16.10.08

भोला पन है या मति विभ्रम

प्रिय अपना नेहबंध जब तोडे,

स्नेहिल उर अवसाद से भरे.

सरिता मध्य गहन धार में,

पतवार तोड़ कर नाव डुबोये.

भग्न ह्रदय आघात को सहकर,

कैसे कोई फ़िर आस संजोये।

पथराये नयनो में उर में,

कैसे पुनः कोई स्वप्न सजाये .

जाने कि अपनापन बस भ्रम है,

मन फ़िर क्यों न तृष्णा त्यागे.

मति की गति भी बड़ी निराली,

क्षण में बीता सब बिसराए.

अपना उसको माने फ़िर से,

नेह जता जो नयन बहाए.

रंच मात्र शंशय न रखे ,

चाहे भले कोई स्वांग रचाए.

बिसराकर आघात औ पीड़ा,

हिय में भरकर कंठ लगाये.

विश्वास रचा कुछ ऐसे मन में ,

अब कौन भला चित को समझाए.

हास रुदन के फेर में पड़कर,

चहुदिन अपनी गति कराये.

भोला पन है या मति विभ्रम,

अब कौन इसे यह भेद बताये.
.................................................

30 comments:

दीपक कुमार भानरे said...

सुंदर अभिव्यक्ति . बधाई .

admin said...

भोला पन है या मति विभ्रम,
अब कौन इसे यह भेद बताये.

सुन्दर कविता, बहुत बहुत बधाई।

श्यामल सुमन said...

रंजना जी,

मति की गति भी बड़ी निराली,
क्षण में बीता सब बिसराए.
अपना उसको माने फ़िर से,
नेह जता जो नयन बहाए.

सुन्दर भावों से सजी बहुत अच्छी पंक्तियाँ। बढिया अभिव्यक्ति। कभी की लिखी दो पंक्तियाँ याद आयीं-

वृथा न्याय की बातें हैं नित सजती अर्थी नैतिकता की।
पहले घाव हृदय में देता फिर आता उसको सहलाने।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

सुशील छौक्कर said...

बहुत खूब लिखा है। पढकर अच्छा लगा।

Rachna Singh said...

good poem

RADHIKA said...

बहुत ही सुंदर कविता बधाई

Vivek Gupta said...

सुंदर अभिव्यक्ति, सुन्दर कविता, सुन्दर भाव

Suneel R. Karmele said...

सुन्‍दर अभि‍व्‍यक्‍ति‍ सार्थक शब्‍दों में, बहुत-बहुत बधाई।

रंजू भाटिया said...

अब कौन भला चित को समझाए.

हास रुदन के फेर में पड़कर,

चहुदिन अपनी गति कराये.

भोला पन है या मति विभ्रम,

अब कौन इसे यह भेद बताये.

वाह यही बात तो समझ न पाये :) बहुत बढ़िया ..

Vinay said...

भग्न ह्रदय आघात को सहकर,
कैसे कोई फ़िर(--> फिर) आस संजोये।

सुन्दर शब्द चयन

Gyan Dutt Pandey said...

विचार और शब्द - दोनो का ही प्रभावी संगम है आपकी कविता में। बधाई।

BrijmohanShrivastava said...

पहले तो मुझको ही मति विभ्रम हो गया की नराला जी को पढ़ रहा हूँ शिवमंगल सिंह जी को या श्रीयुत सुमित्रानंदन जी को =सचमे आप शब्दों का शब्दकोष हैं -हास-रुदन ,,मति विभ्रम ,,स्नेहिल उर ,,और फिर ये लाइन कि ""पथराये नयनों में ,उर में कैसे कोई स्वप्न सजाये बहुत बहुत बहुत सुंदर बन पड़ा है/
आपने मुझे आदेशित किया था कि ब्लोग्वानी पर रजिस्टर करालूँ -तो उन्होंने जो माँगा वो मैंने भर दिया था अब उन्होंने किया या नहीं /मुझे कुछ आता नहीं है अभी पाँच छ :महीना से ही कम्पुटर सीख रहा हूँ एक सज्जन ने ब्लॉग बनवा दिया एक ब्लोगर ने हिन्दी लिखना सिखा दिया /आपने निर्देश देने की बात कही मुझे कहीं भी आपका निर्देश नहीं मिला /
आज एक लेख ""पापा तुम भी ब्लॉग बनालो ""लिखा है /शायद आपको कुछ अच्छा लगे /

राज भाटिय़ा said...

भोला पन है या मति विभ्रम,

अब कौन इसे यह भेद बताये.
रंजना जी बहुत ही सुंदर कविता
धन्यवाद

Smart Indian said...

भोला पन है या मति विभ्रम,
अब कौन इसे यह भेद बताये.
Rose is a rose is a rose is a rose

विवेक सिंह said...

बहुत खूब .

डॉ .अनुराग said...

सुंदर अभिव्यक्ति.......आपका अपना ही एक ख़ास अंदाज है....शब्दों के चयन में भी....

Manuj Mehta said...

पथराये नयनो में उर में,

कैसे पुनः कोई स्वप्न सजाये .

जाने कि अपनापन बस भ्रम है,

मन फ़िर क्यों न तृष्णा त्यागे

बहुत ही मार्मिक शब्दों का प्रयोग, वकियी कुछ पंक्तियाँ तो दिल को छू गई, बांटने के लिए शुक्रिया.

Shiv said...

शब्दों तो भण्डार तो है ही आपके पास. लेकिन शब्दों को सही जगह पर रखने की समझ अद्भुत है.
बहुत सुंदर कविता है.

वर्षा said...

सुंदर कविता।

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा, क्या बात है!आनन्द आ गया.

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

अछ्ची रचना है आपकी

BrijmohanShrivastava said...

दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ "" कृपा बनाए रखें /

Asha Joglekar said...

भोला पन है या मति विभ्रम,

अब कौन इसे यह भेद बताये.
अति सुंदर ।

अभिषेक मिश्र said...

जाने कि अपनापन बस भ्रम है,

मन फ़िर क्यों न तृष्णा त्यागे.

Vastav mein kafi smvedna hai aapke blog sansaar mein.Aur jaan kar acha laga ki aap bhi Jharkhand se hain. Regards.

रश्मि प्रभा... said...

हास रुदन के फेर में पड़कर,

चहुदिन अपनी गति कराये.

भोला पन है या मति विभ्रम,

अब कौन इसे यह भेद बताये....
gajab ka sammohan hai is lekhan me

विक्रांत बेशर्मा said...

अब कौन भला चित को समझाए.

हास रुदन के फेर में पड़कर,

चहुदिन अपनी गति कराये.

भोला पन है या मति विभ्रम,

अब कौन इसे यह भेद बताये.


बहुत ही सुंदर रचना है !!!!!

महेश लिलोरिया said...

रंजना जी यह कविता अद्‍भुत शब्द सरिता है। इसमें जितनी बार डुबकी लगाअो, हर बार उतने ही तरोताजा होकर निकलते हैं। आज आपकी टिप्पणी की नैया पर सवार होकर पुण्य सलिला तक आने का सौभाग्य मिला।

makrand said...

bahut sunder
well composed too
regards

मोहन वशिष्‍ठ said...

बेहतरीन रचना के लिए आपको बधाई शब्‍दों का अच्‍छा खासा अंबार है आपके मष्तिष्‍क में आभार

Manuj Mehta said...

भग्न ह्रदय आघात को सहकर,

कैसे कोई फ़िर आस संजोये।

पथराये नयनो में उर में,

कैसे पुनः कोई स्वप्न सजाये .

जाने कि अपनापन बस भ्रम है,

मन फ़िर क्यों न तृष्णा त्यागे.



bahut khoob ranjana ji
shaandaar