आते ही सुधबुध बिसराता ,प्रिय यह पत्र तुम्हारा,
विरह विदग्ध तप्त धरा पर ,बह जाए रस धारा।
शब्द शब्द प्रतिरूप तुम्हारा,मुझ मे प्राण भरे,
आलिंगन भर भाव ,मुझे आत्मविस्मृत करे.
धुंध घनी यादें तेरी,मुझपर आच्छादित है,
साँस मेरी मिल साँस से तेरी हुई सुवासित है।
रूप तेरा साकार हुआ कागज के इस टुकड़े मे
दूरी का संताप मिटा डाला जैसे एक पल मे।
मुझमे देख स्पंदन तेरा कण कण व्याप्त हुआ,
थके थके मन मे देखो अद्भुत रोमांच भरा.
कली खिली और महकी बगिया मेरे मन उपवन की,
नस नस मे उठ आई लहरें फ़िर से मधुर मिलन की.
मौन मिलन से मेरे प्रियतम हम हैं एक हुए,
कौन बसा है कितना किसमे प्रश्न ही गौण हुए.
कठिन नही होता पीड़ा को बरसों तक भी सहना,
प्रियतम मेरे तुम बन पाती मुझतक आते रहना.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
15 comments:
कौन बसा है कितना किसमे प्रश्न ही गौण हुए.
बहुत सुंदर भाव.. कमाल का प्रवाह लिए हुए है ये रचना. बधाई स्वीकार करे
कठिन नही होता पीड़ा को बरसों तक भी सहना,
प्रियतम मेरे तुम बन पाती मुझतक आते रहना.
बहुत ही सुंदर भाव पूर्ण है यह कविता .
साहित्यात्मक और सार्थक रचना....ऐसी ही भाषा का अभाव है....
जितने सुंदर शब्द उतने ही सुंदर भाव....बेहतरीन रचना. बधाई
कठिन नही होता पीड़ा को बरसों तक भी सहना,
प्रियतम मेरे तुम बन पाती मुझतक आते रहना.
बहुत उम्दा.
मौन मिलन से मेरे प्रियतम हम हैं एक हुए,
कौन बसा है कितना किसमे प्रश्न ही गौण हुए.
behad khubsurat bhav badhai
बडी सुँदर कविता है ..इसी तरह लिखती रहीये ..
--लावण्या
धुंध घनी यादें तेरी,मुझपर आच्छादित है,
साँस मेरी मिल साँस से तेरी हुई सुवासित है।
बहुत बढ़िया..
सुस्वागतम इस ब्लॉग जगत में. आपकी कविता तो माशाअल्लाह.सुन्दर भाव.
केडीके साहब ने आपको सलाम भेजते हुए यह कविता भेजी है.
मौन हो चुके उन शब्दों को,
फिर से लेकर आना
सुन्दर,सुमधुर भावों को,
जी भर कर छ्लकाना
अनुपम ज्योति जगेगी नित अब,
आस जगी है मन में,
फैला कर उजियारा हर दिन,
जग भर में छा जाना
upar sabne itna kuch kaha hai ke ham aur kya kahein!!!
par itna zaroor kahenge, aapko padh kar aapki hindi par pakad dekh kar garv hota hai ke abhi hindi zinda hai. Aisee bhasha padhne ko nahi milti aaj kal.
Bahut bahut badhai... likhti rahein.
वाह ...बहुत खूब ।
बहुत सुन्दर भावो से लबरेज़ कविता।
बहुत खुबसूरत रचना...
सादर...
कठिन नही होता पीड़ा को बरसों तक भी सहना,
प्रियतम मेरे तुम बन पाती मुझतक आते रहना.
अतिसुंदर.आत्म विश्वास भरी पंक्तियाँ.
बहुत मधुर और कोमल भाव लिए हुए पत्र की महत्ता लिख दी है ..सुन्दर रचना
Post a Comment