आज जबकि टी वी के समस्त राष्ट्रीय हिन्दी समाचार चैनल(दूरदर्शन को छोड़) दिग्भ्रमित हो समाचार धर्मिता से भटक खालिस बाजारवाद की अंधी दौड़ में आँखें मूंदे दौडे चले जा रहे हैं.ख़बरों के नाम पर ये लोग जो परोसते हैं,देखकर अफ़सोस भी होता है,हँसी भी आती है और कभी कभी दया भी आ जाती है कि आख़िर ये किस ओर जा रहे हैं,एक बार भी रुक कर ठहरकर आत्म मंथन की प्रक्रिया से गुजर अपने करनीय और ध्येय की जांच परख करते हैं ?.इतनी बड़ी इनकी टीम होती है,क्या कोई इन्हे सचेत करने वाला नही कि किस तरह ये हँसी के पात्र बन रहे हैं??चौअन्नी छाप वो तारिकाएँ जो सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए किसी भी हद तक गिरने में कोई गुरेज नही करती ,उनमे और इनमे कितना और क्या फर्क रह गया है? ऐसे में आज भी तथाकथित दोयम दर्जे रखने वाले प्रांतीय खबरी चैनलों का स्तर इन राष्ट्रीय चैनलों से बहुत बहुत अच्छा है.या यूँ कहें कि १ से १० के ग्रेड रेटिंग में राष्ट्रीय खबरी चैनल यदि २ पर हैं तो इन्हे ८ - ९ पर माना जाना चाहिए. यह एक सुखद अनुभूति देता है.सभी राज्यों के बारे में नही कह सकती,पर हमारे यहाँ 'ई टी वी बिहार झारखण्ड' तथा सहारा का 'बिहार झारखण्ड न्यूज चैनल' ये दो प्रांतीय चैनल हम देख पाते हैं और इसी के आधार पर मैं अपनी प्रतिक्रिया दे रही हूँ..
रात दस बजे के बाद जिस समय सारे राष्ट्रीय चैनल भूत प्रेत,हत्या बलात्कार की सनसनी फैलाने के होड़ में लिप्त रहते हैं, उस समय यदि शहर से लेकर राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खबर जानने की उत्सुकता हो तो ये प्रांतीय चैनल ही सहारा देते हैं.ख़बरों के प्रबंधन,नियोजन के साथ साथ समसामयिक प्रेरक प्रसंगों(खबरों), गंभीर विषयों पर चर्चा परिचर्चा से लेकर मनोरंजन तथा कुकरी शो सब कुछ इस तरह से नियोजित रहता है कि कभी भी कुछ उबाऊ नही लगता.
अभी करीब तीन दिन पहले देखा कि गया (बिहार)शहर जो कि बिना पानी के नदी(गया में बहने वाली फल्गू नदी में आजतक कभी भी भरी बरसात के मौसम में भी घुटने से ज्यादा पानी नही होता) और बिना पेड़ के पहाड़(गया शहर ही नही उसके आस पास के इलाके में भी असंख्य छोटी छोटी पहाडियां हैं जिनपर कोई पेड़ नही) के रूप में प्रख्यात है, एक व्यक्ति पिछले चौबीस वर्षों से अकेले एक साधक के भांति अपने सम्पूर्ण तन मन धन लगा जुटा हुआ है साधना में और उसका उद्देश्य समस्त बंजर पहाडियों को पेड़ों से आच्छादित कर हरा भरा वन प्रान्त बना देने की है. अबतक कई पहाडियों को पेड़ों से आच्छादित कर चुका है,जिसकी जानकारी प्रशाशन को भी नही है.. ऐसे में चैनल वालों का प्रयास और ख़बर देखकर इतना अच्छा लगा कि सबके लिए दुआएं निकली और लगा यह सराहनीय प्रयास निश्चय ही मुक्त कंठ से प्रशंशनीय है. .जब निम्स्तरीय की हम भर्त्सना कर सकते हैं तो अच्छे प्रयासों की सराहना भी अपरिहार्य है..
कल एक और समाचार देखा कि महाराष्ट्र में "पञ्चशील" नाम के एक स्वयंसेवी महिला संगठन ने जिसके सदस्य ग्रामीण निर्धन महिलाएं हैं , ने वह साहसिक जिम्मेवारी उठा रखी है जो आजतक केवल पुरूष द्वारा ही निष्पादित किए जाते थे. स्त्रियों की यह संस्था शहर तथा आसपास के इलाकों के निर्धन तथा लावारिश ऐसे मृतकों की जिनका अन्तिम संस्कार करने वाला कोई न हो,उनका पूर्ण सम्मान और विधि विधान के साथ अन्तिम संस्कार संपन्न करती हैं(अंत्येष्टि कर्मकांड किसी भी धर्म में पुरुषों द्वारा ही संपन्न होते हैं,जैसा कि आजतक मैंने देखा सुना है).हिंदू हुआ हुआ तो दाह संस्कार और मुस्लिम हुआ तो दफ़नाने की क्रिया.इस क्रम में हर कार्य संश्ता सदस्यों द्वारा ही संपादित होता है.मदद के रूप में नगरनिगम द्वारा प्रति मृतक ३ हजार रूपये इन्हे सहायता राशि रूप में दी जाती है. ख़बर ने मन को हर्ष और गर्व से भर दिया और संस्थान तथा इस ख़बर को हमतक पहुँचने वाले के प्रति मन नतमस्तक हो गया..
समाचार जिन माध्यमो से जनमानस तक पहुँचता है,इलेक्ट्रोनिक मिडिया इसमे सबसे अधिक सशक्त और प्रभावशाली मध्यम है.जाहिर है जो सशक्त होता है वह अच्छा और बुरा दोनों प्रचारित प्रसारित कर और दूरगामी प्रभाव स्थापित करने में सक्षम भी होता है.ऐसे में इनमे कर्तब्य बोध का अभाव निश्चित ही अनिष्टकारी है .अब क्या किया जाए.नाम क्या गिनवाऊँ, जितने भी प्राइवेट न्यूज चैनल हैं,किसी न किसी व्यावसायिक घरानों के ही हैं जिनका उद्देश्य केवल प्रोफिट मेकिंग भर है.तो ऐसे लोगों से क्या उम्मीद की जा सकती है कि ये पत्रकारिता के नैतिक कर्तब्य को समझेंगे और मूल्यों से समझौता किसी कीमत पर नही करेंगे. ये तो बस एक अंतहीन अंधी दौड़ और होड़ में निमग्न हैं.ईश्वर करें समय रहते ये सचेत हो जायें नही तो एक बार यदि जनमानस में साख गिर समाप्त हो गई तो वर्षों लग जायेंगे फ़िर से बनने में.दूर दर्शन जिस तरह राजनितिक पेंचों में फंस अपनी दुर्गति करवा चुका है और आज तक पुरानी साख नही लौटा पाया है,इन्हे कुछ तो सबक लेनी चाहिये उस से .मुझे भय इस बात का भी है कि कहीं ये प्रांतीय न्यूज चैनल भी इनके पीछे इनकी देखा देखी न हो लें.ईश्वर इन सबको सद्बुद्धि और कर्तब्यबोध दें.
30.7.08
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17 comments:
sahi kaha aapne.
बहुत सी बातें जो आपके इस लेख में है वह सही में हम नही देख पाते हैं क्युकी जायदातर न्यूज़ जो कवर की जाती है वह वही है जो आपने कही ..मिडिया अपनी जिम्मेदारी सही से निभाये तो ही वह भविष्य के सुखद है ....
कर्तव्य बोध रह कंहा गया है.
सब के सब अपना अपना प्रोडक्ट बेचने की जुगत लगते है चाहे कुछ भी करना पड़े.
अंधी दौड़ के घोडे बने हुए है सब.
sau fisadi sahmat hu aapse
इस विषय पर मैं आपके लिखे से पूर्ण सहमत हूं।
सही बात की हे आप ने, इस की रोक धाम हे, ओर हमारे ही हाथ मे हे, सीधी सी बात हे आप इन्हे देखना ही बन्द कर दे, जब कोई चरचा करे इन के बारे.आप सीधे कह दे हम बकवास चेनल नही देखते, धीरे धीरे हमे देख कर ओर लोग भी देखना बन्द कर देगे, इस के सिवा भारत मे ओर कोई रास्ता नही, इन्हे बन्द करने का.
धन्यबाद, एक अच्छे लेख के लिये
बिल्कुल हमारे दिल की बात कह दी आपने.बहुत उम्दा आलेख.
u r right but why lament? learn to accept instead of pointless criticism ! dont u get BBC , NDTV or Headlines today? they are selling shit 'cos we r buying it! No?
बिल्कुल सहमत हूँ आपकी बात से.
कुछ अच्छा करने के लिए उसमें दिल और समय भी डालना पड़ता है. आज तो जिसने एम् बी ऐ किया वह प्रबंधक हो गया, पत्रकारिता पढी तो पत्रकार हो गया - इस कागज़ के अलावा भी कुछ चाहिए काम में निखार लाने के लिए.
ऊपर से यह टी आर पी, सर्कुलेशन आदि की गणित. इसके आगे कुछ देखने की ज़रूरत ही नहीं बची है.
बहुत ही शानदार पोस्ट है. बिना किसी लाग-लपेट के बहुत सुंदर विश्लेषण किया है. ये हुई एक अद्भुत ब्लॉग पोस्ट.
MERE BLOG PAR APNI NAZAREIN INAYAT KARNE KE LIYE SHUKRIYA.
...Ravi
ravibhuvns@gmail.com
kaya baat kahi hai aapne. bebak vishleshen ke liye sukriya. likhte rahiye ranjanaji
सही फरमाया
पूर्ण रूप से सहमत
sach kaha aapne ,par sthiti abhi aor bigdegi...ye maan lijeye...
सही कहा आपने। आजके समाचार चैनल समाचार के अलावा बस कुछ परोसते हैं।
ख़बरदार खबर बाजों आपकी खबर लेने रंजना जी आ गई है .
हमारे लिए बहुत ही सनसनीखेज खबर है ये..खबर के नाम पर सब कुछ परोसा जा रहा है..सेक्स स्कैंडल,और ख़बरों का बाजारी करण हाल ही में हुई आरुषि हत्याकांड को इन लोगों ने तमाशा बना कर रख दिया किसी मासूम की मौत को ऐसे भी भुनाया जाता है देख सुनकर सभी हैरान हैं . बड़ा ही सराहनीय प्रयास है आपका हम दिल से सहमत है आपकी बात से. इस तरह के मुद्दे उठाने के लिए आपको धन्यवाद
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