23.12.11

जीवन..

सांस सांस कर चुकती जाती, साँसों की यह पूंजी,
जीवन क्यों,जगत है क्या, है अभी तलक अनबूझी..

कभी लगे यह विषम पहेली, अनुपम कभी सहेली,
संगसाथ चलने का भ्रम दे, कर दे निपट अकेली.

कभी लगे है क्या कुछ ऐसा, जो मैं न कर पाऊं,
काल तरेरे भौं जब भी तो , दंभ पे अपनी लजाऊँ.

कभी लगे है बचा हुआ क्या, जो न अबतक देखा,
तभी रचयिता विहंस के पूछे, क्या है अबतक देखा.

कूड़ा कचड़ा ही तो समेटा, जन्म कर दिया जाया,
महत ज्ञानसागर का अबतक, बूँद भी कहाँ पाया.

सोचा था पावन जीवन को, सार्थक कर है जाना,
अर्थ ढूंढते समय चुका , वश है क्या गुजरा पाना.

जाने किस पल न्योता आये, क्षण में उठ जाए डेरा,
माया में भरमाया चित, किस विध समझे यह फेरा..



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7.12.11

हाथ का साथ ....




अईसे काहे बघुआ के, अंखिया तरेर के देख रहा है बे,
साला..नंगा..भुक्खर ...???

आ ...समझा !!! ... भूखा है ???
त ई से हमको मतलब..???
सब अपना अपना भाग का खाते हैं...
हम भी अपना पुन्न का स्टाक से खा और इतरा रहे हैं...
तू भूखा.. नंगा... ई तोरा भाग...
त फिर हमरा भरलका मलाईदार छप्पन भोग थरिया देख के ई जलन काहे.. ई आक्रोस काहे..आयं  ??

चल भाग इहाँ से..

नहीं भागेगा..??

त,,, का कल्लेगा बोल..???

जल्ला कट्टा बोली मारेगा...???

हा हा हा हा...कैसे ??

तोरा जीभ त है, हमरे जेब में ...!!!

त,,, अब का ...???

ओ....गोली मारेगा..???

लेकिन कैसे बे...???

हाथ है...???

सबका हाथ काट के हम जमा कर लिए अपना खजाना में...
अब हाथ, केवल औ केवल हमरे पास है...
आ जिसके हाथ में हमरा दिया हाथ है, ओही किसीको भी बोली या गोली, कुच्छो मार सकता है..

एहिलिये न कहते हैं, धड से आके धर लो ई हाथ...ससुर, राज करेगा राज ...!!!

" हमरा हाथ, हमरा हाथ धरने वाले हर जन- जनावर के साथ "



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