6.6.08

गया जमाना

गहरे अंतस का एक कोना,
प्रिय कभी उस ओर न जाना.

वहाँ बसी कुछ कोमल यादें,
खोया बचपन गया जमाना.

टूटी फूटी फटा पुराना,
गुडिया गहने और खिलौना.

कथा कहानी परियों वाली.
बिना बात के हँसना रोना.

माँ की लोरी,लाड पिता का,
संगी साथी संग झगड़ना.

नन्हें पलकों मे बसता वो,
सुंदर सुंदर स्वप्न सलोना.

न सीमा मे कैद जिंदगी,
ना ही कोई रही वर्जना.

कौन है अपना कौन पराया,
उंच नीच का भेद न माना.

जिसने भी पुचकार भर दिया,
सहज मानना उसको अपना.

बार बार समझाऊं मनको,
बीता बचपन गया ज़माना,

फ़िर भी मुड़ मुड़ उसे देखता,
चाहे फ़िर से गले लगाना.

उस कोने से रहे दमकता,
मेरे मन का हर एक कोना.

9 comments:

बालकिशन said...

जिसने भी पुचकार भर दिया,
सहज मानना उसको अपना."

अति सुंदर, सरल और सच्चा वर्णन.

आज बहुत अच्छा दिन है. बचपन की याद दिलाती तीन पोस्ट पढी. पढ़कर आनंद आगया.
आपकी पोस्ट पढ़ कर भी बचपन आंखो के सामने साकार हो उठा है.
बधाई.

रंजू भाटिया said...

कौन है अपना कौन पराया,
उंच नीच का भेद न माना.

जिसने भी पुचकार भर दिया,
सहज मानना उसको अपना.

बहुत ही सुंदर लिखा है आपने ...

पारुल "पुखराज" said...

दीदी बधायी ……अब ब्लाग के जरिये पढ़ूगी आपको

डॉ .अनुराग said...

टूटी फूटी फटा पुराना,
गुडिया गहने और खिलौना.

कथा कहानी परियों वाली.
बिना बात के हँसना रोना.

माँ की लोरी,लाड पिता का,
संगी साथी संग झगड़ना.

vah bahut sundar....

मैथिली गुप्त said...

सुस्वागतम

Udan Tashtari said...

इस बेहतरीन रचना के साथ हिन्दी ब्लॉगजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

यदुनाथ ज्ञवाली said...

बार बार समझाऊं मनको,

बीता बचपन गया ज़माना.


यह लाइन मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया, बल्की पुरी कविता मनको छु लेने वाला है। आपकी कविता पढकर् मेरा दिल बहुत खुश हुआ।

Morpankh said...

Bahur dino baad achi saral hindi. saadgi se kahi gayi bachpan ke yaadein man bhiga jaati hain.
sach kahein hamein hindi sampoorn bhasha lagti hai...
bahut sundar. badhai.

वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर said...

बार बार समझाऊं मनको,
बीता बचपन गया ज़माना,

फ़िर भी मुड़ मुड़ उसे देखता,
चाहे फ़िर से गले लगाना

very nice poem...........