10.7.08

माँ मेरी आर्त पुकार सुन...


कातर नयनो से निहार रही,
दृग भरे अश्रु भयभीत खड़ी।

किस हेतु ह्रदय पाषाण किया,
मुझको क्यों मृत्यु दान दिया।

मैं भी तो तेरी संतान हूँ माँ,
तेरी शक्ति औ पहचान हूँ माँ।

ममता का न अपमान यूँ कर,
स्त्रीत्व को न बलिदान तू कर।

मेरा जीवन अभिशाप नही,
बेटी होना कोई पाप नही।

मेरा न कर तू तिरस्कार,
अस्तित्व को न कर तार तार।

मुझको माँ तू स्वीकार कर,
श्रृष्टि को न निस्सार कर।

अपने ममत्व का प्रमाण दे,
मुझको तू जीवन दान दे।

क्या है मेरा तू दोष बता ,
कैसे कर लूँ संतोष बता।

माना भाई तुझे प्यारा है,
कुलदीपक तेरा सहारा है।

तेरा वह वंश बढ़ाएगा,
तुझको सम्मान दिलाएगा।

पर ज्यों मैं तुझको सुन सकती हूँ,
तेरे हर सुख दुख गुन सकती हूँ।

क्या नर वह सब सुन पायेगा,
अनकही तेरी गुन पायेगा।

मुझपर माता विश्वास तो कर,
मुझमे हिम्मत उत्साह तो भर।

मैं इस जग पर छा जाउंगी,
मैं भी तेरा मान बढाऊंगी।

ऐ जननी नारीत्व का मोल तोल,
शंसय के सारे बाँध खोल।

कर दे मेरा उद्धार ऐ माँ,
न ठहरा जग का भार ऐ माँ।

माँ मेरी आर्त पुकार सुन ,
मुझको अपना सौभाग्य चुन।

अब हर्ष से मुझको अपना ले,
उर में भर स्नेह तू बिखरा दे।

भर जाए यह मन मोद से ,
जन्मू तेरी जब कोख से।

जीवन सब का मैं संवारूंगी,
तेरे घर को स्वर्ग बनाऊँगी।

तेरे पथ के सब कांटे चुनु,
तेरे सारे सपने मैं बुनूं ।

मुझे शिक्षा दे संस्कार दे,
मुझे ममता और दुलार दे।

संस्कृति को पोषित मैं करूँ,
परहित निमित्त काया धरुं।

ऐ माँ !! मुझको आ जाने दे,
और इस जग पर छा जाने दे.
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7 comments:

शोभा said...

रंजना जी
बहुत सुन्दर लिखा है-
जीवन सब का मैं संवारूंगी,
तेरे घर को स्वर्ग बनाऊँगी।

तेरे पथ के सब कांटे चुनु,
तेरे सारे सपनो को बुनू।

मुझे शिक्षा दे संस्कार दे,
मुझे ममता और दुलार दे।

संस्कृति को पोषित मैं करूँ,
परहित निमित्त यह देह धरुं।

ऐ माँ मुझको आने दे,
और इस जग पर छाने दे.
बधाई स्वीकारें।

Advocate Rashmi saurana said...

bhut sundar Ranjanaji. maa ke bare me likhana hi bhut badi bat hai. mene bhi kuch dino pahale maa ke upar kavita likhi thi.

मिथिलेश श्रीवास्तव said...

अच्छी कविता, मशहूर कवयित्री वीरा की झलक..बहुत खूब

ghughutibasuti said...

बहुत भावपूर्ण कविता है। परन्तु साथ में यह प्रश्न भी उठता है कि क्यों एक लड़की को अपने जन्म के लिए भी अपना उपयोगी होना सिद्ध करना पड़ता है ? क्या हम बच्चों को जन्म वे हमें बदले में क्या देंगे सोचकर ही देते हैं ? या यह केवल लड़कियों पर लागू होता है ?
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

Ati pravaahpurn, bhavpurn aur apni puri baat sarlta se kahti sunder abhivyakti. Bahut Badhai.

Shishir Shah said...

ek jarne ki tarah bhavnaein bahi hain...aur samvedna lehron ki tarah uthi hain...bahot badhiya...

Shiv said...

बहुत बढ़िया...सरल शब्दों में सुंदर भाव लिए.