माना जाये तो लगता है कृष्णजी के साथ अन्याय नहीं हुआ है। उनमें तो वे भगवान राम को स्वीपिंग मेज्यॉरिटी से पछाड़ते नजर आते हैं! :)