जबतक दुनिया का ज्ञान न था,
निज परिधि,सामर्थ्य का भान न था.
उस अबोध मन ने देखे जो ,
कितने जीवंत थे वे सपने .
आशा और विश्वाश से सने.
शंशय नही तनिक था मन में,
कि घोर तिमिर में चाँद बनूंगी,
अग जग पर शीतलता बरसा,
संतप्त ह्रदय के कष्ट हरुंगी.
दिन मे सूरज बनकर मैं तो,
शक्ति का प्रतिमान बनूगी.
किंतु ,
अब जब सब जान लिया है,
परिधि भी पहचान लिया है.
फ़िर भी देखो शेष बच गया,
आशा एक अवशेष बच गया.
भले चाँद मैं ना बन पायी,
ना ही मैं सूरज बन पायी.
पर दाता इतना तू कर दे,
शक्ति सामर्थ्य इतना बस भर दे.
एक दीपक सा हो यह जीवन ,
सच्चाई की बाती जिसमे,
करुना कर्म प्रेम का इंधन.
कलुष कालिमा आंधी या तम,
या हो दुःख का घोर प्रलय घन,
कभी भी ना हो यह लौ मद्धम.
तेरे बल से सदा बली हो ,
प्रतिपल जलता रहे प्राण मन ,
अन्धकार को सदा विफल कर ,
आलोकित करे घर और आँगन ..
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28 comments:
रचना जी धन्यवाद बेहतरीन रचना । सार्थक प्रयास और सुन्दर अभिव्यक्ति । दीपक सा हो जीवन बहुत बढिया
एक दीपक सा हो यह जीवन ,
सच्चाई की बाती जिसमे,
करुणा कर्म प्रेम का इंधन.
सुंदर भाव लिए हुए यह आपकी सुंदर सी रचना और बहुत सरल शब्दों में दिल की बात कह रही है .अच्छी लगी यह बहुत
shabdon ke chayan aur sateek upyog se kavita behad bhaavpurn ban padee hai.
रंज़ना सिंह के ब्लॉग पर रचना जी को धन्यवाद कह रहे हो neeshoo जी ये बात नहीं मानी जायेगी . वैसे कविता अच्छी है . आभार .
sunder kavita , sundertam shabd chayan
शब्दों का भण्डार है तुम्हारे पास. और उसमें से चयन तो गजब का है. गद्य हो या कविता.
बहुत सुंदर कविता.
कभी भी ना हो यह लौ मद्धम.
तेरे बल से सदा बली हो ,aameen...
di,us prashn ka uttar mila kya??....jigyasa rahegi....
Wah Bahut Sunder lagee aapki ye Kavita !
रंजना जी,
क्या सटीक शब्दों का प्रयोग किया है आपने? वाह। बहुत सुन्दर।
भले चाँद मैं ना बन पायी,
ना ही मैं सूरज बन पायी.
पर दाता इतना तू कर दे,
शक्ति सामर्थ्य इतना बस भर दे.
एक दीपक सा हो यह जीवन ,
जब इसे पढ रहा था तो खुद की रचना की दो पंक्तियाँ याद आयी-
व्याप्त अंधेरा कम करने को, क्षीण ज्योति भी ले आता।
रवि, शशि, तारे बात दूर की, जुगनू भी मैं बन पाता।।
बधाई।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
सही है जी; सूरज न बन सकें तो एक कदम तक रोशनी वाला दिया ही बनें।
आदमी एक समय में एक ही कदम चलता है!
Main to itna hi kahunga-- Sabka ho jaye aisa man,to alokit ho uthe har ghar aangan.
"फ़िर भी देखो शेष बच गया,
आशा एक अवशेष बच गया."
..... बहुत प्रभावशाली रचना है।
एक बहुत ही सुन्दर कविता, ओर इस कविता ने मुझे बहुत से भुले बिसरे शव्द याद दिला दिये, शायद मेने यह शव्द कई सदियो बाद पढे है, ओर पढते हई याद आ गये....
कि घोर तिमिर में चाँद बनूंगी,
अग जग पर शीतलता बरसा,
तिमिर= अंधेरा, सही है ना जरुर बताना
आप का धन्यवाद
ranjanaji,
aapki kavita ka bahut sundar bhav hai.
"अब जब सब जान लिया है,
परिधि भी पहचान लिया है.
फ़िर भी देखो शेष बच गया,
आशा एक अवशेष बच गया."
Excellent expression!
स्वयं को पूरी तरह से खोज पाना और निश्चित तौर पर बता देना कि 'मैं ये हूँ', आसान तो नहीं. यह तो एक अनवरत खोज है. अंततः एक नाम ,एक शरीर नही बल्कि व्यक्ति द्वारा जीवन मे प्रतिपादित कर्म ही उसकी पहचान बनते हैं
...aapka vyaktitav aapki soch or chintan sadgi or kala sab ka darshan hai in chand panktiyoN mai.
aapse kisi ka bhi prabhavit hona koi tajjub ki baat nahii .
yakinan hum par bhi aapke prabhav ki chhaya parii hai.
sundar saarpoorn kavita ke liye baNdhaii swikaar karen.
aapki kala ke sampark mai rahne ki khwahish hamesha rahegii.
ati sundar
ati sundar
ati sundar
एक दीपक सा हो यह जीवन ,
सच्चाई की बाती जिसमे,
करुना कर्म प्रेम का इंधन
बहुत सुंदर भाव हैं, मेरी समझ से यह कविता के निचोड हैं। बधाई।
अवोध मन /संतप्त ह्रदय /तिमिर /जीवंत स्वांत जैसे शब्दों का संयोजन और दीपावली के पूर्व दीपक से जीवन की कामना /श्रेष्ठ रचना
अब जब सब जान लिया है,
परिधि भी पहचान लिया है.
फ़िर भी देखो शेष बच गया,
आशा एक अवशेष बच गया.
भले चाँद मैं ना बन पायी,
ना ही मैं सूरज बन पायी.
पर दाता इतना तू कर दे,
शक्ति सामर्थ्य इतना बस भर दे.
Bahut Sundar rachana
Sahi chitran kiya hai aapne
Badhai
Regards..
भावपूर्ण ओर अपने आप में कई अर्थ समेटे हुए.....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
dusaron ko roshani dikhana deepak ka hee kam hai. ab ye bhee nahin kah sakta ki aap deepak ki tarah jalti rahen
सब कुछ जान लिया ना
सब कुछ को पहचान लिया ना
बस इतना सा जान लेते ही तो
पता चल जाता है कि हम कितने अधूरे हैं
बस जितनी रौशनी ख़ुद में है
उससे अपने आस-पास को आलोकित करते चले !!
वाह!
सुंदर भावपूर्ण रचना.
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