12.1.09

ग्रेजुएट भिखारी !

करीब सोलह सत्रह वर्ष पहले की बात है. छोटा भाई इंजीनियरिंग इंट्रेंस के लिए पटना में रहकर कोचिंग कर रहा था.एक आवश्यक कार्य के सिलसिले में तीन दिनों के लिए मेरा पटना जाना हुआ तो भाई के पास ही रह गई. भाई जिस फ्लैट में रहता था तीन और लड़के उसके साथ रहते थे. सुबह तडके ही भाई उठकर तैयार हो गया और अपने अन्य रूम मेटों के साथ घर से जाने लगा.पूछने पर उसने बताया कि शुशील (उसका रूम मेट) के लिए जगह छेकने कॉलेज जा रहे हैं. बात मेरी समझ में नही आई......मैंने उससे विस्तार में बताने को कहा तो वह यह कहकर चला गया कि ,अभी बहुत हड़बड़ी में हूँ तुझे शार्ट कट में समझा नही सकता, वापस आकर बताऊंगा.


करीब दो बजे जब वह वापस आया तो उसकी और उसके रूम मेटों की अस्त वयस्त हालत देखर मैं परेशान हो गई.लग रहा था जैसे कहीं से लड़ भिड कर आ रहे हैं.घबराकर पूछने लगी तो कहने लगा जरा खा तो लेने दे फ़िर बताता हूँ.उनके खाने भर का समय मुझ पर बड़ा भरी गुजरा.मारे उत्सुकता और आशंका के मेरा बुरा हाल था.


और फ़िर जब उन्होंने विवरण बताया तो मैं बस सन्न हो सुनती रह गई। मेरा यह पहला और अनोखा अनुभव था. भाई के साथ जो अन्य तीन और लड़के रहते थे वे तीनो भाई थे और शुशील उनका सबसे छोटा भाई था जो उस समय आई.एस. सी. की परीक्षा दे रहा था. कॉलेज ने परीक्षा व्यवस्था के नाम पर जो कुछ किया जाता था वह इतना भर था कि जितने विद्यार्थियों को एडमिट कार्ड बांटा जाता था उसके अनुरूप ही प्रश्नपत्र और उत्तर पुस्तिका की व्यवस्था की जाती थी. परीक्षा शुरू होने से घंटे भर पहले मेन गेट खुलता था और फ़िर हो जाती थी जगह की लूट पाट. सीटिंग अरेंजमेंट नाम की कोई व्यवस्था नही होती थी. प्रत्येक विद्यार्थी के साथ कम से कम चार से पाँच लोग साथ जाते थे जिनमे देह और बुद्धि दोनों से बलिष्ठ अलग अलग सहायक होते थे .देह से बलिष्ठ अपने कैंडिडेट के लिए जगह,प्रश्नपत्र तथा उत्तर पुस्तिका लूटने में लग जाते थे और दिमाग वाले प्रश्न पत्रों के उत्तर के इंतजाम में लगने वाले होते थे.

शर्ट, रूमाल,तौलिया,ईंट या पत्थर इत्यादि रखकर जगह छेका जाता था और धक्का मुक्की में घुसकर एडमिट कार्ड दिखाकर प्रश्न और उत्तर पुस्तिका लिया जाता था. भुसकोल (कमजोर) विद्यार्थी के लिए उनके बदले लिखने वाले सहायक भी साथ होते थे और बाकी लोग भाग दौड़ कर सवालों के जवाब उगाहते थे. क्योंकि मेन गेट बंद होने के कारण कैम्पस से बाहर जाकर सवालों को हल करा पाना मुश्किल होता था. आज की तरह उन दिनों मोबाईल या फोन की व्यवस्था तो थी नही,नही तो मुन्ना भाई स्टाइल में सब बैठे बैठे हो जाता. बंद गेट के बाहर से यह व्यवस्था दिखती थी कि पूर्ण व्यवस्थित और शांतिपूर्ण माहौल में परीक्षा संपन्न करायी जा रही है.


हाँ, इतना था कि महाविद्यालय द्वारा परीक्षा के नियत समय पर ही प्रश्न और उत्तरपुस्तिकाओं का वितरण होता था और नियत समय पर यदि प्रोफेसर साहब के पास जाकर उत्तरपुस्तिका जमा नही कर दी जाती थी तो बाद में किसी तरह का कंसीडेरेसन नही होता था.यह अलग बात थी कि आम बच्चो और अभिभावकों में इस बात का बड़ा क्षोभ और रोष था कि रसूख वाले,लग्गी (जुगाडू ) वाले, मंत्री या उच्चअधिकारियों के सगे सम्बन्धियों को महाविद्यालय जाकर इस धक्का मुक्की में नही फँसना पड़ता था.उन्हें एक दिन पहले घर पर ही प्रश्न और उत्तर पुस्तिका उपलब्ध हो जाती थी और वे अपनी सुविधानुसार लिखवाकर उसे महाविद्यालय के दफ्तर भिजवा देते थे.जबकि यह व्यवस्था सबके लिए होनी चाहिए.


यह सब लालू जी के पन्द्रह वर्षीय शुशासन में पूर्ण साक्षरता अभियान का व्यावहारिक रूप था.... उनका सपना था कि बिहार का भिखारी भी ग्रेजुएट हो.हालाँकि नितीश जी ने लालू जी के उस सपने पर झाडू फेर दिया है.पर पता नही लालू/राबड़ी के लंबे राज्यकाल में इस प्रकार की सुविधाओं का सुख भोग चुकी बिहार की जनता कहीं फ़िर से उन सुविधाओं के लिए लालायित हो नितीश जी का पत्ता न साफ कर दे.


वैसे लालू जी के संरक्षण में संरक्षित और संचालित झारखण्ड ने लालू जी के उस सपने को पूरा करने का पूरा मन बना लिया है. गुरु गुड़ रहा गया और चेला चीनी बन चहुँ ओर छा गया .जो हाल लालू जी ने पन्द्रह वर्षों में बिहार का किया वह तमाम झारखण्ड के लालों ने उसके तिहाई समय में वर्षों तक दंगा फसाद सेंदरा कर पुरूस्कार स्वरुप पाए इस झारखंड राज्य का कर दिया.


यूँ ऊपर से देखने पर सरकार की कल्याणकारी नीतियाँ मुग्ध और नतमस्तक कर देती हैं.पर मध्यान्ह भोजन, पुस्तक वितरण,कंप्यूटर प्रशिक्षण ,क्षात्रवृत्ति या साइकिल वितारण से लेकर कोई भी योजना ऐसी नही कि जिसमे सिर्फ़ घोटाले ही घोटाले न हों. कहीं कहीं तो ऐसी हास्यास्पद स्थिति होती है,बस सोचते रह जाना पड़ता है कि इस योजना का प्रयोजन क्या है.मध्यान्ह भोजन में भोजन की व्यवस्था तो है (खद्यान्न के स्तर और घोटाले को जाने दें) ,पर उस भोजन को पकायेगा, खिलायेगा कौन, इसकी कोई योजना/व्यवस्था नही.स्कूल के समय पर पढाने के बदले शिक्षक शिक्षिकाएं भोजन पकाने में व्यस्त रहते हैं और विद्यार्थी भी खेलते कूदते भोजन मिलने की प्रतीक्षा में रहते हैं. भोजन पकाया , खाया गया और हो गई छुट्टी..


और जहाँ तक बात रही परीक्षाओं की तो पहली कक्षा से ग्रेजुएट होने तक तो रेवड़ियों की तरह परीक्षा फल बाँट तन्त्र में यह दिखाना है कि राज्य ने पूर्ण साक्षरता अभियान के लक्ष्य को पा लिया है. भ्रष्टाचार में आकंठ निमग्न सरकार को तो सिर्फ़ इससे मतलब है कि जितनी सरकारी योजनायें होंगी उतने ही कमाई के अवसर होंगे........फ़िर कौन सोचता है कि आरक्षण के तहत यदि इन स्नातकों को रोजगार /नौकरी मिल भी गया तो ये क्या और कैसे करेंगे या अयोग्यता के कारण काम न मिला तो ये ग्रेजुएट (अनपढ़) सचमुच गेजुएट भिखारी बने रह जायेंगे.

42 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

क्या बताया जाये? बडी भयावह तस्वीर दिखाई है आपने. आखिर हम किधर जा रहें हैं?

रामराम.

Vijay said...

Un (early 90's)dino ki yaad aa gayi jab sare Bihar ke vidyarthi acchhe padhai ki khoj mein Delhi bhaga karte the..aasha hai Nitish ji ke sashankaal mein phir se sarkar Nalanda ke sarvaswa ko uddharit karegi.

Harshvardhan said...

jaankari achchi lagi . aapne gatna ko sahi sanche me dhala hai

Gyan Dutt Pandey said...

ओह!
मालूम है यह दशा, पर पढ़ने में पीड़ा उभर आई। नेताओं पर नहीं, जनता पर गुस्सा है। कैसे लोग हैं, कैसा समाज और कैसे नेता चाहते हैं ये! छि!

और झारखण्ड - निर्दलीय मुख्यमन्त्री होता है या फिर वह जो फेवीकोल लगा चिपका रहना चाहता है। जनता की कान में जूं नहीं रेंगती। सम्पदा सम्पन्न प्रांत बना था कि तेजी से विकास करेगा! ठेंगा।

makrand said...

bahut vicharniya thatya
well composed too

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

हर जगह यही कहानी है, कहीं कम कहीं ज्यादा, शासन में कोई भी आये यही कहता है कि हम पिछले से ज्यादा अच्छा कर दिखायेंगे, लेकिन नतीजा क्या ढाक के वही तीन पात. जब व्यवस्था वही, लोग वही, मानसिकता वही तो फिर बदलाव कैसे सम्भव है.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

हर जगह यही कहानी है, कहीं कम कहीं ज्यादा, शासन में कोई भी आये यही कहता है कि हम पिछले से ज्यादा अच्छा कर दिखायेंगे, लेकिन नतीजा क्या ढाक के वही तीन पात. जब व्यवस्था वही, लोग वही, मानसिकता वही तो फिर बदलाव कैसे सम्भव है.

रंजू भाटिया said...

सचमुच आपने इसकी भयावहता का सजीव वर्णन कर दिया ..आने वाला वक्त के क्या क्या रंग दिखायेगा ...

Unknown said...

bahut sateek vivran....
lakin ab to situation chnage ho raha hai....
atleast ab wo maaraa maari nahi hai..

डॉ .अनुराग said...

आँख खोल देने वाला लेख है ओर बिहार की रोजगार मूलक समस्याओ पर एक तीक्षण दृष्टि भी....मेरा एक दोस्त कहता है बिहार में जो गरीब है वे गरीब ही राहे है.ओर जो अमीर वही अमीर हो रहे है .

Shiv said...

पढ़कर सारा दृश्य आंखों के सामने घूम गया. मैंने ख़ुद एक छात्र को अपने पिताजी को हिदायत देते हुए सुना था. छात्र ने एक विषय के एक अध्याय के बारे में बताते हुए अपने पिता से, जो उसे नक़ल कराने परीक्षा केन्द्र पर गए थे, कहा था कि "बाबूजी इसको ज़रूर देख लीजियेगा. ये आने का चांस है."

मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूँ. ये सच है. और बिहार, यूपी, झारखंड ....सब जगह की यही हालत है. लालूजी ने इतना बड़ा प्रयास किया. चरवाहा विद्यालय तक खुलवाया. लेकिन लोग ही नहीं समझ सके....:-)

"अर्श" said...

padh kar stabdh hun kuchh bhi nahi kahane ke isthiti me bahot hi dukhad hai ye sab kuch aaj tak apne desh me kya hoga yahi sonch raha hun .....

अनूप शुक्ल said...

बेहतरीन पोस्ट। हमको सन १९८३ में बिहार में एक अध्यापक के कहे वचन याद आते हैं- हमें यह दुख नहीं है कि यहां नकल होता है। हमारी चिंता यह है कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो अगली पीढ़ी को नकल कौन करायेगा।

P.N. Subramanian said...

यह तो बड़ी दयनीय स्थिति है. इतना नहीं सोचा था.जहाँ नालंदा जैसी विश्व विख्यात संस्थाएं रही हो वहीं के लोग इतने कुसंस्कृत कैसे हो जायेंगे. बहुत सुंदर लिखे इस लेख के लिए आभार.
http://mallar.wordpress.com

राज भाटिय़ा said...

अरे बाप रे... इन ग्रेजुएट से तो भिखारी भले, अगर सरकार को थोडी भी शर्म है तो सब से पहले इस लालू के बच्चो की पांच्वी कलास की परिक्षा ले ऎसे पढे लिखे क्या देश चलायेगे???
हे भगवान

अखिलेश शुक्ल said...

Hello it is hart touching article. If like reading hindi books. pls visit us at
http://katha-chakra.blogspot.com

daanish said...

NICE WRITE !!
vyavstha ki dshaa aur dishaa
dono ujagar ho rahe haiN .
---MUFLIS---

जितेन्द़ भगत said...

रंजना जी, इतनी अराजक स्‍थि‍ति‍ में अच्‍छे छात्र और अच्‍छे शि‍क्षक- दोनों का गुजर-बसर असंभव हो जाता है, इसलि‍ए ऐसे लोग वहॉं से जल्‍दी ही पलायन कर जाते हैं।
अनूप जी की बात बहुत गहन है।)

विवेक सिंह said...

भयानक पोस्ट !

ss said...

स्तिथि बदल भी रही है, बिहार के किसी भी शहर गाँव में जाकर देखें आप इसे महसूस करेंगे| बिहारी जो की हमेशा से IIT, UPSC की सीट्स भरते आए हैं आज अपने ही राज्य में IIT, सिम्प, नालंदा जैसे संस्थान देख रहे हैं| सड़कें, बिजली, क़ानून व्यवस्था सबमें सुधार हुआ है| fast track courts पटना में कार्यरत है और record no. of cases निपटाए गए हैं| लूटमार, अपहरण में ५० % की कमी आई है| नीतिश कुमार ख़ुद जिलों के गाँवों में जा जाकर विकास का लेखा जोखा कर रहे हैं| प्रशाशनिक अधिकारी ख़ुद को जिमीदार समझ रहे हैं|

व्यवस्था बदल रही है, जिस जनता को जाती के नाम पर बेवकूफ बनाया जा रहा था वह आज जाग रही है| कुछ तो ख़ास था बिहार में जो सिरमौर था कभी, आज उस "ख़ास" को restore करने की चेष्टा हो रही है| सब्र रखें| हर तरफ़ प्रकाश फैलाएं, अँधेरा नही|

Kavi Kulwant said...

We have become so self oriented that we always think waht is there in it for ME?

Prakash Badal said...

सचमुच आज बेरोज़गारी बहुत बढ़ गई है और ग्रैजुएट भिखारी बहुत हैं जो नौकरी की भीख़ माँगते फिर रहे है लेकिन भीख भला कहाँ से मिलेगी। रोज़गारों के साधन मुहैया कराने की सख्त ज़रूरत है।

सुप्रतिम बनर्जी said...

रंजना जी,
सचमुच ये बेहद दुखद है। मैं ख़ुद झारखंड से हूं, जो कभी बिहार का हिस्सा था और अब शायद बिहार से भी बदत्तर है। जो कुछ आपने लिखा है, वो सबकुछ सालों से अपनी आंखों के सामने देखता रहा हूं। दिल दर्द और तकलीफ़ से भर जाता है। राज्य कहां जा रहा है और राजनेता अपनी गोटी लाल कर रहे हैं।

hem pandey said...

शिक्षा का यह चौंकाने वाला रूप दिखाने के लिए धन्यवाद. यही कह सकता हूँ- ईश्वर इन्हें सद्बुद्धि दे.

दिगम्बर नासवा said...

रंजना जी
आपने कहा तो बिल्कुल ठीक है, पर चिंता का विषय यह है की कोई भी जाग नही रहा है इस परवर्ती की ख़िलाफ़. दिन बा दिन एक एक कर कर सरे राज्य उस दिशा में अग्रसर हैं. ऐसे लोग हमारी प्रशासनिक सेवा मैं आते हैं और सबका भाग्य निर्धारित करते हैं. यह त्रासदी है या नही

Reetesh Gupta said...

आपका लेख सराहनीय है...जब व्यवस्था ऊपर से नीचे तक भष्ट हो जाती है तब ऎसा ही होता है...और ऎसा होने पर समाज में किसी भी चीज की कीमत नहीं रहती...जो थोड़ा भी ईमानदारी और मेहनत से ऊपर उठना चाहता है उसके पास बिहार छोड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचता है

!!अक्षय-मन!! said...

बहुत ही गहरा मुद्दा है...
आने वाला वक्त उम्मीद है बेहतर होगा.......
नई कोशिशें नए प्रयास हमारे द्वारा हम सब के सहयोग से एक नई बहार नई रौशनी की किरण लेकर आएगी........
निराशा से जीत नही होती हार की और अनुभूति होती है..

अक्षय-मन

कडुवासच said...

... sahee kahaa , shaayad yahee hone waala hai.

निर्झर'नीर said...

hmmmmmmmmmm lol
wahhhh ri janta dhany ho.
isse jyada naa kisi ko jagaya ja sakta hai naa naa sharmsaar.

admin said...

अगर मंदी का यही दौर लंबा खिंचा तो एक दिन डा0 भिखारी भी देखने को मिलेंगे।

Amit Kumar Yadav said...

आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

kumar Dheeraj said...

रंजना जी यह समझ में नही आता है कि यह दोष किसके उपर रखे । विहार का ददॆ समझने वाला कोई नही है । सुनता हू तो चोट जरूर लगती है लेकिन विहार की इस व्यवस्था का ठीकरा किसके सर फोड़ा जाय यह तो मै नही समझता हूं । वहां तो अमर अकबर और एंथोनी की राजनीति चल रही है । भगवान के सहारे सबकुछ चलता है । सुन्दर लेख । शुक्रिया

Arvind Mishra said...

सचमुच बहुत चिंताजनक

BrijmohanShrivastava said...

समरथ को नही दोष गोसाईं तथा सरबाइबल ऑफ़ द फिटेस्ट /बडी मछली छोटी को खाती है यही संसार का नियम है ;ऐसा ही चलता चला आरहा है ऐसा ही चलता रहेगा / हवा चलती है छोटे दीपक को बुझा देती है और जलती आग को भड़का देती है /जिस ढंग से शिक्षा मिलेगी नौकरी मिलेगी उसी ढंग का भविष्य में आचरण होगा /भ्रस्टाचार,और अन्य बातें जो आपने लिखी है अब वे आलोचना की नहीं बल्कि देखते रहने की बातें हैं क्योंकि न आप कुछ कर पायेंगे /आप साहित्यकार है आपका दुखित होना स्वाभाविक है /आदिकवि को क्रोंच बध पर शोक न हुआ होता तो श्लोक भी न बनता /इन कर्णधारों में से कोई होता तो कहता बहुत बुरी बात है क्रोंच को नही मारना चाहिए /कुछ मुआबजा दे दिया जाता नए नए घोंसलों के निर्माण के रूप में /बहेलिया को गिरफ्तार कर लिया जाता , समर्थन और विरोध होता एक पक्ष हत्या को उचित ठहराता दूसरा अनुचित/ जाँच आयोग केस आदि आदि इत्यादि इत्यादि /कवि ह्रदय था विरोध भी नहीं किया बस शोक में डूबा रहा और श्लोक बनता रहा /चूंकि आपका तो संसार ही सम्बेदना का है /ऐसे बातें लिखती रहें .,साहित्य सृजन करती रहे /हम तुम न रहेंगे ,ऐसे लेख इतिहास बन कर हमारे वक्त की दास्ताँ बयां करते रहेंगे / "" कुछ लिखने लायक कर जाओ या कुछ पढने लायक लिख जाओ

Dev said...

आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

Vijay Kumar said...

raat ki to bat na kar ,rat to gujar gayee.[aai subah tu bata roshni kidhar gayee]aajkal kuchh badalav hai to bhi likhiye.

Smart Indian said...

अब समझ आया बिहार की उच्च शिक्षा डर का राज़!

Tapashwani Kumar Anand said...

अभी शुरुआत है, ना जाने कितने तीर छुपा रखे है |
हमने इस चेहरे पर,ना जाने कितने चेहरे लगा रखे है |

वो जो दौरे भगदड़ थी, उसकी बिसात कुछ भी नही,
तुम्हारे वास्ते हर घर मे नया जाल बिछा रखा है |

बच के निकल गये तो, अच्छी है किस्मत "आनंद",
वो भी मुझसा ही था, हम यहाँ जिसको हटा बैठे है

अभी तक नस्ल ठीक ठाक ही पर ये सरकार भी मुझे कुछ वैसी ही दिखती है

प्रदीप मानोरिया said...

भयंकर यथार्थ से रु-बा-रु कराया आपने

Anonymous said...

सुंदर अभिव्यक्ति

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cg4bhadas.com said...

हम आपके आभारी है , और आपके सुझाव , छत्तीसगढ के विकास में सहायक बने इसी आशा के साथ , हमें अपने सुझाव भेजते रहे.
धन्यवाद


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Fighter Jet said...

in suar ki aulado ko nanga kar bich chaurahe pe khara kar goli maar deni chahiye..sale isi tarah desh ka khun chus chus kar khatmal ki tarah jite hai..