14.10.08

दीपक सा जीवन..........

जबतक दुनिया का ज्ञान न था,

निज परिधि,सामर्थ्य का भान न था.

उस अबोध मन ने देखे जो ,

कितने जीवंत थे वे सपने .

आशा और विश्वाश से सने.

शंशय नही तनिक था मन में,

कि घोर तिमिर में चाँद बनूंगी,

अग जग पर शीतलता बरसा,

संतप्त ह्रदय के कष्ट हरुंगी.

दिन मे सूरज बनकर मैं तो,

शक्ति का प्रतिमान बनूगी.

किंतु ,

अब जब सब जान लिया है,

परिधि भी पहचान लिया है.

फ़िर भी देखो शेष बच गया,

आशा एक अवशेष बच गया.

भले चाँद मैं ना बन पायी,

ना ही मैं सूरज बन पायी.

पर दाता इतना तू कर दे,

शक्ति सामर्थ्य इतना बस भर दे.

एक दीपक सा हो यह जीवन ,

सच्चाई की बाती जिसमे,

करुना कर्म प्रेम का इंधन.

कलुष कालिमा आंधी या तम,

या हो दुःख का घोर प्रलय घन,

कभी भी ना हो यह लौ मद्धम.

तेरे बल से सदा बली हो ,

प्रतिपल जलता रहे प्राण मन ,

अन्धकार को सदा विफल कर ,

आलोकित करे घर और आँगन ..

28 comments:

Unknown said...

रचना जी धन्यवाद बेहतरीन रचना । सार्थक प्रयास और सुन्दर अभिव्यक्ति । दीपक सा हो जीवन बहुत बढिया

रंजू भाटिया said...

एक दीपक सा हो यह जीवन ,

सच्चाई की बाती जिसमे,

करुणा कर्म प्रेम का इंधन.

सुंदर भाव लिए हुए यह आपकी सुंदर सी रचना और बहुत सरल शब्दों में दिल की बात कह रही है .अच्छी लगी यह बहुत

अजय कुमार झा said...

shabdon ke chayan aur sateek upyog se kavita behad bhaavpurn ban padee hai.

विवेक सिंह said...

रंज़ना सिंह के ब्लॉग पर रचना जी को धन्यवाद कह रहे हो neeshoo जी ये बात नहीं मानी जायेगी . वैसे कविता अच्छी है . आभार .

Rachna Singh said...

sunder kavita , sundertam shabd chayan

Shiv said...

शब्दों का भण्डार है तुम्हारे पास. और उसमें से चयन तो गजब का है. गद्य हो या कविता.
बहुत सुंदर कविता.

पारुल "पुखराज" said...

कभी भी ना हो यह लौ मद्धम.

तेरे बल से सदा बली हो ,aameen...

di,us prashn ka uttar mila kya??....jigyasa rahegi....

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Wah Bahut Sunder lagee aapki ye Kavita !

श्यामल सुमन said...

रंजना जी,

क्या सटीक शब्दों का प्रयोग किया है आपने? वाह। बहुत सुन्दर।

भले चाँद मैं ना बन पायी,
ना ही मैं सूरज बन पायी.
पर दाता इतना तू कर दे,
शक्ति सामर्थ्य इतना बस भर दे.
एक दीपक सा हो यह जीवन ,

जब इसे पढ रहा था तो खुद की रचना की दो पंक्तियाँ याद आयी-

व्याप्त अंधेरा कम करने को, क्षीण ज्योति भी ले आता।
रवि, शशि, तारे बात दूर की, जुगनू भी मैं बन पाता।।

बधाई।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

Gyan Dutt Pandey said...

सही है जी; सूरज न बन सकें तो एक कदम तक रोशनी वाला दिया ही बनें।
आदमी एक समय में एक ही कदम चलता है!

श्रीकांत पाराशर said...

Main to itna hi kahunga-- Sabka ho jaye aisa man,to alokit ho uthe har ghar aangan.

कडुवासच said...

"फ़िर भी देखो शेष बच गया,

आशा एक अवशेष बच गया."
..... बहुत प्रभावशाली रचना है।

राज भाटिय़ा said...

एक बहुत ही सुन्दर कविता, ओर इस कविता ने मुझे बहुत से भुले बिसरे शव्द याद दिला दिये, शायद मेने यह शव्द कई सदियो बाद पढे है, ओर पढते हई याद आ गये....
कि घोर तिमिर में चाँद बनूंगी,

अग जग पर शीतलता बरसा,
तिमिर= अंधेरा, सही है ना जरुर बताना
आप का धन्यवाद

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

ranjanaji,
aapki kavita ka bahut sundar bhav hai.

Smart Indian said...

"अब जब सब जान लिया है,
परिधि भी पहचान लिया है.
फ़िर भी देखो शेष बच गया,
आशा एक अवशेष बच गया."

Excellent expression!

निर्झर'नीर said...

स्वयं को पूरी तरह से खोज पाना और निश्चित तौर पर बता देना कि 'मैं ये हूँ', आसान तो नहीं. यह तो एक अनवरत खोज है. अंततः एक नाम ,एक शरीर नही बल्कि व्यक्ति द्वारा जीवन मे प्रतिपादित कर्म ही उसकी पहचान बनते हैं


...aapka vyaktitav aapki soch or chintan sadgi or kala sab ka darshan hai in chand panktiyoN mai.
aapse kisi ka bhi prabhavit hona koi tajjub ki baat nahii .
yakinan hum par bhi aapke prabhav ki chhaya parii hai.

sundar saarpoorn kavita ke liye baNdhaii swikaar karen.

aapki kala ke sampark mai rahne ki khwahish hamesha rahegii.

neelima said...

ati sundar

neelima said...

ati sundar

neelima said...

ati sundar

admin said...

एक दीपक सा हो यह जीवन ,
सच्चाई की बाती जिसमे,
करुना कर्म प्रेम का इंधन

बहुत सुंदर भाव हैं, मेरी समझ से यह कविता के निचोड हैं। बधाई।

BrijmohanShrivastava said...

अवोध मन /संतप्त ह्रदय /तिमिर /जीवंत स्वांत जैसे शब्दों का संयोजन और दीपावली के पूर्व दीपक से जीवन की कामना /श्रेष्ठ रचना

Dev said...

अब जब सब जान लिया है,

परिधि भी पहचान लिया है.

फ़िर भी देखो शेष बच गया,

आशा एक अवशेष बच गया.

भले चाँद मैं ना बन पायी,

ना ही मैं सूरज बन पायी.

पर दाता इतना तू कर दे,

शक्ति सामर्थ्य इतना बस भर दे.

Bahut Sundar rachana
Sahi chitran kiya hai aapne
Badhai
Regards..

डॉ .अनुराग said...

भावपूर्ण ओर अपने आप में कई अर्थ समेटे हुए.....

36solutions said...

बहुत सुन्‍दर प्रस्‍तुति

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

dusaron ko roshani dikhana deepak ka hee kam hai. ab ye bhee nahin kah sakta ki aap deepak ki tarah jalti rahen

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

सब कुछ जान लिया ना
सब कुछ को पहचान लिया ना
बस इतना सा जान लेते ही तो
पता चल जाता है कि हम कितने अधूरे हैं
बस जितनी रौशनी ख़ुद में है
उससे अपने आस-पास को आलोकित करते चले !!

Amit K Sagar said...

वाह!

Anonymous said...

सुंदर भावपूर्ण रचना.