5.7.08

आरम्भ तुम्ही,अवसान भी तुम

जिस पल प्राणों के गह्वर में,आकर तुमने डाला डेरा.

मन यूँ घुलमिल एकाकार हुआ,बस काया भर का भेद रहा.

ज्यों ही स्वयं को तुमको सौंपा, मेरा मुझमे न अवशेष बचा.

तुम मुझमे रचे बसे ऐसे,ज्यों रजनीगंधा हो सुवास भरा .

तुम से ही दिन और रैन सजा ,तुमसे ही साज सिंगार रचा.

तुम से ही साँसें संचालित,तुम से ही तो है सुहाग मेरा.

तुम ने ही मेरी गोद भरी ,और पूर्ण हुआ मातृत्व मेरा.

तुम ही हो सुख दुःख के संगी,तुम से ही हास विलास मेरा.

कण कण में मेरे व्याप्त तुम्ही,हर रोम में बसा स्नेह तेरा.

नयनों में पलते स्वप्न तुम्ही,तुमसे ही आदि अंत मेरा.

जीवन पथ के संरक्षक तुम,निष्कंटक करते पंथ सदा .

तुमने जो ओज भरा मुझमे, दुष्कर ही नही कोई कर्म बचा.

जितने भी नेह के नाते हैं,तुममे हर रूप को है पाया.

आरम्भ तुम्ही अवसान भी तुम,प्रिय तुमसे है सौभाग्य मेरा........

10 comments:

संजय शर्मा said...

ब्लॉग वार्ता [नर- नारी ] विराम की स्थिति में आ जायेगी ,ऐसे समाधान ढूंढेंगे तो .पता नही क्यों आज कमलेश अवस्थी का गाया गाना याद आ गया " तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है अंधेरों से भी मिल रही रोशनी है "

रंजू भाटिया said...

सुंदर रचना ..

Advocate Rashmi saurana said...

bhut badhiya.

कुश said...

ग़ज़ब का प्रवाह लिए हुए है ये रचना.. बधाई

Shiv said...

बहुत सुंदर रचना है. बहुत बढ़िया प्रवाह है.

Manish Kumar said...

sundar...poorntah prem se ootprot lagi ye rachna.

शोभा said...

रंजना जी
जिस पल प्राणों के गह्वर में,आकर तुमने डाला डेरा.

मन यूँ घुलमिल एकाकार हुआ,बस काया भर का भेद रहा.

ज्यों ही स्वयं को तुमको सौंपा, मेरा मुझमे न अवशेष बचा.
बहुत ही सुन्दर और प्रभावी रचना है। इतने सुन्दर लेखन के लिए हृदय से बधाई।

डॉ .अनुराग said...

जिस पल प्राणों के गह्वर में,आकर तुमने डाला डेरा.

मन यूँ घुलमिल एकाकार हुआ,बस काया भर का भेद रहा.

ज्यों ही स्वयं को तुमको सौंपा, मेरा मुझमे न अवशेष बचा.

सुंदर रचना ..soch bhi khasi bhavuk hai.

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

बेहतरीन उम्दा बहती हुई रचना, बधाई.